"रक्त ऑक्सीक्षीणता": अवतरणों में अंतर

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छो मैने यहां पर hyperbaric oxygen therapy के बारे में बताया है। जो मुख्यतः सांस के रोगियों के लिए एक क्रांतिकारी चिकित्सा पद्धति है।
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== संदर्भ ग्रन्थ ==
== संदर्भ ग्रन्थ ==
1-[https://neturalgyan.blogspot.com/2019/03/Hyperbaric-oxigen-therapy.html?m=1 जानिए क्या है हाइपर बेरिक ऑक्सीजन थेरेपी। और क्यूं इतनी महत्पूर्ण है।]

* गेज़ेल (१९२५) : दि केमिकल रेगुलेशन ऑव् रेस्पिरेशन फ़िजियोलॉजी;
* गेज़ेल (१९२५) : दि केमिकल रेगुलेशन ऑव् रेस्पिरेशन फ़िजियोलॉजी;
* ग्रे (१९४९) : पल्मोनरी वेंटिलेशन ऐंड इट्स फ़िजियोलॉजिकल रेगूलेशन;
* ग्रे (१९४९) : पल्मोनरी वेंटिलेशन ऐंड इट्स फ़िजियोलॉजिकल रेगूलेशन;

04:04, 8 मार्च 2019 का अवतरण

रक्त ऑक्सीक्षीणता (Anoxaemia) रुधिर का एक गुण यह है कि वह ऑक्सीजन को अवशोषित कर, विविध अंगों और ऊतकों तक पहुँचाता है, जहाँ उसका उपयोग होता है। इस प्रकार जीवों के रुधिर में अवशोषित ऑक्सीजन की थोड़ी मात्रा रहती ही है। किन्हीं स्थितियों में रक्त ऑक्सीजन का औसत परिमाण पर्याप्त कम हो जा सकता है, इस अवस्था को रुधिर ऑक्सीक्षीणता (anoxic anoxia)। इस अवस्था में रुधिर में ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है। जब ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है तब धमनीय रुधिर (arterial blood) में ऑक्सीजन की संतृप्ति (saturation) भी निम्न पड़ जाती है। जब भी किन्हीं कारणों से फेफड़ों में रुधिर का उचित ऑक्सीजनीकरण अवरुद्ध हो जाता है, यह अवस्था उत्पन्न होती है। अधोलिखित परिस्थितियाँ इसे उत्पन्न करती हैं:

(क) साँस लेनेवाली हवा में ऑक्सीजन का न्यूनीकृत दबाव,

(ख) फेफड़ों के रोग जिनसे गैसीय विनिमय (gaseous interchange) निरुद्ध हो जाता है और

(ग) स्पष्ट अंडाकार रंध्र (foramen ovale) के कारण जन्मजात हृद्रोग।

(क) जब मनुष्य ऊपर की ओर उड़ता है तब ऑक्सीजन का दबाव क्रमश: कम होता जाता है और ऊँचाई की ऐसी स्थिति आ सकती है जब वह समुचित मात्रा में ऑक्सीजन न प्राप्त कर सके। इसलिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए ऑक्सीजन के पात्र साथ ले जाए जाते हैं।

(ख) कुछ रोगों से ग्रस्त मनुष्य, फुप्फुस ऊतकों की कमी के कारण, निश्वसित ऑक्सीजन को अवशोषित नहीं कर पाता, जिससे ऑक्सीजन के सामान्य परिमाण से रुधिर संतृप्त नहीं होता। इस क्षति की पूर्ति के लिए श्वसनदर की संख्या बढ़ जाती है।

(ग) जन्मजात हृद्रोग - इसमें बाएँ हृदय का रुधिर दाएँ हृदय के रुधिर से मिश्रित हो जाता है और इस प्रकार ऑक्सीजनीकृत और अनाक्सीजनीकृत रुधिर मिश्रित हो जाता है, जिससे फेफड़ों में उचित परिसंचरण तथा संतृप्ति नहीं हो पाती और यह दशा उत्पन्न होती है।

अब हम इस रोग से ग्रस्त जीवों के शरीरस्थ रुधिर के रसायन पर विचार करेंगे। प्रस्तुत निदर्श चित्र तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए है। चित्र में धमनी रुधिर (arterial blood) और शिरारुधिर (venous blood) की ऑक्सीजन संतृप्ति, सामान्य स्थिति और रक्त ऑक्सीक्षीणता की स्थिति में दिखाई गई है। प्रत्येक स्तंभ का काला भाग रक्त में अपचयित हीमोग्लोबिन का प्रतिशत और श्वेत भाग ऑक्सीहीमोग्मोग्लोबिन को निरूपित करता है। सामान्य स्थिति में व्यक्ति के रुधिर की प्रारंभिक ऑक्सीजन धारिता एक सी थी। तीरों से ऑक्सीजन उपयोगीकरण के गुणांक, अर्थात ऊतकों द्वारा एक इकाई रक्त से हटाए हुए ऑक्सीजन के आयतन दर्शाए गए हैं। हम यह मानकर चले हैं कि मनुष्य ऑक्सीजन के अवनमित दबाव वाले वायुमंडल में साँस लेता है।

सामान्य अस्था में रक्त ऑक्सीक्षीणता की दिशा में फेफड़ों से निकलनेवाले रुधिर में माना जा सकता है किस १०० मिलीलीटर में १५ मिलीलीटर ऑक्सीजन है। ५ प्रतिशत ऊतकों के उपयोग में आता है और अत: शिरारुधिर के प्रति सौ घन सेंटीमीटर में १० घन सेंटीमीटर ऑक्सीजन रह जाता है।

धमनीय और शिरागत असंतृप्तियाँ क्रमश: ५ और १० घन सेंटिमीटर है और केशिका असंतृप्ति (capillary unsaturation) इनकी माध्य होगी, अर्थात् ७.५ प्रतिशत आयतन यह श्यामता (cyanosis) उत्पन्न करेगी।

इस प्रकार श्यामता रक्त ऑक्सीक्षीणता का एक लक्षण है। श्यामता उत्पन्न करने के लिए १०० मिलीलीटर केशिका रुधिर में न्यूनतम ५ ग्राम अपचयित हीमोग्लोबिन होना चाहिए। श्यामता की दशा में त्वचा का रंग बदल कर नीलाभ हो जाता है। यह परिवत्रन होंठ, कान, हाथ, पैर और नाखून से स्पष्ट हो जाता है। रुधिर के ऑक्सीजन दबाव का ह्रास लगभग सभी अंगों से, जैसे हृदय, फेफड़े, या पाद से, लसीका (lymph) प्रवाह को बढ़ा देता है।

इस स्थिति में कुछ अन्य बातें भी स्पष्ट हो जाती हैं। रोगी का हृदय दर बढ़ जाता है, वह दु:श्वासग्रस्त (dyspnoec) हो जाता है और हाँफने लगता है एवं उसे उल्लास, संज्ञाहीनता, उन्माद और स्थिर विचार के रूप में मानसिक विक्षोभ भी होता है।

जब भी रुधिर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, ऊतकों को ऑक्सीजन की प्राप्ति कम होने लगती है। ऐसी स्थिति में ऊतकक्षति (tissue injury) होती है। केंद्रीय तंत्रिकातंत्र और वाहिकातंत्र (vascular system) के ऊतक इस प्रकार की क्षति के लिए सर्वाधिक ग्रहणशील (susceptible) होते हैं। जब भी केशिकाओं की अंत:कलाएँ (endothelium) क्षतिग्रस्त होती है, उनमें से तरल बाहर की ओर रिस पड़ता है और परिसंचरण से तरल की हानि होती है। रक्त ऑक्सीक्षीणता में शरीर पर प्रभावों की तीव्रता (अ) रक्त ऑक्सीक्षीणता के आक्रमण की आकस्मिकता, (ब) उसी मात्रा, (स) अवधि तथा (द) शरीर की सामान्य शरीरक्रियात्मक (physiological) स्थिति से प्रभावित होती है।

हृदय पर रक्त ऑक्सीक्षीणता का प्रभाव

यदि रक्तऑक्सीक्षीणता बहुत उग्र रूप न धारण करे, या अधिक समय तक बनी न रहे, तो हृदीय (cardiac) उत्पादन बहुत बढ़ जाता है। यदि स्थिति अधिक समय तक बनी रहती है या उग्र हो जाती है, तो हृत्पेशीस्तर (myocardium) पर हानिकारक प्रभाव के कारण हृदीय उत्पादन क्रमश: घटता जाता है।

उपचार

चूँकि यह दशा ऑक्सीजन की कमी के कारण होती है, अत: ऑक्सीजन-चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। ऑक्सीजनप्रयोग करने के पूर्व यह जान लेना बहुत आवश्यक है कि रोगी ऑक्सीजन प्रयोग के उपयुक्त है या नहीं। यह कुछ तथ्यों पर निर्भर करता है। यदि अंडाकार रध्रं या फेफड़े में पूर्णत: अवातिन (unaerated) भाग उपस्थित है, तो ऑक्सीजन अंत: श्वसन (inhalation) से रोगी को अभीष्ट लाभ नहीं होता। अंडाकार रुधिर की उपस्थिति के कारण पार्श्वपथित (shunted) रुधिर की क्षतिपूर्ति के लिए स्वस्थ और सुवातित (well aerated) कूपिका (alveoli) की पूर्ति करनेवाला रुधिर अतिरिक्त ऑक्सीजन का महत्वपूर्ण परिमाण अवशोषित न करेगा।

ब्रोंको (broncho) या पिंडकीय (lobar) फुप्फुसार्ति (pneumomia) में फेफड़े का भाग काम नहीं करता और फलत: रक्तऑक्सीक्षीणता हो जाती है। बातस्फीति (emphysema), फुप्फुसशोथ (pulmonary oedema) और गैस विषाक्तता (gas poisoning) में ऑक्सीजन प्रयेग बहुत सफल सिद्ध होता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण फुप्फुस उपकला (pulmonary epithelium) की प्रवेश्यता (permeability) तरल के प्रति बढ़ जाती है और परिमाण स्वरूप शोथ हो जाता है। अत: शोथ रक्त ऑक्सीक्षीणता प्रेरित करता है और रक्त ऑक्सीक्षीणता से शोथ को बढ़ावा मिलता है। यह दुश्चक्र ऑक्सीजन के प्रयोग से तोड़ा जा सकता है।

द्रुत और उथले श्वसन के कारण उत्पन्न रक्त ऑक्सीक्षीणता में ऑक्सीजन प्रयोग से राहत मिलती है, क्योंकि उससे अंशत: संवातित (ventilated) एल्वियोली का ऑक्सीजन तनाव बढ़ जाता है। उथला श्वसन कुछ काल तक बना रह सकता है, क्योंकि वह मुख्यत: तंत्रिका के सिरों पर कार्य करनेवाले फेफड़े के अंदर की स्थानीय क्रियाओं के कारण होता है न कि रक्तऑक्सीक्षीणता के कारण। उथला श्वसन चूँकि ऑक्सीजन की कमी से और भी गंभीर रूप लेता है, अत: इसमें ऑक्सीजन उपचार लाभप्रद सिद्ध होता है। अत: संक्षेप में, रक्त ऑक्सीक्षीणता वह दशा है जिसमें रुधिर में स्थित ऑक्सीजन का आंशिक दबाव अवनमित हो जाता है।

यह फेफड़े के रुधिर के उचित ऑक्सीजनीकरण में बाधा देनेवाली सभी अवस्थाओं में उत्पन्न होता है। यह दशा प्राय: सभी स्थितियों में ऑक्सीजन प्रयोग से ठीक हो सकती है, यदि कोई जैव कारण उपस्थित न हो।

शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न रूपों में प्रभावित होते हैं। प्रारंभ में हृदय का त्वरण होता है, परंतु इस दशा के बने रहने पर हृदय सुस्त हो जाता है और हृदयी निकास घट जाता है।

संदर्भ ग्रन्थ

1-जानिए क्या है हाइपर बेरिक ऑक्सीजन थेरेपी। और क्यूं इतनी महत्पूर्ण है।

  • गेज़ेल (१९२५) : दि केमिकल रेगुलेशन ऑव् रेस्पिरेशन फ़िजियोलॉजी;
  • ग्रे (१९४९) : पल्मोनरी वेंटिलेशन ऐंड इट्स फ़िजियोलॉजिकल रेगूलेशन;
  • ह्विटरिज (१९५०) : मल्ठिपुल एंबॉलिज़्म ऑव् लंग ऐंड रैपिड शैलो ब्रीदिंग;
  • सिंपोज़ियम (१९५१) : केमोरिसेप्टर्स ऐंड केमोसेप्टिव रिऐक्शन्स