"शैल": अवतरणों में अंतर

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बेसाल्ट
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==प्रकार==
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चट्टान मुख्यतः [[आग्नेय शैल|आग्नेय]] [[अवसादी शैल|अवसादी]] एवं [[कायांतरित शैल|कायांतरित]] तीन प्रकार के होते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के तप्त, पिघले मैग्मा के ठंडा होकर ठोस हो जाने से निर्मित होती हैं। हमारी पृथ्वी प्रारम्भ में गर्म एवं पिघली अवस्था में थी। अतः पृथ्वी के ऊपरी आवरण के ठंडा होने से पृथ्वी पर सर्वप्रथम आग्नेय चट्टानें ही बनीं। इसी से आग्नेय चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें भी कहते हैं।<ref>{{cite book |last=तिवारी |first=विजय शंकर |title= नवीन भूगोल दर्पण |year=जुलाई 2005 |publisher=निर्मल प्रकाशन |location=कोलकाता |id= |page=30 |accessday= 21|accessmonth= मई|accessyear= 2009}}</ref> स्थिति के आधार पर ये अन्तर्निर्मित या बहिनिर्मित प्रकार की होती हैं। सूर्य-ताप, वर्षा, पाला आदि द्वारा चूर्ण किए गये पदार्थों को नदी या [[हिमनद|हिमनदी]] बहाकर अथवा हवा उड़ाकर किसी झील, समुद्र या अन्य निचले भागों में परत के ऊपर परत जमा कर देती हैं। इन जमा किए गये पदार्थों को 'अवसाद' तथा इनसे निर्मित चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। चूँकि इन चट्टानों में परते पायी जाती हैं अतः इन्हें परतदार चट्टानें भी कहते हैं। पृथ्वी के आन्तरिक ताप, दबाव अथवा दोनों के प्रभाव से आग्नेय, अवसादी अथवा अन्य परिवर्तित चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन हो जाने से बनने वाली चट्टानों को परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टान कहते हैं।
चट्टान मुख्यतः [[आग्नेय शैल|आग्नेय]] [[अवसादी शैल|अवसादी]] एवं [[कायांतरित शैल|कायांतरित]] तीन प्रकार के होते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के तप्त, पिघले मैग्मा के ठंडा होकर ठोस हो जाने से निर्मित होती हैं। हमारी पृथ्वी प्रारम्भ में गर्म एवं पिघली अवस्था में थी। अतः पृथ्वी के ऊपरी आवरण के ठंडा होने से पृथ्वी पर सर्वप्रथम आग्नेय चट्टानें ही बनीं। इसी से आग्नेय चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें भी कहते हैं।<ref>{{cite book |last=तिवारी |first=विजय शंकर |title= नवीन भूगोल दर्पण |year=जुलाई 2005 |publisher=निर्मल प्रकाशन |location=कोलकाता |id= |page=30 |access-date= 21 मई 2009}}</ref> स्थिति के आधार पर ये अन्तर्निर्मित या बहिनिर्मित प्रकार की होती हैं। सूर्य-ताप, वर्षा, पाला आदि द्वारा चूर्ण किए गये पदार्थों को नदी या [[हिमनद|हिमनदी]] बहाकर अथवा हवा उड़ाकर किसी झील, समुद्र या अन्य निचले भागों में परत के ऊपर परत जमा कर देती हैं। इन जमा किए गये पदार्थों को 'अवसाद' तथा इनसे निर्मित चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। चूँकि इन चट्टानों में परते पायी जाती हैं अतः इन्हें परतदार चट्टानें भी कहते हैं। पृथ्वी के आन्तरिक ताप, दबाव अथवा दोनों के प्रभाव से आग्नेय, अवसादी अथवा अन्य परिवर्तित चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन हो जाने से बनने वाली चट्टानों को परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टान कहते हैं।


== बेसाल्ट ==
== बेसाल्ट ==

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कलराडो स्प्रिंग्स कंपनी का गार्डेन ऑफ् गॉड्स में स्थित संतुलित शैल
कोस्टा रिका के ओरोसी के निकट की चट्टानें

पृथ्वी की ऊपरी परत या भू-पटल (क्रस्ट) में मिलने वाले पदार्थ चाहे वे ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भांति कठोर प्रकृति के हो या चाक या रेत की भांति कोमल; चाक एवं लाइमस्टोन की भांति प्रवेश्य हों या स्लेट की भांति अप्रवेश्य हों, चट्टान अथवा शैल (रॉक) कहे जाते हैं। इनकी रचना विभिन्न प्रकार के खनिजों का सम्मिश्रण हैं। चट्टान कई बार केवल एक ही खनिज द्वारा निर्मित होती है, किन्तु सामान्यतः यह दो या अधिक खनिजों का योग होती हैं। पृथ्वी की पपड़ी या भू-पृष्ठ का निर्माण लगभग २,००० खनिजों से हुआ है, परन्तु मुख्य रूप से केवल २० खनिज ही भू-पटल निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भू-पटल की संरचना में ऑक्सीजन ४६.६%, सिलिकन २७.७%, एल्यूमिनियम ८.१ %, लोहा ५%, कैल्सियम ३.६%, सोडियम २.८%, पौटैशियम २.६% तथा मैग्नेशियम २.१% भाग का निर्माण करते हैं।

प्रकार

चट्टान मुख्यतः आग्नेय अवसादी एवं कायांतरित तीन प्रकार के होते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के तप्त, पिघले मैग्मा के ठंडा होकर ठोस हो जाने से निर्मित होती हैं। हमारी पृथ्वी प्रारम्भ में गर्म एवं पिघली अवस्था में थी। अतः पृथ्वी के ऊपरी आवरण के ठंडा होने से पृथ्वी पर सर्वप्रथम आग्नेय चट्टानें ही बनीं। इसी से आग्नेय चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें भी कहते हैं।[1] स्थिति के आधार पर ये अन्तर्निर्मित या बहिनिर्मित प्रकार की होती हैं। सूर्य-ताप, वर्षा, पाला आदि द्वारा चूर्ण किए गये पदार्थों को नदी या हिमनदी बहाकर अथवा हवा उड़ाकर किसी झील, समुद्र या अन्य निचले भागों में परत के ऊपर परत जमा कर देती हैं। इन जमा किए गये पदार्थों को 'अवसाद' तथा इनसे निर्मित चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। चूँकि इन चट्टानों में परते पायी जाती हैं अतः इन्हें परतदार चट्टानें भी कहते हैं। पृथ्वी के आन्तरिक ताप, दबाव अथवा दोनों के प्रभाव से आग्नेय, अवसादी अथवा अन्य परिवर्तित चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन हो जाने से बनने वाली चट्टानों को परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टान कहते हैं।

बेसाल्ट

बेसाल्ट एक ज्वालामुखी चट्टान होती है। यह चट्टान काले भूरे रंग की होती है। यह चट्टान सूक्ष्म कणों से बनी होती है। इस प्रकार की चट्टान मेंटल के पिघलने की वजह से बनती है। इसका प्रयोग मूर्तियाँ बनाने में होता है।

बसाल्ट एक ज्वालामुखी चट्टान है

ग्रेनाइट

यह चट्टानें गुलाबी भूरे रंग की होती हैं। यह बहुत ही कठोर होती हैं, और इनका प्रयोग निर्माण कार्य में बहुत अधिक मात्रा में होता है। इन्हें हिन्दी में कणाश्म भी कहते हैं।

चेन्नई, भारत मे ग्रेनाइट की चट्टानें

सॅडिमॅन्टरी

  • अर्गिलिते
  • आर्गोसे
  • कोल
  • डोलमाइट
  • फ्लिंट
  • ग्रिटस्टोन
  • लिग्नाइट
  • लाइम्स्टोन
  • मार्ल
  • मड्सटन
  • सँडस्टोन
  • स्लिटस्टोने

शैलों का आर्थिक महत्व

मनुष्य पृथ्वी तल पर विविध क्रियाकलाप लम्बे समय से कर रहा है। समय और तकनीकी विकास के साथ वह शैलों और खनिजों का विविध उपयोग करता रहा है। वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे मनुष्य की सुख-सुविधाओं के लिए शैलों और खनिजों की उपयोगिता बढ़ती गई।

शैल और खनिज आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये सभी प्रकार की धातुओं, मूल्यवान पत्थर, उद्योगों के लिए माल और ईंधन के स्रोत हैं। शैलों के महत्व के संबंध में संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है:

  • (1) मृदा शैलों से प्राप्त होती है। मृदा से मानव के लिये भोजन मिलता है, इसके साथ ही विभिन्न कृषि उत्पादों से उद्योग-धंधों के लिए कच्चा माल भी प्राप्त होता है।
  • (2) भवन निर्माणकारी सामग्री शैलों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्राप्त होती है। शैलें ही सभी प्रकार के भवनों की सामग्री का एकमात्रा स्रोत है। ग्रेनाइट, नीस, बलुआ पत्थर, संगमरमर और स्लेट आदि का मकान बनाने में भारी मात्रा में उपयोग होता है। दिल्ली का लाल किला लाल-बलुआ पत्थर तथा आगरा का ताजमहल सफेद संगमरमर से बना है। भारत और विदेशों में भी स्लेट का उपयोग छतों के निर्माण में किया जाता है।
  • (3) खनिजों के स्रोत : खनिज आधुनिक सभ्यता की आधारशिला हैं। धात्विक खनिजों में मूल्यवान सोना, प्लेटिनम, चांदी, तांबा से लेकर एल्यूमीनियम और लोहा मिलता है। ये धात्विक खनिज विभिन्न प्रकार की शैलों में पाये जाते हैं।
  • (4) कच्चामाल : कई शैलों और खनिजों का उपयोग विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में होता है। सीमेंट उद्योग तथा चूना भट्टियों में कई प्रकार की शैलों और खनिजों का उपयोग तैयार माल प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। ग्रेफाइट का उपयोग सुरमा और पेंसिल निर्माण उद्योग में किया जाता है।
  • (5) मूल्यवान पत्थर : विभिन्न प्रकार की रूपान्तरित अथवा आग्नेय शैलों से प्राप्त होते हैं। हीरा बहुत ही मूल्यवान पत्थर है। उसका उपयोग जवाहरात बनाने में होता है। ये एक रूपान्तरित शैल है। इसी प्रकार दूसरे मूल्यवान पत्थर पन्ना, नीलम आदि भी विभिन्न प्रकार के शैलों से प्राप्त होते हैं।
  • (6) ईंधन : कोयला, पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस महत्वपूर्ण खनिज ईंधन हैं। परमाणु ऊर्जा भी ईंधन के रूप में हमें विभिन्न प्रकार की शैलों से मिलती है।
  • (7) उवर्रक भी शैलों से प्राप्त किये जाते हैं। फास्फेट उर्वरक फास्फेराइट नामक खनिज से मिलता है। संसार के कुछ भागों में फास्फेराइट खनिज अधिक मात्रा में पाया जाता है।

सन्दर्भ

  1. तिवारी, विजय शंकर (जुलाई 2005). नवीन भूगोल दर्पण. कोलकाता: निर्मल प्रकाशन. पृ॰ 30. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)

टीका टिप्पणी

क. ...rocks are the books of earth's history and fossils are the pages: S. W. Woolridge & R. S. Morgan 1959.

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