"मीना कुमारी": अवतरणों में अंतर
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मीना कुमारी | |
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मीना कुमारी | |
जन्म |
महजबीं बानो 1 अगस्त 1933 मीठावाला चाॅल बंबई, ब्रिटिश भारत |
मौत |
मार्च 31, 1972 मुंबई, महाराष्ट्र, भारत | (उम्र 38)
मौत की वजह | लिवर का कैंसर |
समाधि | रहमताबाद कब्रिस्तान, मुम्बई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | ट्रेजडी क्वीन, मीनाजी, मंजू, भारतीय सिनेमा की सिंड्रेला, नाज़ (तखल्लुस) |
पेशा | अभिनेत्री, पार्श्वगायिका, शायरा, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर |
ऊंचाई | 5'3" |
जीवनसाथी | कमाल अमरोही (वि॰ 1952–64) |
संबंधी | महमूद (जीजा) |
रहमताबाद कब्रिस्तान, मुम्बई | |
पुरस्कार |
फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार 1958: शारदा 1963: आरती 1965: दिल एक मंदिर 1973: पाक़ीज़ा (मरणोपरांत) |
मीना कुमारी (1 अगस्त, 1933[1][2] - 31 मार्च, 1972) (असल नाम-महजबीं बानो) भारत की एक मशहूर हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्मों में इनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन (शोकान्त महारानी) भी कहा जाता है। अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा एवम् पार्श्वगायिका भी थीं। इन्होंने वर्ष 1939 से 1972 तक फ़िल्मी पर्दे पर काम किया।[3][4][5]
जन्म व बचपन
मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मँझे हुए कलाकार थे और उन्होंने फ़िल्म "शाही लुटेरे" में संगीत भी दिया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी। मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद जुनियर और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं। कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे चूँकि वे उनके डाॅक्टर श्रीमान गड्रे को उनकी फ़ीस देने में असमर्थ थे।हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े।पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं।अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे।यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई,आँखों से आँसु बह निकले।झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया।अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए।समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा।
टैगोर परिवार से संबंध
मीना कुमारी की नानी हेमसुन्दरी मुखर्जी पारसी रंगमंच से जुड़ी हुईं थी। बंगाल के प्रतिष्ठित टैगोर परिवार के पुत्र जदुनंदन टैगोर (1840-62) ने परिवार की इच्छा के विरूद्ध हेमसुन्दरी से विवाह कर लिया। 1862 में दुर्भाग्य से जदुनंदन का देहांत होने के बाद हेमसुन्दरी को बंगाल छोड़कर मेरठ आना पड़ा। यहां अस्पताल में नर्स की नौकरी करते हुए उन्होंने एक उर्दू के पत्रकार प्यारेलाल शंकर मेरठी (जो कि ईसाई था) से शादी करके ईसाई धर्म अपना लिया। हेमसुन्दरी की दो पुत्री हुईं जिनमें से एक प्रभावती, मीना कुमारी की माँ थीं।
फ़िल्मी सफर व निजी जीवन
शुरुआती फिल्में (1939-52)
महजबीं पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म "लैदरफेस" में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं। मार्च 1947 में लम्बे समय तक बीमार रहने के कारण उनकी माँ की मृत्यु हो गई। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं।
कमाल अमरोही से विवाह
वर्ष 1951 में फिल्म तमाशा के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात उस ज़माने के जाने-माने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई जो फिल्म महल की सफलता के बाद निर्माता के तौर पर अपनी अगली फिल्म अनारकली के लिए नायिका की तलाश कर रहे थे।मीना का अभिनय देख वे उन्हें मुख्य नायिका के किरदार में लेने के लिए राज़ी हो गए।दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वरम के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बाहिने हाथ की छोटी अंगुली सदा के लिए मुड़ गई। मीना अगले दो माह तक बम्बई के ससून अस्पताल में भर्ती रहीं और दुर्घटना के दूसरे ही दिन कमाल अमरोही उनका हालचाल पूछने पहुँचे। मीना इस दुर्घटना से बेहद दुखी थीं क्योंकि अब वो अनारकली में काम नहीं कर सकती थीं। इस दुविधा का हल कमाल अमरोही ने निकाला, मीना के पूछने पर कमाल ने उनके हाथ पर अनारकली के आगे 'मेरी' लिख डाला।इस तरह कमाल मीना से मिलते रहे और दोनों में प्रेम संबंध स्थापित हो गया।
14 फरवरी 1952 को हमेशा की तरह मीना कुमारी के पिता अली बख़्श उन्हें व उनकी छोटी बहन मधु को रात्रि 8 बजे पास के एक भौतिक चिकित्सकालय (फिज़्योथेरेपी क्लीनिक) छोड़ गए। पिताजी अक्सर रात्रि 10 बजे दोनों बहनों को लेने आया करते थे।उस दिन उनके जाते ही कमाल अमरोही अपने मित्र बाक़र अली, क़ाज़ी और उसके दो बेटों के साथ चिकित्सालय में दाखिल हो गए और 19 वर्षीय मीना कुमारी ने पहले से दो बार शादीशुदा 34 वर्षीय कमाल अमरोही से अपनी बहन मधु, बाक़र अली, क़ाज़ी और गवाह के तौर पर उसके दो बेटों की उपस्थिति में निक़ाह कर लिया। 10 बजते ही कमाल के जाने के बाद, इस निक़ाह से अपरिचित पिताजी मीना को घर ले आए।इसके बाद दोनों पति-पत्नी रात-रात भर बातें करने लगे जिसे एक दिन एक नौकर ने सुन लिया।बस फिर क्या था, मीना कुमारी पर पिता ने कमाल से तलाक लेने का दबाव डालना शुरू कर दिया। मीना ने फैसला कर लिया की तबतक कमाल के साथ नहीं रहेंगी जबतक पिता को दो लाख रुपये न दे दें।पिता अली बक़्श ने फिल्मकार महबूब खान को उनकी फिल्म अमर के लिए मीना की डेट्स दे दीं परंतु मीना अमर की जगह पति कमाल अमरोही की फिल्म दायरा में काम करना चाहतीं थीं।इसपर पिता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे पति की फिल्म में काम करने जाएँगी तो उनके घर के दरवाज़े मीना के लिए सदा के लिए बंद हो जाएँगे। 5 दिन अमर की शूटिंग के बाद मीना ने फिल्म छोड़ दी और दायरा की शूटिंग करने चलीं गईं।उस रात पिता ने मीना को घर में नहीं आने दिया और मजबूरी में मीना पति के घर रवाना हो गईं। अगले दिन के अखबारों में इस डेढ़ वर्ष से छुपी शादी की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरीं।
उभरती सितारा (1952-56)
1952 में आई फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी के फिल्मी सफ़र को नई उड़ान दी। मीना कुमारी द्वारा चित्रित गौरी के किरदार ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई। फिल्म 100 हफ्तों तक परदे पर रही और 1954 में उन्हें इसके लिए पहले फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1953 तक मीना कुमारी की तीन फिल्में आ चुकी थीं जिनमें : दायरा, दो बीघा ज़मीन और परिणीता शामिल थीं। परिणीता से मीना कुमारी के लिये एक नया युग शुरु हुआ। परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूँकि इस फिल्म में भारतीय नारी की आम जिंदगी की कठिनाइयों का चित्रण करने की कोशिश की गयी थी। उनके अभिनय की खास शैली और मोहक आवाज़ का जादू छाया रहा और लगातार दूसरी बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।
1954 से 1956 के बीच मीना कुमारी ने विभिन्न प्रकार की फिल्मों में काम किया। जहाँ चाँदनी चौक (1954) और एक ही रास्ता (1956) जैसी फिल्में समाज की कुरीतियों पर प्रहार करती थीं, वहीं अद्ल-ए-जहांगीर (1955) और हलाकू (1956) जैसी फिल्में तारीख़ी किरदारों पर आधारित थीं। 1955 की फ़िल्म आज़ाद, दिलीप कुमार के साथ मीना कुमारी की दूसरी फिल्म थी। ट्रेजेडी किंग और क्वीन के नाम से प्रसिद्ध दिलीप और मीना के इस हास्यास्पद फ़िल्म ने दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी। मीना कुमारी के उम्दा अभिनय ने उन्हें फ़िल्मफ़ेयर ने फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया। फ़िल्म आज़ाद के गाने "अपलम चपलम" और "ना बोले ना बोले" आज भी प्रचलित हैं।
ट्रैजेडी क्वीन
1957 में मीना कुमारी दो फिल्मों में पर्दे पर नज़र आईं। प्रसाद द्वारा कृत पहली फ़िल्म मिस मैरी में कुमारी ने दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता जेमिनी गणेशन और किशोर कुमार के साथ काम किया। प्रसाद द्वारा कृत दूसरी फ़िल्म शारदा ने मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन बना दिया। यह उनकी राज कपूर के साथ की हुई पहली फ़िल्म थी। जब उस ज़माने की सभी अदाकाराओं ने इस रोल को करने से मन कर दिया था तब केवल मीना कुमारी ने ही इस रोल को स्वीकार किया था और इसी फिल्म ने उन्हें उनका पहला बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब दिलवाया।
लेकिन स्वछंद प्रवृति की मीना अमरोही से 1964 में अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म पाक़ीज़ा को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी।
मृत्यु
फ़िल्म पाक़ीज़ा के रिलीज़ होने के तीन हफ़्ते बाद मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी। 28 मार्च 1972 को उन्हें बम्बई के सेंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में दाखिल करवाया गया।
31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज़ 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली। पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बम्बई के मज़गांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया। मीना कुमारी इस लेख को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं:
"वो अपनी ज़िन्दगी कोएक अधूरे साज़,
एक अधूरे गीत,
एक टूटे दिल,
परंतु बिना किसी अफसोस
के साथ समाप्त कर गई" (अंग्रेज़ी से अनुवादित)
मीना के पति कमाल अमरोही की 11 फरवरी 1993 को मृत्यु हुई और उनकी इच्छनुसार उन्हें मीना के बगल में दफनाया गया।
मीना की फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म | भूमिका | तथ्य |
---|---|---|---|
1939 | लैदरफ़ेस | बेबी महजबीं | |
अधुरी कहानी | बेबी महजबीं | ||
1940 | पूजा | बीना | |
एक ही भूल | बेबी मीना | बेबी महजबीं से बदलकर बेबी मीना नाम रखा गया | |
1941 | नई रोशनी | मुन्नी | |
बहन | बीना | ||
कसौटी | बेबी मीना | ||
विजय | बेबी मीना | ||
1942 | गरीब | बेबी मीना | |
1943 | प्रतिज्ञा | बेबी मीना | |
1944 | लाल हवेली | मुक्ता | |
1946 | बच्चों का खेल | अनुराधा | 13 वर्ष की आयु में बेबी मीना मीना कुमारी बनीं |
दुनिया एक सराय | तारा | ||
1948 | पिया घर आजा | ||
बिछड़े बालम | |||
1949 | वीर घटोत्कच | सुरेखा | |
1950 | श्री गणेश महिमा | सत्याभामा | |
मगरूर | मीनू राय | ||
हमारा घर | |||
1951 | सनम | रानी | |
मदहोश | सोनी | ||
लक्ष्मी नारायण | देवी लक्ष्मी | ||
हनुमान पाताल विजय | मकरी | ||
1952 | अलादीन और जादुई चिराग | राजकुमारी बदर | |
तमाशा | किरण | ||
बैजू बावरा | गौरी | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1953 | परिणीता | ललिता | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार |
फुटपाथ | माला | ||
दो भीगा ज़मीन | ठकुराइन | भारत की पहली फ़िल्म जिसे कांन्स फ़िल्म समारोह-1954 में पुरस्कृत किया गया। | |
दाना पानी | |||
दायरा | शीतल | ||
नौलखा हार | बिजमा | ||
1954 | इल्ज़ाम | कमली | |
चाँदनी चौक | ज़रीना बेगम | ||
बादबाँ | |||
1955 | रुखसाना | ||
बंदिश | ऊषा सेन | ||
आज़ाद | शोभा | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
अद्ल-ए-जहांगीर | ज़रीना | ||
1956 | नया अंदाज़ | माला | |
शतरंज | संध्या | ||
मेम साहिब | मीना | ||
हलाकू | नीलोफर नादिर | ||
एक ही रास्ता | मालती | ||
बंधन | बानी | ||
1957 | शारदा | शारदा राम शरण | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार |
मिस मैरी | मिस मैरी/लक्ष्मी | ||
1958 | यहूदी | हन्ना | |
सवेरा | शांति | ||
सहारा | लीला | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
फरिश्ता | शोभा | ||
1959 | सट्टा बाज़ार | जमुना | |
शरारत | शभनम | ||
मधु | मधु | ||
जागीर | ज्योति | ||
चिराग कहाँ रोशनी कहाँ | रत्ना | नामांकित - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
चाँद | बिमला | ||
चार दिल चार राहें | चवली | ||
अर्द्धांगिनी | छाया | ||
1960 | दिल अपना और प्रीत पराई | करूणा | |
बहाना | |||
कोहिनूर | राजकुमारी चंद्रमुखी | ||
1961 | ज़िंदगी और ख्वाब | शांति | |
भाभी की चूड़ियाँ | गीता | ||
प्यार का सागर | राधा / रानी गुप्ता | ||
1962 | साहिब बीबी और ग़ुलाम | छोटी बहू (सती लक्ष्मी) | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
फ़िल्म को 13वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में नामांकित किया गया जहाँ मीना कुमारी को प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया। यह फ़िल्म 36वें अकादमी पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ विदेशीय भाषा वर्ग में भारत द्वारा भेजी गई थी। |
मैं चुप रहूंगी | गायत्री | नामांकित-फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
आरती | आरती गुप्ता | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार | |
1963 | किनारे किनारे | नीलू | |
दिल एक मन्दिर | सीता | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार | |
अकेली मत जाइयो | सीमा | ||
1964 | सांझ और सवेरा | गौरी | |
गज़ल | नाज़ आरा बेगम | ||
चित्रलेखा | चित्रलेखा | मीना कुमारी की पहली रंगीन फ़िल्म। | |
बेनज़ीर | बेनज़ीर | ||
मैं भी लड़की हूँ | रजनी | ||
1965 | भीगी रात | नीलिमा | |
पूर्णिमा | पूर्णिमा लाल | ||
काजल | माधवी | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1966 | पिंजरे के पंछी | हीना शर्मा | |
फूल और पत्थर | शांति | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1967 | मझली दीदी | हेमांगिनी | 41वें अकादमी पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ विदेशीय भाषा वर्ग में भारत द्वारा भेजी गई फ़िल्म। |
नूरजहाँ | मिहर-उन-निसा (नूरजहाँ) | ||
चन्दन का पालना | शोभा राय | ||
बहू बेगम | ज़ीनत जहां बेगम | ||
1968 | बहारों की मंज़िल | नंदा रॉय / राधा शुक्ला | |
अभिलाषा | मीना सिंह | ||
1970 | जवाब | विद्या | |
सात फेरे | |||
1971 | मेरे अपने | आनंदी देवी | |
1972 | दुश्मन | मालती | |
पाकीज़ा | नरगिस / साहिबजान | विजेता - विशेष बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार
नामांकित - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार (मरणोपरांत) इस फ़िल्म की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी थीं। | |
गोमती के किनारे | गंगा | आखिरी फ़िल्म |
नामांकन और पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
वर्ष | फ़िल्म | भूमिका | परिणाम |
---|---|---|---|
1954 | बैजू बावरा | गौरी | जीत |
1955 | परिणीता | ललिता | जीत |
1956 | आज़ाद | शोभा | नामित |
1959 | सहारा | Leela | नामित |
1960 | चिराग कहां रोशनी कहां | रत्ना | नामित |
1963 | साहिब बीबी और ग़ुलाम | छोटी बहू | जीत |
आरती | आरती गुप्ता | नामित | |
मैं चुप रहुंगी | गायत्री | नामित | |
1964 | दिल एक मंदिर | सीता | नामित |
1966 | काजल | माधवी | जीत |
1967 | फूल और पत्थर | शांति | नामित |
1973 | पाक़ीज़ा | नरगिस / साहिबजान | नामित (मरणोपरांत) |
बंगाल फ़िल्म पत्रकार संगठन पुरस्कार
वर्ष | श्रेणी | फ़िल्म | भूमिका | परिणाम |
---|---|---|---|---|
1958 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | शारदा | शारदा राम शरण | जीत |
1963 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | आरती | आरती गुप्ता | जीत |
1965 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | दिल एक मंदिर | सीता | जीत |
1973 | विशेष पुरस्कार | पाक़ीज़ा | नरगिस/ साहिबजान | जीत (मरणोपरांत) |
सन्दर्भ
- ↑ "2 अप्रैल 1954". Filmfare. अभिगमन तिथि 2016-09-25.
- ↑ एड्रिअन रूम (26 जुलाई 2010). "Meena Kumari". Dictionary of Pseudonyms: 13,000 Assumed Names and Their Origins. McFarland. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7864-4373-4. अभिगमन तिथि 22 April 2012.
- ↑ Tanha Chand. "Tanha Chand". Rekhta.org. अभिगमन तिथि 2016-07-25.
- ↑ "Meena Kumari – "The Tragedy Queen of Indian Cinema"". Rolling Frames Film Society.
- ↑ "Meena Kumari – Interview (1952)". Cineplot.com. 2017-07-19. अभिगमन तिथि 2017-07-29.