"उपपुराण": अवतरणों में अंतर

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=== पुराण नामधारी अन्य ग्रन्थ ===
=== पुराण नामधारी अन्य ग्रन्थ ===
पूर्वोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त भी 'पुराण' नामधारी अनेकानेक ग्रन्थों का प्रणयन बाद में भी होता रहा है। कुछ ग्रंथ तो आधुनिक संपादन का परिणाम है। उदाहरणस्वरूप [[विश्वकर्मा]] से संबंधित वर्णों को विभिन्न ग्रंथों से एकत्र कर विभिन्न संपादकों ने 'विश्वकर्मा पुराण' नाम से निजी इच्छानुसार अध्यायों में विभाजित कर विभिन्न स्थानों से प्रकाशित करवाया है। 'श्रीमहाविश्वकर्मपुराण' इससे भिन्न रचना है, परन्तु उसका नाम किसी प्राचीन साहित्य में नहीं आया है। विभिन्न संप्रदाय के लोगों ने अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए पुराण नामधारी ग्रंथों की रचना कर डाली है। इनमें से अनेक प्रकाशित भी हैं। ऐसे प्रकाशित ग्रन्थों में प्रमुख हैं :
पूर्वोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त भी 'पुराण' नामधारी अनेकानेक ग्रन्थों का प्रणयन बाद में भी होता रहा है। कुछ ग्रंथ तो आधुनिक संपादन का परिणाम है। उदाहरणस्वरूप [[विश्वकर्मा]] से संबंधित वर्णनों को विभिन्न ग्रन्थों से एकत्र कर विभिन्न संपादकों ने 'विश्वकर्मा पुराण' नाम से निजी इच्छानुसार अध्यायों में विभाजित कर विभिन्न स्थानों से प्रकाशित करवाया है।<ref>श्रीमहाविश्वकर्मपुराणम् (सानुवाद), संपादक- डॉ श्रीकृष्ण 'जुगनू', परिमल पब्लिकेशंस, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2015, पृष्ठ-xxix.</ref> 'श्रीमहाविश्वकर्मपुराण' इससे भिन्न रचना है, परन्तु उसका नाम किसी प्राचीन साहित्य में नहीं आया है। विभिन्न संप्रदाय के लोगों ने अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए पुराण नामधारी ग्रंथों की रचना कर डाली है। इनमें से अनेक प्रकाशित भी हैं। ऐसे प्रकाशित ग्रन्थों में प्रमुख हैं :
* दत्तपुराणम् (दत्तात्रेयपुराणम्)
* दत्तपुराणम् (दत्तात्रेयपुराणम्)
* श्रीमहाविश्वकर्मपुराणम्
* श्रीमहाविश्वकर्मपुराणम्

04:05, 3 जून 2019 का अवतरण

उपपुराण समान्यतः पुराण नाम से प्रचलित अष्टादश महापुराणों के बाद रचित एवं प्रचलित उन ग्रन्थों को कहते हैं जो पंचलक्षणात्मक प्रसिद्ध महापुराणों से विषयों के विन्यास तथा देवीदेवताओं के वर्णन में छोटे होते हैं, परन्तु उनसे कथाविशेष में समानता रखते हैं। इनकी यथार्थ संख्या तथा नाम के विषय में बहुत मतभेद है।

अष्टादश उपपुराण

अष्टादश पुराणों की तरह अष्टादश उपपुराण भी परम्परा से प्रचलित हैं एवं अनेकत्र उनका उल्लेख मिलता है। इन उप पुराणों की संख्या यद्यपि अठारह प्रचलित है, परन्तु इससे बहुत अधिक मात्रा में उपपुराण नामधारी ग्रन्थों का उल्लेख तथा अस्तित्व मिलता है। संग्रह भाव से एकत्र की गयी उपपुराणों की सूचियाँ ही करीब दो दर्जन हैं। डॉ॰ आर॰ सी॰ हाज़रा ने अपनी उपपुराण विषयक पुस्तक में विभिन्न ग्रन्थों से उपपुराणों की तेईस सूचियाँ प्रस्तुत की हैं।[1] इन्हीं सूचियों को देवनागरी लिपि में डॉ॰ कपिलदेव त्रिपाठी ने 'पाराशरोपपुराणम्' की भूमिका में प्रस्तुत किया है।[2] इन सूचियों में कुछ और जोड़कर डॉ॰ बृजेश कुमार शुक्ल ने 'आद्युपपुराणम्' की भूमिका में मूल श्लोक रूप में कुल २७ सूचियाँ प्रस्तुत की हैं।[3] २८ वीं में मत्स्य पुराण के उद्धरण हैं। इन सभी सूचियों में से कुछ को छोड़कर शेष सभी के मूलाधार ग्रन्थों में बाकायदा कूर्म पुराण का नाम लेकर पूर्वोक्त सूची ही प्रस्तुत की गयी है। फिर भी कहीं-कहीं पाठभेद मिलने पर इन अध्येताओं ने उन्हें अलग पुराण के रूप में गिन लिया है। इस सन्दर्भ में यह तथ्य विशेष ध्यातव्य है कि उपपुराणों की सर्वाधिक विश्वसनीय एवं अपेक्षाकृत सर्वाधिक प्राचीन सूची अष्टादश मुख्य पुराणों में ही अनेकत्र मिलती है। यह तथ्य भी विशेष ध्यातव्य है कि मुख्य पुराणों में उपलब्ध ये सूचियाँ बिल्कुल सामान हैं। स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड[4][5] में तथा कूर्म पुराण[6] एवं गरुड़ पुराण में प्रायः बिल्कुल समान रूप में अष्टादश उपपुराणों की सूची दी गयी है, जो इस प्रकार है :-

अष्टादश उपपुराणों की सूची

  1. आदि पुराण (सनत्कुमार द्वारा कथित)
  2. नरसिंह पुराण
  3. नन्दिपुराण (कुमार द्वारा कथित)
  4. शिवधर्म पुराण
  5. आश्चर्य पुराण (दुर्वासा द्वारा कथित)
  6. नारदीय पुराण (नारद द्वारा कथित)
  7. कपिल पुराण
  8. मानव पुराण
  9. उशना पुराण (उशनस्)
  10. ब्रह्माण्ड पुराण
  11. वरुण पुराण
  12. कालिका पुराण
  13. माहेश्वर पुराण
  14. साम्ब पुराण
  15. सौर पुराण
  16. पाराशर पुराण (पराशरोक्त)
  17. मारीच पुराण
  18. भार्गव पुराण

नामान्तर एवं स्पष्टीकरण

यह ध्यातव्य है कि उपर्युक्त क्रम में प्रथम उपपुराण को प्रायः सभी सूचियों में 'आद्यं सनत्कुमारोक्तम्' कहने के बावजूद टीकाकारों ने 'आद्यं' का अर्थ पहला तथा 'सनत्कुमारोक्तम्' का अर्थ 'सनत्कुमार पुराण' लिख दिया है। परन्तु, स्वयं 'आदि पुराण' में यह स्पष्ट उल्लेख है कि इसका उपदेश सर्वप्रथम सनत्कुमार ने दिया था तथा इसका नाम 'आदि पुराण' है।[7] इसी प्रकार तीसरे स्थान पर कथित 'नन्दिपुराण' का नाम वस्तुतः मूल श्लोकों में नाम गिनाते समय 'कुमारोक्त स्कान्द' कहा गया है, परन्तु उसके बाद वर्णन के क्रम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कार्तिकेय के द्वारा नन्दी के माहात्म्य-वर्णन वाला यह पुराण ही 'नन्दिपुराण' के नाम से विख्यात है।[8][9] यह स्पष्टीकरण नाम मात्र के पाठ भेद से मत्स्य पुराण में भी दिया गया है।[10] अतः तीसरे स्थान पर उक्त पुराण का नाम वस्तुतः 'नन्दिपुराण' ही सिद्ध होता है।

दूसरी बात यहाँ गौर करने की यह है कि मुख्य पुराणों में दी गयी उप पुराणों की सभी सूचियों में ब्रह्माण्ड पुराण का नाम भी है, जिससे यह प्रतीत होता है कि मुख्य ब्रह्माण्ड पुराण के अतिरिक्त इस नाम का कोई उपपुराण भी था, जिसका नाम इन सूचियों में मौजूद है।

अठारह मुख्य पुराणों के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुराण देवीभागवत में दी गयी उपपुराणों की सूची[11] में यदि क्रम-भिन्नता को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश नाम तो पूर्वोक्त सूची के समान ही हैं, पर कुछ नामों में भिन्नता भी है। देवी भागवत में चौथे स्थान पर शिवधर्म के बदले केवल 'शिव' नाम दिया गया है तथा ब्रह्माण्ड, मारीच एवं भार्गव के नाम छोड़ दिये गये हैं और उनके बदले आदित्य, भागवत एवं वासिष्ठ नाम दिये गये हैं। श्रीमद्भागवत पुराण एवं देवी भागवत में से कौन वस्तुतः महापुराण है, यह विवाद तो प्रसिद्ध ही है, जिस पर यहाँ कुछ भी लिखना उचित नहीं है। दूसरी बात यह कि तीन-तीन मुख्य पुराणों से उद्धृत पूर्वोक्त सूची में से किसी में भागवत या देवी भागवत -- किसी का नाम नहीं है। 'आदित्य पुराण' के नाम को लेकर भारी भ्रम प्रचलित है। कहीं तो उसे स्वतंत्र पुराण मान लिया गया है और कहीं 'सौर पुराण' का पर्यायवाची मान लिया गया है। परन्तु, इस सन्दर्भ में स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड तथा मत्स्य पुराण में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है कि आदित्य महिमा से सम्बद्ध होने के कारण 'साम्ब पुराण' को ही 'आदित्य पुराण' कहा जाता है।[12][13] अतः आदित्य पुराण कोई स्वतंत्र पुराण न होकर साम्ब पुराण का ही पर्यायवाची नाम है। अतः इस दृष्टि से विचार करने पर भी पूर्वोक्त सूची ही सर्वाधिक प्रामाणिक ज्ञात होती है।

उपपुराणों के अध्येता डॉ॰ लीलाधर 'वियोगी' उपपुराणों की संख्या बढ़ाने में इस कदर लीन हो गये हैं कि अनेक जगह 'कुमार द्वारा कथित' 'स्कान्द' ही वस्तुतः 'नन्दी पुराण' है तथा 'साम्ब पुराण' का ही दूसरा नाम 'आदित्य पुराण' है, ऐसा उल्लेख रहने के बावजूद वे ऐसा कोई उद्धरण न देकर भिन्न-भिन्न पुराणों की संख्या बढ़ाते गये हैं। उपपुराणों में परिगणित 'ब्रह्माण्ड पुराण' मुख्य पुराणों में परिगणित 'ब्रह्माण्ड पुराण' से भिन्न है, इसलिए दूसरे ब्रह्माण्ड के साथ 'अपर' नाम लगा रहने से डॉ॰ वियोगी उसे एक और भिन्न उपपुराण मान लेते हैं।[14] श्रीविष्णु पुराण भी पराशर द्वारा ही कथित है इसलिए पराशर द्वारा उक्त उपपुराण को भिन्न दिखलाने के लिए कहीं-कहीं उसके साथ 'अपर' नाम लगा दिया गया तो डॉ॰ वियोगी उसे भी पूर्व के 'पाराशर उपपुराण' से एक और भिन्न उपपुराण मान लेते हैं।[15] मूल ग्रन्थों में अनेकत्र स्पष्ट उल्लेखों के बावजूद ऐसी अनवधानता के कारण पुराणों की संख्या भ्रामक रूप से बढ़ती चली गयी है।

अन्य प्रसिद्ध धर्मग्रन्थों में सूची एवं विचार

हेमाद्रि विरचित 'चतुर्वर्गचिन्तामणि' में भी कूर्म पुराण का नाम लेकर उसके अनुसार उपपुराणों का नाम गिनाया गया है तथा अंत में फिर लिखा है कि ऐसा कूर्म पुराण में कहा गया है।[16]

'वीरमित्रोदय' के 'परिभाषा प्रकाश' में भी कूर्म पुराण का नाम लेकर वही सूची प्रस्तुत की गयी है। यहाँ यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि उपपुराण के अन्तर्गत उल्लिखित 'नारदीय' एवं 'ब्रह्माण्ड' महापुराण से भिन्न है।[17]

'नित्याचारप्रदीपः' में भी पूर्ववत् कूर्म पुराण वाली ही सूची दी गयी है तथा यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यद्यपि प्रसिद्ध नरसिंह पुराण में अठारह हजार श्लोक उपलब्ध नहीं होते हैं परन्तु ऐसा कालक्रम से श्लोकों के लुप्त हो जाने से हुआ होगा। इसी प्रकार 'स्कान्द' नाम से कथित पुराण 'नन्दीपुराण' ही है यह भी स्पष्ट कर दिया गया है। पुनः 'साम्ब पुराण' को ही 'आदित्य पुराण' कहा जाता है यह श्लोक भी उद्धृत है।[18]

अद्वैत वेदान्त के प्रख्यात मनीषी मधुसूदन सरस्वती ने भी पूर्वोक्त सूची ही दी है। उनके कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि 'माहेश्वर पुराण' का ही दूसरा नाम 'वाशिष्ठलिंग पुराण' है।[19]

औप पुराण

पूर्वोक्त प्राचीन तथा प्रसिद्ध उपपुराणों के अतिरिक्त उपपुराणों की दो और सूचियाँ मिलती हैं, जिन्हें अति पुराण एवं पुराण अथवा औप पुराण कहा गया है। अति पुराण के अंतर्गत सूची इस प्रकार है-- कार्तव, ऋजु, आदि, मुद्गल, पशुपति, गणेश, सौर, परानन्द, बृहद्धर्म, महाभागवत, देवी, कल्कि, भार्गव, वाशिष्ठ कौर्म, गर्ग, चण्डी और लक्ष्मी। पुराण अथवा औप पुराण के अन्तर्गत सूची इस प्रकार है-- बृहद्विष्णु, शिव उत्तरखण्ड, लघु बृहन्नारदीय, मार्कण्डेय, वह्नि, भविष्योत्तर, वराह, स्कन्द, वामन, बृहद्वामन, बृहन्मत्स्य, स्वल्पमत्स्य, लघुवैवर्त और ५ प्रकार के भविष्य।[20]

इस सूची में 'महाभागवत' एवं 'देवी पुराण' के नाम अलग-अलग हैं जबकि ये दोनों नाम वस्तुतः एक ही पुराण के हैं। इनके अलावा अन्य नामों में जो नाम महापुराणों एवं पूर्वोक्त उपपुराणों से मिलते-जुलते हैं तथा भिन्न रूप में उपलब्ध भी नहीं हैं, उन्हें यदि छोड़ दिये जाएं तथा लगभग १००० ई॰ के आसपास रचित[21] 'विष्णुधर्म' एवं 'एकाम्र पुराण' के नाम जोड़ दिये जाएं तो औप पुराणों की सूची इस प्रकार होगी :-

  1. बृहद्विष्णु
  2. विष्णुधर्म
  3. शिव उत्तरखण्ड (शिव धर्मोत्तर)
  4. भविष्योत्तर
  5. मुद्गल
  6. पशुपति
  7. गणेश
  8. परानन्द
  9. बृहद्धर्म
  10. महाभागवत (देवी)
  11. कल्कि
  12. वाशिष्ठ
  13. गर्ग
  14. चण्डी
  15. लक्ष्मी
  16. कार्तव
  17. ऋजु
  18. एकाम्र

पुराण नामधारी अन्य ग्रन्थ

पूर्वोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त भी 'पुराण' नामधारी अनेकानेक ग्रन्थों का प्रणयन बाद में भी होता रहा है। कुछ ग्रंथ तो आधुनिक संपादन का परिणाम है। उदाहरणस्वरूप विश्वकर्मा से संबंधित वर्णनों को विभिन्न ग्रन्थों से एकत्र कर विभिन्न संपादकों ने 'विश्वकर्मा पुराण' नाम से निजी इच्छानुसार अध्यायों में विभाजित कर विभिन्न स्थानों से प्रकाशित करवाया है।[22] 'श्रीमहाविश्वकर्मपुराण' इससे भिन्न रचना है, परन्तु उसका नाम किसी प्राचीन साहित्य में नहीं आया है। विभिन्न संप्रदाय के लोगों ने अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए पुराण नामधारी ग्रंथों की रचना कर डाली है। इनमें से अनेक प्रकाशित भी हैं। ऐसे प्रकाशित ग्रन्थों में प्रमुख हैं :

  • दत्तपुराणम् (दत्तात्रेयपुराणम्)
  • श्रीमहाविश्वकर्मपुराणम्
  • युगपुराणम्
  • वासुकिपुराणम्
  • नीलमतपुराणम्

इन ग्रन्थों के नाम किसी प्राचीन सूची में नहीं मिलता है और इनके पौराणिक ग्रंथ होने पर भी संदेह व्यक्त किया गया है। 'नीलमतपुराणम्' के पुराण होने या न होने के सन्दर्भ में स्वयं इसके संपादक ने जोर देकर कहा है कि 'नीलमतम्' पुराणों की श्रेणी में नहीं आता है। (Strictly speaking, the Nilamatam does not come under the category of The Puranas.)

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Studies In The Upapuranas, volume-1, Dr. R.C. Hazra, Sanskrit College, Calcutta, edition-1958, p.4-13.
  2. पाराशरोपपुराणम् , संपादक- डॉ॰ कपिलदेव त्रिपाठी, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९९०, पृष्ठ-१६-२४.
  3. आद्युपपुराणम् (सानुवाद), सं॰अनु॰- डॉ॰ बृजेश कुमार शुक्ल, नाग पब्लिशर्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2003, पृष्ठ-X-XXI.
  4. स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड-२-११ से १५; स्कन्दमहापुराणम् (मूलमात्र), चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी, द्वितीय संस्करण- सन् २०११, पृष्ठ-३.
  5. संक्षिप्त स्कन्दपुराणांक, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण- संवत् २०५८, पृष्ठ-९४७.
  6. कूर्मपुराण, पूर्वभाग-१-१७ से २०; कूर्मपुराण (सटीक), गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम संस्करण- संवत् २०६१, पृष्ठ-२,३.
  7. आद्युपपुराणम्-५-२, आद्युपपुराणम् (सानुवाद), सं॰अनु॰- डॉ॰ बृजेश कुमार शुक्ल, नाग पब्लिशर्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2003, पृष्ठ-XXV एवं 27.
  8. स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड-२-८१; स्कन्दमहापुराणम् (मूलमात्र), चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी, द्वितीय संस्करण- सन् २०११, पृष्ठ-६.
  9. संक्षिप्त स्कन्दपुराणाङ्क, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण- संवत् २०५८, पृष्ठ-९४९.
  10. मत्स्यपुराण-५३-६०; मत्स्यमहापुराण (सटीक), गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम संस्करण- संवत् २०६१, पृष्ठ-२०७.
  11. देवीभागवतपुराण-१-३-१३ से १६; देवीभागवतमहापुराण (सटीक), प्रथम खण्ड, गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम संस्करण- संवत् २०६७, पृष्ठ-७६.
  12. स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड-२-८२,८३; स्कन्दमहापुराणम् (मूलमात्र), चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी, द्वितीय संस्करण- सन् २०११, पृष्ठ-६.
  13. मत्स्यपुराण-५३-६१,६२; मत्स्यमहापुराण (सटीक), गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम संस्करण- संवत् २०६१, पृष्ठ-२०८.
  14. उपपुराण दिग्दर्शन, डॉ॰ लीलाधर 'वियोगी', आई॰बी॰ए॰ पब्लिकेशन्स, अम्बाला छावनी, प्रथम संस्करण-2007, पृष्ठ-18.
  15. उपपुराण दिग्दर्शन, डॉ॰ लीलाधर 'वियोगी', आई॰बी॰ए॰ पब्लिकेशन्स, अम्बाला छावनी, प्रथम संस्करण-2007, पृष्ठ-14.
  16. चतुवर्गचिन्तामणि, हेमाद्रि विरचित, द्वितीय खण्ड, भाग-१ (व्रतखण्ड), अध्याय-१, चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-१९८५, पृष्ठ-२१.
  17. वीरमित्रोदय, परिभाषा प्रकाश, पृष्ठ-१४.
  18. नित्याचारप्रदीपः, प्रथम खण्ड, श्री नरसिंह वाजपेयी, संपादक- पंडित विनोदविहारी भट्टाचार्य, एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल, संस्करण-1903, पृष्ठ-18-19.
  19. प्रस्थानभेदः , मधुसूदन सरस्वती, अनुवादक- डॉ॰ कमलनयन शर्मा, पृष्ठ-१४.
  20. संक्षिप्त स्कन्दपुराणांक, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण- संवत् २०५८, पृष्ठ-७,८.
  21. धर्मशास्त्र का इतिहास, चतुर्थ भाग, डॉ॰ पाण्डुरङ्ग वामन काणे, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण-१९९६, पृष्ठ-४१२ एवं ४२६.
  22. श्रीमहाविश्वकर्मपुराणम् (सानुवाद), संपादक- डॉ श्रीकृष्ण 'जुगनू', परिमल पब्लिकेशंस, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2015, पृष्ठ-xxix.

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