"केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान": अवतरणों में अंतर

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ष्ट्रीय उद्यान
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12:36, 13 मार्च 2019 का अवतरण

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान
आईयूसीएन श्रेणी द्वितीय (II) (राष्ट्रीय उद्यान)
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान की अवस्थिति दिखाता मानचित्र
केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान की अवस्थिति दिखाता मानचित्र
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
अवस्थितिराजस्थान, भारत
निकटतम शहरभरतपुर, आगरा, अलवर
क्षेत्रफल28.73 km²
स्थापित1982
युनेस्को विश्व धरोहर स्थल
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम
देश  भारत
प्रकार प्राकृतिक
मानदंड x
सन्दर्भ 340
युनेस्को क्षेत्र एशिया-प्रशांत
शिलालेखित इतिहास
शिलालेख 1985 (नवम सत्र)

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। यहाँ २३० प्रजाति के पक्षियों ने भारत के राष्ट्रीय उद्यान में अपना घर बनाया है। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केन्द्र बन गया है, जहाँ पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इसको १९७१ में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था और बाद में १९८५ में इसे 'विश्व धरोहर' भी घोषित किया गया है। RAHUL CHHAWADI Kotputli

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। यहाँ २३० प्रजाति के पक्षियों ने भारत के राष्ट्रीय उद्यान में अपना घर बनाया है। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केन्द्र बन गया है, जहाँ पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इसको १९७१ में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था और बाद में १९८५ में इसे 'विश्व धरोहर' भी घोषित किया गया है। RAHUL CHHAWADI Kotputli 9785857277

इतिहास

इस पक्षीविहार का निर्माण २५० वर्ष पहले किया गया था और इसका नाम केवलादेव (शिव) मंदिर के नाम पर रखा गया था। यह मंदिर इसी पक्षी विहार में स्थित है। यहाँ प्राकृतिक ढ़लान होने के कारण, अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। भरतपुर के शासक महाराज सूरजमल (१७२६ से १७६३) ने यहाँ अजान बाँध का निर्माण करवाया, यह बाँध दो नदियों गँभीर और बाणगंगा के संगम पर बनाया गया था।

यह उद्यान भरतपुर के महाराजाओं की पसंदीदा शिकारगाह था, जिसकी परम्परा १८५० से भी पहले से थी। यहाँ पर ब्रिटिश वायसराय के सम्मान में पक्षियों के सालाना शिकार का आयोजन होता था। १९३८ में करीब ४,२७३ पक्षियों का शिकार सिर्फ एक ही दिन में किया गया मेलोर्ड एवं टील जैसे पक्षी बहुतायत में मारे गये। उस समय के भारत के गवर्नर जनरललिनलिथ्गो थे, जिनने अपने सहयोगी विक्टर होप के साथ इन्हें अपना शिकार बनाया।

भारत की स्वतंत्रता के बाद भी १९७२ तक भरतपुर के पूर्व राजा को उनके क्षेत्र में शिकार करने की अनुमति थी, लेकिन १९८२ से उद्यान में चारा लेने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया जो यहाँ के किसानों, गुर्जर समुदाय और सरकार के बीच हिंसक लड़ाई का कारण बना। rahul pawala 9785857277

जंतु समूह

यह पक्षीशाला शीत ऋतु में दुर्लभ जाति के पक्षियों का 'दूसरा घर' बन जाती है। साईबेरियाई सारस, घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर बत्तख आदि जैसे विलुप्तप्राय जाति के अनेकानेक पक्षी यहाँ अपना बसेरा करते हैं rahul kotputli 9785857277

खतरा

सन २००४ के आखिर में वसुंधरा राजे की सरकार ने किसानों की ज़बरदस्ती के सामने घुटने टेक दिये और पक्षीशाला के लिए भेजे जाने वाले पानी को रोक दिया गया, जिसका परिणाम ये हुआ कि उद्यान के लिए पानी की आपूर्ति घट कर ५४०,०००,००० से १८,०००,००० घनफुट (15,000,000 to 510,000 मी³). रह गई। यह कदम यहाँ के पर्यावरण के लिए बहुत ही भयावह साबित हुआ। यहाँ की दलदली धरती सूखी एवं बेकार हो गई, ज्यादातर पक्षी उड़ कर दूसरी जगहों पर प्रजनन के लिए चले गए। बहुत सी पक्षी प्रजातियां नई दिल्ली से करीब ९० कि॰मी॰ की दूरी पर गंगा नदी पर स्थित उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर तक चली गयीं। पक्षियों के शिकार को पर्यावरण विशेषज्ञों ने निन्दनीय करार देते हुए इसके विरोध में उन्होंने न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की

सन २००४ के आखिर में वसुंधरा राजे की सरकार ने किसानों की ज़बरदस्ती के सामने घुटने टेक दिये और पक्षीशाला के लिए भेजे जाने वाले पानी को रोक दिया गया, जिसका परिणाम ये हुआ कि उद्यान के लिए पानी की आपूर्ति घट कर ५४०,०००,००० से १८,०००,००० घनफुट (15,000,000 to 510,000 मी³). रह गई। यह कदम यहाँ के पर्यावरण के लिए बहुत ही भयावह साबित हुआ। यहाँ की दलदली धरती सूखी एवं बेकार हो गई, ज्यादातर पक्षी उड़ कर दूसरी जगहों पर प्रजनन के लिए चले गए। बहुत सी पक्षी प्रजातियां नई दिल्ली से करीब ९० कि॰मी॰ की दूरी पर गंगा नदी पर स्थित उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर तक चली गयीं। पक्षियों के शिकार को पर्यावरण विशेषज्ञों ने निन्दनीय करार देते हुए इसके विरोध में उन्होंने न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की है lsa rahul kotputli 9785857277

इन्हें भी देखें

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