"ताज-उल-मस्जिद, भोपाल": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:2100914-Tal ul Masjid Bhopal.jpeg|thumb|right|ताज-उल-मस्जिद, भोपाल]]
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[[भोपाल]] स्थित यह मस्जिद [[भारत]] की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। यह निश्चित रूप से मंदिर या राजा का किला था जिसके सबसे ऊंचे दीवारों पर गुंबद बना दी गई। मुगल अरब,दमिश्क तुर्क से भारत को लूटने आए थे उन्होंने शिल्पकला सीखी कब? उनको यहां के सोने,चांदी,हीरे ,लड़कियां,रानियां,राजकुमारियों को अरब,तुर्क भेजने के लिए बड़े महल की जरूरत होती थी। ये जरूरत महल पूरा करते थे। इस मस्जिद का निर्माण कार्य (मंदिर के शिखर तोड़कर गुंबद बनाने का)भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद यह मस्जिद पूरी तरह से बन तैयार हो सकी। गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्‍हें मदरसे के तौर पर इस्‍तेमाल किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाली यहां की वार्षिक इजतिमा प्रार्थना भारत भर से लोगों का ध्‍यान खींचती है।
[[भोपाल]] स्थित यह मस्जिद [[भारत]] की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। यह निश्चित रूप से मंदिर या राजा का किला था जिसके सबसे ऊंचे दीवारों पर गुंबद बना दी गई। मुगल अरब,दमिश्क तुर्क से भारत को लूटने आए थे उन्होंने शिल्पकला सीखी कब? उनको यहां के सोने,चांदी,हीरे ,लड़कियां,रानियां,राजकुमारियों को अरब,तुर्क भेजने के लिए बड़े महल की जरूरत होती थी। ये जरूरत महल पूरा करते थे। इस मस्जिद का निर्माण कार्य (मंदिर के शिखर तोड़कर गुंबद बनाने का)भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद यह मस्जिद पूरी तरह से बन तैयार हो सकी। गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्‍हें मदरसे के तौर पर इस्‍तेमाल किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाली यहां की वार्षिक इजतिमा प्रार्थना भारत भर से लोगों का ध्‍यान खींचती है|


== चित्र दीर्घा ==
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04:06, 14 दिसम्बर 2018 का अवतरण

ताज-उल-मस्जिद, भोपाल

भोपाल स्थित यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। यह निश्चित रूप से मंदिर या राजा का किला था जिसके सबसे ऊंचे दीवारों पर गुंबद बना दी गई। मुगल अरब,दमिश्क तुर्क से भारत को लूटने आए थे उन्होंने शिल्पकला सीखी कब? उनको यहां के सोने,चांदी,हीरे ,लड़कियां,रानियां,राजकुमारियों को अरब,तुर्क भेजने के लिए बड़े महल की जरूरत होती थी। ये जरूरत महल पूरा करते थे। इस मस्जिद का निर्माण कार्य (मंदिर के शिखर तोड़कर गुंबद बनाने का)भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद यह मस्जिद पूरी तरह से बन तैयार हो सकी। गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्‍हें मदरसे के तौर पर इस्‍तेमाल किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाली यहां की वार्षिक इजतिमा प्रार्थना भारत भर से लोगों का ध्‍यान खींचती है|

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