"अरिहन्त": अवतरणों में अंतर

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'''अर्हत्''' ([[संस्कृत]]) और '''अरिहंत''' ([[प्राकृत]]) [[पर्यायवाची]] शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहन्त' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, [[सिद्ध]] से एक चरण पूर्व की स्थिति है।
'''अर्हत्''' ([[संस्कृत]]) और '''अरिहन्त''' ([[प्राकृत]]) [[पर्यायवाची]] शब्द हैं। अतिशय [[पूजा]]-सत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहन्त' (अरि=शत्रु का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, [[सिद्ध]] से एक चरण पूर्व की स्थिति है।


[[जैन धर्म|जैनों]] के [[णमोकार मंत्र]] में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहन्तों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहंत जन्म लेते हैं। [[आगम (जैन)|जैन आगमों]] को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। [[महावीर स्वामी|महावीर]] जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।
[[जैन धर्म|जैनों]] के [[णमोकार मंत्र]] में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहन्तों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहन्त जन्म लेते हैं। [[आगम (जैन)|जैन आगमों]] को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहन्त [[तीर्थंकर]], [[केवली]] और सर्वज्ञ होते हैं। [[महावीर स्वामी|महावीर]] जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।


अरिहन्त निम्नलिखित १८ अपूर्णताओं से रहित होते हैं-
अरिहन्त निम्नलिखित १८ अपूर्णताओं से रहित होते हैं-
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# द्वेष
# द्वेष
# मरण
# मरण

==इन्हें भी देखें==
*[[अरहंत]] (बौद्ध धर्म के सन्दर्भ में)


[[श्रेणी:जैन धर्म]]
[[श्रेणी:जैन धर्म]]

02:57, 4 जनवरी 2019 का अवतरण

अर्हत् (संस्कृत) और अरिहन्त (प्राकृत) पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजा-सत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहन्त' (अरि=शत्रु का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, सिद्ध से एक चरण पूर्व की स्थिति है।

जैनों के णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहन्तों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहन्त जन्म लेते हैं। जैन आगमों को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहन्त तीर्थंकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। महावीर जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं।

अरिहन्त निम्नलिखित १८ अपूर्णताओं से रहित होते हैं-

  1. जन्म
  2. जरा (वृद्धावस्था)
  3. तृषा (प्यास)
  4. क्षुधा (भूख)
  5. विस्मय (आश्चर्य)
  6. आरती
  7. खेद
  8. रोग
  9. शोक
  10. मद (घमण्ड)
  11. मोह
  12. भय
  13. निद्रा
  14. चिन्ता
  15. स्वेद
  16. राग
  17. द्वेष
  18. मरण

इन्हें भी देखें

  • अरहंत (बौद्ध धर्म के सन्दर्भ में)