"बालाजी विश्वनाथ": अवतरणों में अंतर

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''' बालाजी विश्वनाथ''' (1662–1720) प्रथम ''[[पेशवा]]'' (प्रधानमंत्री के लिए [[मराठी भाषा|मराठी]] शब्द) थे। , इन्हें प्रायः '''पेशवा बालाजी विश्वनाथ''' के नाम से जाना जाता है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे और १८वीं सदी के दौरान [[मराठा साम्राज्य]] का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया। बालाजी विश्वनाथ ने [[शाहुजी]] की सहायता की और राज्य पर पकड़ मजबूत बनायी। इसके पहले आपसी युद्ध तथा [[औरंगजेब]] के अधीन मुगलों की आक्रमणों के कारण मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो चली थी। बालाजी विश्वनाथ का जन्म 1 जनवरी सन 1662 ईस्वी में हुआ था इनकी पत्नी का नाम राधाबाई था और यह एक कंकड़ ब्राह्मण थे बालाजी विश्वनाथ में मराठा फौज को [[संभाजी]] के समय में शामिल हुए थे और राजाराम के समय में भी वे एक सैनिक के तौर पर कार्य करते रहे परंतु बाद में मराठा सेनापति धानाजी जाधव के अकाउंटेंट रहे और उनके सभी कार्यों को वही देखते थे 1704 से लेकर 1707 ईसवी तक वे धनाजी जाधव की सेवा में रहे। 1708 में जब [[शाहू]] को मुगल सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने छोड़ दिया जिससे कि महाराष्ट्र में गृह युद्ध छिड़ सके और शाहु हमारे मित्र हो सके उसके बाद वह और धानाजी के पुत्र चंद्रराव जाधव भी साहू की मदद करने के लिए सतारा की ओर चल पड़े। 1708 ईस्वी में धनाजी जाधव की मृत्यु हो गई और ताराबाई ने धानाजी को पहले ही शाहू से लड़ने के लिए भेजा जहां पर शाहू खेड़ा में धानाजी से मिले और वहां पर धनाजी जाधव ने ताराबाई से मुंह मोड़ लिया और शाहु को समर्थन में आ गए जिसे ताराबाई काफी नाखुश हो गई परंतु कुछ दिन बाद ही धनाजी जाधव की मृत्यु हो गई। 1708 के बाद चंदसेन और बालाजी मैं थोड़ी कड़वाहट आ गई। कि वे दोनों ही अपने आप को क्या हुआ एक खास सैनिक मारना चाहते थे जिसके कारण चंद्रसेन जाधव ने बालाजी को पांडवगढ़ के किले में कैद कर लिया परंतु बालाजी विश्वनाथ वहां से भागने में सफल रहे और [[सतारा]] पहुंचे जहां पर साहू ने उन्हें संरक्षण दिया और चंद्र सेन जादव को काफी फटकार लगाई इस बात से नाराज होकर चंद्रसेन जाधव ने ताराबाई की ओर रुख किया और 1711 मे ताराबाई से जाकर मिले जो कि कोल्हापुर की शक्ति उस वक्त और शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका भी थी। शाहु ने बाद में विश्वनाथ को नई सेना बनाने का आदेश दिया। उसके बाद उन्होंने तुकोगी अंग्रे जो की 1690 से जल सेना को संभालते थे वफादार थे परंतु इस गृह युद्ध को देखते हुए उन्होंने अपनी जल्द सीना की शक्ति को और बढ़ा लिया और कल्याण समिति राजमाची के किले को कान्होजी आंग्रे ने जीत लिया शव को जब यह बात पता चली तो उन्होंने दा हीरो जी पिंगल जो कि उस वक्त मराठा साम्राज्य के पेशवा थे उनको कान्होजी आंग्रे से लड़ने के लिए भेजा परंतु उनकी पैदल सेना का कानोजी अंग्रे के सामने टिक ना पाए और कान्होजी आंग्रे ने उनको हराकर कैद कर लिया। इस बात के बाद शाहु ने बालाजी विश्वनाथ को एक बड़ी सेना को भेजा परंतु बालाजी विश्वनाथ ने अपनी दूरदर्शिता के चलते कान्होजी आंग्रे के साथ लोनावाला में एक बैठक की उस बैठक में कानूनी अंग्रे को अपनी ओर मिला लिया और समस्त जल सेना को साहू की ओर कर उन्होंने साहू को मराठा साम्राज्य का वास्तविक छत्रपति बताया और उसके बाद हम दोनों ने रणनीति बनाई जो कि सिदी जो जंजीरा के कब्जो पर जंजीरा पर कब्जा जमाए हुए थे वह मूलरूप से अफ्रिका के लोग थे इस बात को ध्यान में रखते हुए बालाजी विश्वनाथ और कान्होजी आंग्रे ने मिलकर उनको पराजित किया और संपूर्ण को एक बार फिर से जीत लिया उसके बाद 1718 में सैयद हुसैन अली खान को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया कि 1713 में ही शाहु ने पिंगले को पेशवा के पद से हटाकर बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त कर दिया था 1718 में जब सैयद हुसैन अली खान बंधुओं में से एक था उनका प्रभाव मुगल दरबार में काफी ज्यादा हो गया था सैयद हुसैन अली खान ने दक्कन की सुवेदार बनने के बाद मराठों को हराने की पूर्ण कोशिश की परंतु वह ऐसा करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि छापामार युद्ध नीति में मराठों को हराना एकदम असंभव था इसलिए उसने मराठों और बालाजी विश्वनाथ से संधि करने का प्रस्ताव रखा जिसके तहत उसने दक्कन में मराठों को सरदेशमुखी और चौथ वसूलने का अधिकार दे दिया जो कि एक प्रकार के कर था। इससे मुगल सम्राट फर्रूखसियर काफी नाराज हो गया क्योंकि उसको लगा कि उसके नियमों का उल्लंघन किया गया है और उसने सैयद हुसैन अली खान को मारने की साजिश रची हालांकि उस वक्त सैयद अब्दुल्लाह खान जो कि सैयद हुसैन अली खान का भाई था उसको यह खबर पता चल गई और उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर जिसमें मराठों की भी करीब 16000 की सेना बालाजी विश्वनाथ के नेतृत्व में दिल्ली की ओर गया और वहां उसने फर्रूखसियर पर हमला कर उस को हमला करके उसको मुगल सम्राट की गद्दी से हटा दिया और रफी उद दरजात को उसने मुगल सम्राट बनाया और उससे करवा कर शाहू को वापस मराठा साम्राज्य का वास्तविक शासक नियुक्त कर दिया उसके बाद येशुबाई जो कि शाहु की माता थी वह भी मुगल कैद में थी और उसको भी बचा लिया गया और इस बात से काफी खुश होकर साहू ने बालाजी विश्वनाथ को काफी दुआएं भी दी। वापस अपना प्रभाव जमाते हुए बालाजी विश्वनाथ वापस सतारा लौट आए परंतु उसके आने के बाद उनकी तबीयत खराब होने लगी और अंत में उन्होंने मराठा सेना से छुट्टी लेकर अपने पुश्तैनी गांव वापस लौट गए जहां 1720 में उनका निधन हो गया उनके निधन के बाद उनके पुत्र बाजीराव प्रथम विश्वा बनी और उन्होंने अगले 20 वर्षों में मराठा साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण मध्य भारत में कर लिया और उसके बाद 1761 तक मराठा संपूर्ण भारत में फैल गया बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का दूसरा संस्थापक भी कहा जाता है और वह अपने पराक्रम के लिए हमेशा इतिहास में जाने जाते रहेंगे।
''' बालाजी विश्वनाथ''' (1662–1720) प्रथम ''[[पेशवा]]'' (प्रधानमंत्री के लिए [[मराठी भाषा|मराठी]] शब्द) थे। , इन्हें प्रायः '''पेशवा बालाजी विश्वनाथ''' के नाम से जाना जाता है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे और १८वीं सदी के दौरान [[मराठा साम्राज्य]] का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया। बालाजी विश्वनाथ ने [[शाहुजी]] की सहायता की और राज्य पर पकड़ मजबूत बनायी। इसके पहले आपसी युद्ध तथा [[औरंगजेब]] के अधीन मुगलों की आक्रमणों के कारण मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो चली थी।


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09:10, 14 मार्च 2019 का अवतरण

साँचा:ज्ञानसन्दूक रोयलटी बालाजी विश्वनाथ (1662–1720) प्रथम पेशवा (प्रधानमंत्री के लिए मराठी शब्द) थे। , इन्हें प्रायः पेशवा बालाजी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे और १८वीं सदी के दौरान मराठा साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया। बालाजी विश्वनाथ ने शाहुजी की सहायता की और राज्य पर पकड़ मजबूत बनायी। इसके पहले आपसी युद्ध तथा औरंगजेब के अधीन मुगलों की आक्रमणों के कारण मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो चली थी। बालाजी विश्वनाथ का जन्म 1 जनवरी सन 1662 ईस्वी में हुआ था इनकी पत्नी का नाम राधाबाई था और यह एक कंकड़ ब्राह्मण थे बालाजी विश्वनाथ में मराठा फौज को संभाजी के समय में शामिल हुए थे और राजाराम के समय में भी वे एक सैनिक के तौर पर कार्य करते रहे परंतु बाद में मराठा सेनापति धानाजी जाधव के अकाउंटेंट रहे और उनके सभी कार्यों को वही देखते थे 1704 से लेकर 1707 ईसवी तक वे धनाजी जाधव की सेवा में रहे। 1708 में जब शाहू को मुगल सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने छोड़ दिया जिससे कि महाराष्ट्र में गृह युद्ध छिड़ सके और शाहु हमारे मित्र हो सके उसके बाद वह और धानाजी के पुत्र चंद्रराव जाधव भी साहू की मदद करने के लिए सतारा की ओर चल पड़े। 1708 ईस्वी में धनाजी जाधव की मृत्यु हो गई और ताराबाई ने धानाजी को पहले ही शाहू से लड़ने के लिए भेजा जहां पर शाहू खेड़ा में धानाजी से मिले और वहां पर धनाजी जाधव ने ताराबाई से मुंह मोड़ लिया और शाहु को समर्थन में आ गए जिसे ताराबाई काफी नाखुश हो गई परंतु कुछ दिन बाद ही धनाजी जाधव की मृत्यु हो गई। 1708 के बाद चंदसेन और बालाजी मैं थोड़ी कड़वाहट आ गई। कि वे दोनों ही अपने आप को क्या हुआ एक खास सैनिक मारना चाहते थे जिसके कारण चंद्रसेन जाधव ने बालाजी को पांडवगढ़ के किले में कैद कर लिया परंतु बालाजी विश्वनाथ वहां से भागने में सफल रहे और सतारा पहुंचे जहां पर साहू ने उन्हें संरक्षण दिया और चंद्र सेन जादव को काफी फटकार लगाई इस बात से नाराज होकर चंद्रसेन जाधव ने ताराबाई की ओर रुख किया और 1711 मे ताराबाई से जाकर मिले जो कि कोल्हापुर की शक्ति उस वक्त और शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका भी थी। शाहु ने बाद में विश्वनाथ को नई सेना बनाने का आदेश दिया। उसके बाद उन्होंने तुकोगी अंग्रे जो की 1690 से जल सेना को संभालते थे वफादार थे परंतु इस गृह युद्ध को देखते हुए उन्होंने अपनी जल्द सीना की शक्ति को और बढ़ा लिया और कल्याण समिति राजमाची के किले को कान्होजी आंग्रे ने जीत लिया शव को जब यह बात पता चली तो उन्होंने दा हीरो जी पिंगल जो कि उस वक्त मराठा साम्राज्य के पेशवा थे उनको कान्होजी आंग्रे से लड़ने के लिए भेजा परंतु उनकी पैदल सेना का कानोजी अंग्रे के सामने टिक ना पाए और कान्होजी आंग्रे ने उनको हराकर कैद कर लिया। इस बात के बाद शाहु ने बालाजी विश्वनाथ को एक बड़ी सेना को भेजा परंतु बालाजी विश्वनाथ ने अपनी दूरदर्शिता के चलते कान्होजी आंग्रे के साथ लोनावाला में एक बैठक की उस बैठक में कानूनी अंग्रे को अपनी ओर मिला लिया और समस्त जल सेना को साहू की ओर कर उन्होंने साहू को मराठा साम्राज्य का वास्तविक छत्रपति बताया और उसके बाद हम दोनों ने रणनीति बनाई जो कि सिदी जो जंजीरा के कब्जो पर जंजीरा पर कब्जा जमाए हुए थे वह मूलरूप से अफ्रिका के लोग थे इस बात को ध्यान में रखते हुए बालाजी विश्वनाथ और कान्होजी आंग्रे ने मिलकर उनको पराजित किया और संपूर्ण को एक बार फिर से जीत लिया उसके बाद 1718 में सैयद हुसैन अली खान को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया कि 1713 में ही शाहु ने पिंगले को पेशवा के पद से हटाकर बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त कर दिया था 1718 में जब सैयद हुसैन अली खान बंधुओं में से एक था उनका प्रभाव मुगल दरबार में काफी ज्यादा हो गया था सैयद हुसैन अली खान ने दक्कन की सुवेदार बनने के बाद मराठों को हराने की पूर्ण कोशिश की परंतु वह ऐसा करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि छापामार युद्ध नीति में मराठों को हराना एकदम असंभव था इसलिए उसने मराठों और बालाजी विश्वनाथ से संधि करने का प्रस्ताव रखा जिसके तहत उसने दक्कन में मराठों को सरदेशमुखी और चौथ वसूलने का अधिकार दे दिया जो कि एक प्रकार के कर था। इससे मुगल सम्राट फर्रूखसियर काफी नाराज हो गया क्योंकि उसको लगा कि उसके नियमों का उल्लंघन किया गया है और उसने सैयद हुसैन अली खान को मारने की साजिश रची हालांकि उस वक्त सैयद अब्दुल्लाह खान जो कि सैयद हुसैन अली खान का भाई था उसको यह खबर पता चल गई और उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर जिसमें मराठों की भी करीब 16000 की सेना बालाजी विश्वनाथ के नेतृत्व में दिल्ली की ओर गया और वहां उसने फर्रूखसियर पर हमला कर उस को हमला करके उसको मुगल सम्राट की गद्दी से हटा दिया और रफी उद दरजात को उसने मुगल सम्राट बनाया और उससे करवा कर शाहू को वापस मराठा साम्राज्य का वास्तविक शासक नियुक्त कर दिया उसके बाद येशुबाई जो कि शाहु की माता थी वह भी मुगल कैद में थी और उसको भी बचा लिया गया और इस बात से काफी खुश होकर साहू ने बालाजी विश्वनाथ को काफी दुआएं भी दी। वापस अपना प्रभाव जमाते हुए बालाजी विश्वनाथ वापस सतारा लौट आए परंतु उसके आने के बाद उनकी तबीयत खराब होने लगी और अंत में उन्होंने मराठा सेना से छुट्टी लेकर अपने पुश्तैनी गांव वापस लौट गए जहां 1720 में उनका निधन हो गया उनके निधन के बाद उनके पुत्र बाजीराव प्रथम विश्वा बनी और उन्होंने अगले 20 वर्षों में मराठा साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण मध्य भारत में कर लिया और उसके बाद 1761 तक मराठा संपूर्ण भारत में फैल गया बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का दूसरा संस्थापक भी कहा जाता है और वह अपने पराक्रम के लिए हमेशा इतिहास में जाने जाते रहेंगे।