"कश्मीर का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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== बाहरी कड़ियाँ == |
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*[http://hindi.webdunia.com/current-affairs/history-of-jammu-kashmir-and-ladakh-in-hindi-116081900019_2.html जम्मू, कश्मीर और लद्दाख का इतिहास, जानिए-1] (वेबदुनिया) |
*[http://hindi.webdunia.com/current-affairs/history-of-jammu-kashmir-and-ladakh-in-hindi-116081900019_2.html जम्मू, कश्मीर और लद्दाख का इतिहास, जानिए-1] (वेबदुनिया) |
08:59, 6 अगस्त 2019 का अवतरण
भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू और कश्मीर का इतिहास अति प्राचीन काल से आरंभ होता है।[1]
इतिहास और सभ्यता
समय के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों का संश्लेषण हुआ, जिससे यहां के तीन मुख्य धर्म स्थापित हुए - हिन्दू, बौद्ध और इस्लाम। इनके अलावा सिख धर्म के अनुयायी भी बहुत मिलते हैं।
प्राचीन इतिहास
यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है राजतरंगिणी, जो कल्हण द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या हिन्दू शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। अवन्तिवर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगिट में पाण्डुलिपियां हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा, त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है, जो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।
राज-- वंशावली:
- प्रवरसेन
- गोपतृ
- मेघवाहन
- प्रवरसेन २
- विक्रमादित्य-कश्मीर
- चन्द्रापीड
- तारापीड
- ललितादित्य
- जयपीड
- अवन्तिवर्मन—८५५/६-८८३
- शंकरवर्मन राजा—८८३-९०२
- गोपालवर्मन—९०२-९०४
- सुगन्धा—९०४-९०६
- पार्थ राजा- ९०६-९२१ + ९३१-९३५
- चक्रवर्मन- ९३२-९३३ + ९३५-९३७
- यशस्कर—९३९-९४८
- संग्रामदेव—९४८-९४९
- पर्वगुप्त—९४९-९५०
- क्षेमगुप्त—९५०-९५८
- अभिमन्यु राजा—९५८-९७२
- नन्दिगुप्त—९७२-९७३
- त्रिभुवन—९७३-९७५
- भीमगुप्त—९७५-९८०
- दिद्दा—९८०/१-१००३
- संग्रामराज—१००३-१०२८
- अनन्त राजा—१०२८-१०६३
- कलश राजा—१०६३-१०८९
- उत्कर्ष—१०८९
- हर्ष देव—१०८९-११०१
- उच्चल
- सल्हण
- सुस्सल
- भिक्षाचर
- जयसिँह
- राजदेव—१२१६-१२४०
- सहदेव कश्मीरी राजा—१३०५-१३२४
- कोट रानी—१३२४-१३39
मध्य काल
सन १५८९ में यहां मुगल का राज हुआ। यह अकबर का शासन काल था। मुगल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। यह काल यहां का काला युग कहलाता है। फिर १८१४ में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पठानों की पराजय हुई, व सिख साम्राज्य आया।
आधुनिक काल
अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय १८४६ में हुई, जिसका परिणाम था लाहौर संधि। अंग्रेजों द्वारा महाराजा गुलाब सिंह को गद्दी दी गई जो कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना। गिलगित एजेन्सी अंग्रेज राजनैतिक एजेन्टों के अधीन क्षेत्र रहा। कश्मीर क्षेत्र से गिलगित क्षेत्र को बाहर माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा जम्मू और कश्मीर में पुन: एजेन्ट की नियुक्ति हुई। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 ई. में गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 ई. तक शासन किया।
अधिमिलन और समेकन
- ब्रिटिश इंडिया का विभाजन
- 1947 में 560 अर्ध्द स्वतंत्र शाही राज्य अंग्रेज साम्राज्य द्वारा प्रभुता के सिध्दांत के अंतर्गत 1858 में संरक्षित किए गये।
- केबिनेट मिशन ज्ञापन के तहत, भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा इन राज्यों की प्रभुता की समाप्ति घोषित हुई, राज्यों के सभी अधिकार वापस लिए गए, व राज्यों का भारतीय संघ में प्रवेश किया गया। ब्रिटिश भारत के सरकारी उत्तराधिकारियों के साथ विशेष राजनैतिक प्रबंध किए गए।
- कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान और भारत के साथ तटस्थ समझौता किया। पाकिस्तान के साथ समझौता पर हस्ताक्षर हुए।
- भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर से पहले, पाकिस्तान ने कश्मीर की आवश्यक आपूर्ति को काट दिया जो तटस्थता समझौते का उल्लंघन था। उसने अधिमिलन हेतु दबाव का तरीका अपनाना आरंभ किया, जो भारत व कश्मीर, दोनों को ही स्वीकार्य नहीं था।
- जब यह दबाव का तरीका विफल रहा, तो पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। यह 24 अक्टूबर, 1947 की बात है।
- नेशनल कांफ्रेंस, जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था, व अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे; ने भी भारत से रक्षा की अपील की।
- हरि सिंह ने गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को कश्मीर में संकट के बारे में लिखा, व साथ ही भारत से अधिमिलन की इच्छा प्रकट की। इस इच्छा को माउंटबेटन द्वारा 27 अक्टूबर, 1947 को स्वीकार किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत यदि एक भारतीय राज्य प्रभुत्व को स्वींकारने के लिए तैयार है, व यदि भारत का गर्वनर जनरल इसके शासक द्वारा विलयन के कार्य के निष्पादन की सार्थकता को स्वीकार करे, तो उसका भारतीय संघ में अधिमिलन संभव था।
- पाकिस्तान द्वारा हरि सिंह के विलयन समझौते में प्रवेश की अधिकारिता पर कोई प्रश्न नहीं किया गया। कश्मीर का भारत में विलयन विधि सम्मत माना गया। व इसके बाद पठान हमलावरों को खदेड़ने के लिए 27 अक्टूबर, 1947 को भारत ने सेना भेजी, व कश्मीर को भारत में अधिमिलन कर यहां का अभिन्न अंग बनाया।
संयुक्त राष्ट्र
- भारत कश्मीर मुद्दे को 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया। परिषद ने भारत और पाकिस्तान को बुलाया, व स्थिति में सुधार के लिए उपाय खॊजने की सलाह दी। तब तक किसी भी वस्तु परिवर्तन के बारे में सूचित करने को कहा। यह 17 जनवरी, 1948 की बात है।
- भारत और पाकिस्तान के लिए एक तीन सदस्यी संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) 20 जनवरी, 1948 को गठित किया गया, जो कि विवादों को देखे। 21 अप्रैल, 1948 को इसकी सदस्यता का प्रश्न उठाया गया।
- तब तक कश्मीर में आपातकालीन प्रशासन बैठाया गया, जिसमें, 5 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में अंतरिम सरकार द्वारा स्थान लिया गया।
- 13 अगस्त, 1948 को यूएनसीआईपी ने संकल्प पारित किया जिसमें युद्ध विराम घोषित हुआ, पाकिस्तानी सेना और सभी बाहरी लोगों की वापसी के अनुसरण में भारतीय बलों की कमी करने को कहा गया। जम्मू और कश्मीर की भावी स्थिति का फैसला 'लोगों की इच्छा' के अनुसार करना तय हुआ। संपूर्ण जम्मू और कश्मीर से पाकिस्तान सेना की वापसी, व जनमत की शर्त के प्रस्ताव को माना गया, जो- कभी नहीं हुआ।
- संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान के अंतर्गत युध्द-विराम की घोषणा की गई। यूएनसीआईपी संकल्प - 5 जनवरी, 1949। फिर 13 अगस्त, 1948 को संकल्प की पुनरावृति की गई। महासचिव द्वारा जनमत प्रशासक की नियुक्ति की जानी तय हुई।
निर्माणात्मक वर्ष
- ऑल जम्मू और कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस ने अक्टूबर,1950 को एक संकल्प किया। एक संविधान सभा बुलाकर वयस्क मताधिकार किया जाए। अपने भावी आकार और संबध्दता जिसमें इसका भारत से अधिमिलन सम्मिलित है का निर्णय लिया जाये, व एक संविधान तैयार किया जाए।
- चुनावों के बाद संविधान सभा का गठन सितम्बर, 1951 को किया गया।
- ऐतिहासिक 'दिल्ली समझौता - कश्मीरी नेताओं और भारत सरकार द्वारा- जम्मू और कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच सक्रिय प्रकृति का संवैधानिक समझौता किया गया, जिसमें भारत में इसके विलय की पुन:पुष्टि की गई।
- जम्मू और कश्मीर का संविधान, संविधान सभा द्वारा नवम्बर, 1956 को अंगीकृत किया गया। यह 26 जनवरी, 1957 से प्रभाव में आया।
- राज्य में पहले आम चुनाव अयोजित गए, जिनके बाद मार्च, 1957 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस द्वारा चुनी हुई सरकार बनाई गई।
- राज्य विधान सभा में १९५९ में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया, जिसमें राज्य में भारतीय चुनाव आयोग और भारत के उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के विस्तार के लिए राज्य संविधान का संशोधन पारित हुआ।
- राज्य में दूसरे आम चुनाव १९६२ में हुए जिनमें शेख अब्दुल्ला की सत्ता में पुन: वापसी हुई।
हजरत बल से पवित्र अवशेष की चोरी
दिसम्बर, 1963 में एक दुर्भाग्यशाली घटना में हजरत बल मस्जिद से पवित्र अवशेष की चोरी हो गई। मौलवी फारूक के नेतृत्व के अधीन एक कार्य समिति द्वारा भारी आन्दोलन की शुरूआत हुई, जिसके बाद पवित्र अवशेष की बरामदगी और स्थापना की गई। assAcdascs
पाकिस्तान के साथ युद्ध
अगस्त,1965 में जम्मू कश्मीर में घुसपैठियों की घुसपैठ के साथ पाकिस्तानी सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण किया गया। जिसका भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। इस युद्ध का अंत 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौते के बाद हुआ।
राजनैतिक समेकन
- राज्य विधान सभा के लिए मार्च, 1967 में तीसरे आम चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस सरकार बनी
- फरवरी, 1972 में चौथे आम चुनाव हुए जिनमें पहली बार जमात-ए-इस्लामी ने भाग लिया व 5 सीटें जीती। इन चुनावों में भी कांग्रेस सरकार बनी।
- भारत और पाकिस्तान के बीच 3 जुलाई, 1972 को ऐतिहासिक 'शिमला समझौता हुआ, जिसमें कश्मीर पर सभी पिछली उद्धोषणाएँ समाप्त की गईं, जम्मू और कश्मीर से संबंधित सारे मुद्दे द्विपक्षीय रूप से निपटाए गए, व - युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा में बदला गया।
- फरवरी, 1975 को कश्मीर समझौता समाप्त माना गया, व भारत के प्रधानमंत्री के अनुसार 'समय पीछे नहीं जा सकता'; तथा कश्मीरी नेतृत्व के अनुसार- 'जम्मू और कश्मीर राज्य का भारत में अधिमिलन कोई मामला नहीं' कहा गया।
- जुलाई, 1975 में शेख अब्दुल्ला मुख्य मंत्री बने, जनमत फ्रंट स्थापित और नेशनल कांफ्रेंस के साथ विलय किया गया।
- जुलाई, 1977 को पाँचवे आम चुनाव हुए जिनमें नेशनल कांफ्रेंस पुन: सत्ता में लौटी - 68% मतदाता उपस्थित हुए।
- शेख अब्दुल्ला का निधन 8 सितम्बर, 1982 होने पर, उनके पुत्र डॉ॰ फारूख अब्दुल्ला ने अंतरिम मुख्य मंत्री की शपथ ली व छठे आम चुनावों में जून,1983 में नेशनल कांफ्रेंस को विजय मिली।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख का इतिहास, जानिए-1 (वेबदुनिया)
- दशकों पुरानी कटुता (बीबीसी हिन्दी)