"राजेन्द्र अवस्थी": अवतरणों में अंतर

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पिता धनेश्वर प्रसाद एवं माता बेटी बाई की संतान राजेन्द्र अवस्थी की प्रारंभित शिक्षा जबलपुर में हुई। वर्ष १९५० से १९५७ तक उन्होंने कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर नौकरी की, लेकिन वर्ष १९५७ के आखिरी महीनों में वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आए। उन्होंने कई समाचारपत्रों सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे १९६० तक जबलपुर में रहे इसके बाद दिल्ली चले गए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने जमीन से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाला साहित्य रचा एवं पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। इस दौरान श्री अवस्थी का विवाह [[मंडला]] में शकुंतला अवस्थी से हुआ। उनके परिवार में तीन बेटे एवं दो बेटियाँ हैं।<ref name="in.com" />
पिता धनेश्वर प्रसाद एवं माता बेटी बाई की संतान राजेन्द्र अवस्थी की प्रारंभित शिक्षा जबलपुर में हुई। वर्ष १९५० से १९५७ तक उन्होंने कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर नौकरी की, लेकिन वर्ष १९५७ के आखिरी महीनों में वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आए। उन्होंने कई समाचारपत्रों सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे १९६० तक जबलपुर में रहे इसके बाद दिल्ली चले गए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने जमीन से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाला साहित्य रचा एवं पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। इस दौरान श्री अवस्थी का विवाह [[मंडला]] में शकुंतला अवस्थी से हुआ। उनके परिवार में तीन बेटे एवं दो बेटियाँ हैं।<ref name="in.com" />


उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छाँव, जंगल के फूल, जाने कितनी आँखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आँखें, मेरी प्रिय कहानियाँ और उतरते ज्वार की सीपियाँ, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते।<ref>{{cite web |url=http://vedantijeevan.com/bs/home.php?bookid=3532|title=आखिर कब तक|accessmonthday=[[३० दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छाँव, जंगल के फूल, जाने कितनी आँखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आँखें, मेरी प्रिय कहानियाँ और उतरते ज्वार की सीपियाँ, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते।<ref>{{cite web |url=http://vedantijeevan.com/bs/home.php?bookid=3532|title=आखिर कब तक|access-date=[[३० दिसंबर]] [[२००९]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>


राजेंद्र अवस्थी का पाँच-छह महीने पहले हृदय की बाइपास सर्जरी हुई थी। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था पर ३० जनवरी २००९ की सुबह अचानक उनकी साँसें थम गईं। वे पिछले कई दिनों से एस्कोर्ट हास्पिटल में वेंटिलेटर पर थे।
राजेंद्र अवस्थी का पाँच-छह महीने पहले हृदय की बाइपास सर्जरी हुई थी। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था पर ३० जनवरी २००९ की सुबह अचानक उनकी साँसें थम गईं। वे पिछले कई दिनों से एस्कोर्ट हास्पिटल में वेंटिलेटर पर थे।

17:59, 17 नवम्बर 2018 का अवतरण

राजेन्द्र अवस्थी (२५ जनवरी, १९३० - ३० दिसंबर, २००९) हिंदी के प्रख्यात पत्रकार और लेखक थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के ज्योतिनगर गढा इलाके में हुआ था। वे नवभारत, सारिका, नंदन, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और कादम्बिनी के संपादक रहे। उन्होंने अनेक उपन्यासों कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ऑथर गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें १९९७-९८ में साहित्यिक कृति से सम्मानित किया था।[1]

प्रारंभिक जीवन

पिता धनेश्वर प्रसाद एवं माता बेटी बाई की संतान राजेन्द्र अवस्थी की प्रारंभित शिक्षा जबलपुर में हुई। वर्ष १९५० से १९५७ तक उन्होंने कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर नौकरी की, लेकिन वर्ष १९५७ के आखिरी महीनों में वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आए। उन्होंने कई समाचारपत्रों सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे १९६० तक जबलपुर में रहे इसके बाद दिल्ली चले गए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने जमीन से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाला साहित्य रचा एवं पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। इस दौरान श्री अवस्थी का विवाह मंडला में शकुंतला अवस्थी से हुआ। उनके परिवार में तीन बेटे एवं दो बेटियाँ हैं।[1]

उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छाँव, जंगल के फूल, जाने कितनी आँखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आँखें, मेरी प्रिय कहानियाँ और उतरते ज्वार की सीपियाँ, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते।[2]

राजेंद्र अवस्थी का पाँच-छह महीने पहले हृदय की बाइपास सर्जरी हुई थी। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था पर ३० जनवरी २००९ की सुबह अचानक उनकी साँसें थम गईं। वे पिछले कई दिनों से एस्कोर्ट हास्पिटल में वेंटिलेटर पर थे।

सन्दर्भ

  1. "पत्रकार, साहित्यकार राजेन्द्र अवस्थी का निधन". हिन्दी इन डॉट कॉम. नयी दिल्ली. वार्ता. ३० दिसम्बर २००९. अभिगमन तिथि ५ जनवरी २०१३.
  2. "आखिर कब तक". भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि ३० दिसंबर २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)