"मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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14:02, 15 अप्रैल 2019 का अवतरण
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मैथिलीशरण गुप्त | |
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चित्र:Maithilisharangupt.jpg | |
जन्म | 3 अगस्त 1886 चिरगाँव, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत |
मौत | दिसम्बर 12, 1964 ( 78 वर्ष की आयु में) |
पेशा | कवि, राजनेता, नाटककार, अनुवादक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | प्राथमिक-चिरगाँव, मिडिल - मैकडोनल हाई स्कूल |
उल्लेखनीय काम | पंचवटी, सिद्धराज, साकेत, यशोधरा, विश्ववेदना आदि |
खिताब | साहित्यवाचस्पति (1946) पद्मभूषण (1954) |
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं।[1] उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी।[2] उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।[3]
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर 'जयद्रथ वध', 'यशोधरा' और 'साकेत' तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। 'साकेत' उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है।
जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। रामस्वरूप शास्त्री, दुर्गादत्त पंत, आदि ने उन्हें विद्यालय में पढ़ाया। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। १२ वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कनकलता नाम से कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक "सरस्वती" में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई।
प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" तथा बाद में "जयद्रथ वध" प्रकाशित हुई। उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रन्थ "मेघनाथ वध", "ब्रजांगना" का अनुवाद भी किया। सन् 1912 - 1913 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत "भारत भारती" का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ "स्वप्नवासवदत्ता" का अनुवाद प्रकाशित कराया। सन् १९१६-१७ ई. में महाकाव्य 'साकेत' की रचना आरम्भ की। उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रन्थ में दूर किये। स्वतः प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरु किया। साकेत तथा पंचवटी आदि अन्य ग्रन्थ सन् १९३१ में पूर्ण किये। इसी समय वे राष्ट्रपिता गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। 'यशोधरा' सन् १९३२ ई. में लिखी। गांधी जी ने उन्हें "राष्टकवि" की संज्ञा प्रदान की। 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। पहले उन्हेंपहले झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन् आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया। १९५२-१९६४ तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् १९५३ ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सन् १९६२ ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। १९५४ में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। चिरगाँव में उन्होंने १९११ में साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की।
इसी वर्ष प्रयाग में "सरस्वती" की स्वर्ण जयन्ती समारोह का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता गुप्त जी ने की। सन् १९६३ ई० में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन ने अपूर्णनीय आघात पहुंचाया। १२ दिसम्बर १९६४ ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता तारा अस्त हो गया। ७८ वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, १९ खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटिकायें आदि लिखी। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिम्बित है। 'भारत भारती' के तीन खण्ड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। हिन्दी में लेखन आरम्भ करने से पूर्व उन्होंने रसिकेन्द्र नाम से ब्रजभाषा में कविताएँ, दोहा, चौपाई, छप्पय आदि छंद लिखे। ये रचनाएँ 1904-05 के बीच वैश्योपकारक (कलकत्ता), वेंकटेश्वर (बम्बई) और मोहिनी (कन्नौज) जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। उनकी हिन्दी में लिखी कृतियाँ इंदु, प्रताप, प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं। प्रताप में विदग्ध हृदय नाम से उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं।
जयन्ती
मध्य प्रदेश के संस्कृति राज्य मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा है कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती प्रदेश में प्रतिवर्ष तीन अगस्त को 'कवि दिवस' के रूप में व्यापक रूप से मनायी जायेगी। यह निर्णय राज्य शासन ने लिया है। युवा पीढ़ी भारतीय साहित्य के स्वर्णिम इतिहास से भली-भांति वाकिफ हो सके इस उद्देश्य से संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश में भारतीय कवियों पर केन्द्रित करते हुए अनेक आयोजन करेगा।
प्रमुख कृतियाँ
- महाकाव्य- साकेत, यशोधरा
- खण्डकाव्य- जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल , जय भारत, युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र, वक संहार [क], शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला[ग], प्रदक्षिणा, दिवोदास [ख], भूमि-भाग
- नाटक - रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव [क], विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री [क], स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास
- मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित, लेखक-संपादक : डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल, पृष्ठ- 460, मूल्य- ₹9000, प्रथम संस्करण-2008) (ISBN 978-81-8143-755-6)
- फुटकल रचनाएँ- केशों की कथा, स्वर्गसहोदर, ये दोनों मंगल घट (मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी पुस्तक) में संग्रहीत हैं।
- अनूदित (मधुप के नाम से)-
- बंगाली- मेघनाथ वध, विहरिणी वज्रांगना (माइकल मधुसूदन दत्त), पलासी का युद्ध (नवीन चन्द्र सेन)
- फारसी- रुबाइयात उमर खय्याम (उमर खय्याम)
- काविताओं का संग्रह - उच्छवास
- पत्रों का संग्रह - पत्रावली
गुप्त जी के नाटक
उपरोक्त नाटकों के अतिरिक्त गुप्त जी ने चार नाटक और लिखे जो भास के नाटकों पर आधारित थे। निम्नलिखित तालिका में भास के अनूदित नाटक और उन पर आधारित गुप्त जी के मौलिक नाटक दिए हुए हैं:-
गुप्त जी के मौलिक नाटक | भास जी के अनूदित नाटक |
---|---|
अनघ | स्वप्नवासवदत्ता |
चरणदास | प्रतिमा |
तिलोत्तमा | अभिषेक |
निष्क्रिय प्रतिरोध | आविमारक |
काव्यगत विशेषताएँ
गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है। इसमें भारत के गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता का ओजपूर्ण प्रतिपादन है। आपने अपने काव्य में पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता प्रदान की है और नारी मात्र को विशेष महत्व प्रदान किया है। गुप्त जी ने प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य दोनों की रचना की। शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग किया है।
भारत भारती में देश की वर्तमान दुर्दशा पर क्षोभ प्रकट करते हुए कवि ने देश के अतीत का अत्यंत गौरव और श्रद्धा के साथ गुणगान किया। भारत श्रेष्ठ था, है और सदैव रहेगा का भाव इन पंक्तियों में गुंजायमान है-
- भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ?
- फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ?
- संपूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
- उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।
मैथिलीशरण गुप्त को आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का मार्गदर्शन प्राप्त था । आचार्य द्विवेदी उन्हें कविता लिखने के लिए प्रेरित करते थे, उनकी रचनाओं में संशोधन करके अपनी पत्रिका 'सरस्वती' में प्रकाशित करते थे। मैथिलीशरण गुप्त की पहली खड़ी बोली की कविता 'हेमंत' शीर्षक से सरस्वती (१९०७ ई०) में छपी थी।
उनकी द्वारा लिखित खंडकाव्य पंचवटी निम्न पंक्तियाँ आज भी कविता प्रेमियों के मानस पटल पर सजीव हैं-
- चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
- स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
- पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
- मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
- पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
- जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
- जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
- भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
सन्दर्भ
- ↑ मैथिलीशरण गुप्त सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय कवि थे
- ↑ राष्ट्रकवि व उनकी भारत भारती
- ↑ "Padma Awards" (PDF). Ministry of Home Affairs, Government of India. 2015. Archived from the original (PDF) on 15 November 2014. Retrieved 21 July 2015.]
टिप्पणी
क. ^ महाभारत कथानक के आधार पर लिखे तीन खंडकाव्य वन-वैभव, वकसंहार और सैरन्ध्री त्रिपथगा नामक ग्रन्थ में संग्रहीत हैं।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- राष्ट्रीयता के सचेत प्रहरी - मैथिलीशरण गुप्त (प्रेसनोट)
- मैथिलीशरण गुप्त (कविताकोश में)
- होगी दीप्त फिर प्राची दिशा (हिन्दी समय)
- मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (पाञ्चजन्य)