"गंगा नदी": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 82: पंक्ति 82:
| image_caption = मुंशी घाट [[वाराणसी]] में गंगा
| image_caption = मुंशी घाट [[वाराणसी]] में गंगा
}}
}}
'''गंगा''' ( {{lang-sa|गंंगा}} ; {{lang-bn|গঙ্গা}} ) [[भारत]] की सबसे महत्त्वपूर्ण [[नदी]] है। यह [[भारत]] और [[बांग्लादेश]] में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई [[उत्तराखण्ड]] में [[हिमालय]] से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] के [[सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान|सुन्दरवन]] तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद [[बांग्लादेश]] में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना [[माँ]] तथा [[देवी]] के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित '''गंगा नदी''' के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं।
'''गंगा''' ( {{lang-sa|गंंगा}} ; {{lang-bn|গঙ্গা}} ) [[भारत]] की सबसे महत्त्वपूर्ण [[नदी]] है। यह [[भारत]] और [[बांग्लादेश]] में कुल मिलाकर 2510 किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई [[उत्तराखण्ड]] में [[हिमालय]] से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] के [[सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान|सुन्दरवन]] तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद [[बांग्लादेश]] में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना [[माँ]] तथा [[देवी]] के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित '''गंगा नदी''' के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं।


इस नदी में [[मछली|मछलियों]] तथा [[सर्प|सर्पों]] की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ [[गंगा डाल्फ़िन|डॉलफिन]] भी पाये जाते हैं। यह [[कृषि]], [[पर्यटन]], साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं{{cn}} कि इस नदी के जल में [[बैक्टीरियोफेज]] नामक [[विषाणु]] होते हैं, जो [[जीवाणु|जीवाणुओं]] व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में [[नवंबर|नवम्बर]],[[२००८]] में [[भारत सरकार]] द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी<ref>{{cite web |url= http://www.bihartodayonline.com/2008/11/jagran-yahoo-report_04.html|title= गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी |access-date=[[नवंबर]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher= बिहार टुडे|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://www.voanews.com/hindi/archive/2008-11/2008-11-04-voa24.cfm|title= गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी |access-date=[[४ नवंबर]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher= वॉयस ऑफ अमेरिका|language=}}</ref> तथा प्रयागराज (इलाहाबाद) और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।<ref>{{cite book |last= |first=|title= समकालीन भारत |year=अप्रैल २००३ |publisher=राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद |location=नई दिल्ली |id= |page=२४७-२४८ |access-date= २३ जून २००९}}</ref>
इस नदी में [[मछली|मछलियों]] तथा [[सर्प|सर्पों]] की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ [[गंगा डाल्फ़िन|डॉलफिन]] भी पाये जाते हैं। यह [[कृषि]], [[पर्यटन]], साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं{{cn}} कि इस नदी के जल में [[बैक्टीरियोफेज]] नामक [[विषाणु]] होते हैं, जो [[जीवाणु|जीवाणुओं]] व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में [[नवंबर|नवम्बर]],[[२००८]] में [[भारत सरकार]] द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी<ref>{{cite web |url= http://www.bihartodayonline.com/2008/11/jagran-yahoo-report_04.html|title= गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी |access-date=[[नवंबर]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher= बिहार टुडे|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://www.voanews.com/hindi/archive/2008-11/2008-11-04-voa24.cfm|title= गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी |access-date=[[४ नवंबर]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher= वॉयस ऑफ अमेरिका|language=}}</ref> तथा प्रयागराज (इलाहाबाद) और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।<ref>{{cite book |last= |first=|title= समकालीन भारत |year=अप्रैल २००३ |publisher=राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद |location=नई दिल्ली |id= |page=२४७-२४८ |access-date= २३ जून २००९}}</ref>

11:33, 28 दिसम्बर 2018 का अवतरण

गंगा
नदी
मुंशी घाट वाराणसी में गंगा
देश भारत, नेपाल, बांग्लादेश
उपनदियाँ
 - बाएँ महाकाली, करनाली, कोसी, गंडक, घाघरा
 - दाएँ यमुना, सोन नदी, महानंदा
नगर हरिद्वार
स्रोत गंगोत्री हिमनद
 - स्थान उत्तराखण्ड, भारत
 - ऊँचाई 3,892 मी. (12,769 फीट)
 - निर्देशांक 30°59′N 78°55′E / 30.983°N 78.917°E / 30.983; 78.917
मुहाना सुंदरवन
 - स्थान बंगाल की खाड़ी, बांग्लादेश
 - ऊँचाई मी. (0 फीट)
 - निर्देशांक 22°05′N 90°50′E / 22.083°N 90.833°E / 22.083; 90.833
लंबाई 2,525 कि.मी. (1,569 मील)
जलसम्भर 9,07,000 कि.मी.² (3,50,195 वर्ग मील)
प्रवाह for मुख
 - औसत 12,015 मी.³/से. (4,24,306 घन फीट/से.)
गंगा नदी के मार्ग एवं उसकी विभिन्न उपनदियाँ
गंगा नदी के मार्ग एवं उसकी विभिन्न उपनदियाँ
गंगा नदी के मार्ग एवं उसकी विभिन्न उपनदियाँ

गंगा ( संस्कृत: गंंगा ; बांग्ला: গঙ্গা ) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2510 किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं।

इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं[उद्धरण चाहिए] कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी[1][2] तथा प्रयागराज (इलाहाबाद) और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।[3]

उद्गम

भागीरथी नदी, गंगोत्री में

गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद(GURUKUL) से निकलती हैं।[4] गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई ३१४० मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से १९ कि॰मी॰ उत्तर की ओर ३८९२ मी॰ (१२,७७० फीट) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद २५ कि॰मी॰ लम्बा व ४ कि॰मी॰ चौड़ा और लगभग ४० मीटर ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती हैं। इसका जल स्रोत ५००० मीटर ऊँचाई पर स्थित एक घाटी है। इस घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की सन्तोपन्थ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में ३६०० मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गौमुख हिमनद के दर्शन होते हैं।[5] इस हिमनद में नन्दा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है, लेकिन ६ बड़ी और उनकी सहायक ५ छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मन्दाकिनी है। धौली गंगा का अलकनन्दा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह १३७२ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। फिर २८०५ मीटर ऊँचे नन्द प्रयाग में अलकनन्दा का नन्दाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से १३९ कि॰मी॰ दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा मन्दाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा १५०० फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पाँच प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है।[4] इस प्रकार २०० कि॰मी॰ का सँकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती हैं।

गंगा का मैदान

त्रिवेणी-संगम, प्रयाग

हरिद्वार से लगभग ८०० कि॰मी॰ मैदानी यात्रा करते हुए हस्तिनापुर, गढ़मुक्तेश्वर, सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गण्डक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं। भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है— भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती फरक्का बैराज (१९७४ निर्मित) से छनते हुई बंग्ला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग ३-४ करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाये हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई १००० से २००० मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकृतियाँ, जैसे— बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुम्फित नदियाँ पायी जाती हैं।[6]

गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी व वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत, बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ, जहाँ से गणराज्यों की परम्परा विश्व में पहली बार प्रारम्भ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।[7]

सुंदरवन डेल्टा

सुंदरवन-विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा-गंगा का मुहाना-बंगाल की खाड़ी में

हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुन्दरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवम् मेघना नदी मिलती हैं। अंततः ये ३५० कि॰मी॰ चौड़े सुन्दरवन डेल्टा में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवम् उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी नवीन जलोढ़ से १,००० वर्षों में निर्मित समतल तथा निम्न मैदान है। यहाँ गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे गंगा-सागर-संगम कहते हैं।[8] विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (सुन्दरवन) बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है।[8] यह डेल्टा धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से १५-२० मील (२४-३२ किलोमीटर) दूर स्थित लगभग १,८०,००० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।[9] सुन्दरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लायी गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है, जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ तथा उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा चावल की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे जूट का उत्पादन होता है। कटका अभ्यारण्य सुन्दरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुजरता है। यहाँ बड़ी तादाद में सुन्दरी पेड़ मिलते हैं जिसके कारण इन वनों का नाम सुन्दरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुन्दरवन में पायी जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।[10]

सहायक नदियाँ

देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं

गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चम्बल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना, गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है।[11][12] हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस[13] तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना इलाहाबाद के निकट बायीं ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में मिलती है। करनाली नदी मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया जिले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में घाघरा कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में शालीग्राम नाम से बहती हुई मैदानी भाग में नारायणी नदी का नाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिलती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के घाटी के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है, जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद एवरेस्ट के कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई यह दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है, जहाँ पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी (मध्यप्रदेश) से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य-प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर हमीरपुर के निकट यमुना में मिलती है। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गयी हैं।

जीव-जन्तु

गंगा नदी में पाए जाने वाले घड़ियाल
गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉलफिन मछली जिसे आम बोलचाल की भाषा में सोंस कहते हैं

ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि १६वीं तथा १७वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गेंडा, शेर, बाघ तथा गवल का शिकार होता था। गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शान्त व अनुकूल पर्यावरण के कारण रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार अपने आंचल में संजोए हुए है। इसमें मछलियों की १४० प्रजातियाँ, ३५ सरीसृप तथा इसके तट पर ४२ स्तनधारी प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की उत्कृष्ट पारिस्थितिकी संरचना में कई प्रजाति के वन्य जीवों जैसे— नीलगाय, साम्भर, खरगोश, नेवला, चिंकारा के साथ सरीसृप वर्ग के जीव-जन्तुओं को भी आश्रय मिला हुआ है। इस इलाके में ऐसे कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ हैं जो दुर्लभ होने के कारण संरक्षित घोषित की जा चुकी हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, साम्भर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफ़ी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियाँ तथा कीट भी यहाँ पाये जाते हैं।[14] बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव में धीरे-धीरे वनों का लोप होने लगा है और गंगा की घाटी में सर्वत्र कृषि होती है फिर भी गंगा के मैदानी भाग में हिरण, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ, भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी की अनेक प्रजातियाँ काफी संख्या में पाये जाते हैं। डॉलफिन की दो प्रजातियाँ गंगा में पायी जाती हैं। जिन्हें गंगा डॉलफिन और इरावदी डॉलफिन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गंगा में पायी जाने वाले शार्क की वजह से भी गंगा की प्रसिद्धि है, जिसमें बहते हुए पानी में पायी जानेवाली शार्क के कारण विश्व के वैज्ञानिकों की काफी रुचि है। इस नदी और बंगाल की खाड़ी के मिलन स्थल पर बनने वाले मुहाने को सुन्दरवन के नाम से जाना जाता है जो विश्व की बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल बाघ का गृहक्षेत्र है।

आर्थिक महत्त्व

गंगा में रैफ्टिंग भी होती है।

गंगा अपनी उपत्यकाओं (घाटियों) में भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगायी जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवम् गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल तथा झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसो, तिल, गन्ना और जूट की बहुतायत फसल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है; इसमें लगभग ३७५ मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेशबिहार में १११ मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है।[15] फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है।[16] गंगा का महत्त्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, प्रयागराज एवम् वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या निरन्तर बनी रहती है तथा धार्मिक पर्यटन में महत्त्वपूर्ण योगदान करती हैं। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अत्यधिक होता है, इस समय उत्तराखण्ड में ऋषिकेश, बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग, क्याकिंग व कैनोइंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खेलों के शौकीनों व पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करके भारत के आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।[17]

बांध एवम् नदी परियोजनाएँ

टिहरी बांध

गंगा नदी पर निर्मित अनेक बांध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं— फ़रक्का बांध, टिहरी बांध, तथा भीमगोडा बांध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बांध का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिए किया गया था जो कि १९५० से १९६० तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता हुगली नदी पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरन्तर बनाये रखने के लिए गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बांध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख टिहरी बांध, टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बांध है जो उत्तराखण्ड प्रान्त के टिहरी जिले में स्थित है। यह बांध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बांध की ऊँचाई २६१ मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बांध बनाती है। इस बांध से २४०० मेगावाट विद्युत उत्पादन, २,७०,००० हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन १०२.२० करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवम् उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख भीमगोडा बांध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन् १८४० में अंग्रेजों ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिए बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बांध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बांध टूट जाया करता था तथा मॉनसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फसलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बांध निर्माण स्‍थल के अनुप्रवाह (नीचे की ओर बहाव) में वर्ष १९७८-१९८४ की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फसल में भी पानी दिया जाने लगा।[18]

प्रदूषण एवं पर्यावरण

गोमुख पर शुद्ध गंगा

गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाये रखने की असाधारण क्षमता है; किन्तु इसका कारण अभी तक अज्ञात है। एक राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे महामारियाँ होने की सम्भावना बड़े स्तर पर टल जाती है।[19] लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता के चिन्ता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है। वैज्ञानिक जाँच के अनुसार गंगा का बायोलॉजिकल ऑक्सीजन स्तर ३ डिग्री (सामान्य) से बढ़कर ६ डिग्री हो चुका है। गंगा में २ करोड़ ९० लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की १२ प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगाजल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त।[20] गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए घड़ियालों की मदद ली जा रही है।[21] शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयंत्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गयी हैं। हालाँकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाये जाते रहे हैं।[22] जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किये जा रहे हैं।[23] इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाये हुए हैं। २००७ की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की २०३० तक समाप्त होने की सम्भावना है। इसके बाद नदी का बहाव वर्षा-ऋतु पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा।[24]

नमामि गंगे

इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया।[25] प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया।[26] इसके बाद उन्होंने जुलाई २०१४ में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की।[27] इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित ४८ औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है।[28]

धार्मिक महत्त्व

वाराणसी घाट पर गंगा की आरती

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुए हैं, जिनमें वाराणसी और हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए मकर संक्रांति, कुम्भ और गंगा दशहरा के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं।[29] गंगा को लक्ष्य करके अनेक भक्ति ग्रन्थ लिखे गये हैं। जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम्[30] और आरती[31] सबसे लोकप्रिय हैं। अनेक लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं। गंगोत्री तथा अन्य स्थानों पर गंगा के मंदिर और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनके दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को कृतार्थ समझते हैं। उत्तराखण्ड के पंच प्रयाग तथा प्रयागराज जो इलाहाबाद में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गये हैं।

पौराणिक प्रसंग

गंगा और शांतनु- राजा रवि वर्मा की कलाकृति

गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। मिथकों के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने की बून्दों से गंगा का निर्माण किया। त्रिमूर्ति के दो सदस्यों के स्पर्श के कारण यह पवित्र समझा गया। एक अन्य कथा के अनुसार राजा सगर ने जादुई रूप से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की।[32] एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिए एक यज्ञ किया। यज्ञ के लिए घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इन्द्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अन्त में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बंधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोचकर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं, उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जलकर वहीं भस्म हो गये।[33] सगर के पुत्रों की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगीं क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएँ स्वर्ग में जा सकें। भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हुए और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति सम्भव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर अवतरित होऊँगी तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तत्पश्चात् भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोककर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा-सागर संगम तक गयीं, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयीं और पृथ्वीवासियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं। इसी प्रकार एक पौराणिक कथा राजा शान्तनु और गंगा के विवाह तथा उनके सात पुत्रों के जन्म की है।

साहित्यिक उल्लेख

गंगा अवतरण एक लोकचित्र

भारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और हिन्दी साहित्य की मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है।[34] ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी' नामक काव्य की रचना की है। हिन्दी के आदि महाकाव्य पृथ्वीराज रासो[क] तथा वीसलदेव रास[ख] (नरपति नाल्ह) में गंगा का उल्लेख है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रन्थ जगनिक रचित आल्हखण्ड[ग] में गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। श्रृंगार-रस के कवि विद्यापति[घ], कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु सूरदास[ङ] और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-महात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली के उत्तरकाण्ड में ‘श्री गंगा महात्म्य’ का वर्णन तीन छंदों में किया है— इन छंदों में कवि ने गंगा दर्शन, गंगा स्नान, गंगा जल सेवन, गंगा तट पर बसने वालों के महत्त्व को वर्णित किया है।[च] रीतिकाल में सेनापति और पद्माकर का गंगा वर्णन श्लाघनीय है। पद्माकर ने गंगा की महिमा और कीर्ति का वर्णन करने के लिए गंगालहरी[35] नामक ग्रन्थ की रचना की है। सेनापति[छ] कवित्त रत्नाकर में गंगा महात्म्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पाप की नाव को नष्ट करने के लिए गंगा की पुण्यधारा तलवार-सी सुशोभित है। रसखान, रहीम[ज] आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। आधुनिक काल के कवियों में जगन्नाथदास रत्नाकर के ग्रन्थ गंगावतरण में कपिल मुनि द्वारा शापित सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिए भगीरथ की 'भगीरथ-तपस्या' से गंगा के भूमि पर अवतरित होने की कथा है। सम्पूर्ण ग्रन्थ तेरह सर्गों में विभक्त और रोला छंद में निबद्ध है। अन्य कवियों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, सुमित्रानन्दन पन्त और श्रीधर पाठक आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा का वर्णन किया है।[29] छायावादी कवियों का प्रकृति वर्णन हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय है। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘नौका विहार’[36] में ग्रीष्मकालीन तापस बाला गंगा का जो चित्र उकेरा है, वह अति रमणीय है। उन्होंने गंगा[37] नामक कविता भी लिखी है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक भारत एक खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है।[झ] गंगा की पौराणिक कहानियों को महेन्द्र मित्तल अपनी कृति माँ गंगा में संजोया है।[38]

चित्र दीर्घा

टीका टिप्पणी

क.    ^ इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गंगा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे।
ख.    ^ कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि।
ग.    ^ प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय।। / एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।। / सरस्वती नीचे से निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।।
घ.    ^ कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी। / रविमंडल परचण्डा कहिअए, गंगा कहिअए पानी।।
ङ.    ^ सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गंगा ज्यौं आई जगमाँह।। / कहौं सो कथा सुनौ चितलाइ। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ।।
च.    ^ देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे। / देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।
          पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे। / ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे।। (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४५)
          ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को। / जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
          सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को। / मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।। (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४६)
          बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो। / ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बड़े दोष दहौंगो।
          बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीर को ह्वै तव तीर रहौंगो। / भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो।। (कवितावली-उत्तरकाण्ड १४७)[39]
छ.    ^ पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है। / देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।
          बड़ी रज राखै जाकौं महाधीर तरसत, सेनापति ठौर-ठौर नीकीयै बहति है। / पाप पतवारि के कतल करिबे को गंगा, पुण्य की असील तरवारि सी लसति है।।--सेनापति
ज.    ^ अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।।--रहीम
झ.    ^ "The Ganga, especially, is the river of India, beloved of her people, round which are interwined her memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. She has been a symbol of India's age long culture and civilization, ever changing , ever flowing, and yet ever the same Ganga." -जवाहरलाल नेहरू

सन्दर्भ

  1. "गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी" (एचटीएम). बिहार टुडे. अभिगमन तिथि नवंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी" (एचटीएम). वॉयस ऑफ अमेरिका. अभिगमन तिथि ४ नवंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. समकालीन भारत. नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद. अप्रैल २००३. पृ॰ २४७-२४८. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
  4. "उत्तरांचल-एक परिचय" (एचटीएम). टीडीआईएल. अभिगमन तिथि २८ अप्रैल 2008. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  5. "गंगोत्री" (एचटीएम). उत्तराखंड सरकार. अभिगमन तिथि १४ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  6. "भारत की भौतिक संरचना". पर्यावरण के विभिन्न घटक. अभिगमन तिथि 22 जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  7. "बिहार का इतिहास (प्राचीन बिहार)" (जेएसपी). मिथिलाविहार. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  8. "गंगा रिवर" (एचटीएम) (अंग्रेज़ी में). इण्डिया नेट ज़ोन. अभिगमन तिथि १४ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  9. सिहं, सविन्द्र (जुलाई २००२). भौतिक भूगोल. गोरखपुर: वसुन्धरा प्रकाशन. पृ॰ २४७-२४८. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
  10. "सुंदरवन के मुहाने पर" (एचटीएम). बीबीसी. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  11. "भारत के बारे में जानो". भारत सरकार. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  12. "भारत की प्रमुख नदियाँ". भारत भ्रमण. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  13. "उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ". इंडिया वाटर पोर्टल. अभिगमन तिथि २१ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  14. "पर्यावरण" (एएसपी). गंगोत्री. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  15. "प्रशिक्षण एवं प्रसार संबंधी मैनुअल" (एचटीएम). मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश. २००७.
  16. "हिल्सा ब्रीडिंग एण्ड हिल्साह हैचेरी" (अंग्रेज़ी में). सी.आई.एफ.आर.आई.
  17. "राफ्टिंग" (एचटीएमएल). उत्तराखंड पोर्टल. २००७. अभिगमन तिथि २२ जून २००९.
  18. "सिंचाई का इतिहास व प्रदेश की मुख्‍य नहर प्रणालियों का सिंहावलोकन". उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  19. बैक्टीरियोफेज का स्व-शुद्धिकरण प्रभाव, ऑक्सीजन रिटेन्शन रहस्य: मिस्ट्री फ़ैक्टर गिव्स गैन्जेस ए क्लीन रेप्युटेशन जूलियन क्रैन्डा-२ हॉल्लिक. नेशनल पब्लिक रेडियो।
  20. "खतरे में गंगा का अस्तित्व" (एएसपीएक्स). पत्रिका. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  21. "गंगा को प्रदूषण से बचाएंगे ७१ घड़ियाल". नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  22. "अब गंगा प्रदूषण मामला राज्य सरकार जिम्मेवार". लोकमंच. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  23. "अब मूर्ति विसर्जन से नहीं होगी गंगा मैली". जोश. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  24. बोस्टन.कॉम पर देखें- वैश्विक ऊष्मीकरण का उ.प्र. की गंगा पर प्रभाव।
  25. "Ganga, Yamuna banks cleaned" [गंगा यमुना के किनारे पर सफाई] (अंग्रेज़ी में). द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. १२ नवम्बर २०१३. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  26. "Why Narendra Modi decided to contest from Varanasi" [नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का निर्णय क्यों लिया] (अंग्रेज़ी में). द इकोनॉमिक टाइम्स. १७ मार्च २०१४. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  27. "Namami Ganga development Project gets 2037 crores" [नमामि गंगा विकास परियोजना को २०३७ करोड़ मिले] (अंग्रेज़ी में). बिहार प्रभा. १० जुलाई २०१४. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  28. "निखरेगा गंगा का रूप, 48 फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश जारी हुआ". पत्रिका समाचार समूह. १५ जुलाई २०१४. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  29. सिंह, डॉ॰ राजकुमार (जुलाई). विचार विमर्श. मथुरा: सागर प्रकाशन. पृ॰ १३-२३. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद); |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
  30. "श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम". भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  31. "श्रीगंगाजी की आरती". वेबदुनया. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  32. "गंगा - इंडिया वाटर पोर्टल". इंडिया वाटर पोर्टल. अभिगमन तिथि जून १४ २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  33. "भगीरथ और गंगा" (एचटीएमएल). स्पिरिचुअल इण्डिया. १४. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  34. "हिंदी काव्य में गंगा नदी". अभिव्यक्ति. अभिगमन तिथि ३० जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  35. "बुन्देली काव्य का ऐतिहासिक संदर्भ". टीडीआईएल. अभिगमन तिथि २३ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  36. "नौका-विहार / सुमित्रानंदन पंत". कविताकोश. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  37. "गंगा". अनुभूति. अभिगमन तिथि २२ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  38. "माँ गंगा". भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि ३० जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  39. तुलसीदास (संवत २०५८). कवितावली. गोरखपुर: गीताप्रेस. पृ॰ १३६ से १३७. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद); |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)

इन्हें भी देखें

30°54′N 79°07′E / 30.900°N 79.117°E / 30.900; 79.117