"राजा का दैवी सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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'''राजा के दैवी सिद्धान्त''' के अनुसार [[राज्य]] की उत्पत्ति [[ईश्वर]] के द्वारा की गई है। [[राजा]] को ईश्वर द्वारा राज्य को संचालित करने के लिए भेजा गया है। प्रजा का कर्तव्य है कि राजा का विरोध न करे क्योंकि वह ईश्वर का प्रतिनिधि है।
'''राजा के दैवी सिद्धान्त''' के अनुसार [[राज्य]] की उत्पत्ति [[ईश्वर]] के द्वारा की गई है। [[राजा]] को ईश्वर द्वारा राज्य को संचालित करने के लिए भेजा गया है। प्रजा का कर्तव्य है कि राजा का विरोध न करे क्योंकि वह ईश्वर का प्रतिनिधि है।

==दैवी सिद्धान्त सम्बन्धि मनु के विचार==
राजा, [[मनु]] के राजनीतिक विचारों का केन्द्र-बिन्दु है। मनु ने अनेक देवताओं के सारभूत नित्य अंश को लेकर राजा की सृष्टि करने का जो उल्लेख किया है उससे राज की दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त में विश्वास प्रकट होता है। चूंकि राजा में दैवी अंश व्याप्त है, अतः यह अपेक्षित है कि प्रजा उसका कभी अपमान न करें। राजा से द्वेष करने का अर्थ स्वयं का विनाश करना है। मनुस्मृति में यह भी लिखा गया है कि विभिन्न देवता राजा के शरीर में प्रविष्ट होते हैं। इस प्रकार राजा स्वयं महान् देवता बन जाता है।

[[मनुस्मृति]] के सातवें अध्याय में [[राजधर्म]] का प्रतिपादन करते हुए [[राज्य की उत्पत्ति]] का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार [[सृष्टि]] की प्रारम्भिक अवस्था बड़ी भयंकर थी, उस समय न राज्य था और न ही राजा था और इनके अभाव में दण्ड-व्यवस्था का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। राज्य के अभाव में सर्वत्र अन्याय, अराजकता, असंतोष, अव्यवस्था का वातावरण बना हुआ था। अर्थात् [[मत्स्य न्याय]] की स्थिति व्याप्त थी।

राजा की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त को प्रामाणिक रूप देने के लिए मनु ने यहां तक कहा है कि राजा आठ लोकपालों के अन्न तत्त्वों से निर्मित हुआ है। जिसके फलस्वरूप उसमें देवीय गुण एवं शक्ति का समावेश हुआ है। ईश्वर ने समस्त संसार की रक्षा के लिए निर्मित वायु, यम, वरुण, सूर्य, अग्नि, इन्द्र तथा कुबेर के सर्वोत्तम अंशों के संयोग से राजा का निर्माण किया है। मनु के शब्दों में,

: ''इन्द्रात्प्रभुत्वं तपनात्प्रतापं
: ''क्रोधयमाद् वैश्रवणाच्चविप्तम्
: ''आह्लादकत्वं च निशाधिनाथाद्
: ''आदाय राज्ञो क्रियते शरीरः।(मनुस्मृति)

: अर्थात् [[इन्द्र]] से प्रभुत्व, [[सूर्य]] से प्रताप, [[यमराज|यम]] से क्रोध, [[कुबेर]] से धन और [[चन्द्रमा]] से आनन्द प्रदान करने का गुण लेकर राजा के शरीर का निर्माण हुआ है।

==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.politicalweb.in/%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4/ दैवी सिद्धान्त]
*[https://govtexamsuccess.com/state-origin-principles/ राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त]
*[https://www.hindilibraryindia.com/political-science/प्राचीन-भारत-में-राज्य-की/22232 प्राचीन भारत में राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति और कार्य]


[[श्रेणी:राज्य]]
[[श्रेणी:राज्य]]

07:14, 27 अप्रैल 2019 का अवतरण

राजा के दैवी सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति ईश्वर के द्वारा की गई है। राजा को ईश्वर द्वारा राज्य को संचालित करने के लिए भेजा गया है। प्रजा का कर्तव्य है कि राजा का विरोध न करे क्योंकि वह ईश्वर का प्रतिनिधि है।

दैवी सिद्धान्त सम्बन्धि मनु के विचार

राजा, मनु के राजनीतिक विचारों का केन्द्र-बिन्दु है। मनु ने अनेक देवताओं के सारभूत नित्य अंश को लेकर राजा की सृष्टि करने का जो उल्लेख किया है उससे राज की दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त में विश्वास प्रकट होता है। चूंकि राजा में दैवी अंश व्याप्त है, अतः यह अपेक्षित है कि प्रजा उसका कभी अपमान न करें। राजा से द्वेष करने का अर्थ स्वयं का विनाश करना है। मनुस्मृति में यह भी लिखा गया है कि विभिन्न देवता राजा के शरीर में प्रविष्ट होते हैं। इस प्रकार राजा स्वयं महान् देवता बन जाता है।

मनुस्मृति के सातवें अध्याय में राजधर्म का प्रतिपादन करते हुए राज्य की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार सृष्टि की प्रारम्भिक अवस्था बड़ी भयंकर थी, उस समय न राज्य था और न ही राजा था और इनके अभाव में दण्ड-व्यवस्था का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। राज्य के अभाव में सर्वत्र अन्याय, अराजकता, असंतोष, अव्यवस्था का वातावरण बना हुआ था। अर्थात् मत्स्य न्याय की स्थिति व्याप्त थी।

राजा की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त को प्रामाणिक रूप देने के लिए मनु ने यहां तक कहा है कि राजा आठ लोकपालों के अन्न तत्त्वों से निर्मित हुआ है। जिसके फलस्वरूप उसमें देवीय गुण एवं शक्ति का समावेश हुआ है। ईश्वर ने समस्त संसार की रक्षा के लिए निर्मित वायु, यम, वरुण, सूर्य, अग्नि, इन्द्र तथा कुबेर के सर्वोत्तम अंशों के संयोग से राजा का निर्माण किया है। मनु के शब्दों में,

इन्द्रात्प्रभुत्वं तपनात्प्रतापं
क्रोधयमाद् वैश्रवणाच्चविप्तम्
आह्लादकत्वं च निशाधिनाथाद्
आदाय राज्ञो क्रियते शरीरः।(मनुस्मृति)
अर्थात् इन्द्र से प्रभुत्व, सूर्य से प्रताप, यम से क्रोध, कुबेर से धन और चन्द्रमा से आनन्द प्रदान करने का गुण लेकर राजा के शरीर का निर्माण हुआ है।

बाहरी कड़ियाँ