"जीवनचरित": अवतरणों में अंतर

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[[नाभा दास]] का "[[भक्तमाल]]" तथा उसपर प्रियादास की टीका भक्तों के जीवनचरित के संग्रह ग्रंथ हैं। कई अन्य भक्तकवियों ने भी "भक्तमाल" नाम से जीवनचरित संग्रह ग्रंथों की रचना की। पुष्टिमार्गीय वैष्णव संतों और कवियों के ब्रजभाषा गद्य में अंकित जीवनचरित के दो संग्रह "[[चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]" और "[[दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता]]" अपने ढंग से बेजोड़ ग्रंथ हैं।
[[नाभा दास]] का "[[भक्तमाल]]" तथा उसपर प्रियादास की टीका भक्तों के जीवनचरित के संग्रह ग्रंथ हैं। कई अन्य भक्तकवियों ने भी "भक्तमाल" नाम से जीवनचरित संग्रह ग्रंथों की रचना की। पुष्टिमार्गीय वैष्णव संतों और कवियों के ब्रजभाषा गद्य में अंकित जीवनचरित के दो संग्रह "[[चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]" और "[[दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता]]" अपने ढंग से बेजोड़ ग्रंथ हैं।
aryan arya
08539095768


=== आधुनिक युग ===
=== आधुनिक युग ===

15:21, 27 मई 2019 का अवतरण

प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और जीवनी-लेखक टामस कारलाइल ने अत्यंत सीधी सादी और संक्षिप्त परिभाषा में इसे "एक व्यक्ति का जीवन" कहा है। इस तरह किसी व्यक्ति के जीवन वृत्तांतों को सचेत और कलात्मक ढंग से लिख डालना जीवनचरित कहा जा सकता है। यद्यपि इतिहास कुछ हद तक, कुछ लोगों की राय में, महापुरुषों का जीवनवृत्त है तथापि जीवनचरित उससे एक अर्थ में भिन्न हो जाता है। जीवनचरित में किसी एक व्यक्ति के यथार्थ जीवन के इतिहास का आलेखन होता है, अनेक व्यक्तियों के जीवन का नहीं। फिर भी जीवनचरित का लेखक इतिहासकार और कलाकार के कर्त्तव्य के कुछ समीप आए बिना नहीं रह सकता। जीवनचरितकार एक ओर तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं की यथार्थता इतिहासकार की भाँति स्थापित करता है; दूसरी ओर वह साहित्यकार की प्रतिभा और रागात्मकता का तथ्यनिरूपण में उपयोग करता है। उसकी यह स्थिति संभवत: उसे उपन्यासकार के निकट भी ला देती है।

जीवनचरित की सीमा का यदि विस्तार किया जाय तो उसके अंतर्गत आत्मकथा भी आ जायगी। यद्यपि दोनों के लेखक पारस्परिक रुचि और संबद्ध विषय की भिन्नता के कारण घटनाओं के यथार्थ आलेखन में सत्य का निर्वाह समान रूप से नहीं कर पाते। आत्मकथा के लेखक में सतर्कता के बावजूद वह आलोचनात्मक तर्कना चरित्र विश्लेषण और स्पष्टचारिता नहीं आ पाती जो जीवनचरित के लेखक विशिष्टता होती है। इस भिन्नता के लिये किसी को दोषी नहीं माना जा सकता। ऐसा होना पूर्णत: स्वाभाविक है। आर्यन आर्य +918539095768

इतिहास

जीवनचरित के प्राचीनतम रूपों के उदाहरण किसी भी देश के धार्मिक, पौराणिक आख्यानों और दंतकथाओं में मिल सकते हैं जिनमें मानवीय चरित्रों, उनके मनोविकारों और मनोभावों का रूपायन हुआ हो। अधिकांशत: दैवी और मानवीय चरित्रों में जीवनचरित्र के कुछेक लक्षण मिल जाते हैं जिनका निर्माण उस काल से ही होता चला आ रहा है जब लेखनकला का विकास भी नहीं हुआ था और इस प्रयोजन के निमित्त मिट्टी और श्रीपत्रों का प्रयोग होता था।

मिस्र और पश्चिमी एशिया के देशों में पत्थरों पर, राजाओं की कब्र की रेलिंगों, स्तंभों और दीवारों की चिकनी सतह पर उनके जीवन की विजयादि से संबंधित बातें उत्कीर्णं करने की परंपरा बहुत पहले ही चल पड़ी थी। उनके जीवनकाल में भी प्रशस्तियों के रूप में इस तरह की उत्कीर्णन होते रहते थे। इस तरह की सामग्री को जीवन-चरित का प्राचीन और प्रारंभिक रूप माना जा सकता है। ऐसे जीवनवृत्तांत इतिहास की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं तथापि कभी कभी इतिहासकार को उनका उपयोग बड़ी सतर्कता से करना पड़ता है।

चीन में ई पू प्रथम शताब्दी के स्सु-मा चिएन ने अपने ऐतिहासिक संस्करणें के एक भाग में समकालीन विशिष्ट व्यक्तियों का जीवनचरित लिखा। बाद में चीनी सम्राट् चिएन के तत्वावधान में चीन की वंशावलियों का इतिहास 1747 में 214 खंडों में संगृहीत और प्रकाशित हुआ जिसमें चीन के पाँच काल्पनिक सम्राटों से लेकर स्सु-मा-चिएन के काल तक के सम्राटों का इतिवृत्तात्मक वर्णन हुआ। ज्योतिषियों, राजनीतिज्ञों, राजसभासदों, हत्यारों तक के जीवन भी उक्त ग्रंथों में लिखे गए। प्राय: उसी समय लिउह्सियांग ने विशिष्ट महिलाओं की जीवनी लिखी। उससे प्रकट है कि ईसा के पूर्व भी चीनी साहित्य में जीवनचरित का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

यूनानी जीवनीकारों में प्लूतार्क विशेष महत्व का है। उसकी कृति में यूनान, रोम और फारस के 46 विशिष्ट और यशस्वी व्यक्तियों के जीवन वृत्तांतों का वर्णन हुआ है। प्लूतार्क से भी चार शताब्दियों पूर्व एक महत्वपूर्ण जीवनी "अनाबासिस सुकरात" के शिष्य जनोफोन ने लिखी। बाद के प्रसिद्ध यूनानी जीवनीकारों में फ्लावियस फिलोस्त्रातस और दियोजिकी लेइर्तिंयस के नाम उल्लेखनीय हैं।

लातीनी साहित्य में पहली सदी ईसा पूर्व का जीवनी-लेखक कार्नेलियस नेपोस विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसने कातो और उसके मित्र सिसरो के चरित लिखे। कार्नेलियस के अन्य जीवनचरित विशिष्ट सेनानायकों से संबंधित हैं।

अंग्रेजी साहित्य में 17वीं सदी के पूर्व का जीवनी साहित्य एक तरह से बहुत संक्षिप्त है। एलिजाबेथ के समकालीन विशिष्ट व्यक्तियों की, यहाँ तक कि शेक्सपीयर आदि की भी, जीवनी के अभाव में साहित्यकारों और इतिहासकारों को शु डिग्री में अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ा था। बाद में उस दिशा में अनेक प्रयत्न हुए। 18वीं सदी तक आते आते इसका काफी विकसित रूप जेम्स बासवेल द्वारा लिखित सेम्युअल जान्सन की जीवनी में देखने को मिलता है। 1791 ईदृ में इस जीवनी का प्रकाशन अंग्रेजी जीवनी-साहित्य में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह ग्रंथ जीवनी-लेखकों के लिये एक निश्चित शैली और स्वरूप का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

इसी तरह अमरीका, फ्रांस, स्पेन तथा यूरोपीय महाद्वीप के अन्य देशों के साहित्य में जीवनी-लेखक की जीवित परंपरा देखी जा सकती है। यह साहित्य जीवनचरित के रूप में और आत्मकथा के रूप में रचा गया है।

भारत में जीवनचरित

भारत में ई पू तीसरी शताब्दी के मौर्य सम्राट् अशोक द्वारा शिलाओं पर उत्कीर्ण अभिलेख आदि भी आत्मकथा के ही रूप हैं। यह परंपरा अशोक के बाद अधिकांश भारतीय नरेशों में चल पड़ी थी। जीवन की अथवा प्रशासन की किसी विशिष्ट घटना को जीवित रखने के लिये वे उसे पत्थर के स्तंभों, मंदिरों और उनकी दीवारों, ताम्रपत्रों आदि पर अंकित करवा देते थे। कुषाण और विशेषत: गुप्त सम्राटों का काल इस तरह के संदर्भों से भरा पड़ा है। इसके साथ ही कभी कभी जीवनी लेखन का स्पष्ट रूप भी दिखाई पड़ जाता है। बाण द्वारा रचित हर्षचरित एक ऐसा ही उदारहण है।

बाद के मुगल बादशाहों में तो आत्मकथा लिखना चाव और रुचि की बात ही हो गई थी। बाबर से लेकर जहाँगीर तक सभी ने आत्मकथाएँ लिखी हैं जो क्रमश: इस प्रकार है -- बाबरनामा, हुमायूनामा, अकबरनामा, जहाँगीरनामा

भारतीय सम्राटों, मुगल बादशाहों तथा राजपूत राजा और रजवाड़ों में आश्रय पानेवाले कवियों ने भी अपने आश्रयदाताओं के जीवनवृत्तातों का विस्तृत वर्णन अपने काव्य ग्रंथों में किया है। काव्य के नायक के रूप में किसी नरेश, अथवा आश्रयदाता का चयन करने के पश्चात् उनकी जीवनी का रूपायन कविता की पंक्तियों में कर डालना एक सामान्य बात हो गई थी। इस तरह के काव्य को हिन्दी साहित्य के चरितकाव्य की संज्ञा दी गई है। ऐसे काव्यों की रचना हिन्दी साहित्य के वीरगाथा काल और विशेषत: रीतिकाल के बहुलता से हुई है। वीरगाथा काल के रासों काव्यों को इसी श्रेणी में माना जा सकता है। रीतिकाल में इस तरह के चरित काव्यों के अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं जिनकी रचना समय समय पर कवियोंद्वारा होती रही है।

नाभा दास का "भक्तमाल" तथा उसपर प्रियादास की टीका भक्तों के जीवनचरित के संग्रह ग्रंथ हैं। कई अन्य भक्तकवियों ने भी "भक्तमाल" नाम से जीवनचरित संग्रह ग्रंथों की रचना की। पुष्टिमार्गीय वैष्णव संतों और कवियों के ब्रजभाषा गद्य में अंकित जीवनचरित के दो संग्रह "चौरासी वैष्णवन की वार्ता" और "दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता" अपने ढंग से बेजोड़ ग्रंथ हैं। aryan arya 08539095768

आधुनिक युग

आधुनिक गद्य काल में तो अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि पश्चिमी भाषाओं के साथ साथ हिंदी, बंगला, मराठी आदि में भी प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवनचरित लिखने की प्रवृत्ति यथेष्ट रूप से बढ़ती जा रही है। आत्मकथाओं में महात्मा गांधी की "सत्य के प्रयोग" शीर्षक आत्मकथा, देशरत्न स्व. राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा इस प्रसंग में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। by aryan arya 08539095768

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें