"ट्राइऐसिक कल्प": अवतरणों में अंतर

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* [http://inyo.coffeecup.com/site/triassic/triassicfossils.html Late Triassic Ichthyosaur And Invertebrate Fossils In Nevada]
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* [http://inyo.coffeecup.com/site/thaynes/nevadaammonoids.html Early Triassic Ammonoid Fossils In Nevada]
* [http://inyo.coffeecup.com/site/thaynes/nevadaammonoids.html Early Triassic Ammonoid Fossils In Nevada]
* [http://www.palaeos.com/Mesozoic/Triassic/Triassic.htm Overall introduction]{{dead link|date=July 2012}}
* [http://www.palaeos.com/Mesozoic/Triassic/Triassic.htm Overall introduction]{{dead link|date=जुलाई 2012}}
* [http://rainbow.ldgo.columbia.edu/courses/v1001/9.html 'The Triassic world']
* [http://rainbow.ldgo.columbia.edu/courses/v1001/9.html 'The Triassic world']
* [http://gallery.in-tch.com/~earthhistory/triassic%20page%201.html Douglas Henderson's illustrations of Triassic animals]
* [http://gallery.in-tch.com/~earthhistory/triassic%20page%201.html Douglas Henderson's illustrations of Triassic animals]

21:08, 23 नवम्बर 2018 का अवतरण

ट्राइएसिक (Triassic) पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास में एक कल्प था, जो आज से 25 करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और 20 करोड़ वर्ष पहले अंत हुआ। यह मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic) का सर्वप्रथम कल्प था। इसके बाद जुरैसिक कल्प (Jurassic) आया और इस से पहले पुराजीवी (Paleozoic) का अंतिम कल्प, पर्मियाई कल्प, चल रहा था।

परिचय

राइऐसिक प्रणाली (Triassic System) पुराजीवकल्प के अपराह्न मे पृथ्वी की भौगोलिक और भौमिकीय स्थिति में अनेक परिवर्तन हुए। साथ ही क्रमविकास की एक नई शृंख्ला आरंभ हुई, जिसमें आधुनिक वर्ग के पूर्वज जीव भी थे। उन जीवों का, जो पुराजीवी महाकल्प में अत्यधिक संख्या में थे, विलोप हो गया और उनके स्थान पर नए जीव प्रकट हुए। इन्हीं कारणों से इस महाकल्प को शैलस्तर-क्रम-विज्ञान में एक नवीन महाकल्प का प्रारंभ माना जात है। इस महाकल्प को मध्यजीवी महाकल्प कहते हैं। इस महाकल्प के अंतर्गत तीन कल्प आते हैं, जिन्हें ट्राइऐसिक, जुरैसिक और क्रिटेशियस कहते हैं। ट्राइऐसिक कल्प इनमें सबसे प्राचीन है।

१८३४ ई. में दक्षिण-पश्चिमी जर्मनी में स्थित इस प्रणाली के तीन शैलसमूहों के आधार पर फॉन एलबर्टो ने इस प्रणाली को ट्राइऐसिक नाम दिया।

विस्तार तथा इस कल्प में पृथ्वी के धरातल की अवस्था

इस कल्प के निक्षेप मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम जर्मनी, दक्षिण-पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया, हिमालय प्रदेश, चीन, यूनान, न्यूजीलैंड, उत्तरी अमरिका के पश्चिमी भाग, दक्षिण अमरीका के पश्चिमी भूभाग, स्पिट्सवर्ग ओर बीयर टापू में मिलतें हैं। इस समय जल के दो भाग थे। एक दक्षिण में, जो मेक्सिको से लेकर ऐटलांटिक होता हुआ वर्तमान भुमध्य सागर, हिमालय प्रदेश, दक्षिण चीन, यूनान, हिंदचीन, मलाया द्वीप सागर, न्यूजीलैंड ओर न्यू केलिडोनिया तक फैला था। इसे टेथिस सागर कहतें हैं। दूसरा उतरी समुद्र, जो अलास्का से होता हुआ उतरी ग्रीनलैंड, उत्तरी ध्रुव, आल्टिक प्रदेश, उतरी-पूर्वी साइबीरिया और मंचूरिया तक फैला था, पृथ्वी का शेष भाग स्थल था।

इस युग में दो मुख्य प्रकार के शैलनिक्षेप मिलते हैं। पहले समुद्री और दुसरे महाद्वीपीय। भारत में इस प्रणाली के अंतर्गत दो प्रकार के शैलसमूह मिलते हैं। एक समुद्री निक्षेप जो हिमालय प्रदेश के स्पीति, कुँमायू गढ़वाल, कश्मीर और एवरेस्ट प्रदेश में स्थ्ति हें। दुसरे अक्षार जलीय निक्षेप, जो नदियों की लाई हुई मिट्टी से बने हैं। ये भारतीय प्रायद्वीप की गोंडवाना संहित में पाए जातें हैं। स्पीति घाटी में ये शैलसमूह ३,५०० फुट से भी मौटे स्तरों के बने हें ओर इनमें विभिन्न वर्ग के अरीढ़धारी जीव, जिनमें ऐमोनायड (ammonoids) मुख्य हैं, मिलतें हैं। संसार के स्तरशैल में भरतीय शैलसमूह कुछ भिन्न हैं, क्योकि भरतीय स्तरशैल में मध्यजीवी महाकल्प नहीं हैं। उसकी जगह आर्य कल्प ही आ जाता है, जो अपर कार्बोंनिफेरस कल्प के उपरांत शुरू होता हैं। फिर भी जीवविकास की दृष्टि से और भीमक्रीय पविर्तनों से, यह यथार्थ रूप से विदित होता हें कि हिमालय प्रदेश की ट्राइऐसिक प्रणाली दक्षिण-पूर्वी यूरोप के ट्राइऐसिक शैलसमूहों से बहुत मिलती जुलती हैं।

मध्य एशिया, हिमाचल प्रदेश, चीन, यूनान, न्यूजीलैंड, उत्तरी अमरीका के पश्चिमी भूभाग, स्पिट्रासबर्ग और बीयर टापू में मिलते हैं। इस समय जल के दो भाग थे। एक दक्षिण में, जो मेक्सिको से लेकर ऐटलांटिक होता हुआ वर्तमान भूमध्य सागर, हिमालय प्रदेश, दक्षिणी चीन, यूनान, हिंदचीन, मलाया द्वीप समूह, न्यूजीलैंड और न्यू कैलिडोनिया तक फैला था। इसे टेथिस सागर कहते हैं। दूसरा उत्तरी समुद्र, जो ऐलैस्का से होता हुआ उत्तरी ग्रीन लैंड, उत्तरी ध्रुव, बाल्टिक प्रदेश, उत्तर पूर्वी साइबीरिया और मंचूरिया तक फैला था, पृथ्वी का शेष भाग स्थल था।

ट्राइऐसिक कल्प के जीवजंतु एवं वनस्पतियाँ

पुराजीवी महाकल्प के अनेक जीवजंतु, जैसे ट्राइलोबाइट (Trilobites), ग्रैप्टोलाइट (Graptolites), पैलीयोएकिनॉइड (Palacecohinoids), इस युग में विलुप्त हो गए थे। इनकी जगह नए जीवों का जिनमें ऐमोनॉयड (Ammonoids) मुख्य है, प्रादुर्भाव हुआ। इस वर्ग के जीवों का इतना बाहुल्य था कि समस्त ट्राइऐसिक प्रणाली का स्तर वर्गीकरण इन्हीं के आधार पर हुआ है। प्रवालों में इस समय नए प्रकार के छह धारीवाले प्रवाल विशेष रूप से पाए जाते थे। अन्य रीढ़रहित जीवों में ब्रैकियोपाड (Brachiopods) और लैमिलीब्रैंक (Lamelli branchs) का स्थान मुख्य था।

ट्राइऐसिक कल्प वस्तुत: 'रेगनेवाले जीवों का कल्प' माना जाता है। इस समय स्थल और उथले जल में उन्हीं की प्रधानता थी। इनमें घड़ियाल और डाइनोसार वर्ग के जीव विशेष रूप से मिलते थे। इसी कल्प में सर्वप्रथम स्तनधारी जीवों का विकास हुआ। वनस्पति में इस समय वोल्टसिया (Voltzia), साइकेड (cycades) और टेरोफाइलम (pterophyllum) प्रधान थे।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ