"थार मरुस्थल": अवतरणों में अंतर

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प्रसिद्ध गैर व अग्नि नर्तक इस समारोह का मुख्य आकर्षण होते है। पगड़ी बांधने व मरू श्री की प्रतियोगिताएं समारोह के उत्साह को दुगना कर देती है। सम बालु के टीलों की यात्रा पर समापन होता है, वहां ऊंट की सवारी का आनंद उठा सकते हैं और पूर्णमासी की चांदनी रात में टीलों की सुरम्य पृष्ठभूमि में लोक कलाकारों का उत्कृष्ट कार्यक्रम होता है।
प्रसिद्ध गैर व अग्नि नर्तक इस समारोह का मुख्य आकर्षण होते है। पगड़ी बांधने व मरू श्री की प्रतियोगिताएं समारोह के उत्साह को दुगना कर देती है। सम बालु के टीलों की यात्रा पर समापन होता है, वहां ऊंट की सवारी का आनंद उठा सकते हैं और पूर्णमासी की चांदनी रात में टीलों की सुरम्य पृष्ठभूमि में लोक कलाकारों का उत्कृष्ट कार्यक्रम होता है।


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ
Ravi Kant bishnoi
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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16:15, 13 नवम्बर 2018 का अवतरण

थार मरुस्थल का दृष्य

थार मरुस्थल भारत के उत्तरपश्चिम में तथा पाकिस्तान के दक्षिणपूर्व में स्थितहै। यह अधिकांश तो राजस्थान में स्थित है परन्तु कुछ भाग हरियाणा, पंजाब,गुजरात और पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में भी फैला है। अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार मरुस्थल स्थित है। यह मरुस्थल बालू के टिब्बों से ढँका हुआ एक तरंगित मैदान है।

जलवायु

थार मरुस्थल अद्भुत है। गर्मियों में यहां की रेत उबलती है। इस मरुभूमि में साठ डिग्री सेल्शियस तक तापमान रिकार्ड किया गया है। जबकि सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ की बालू रेत जो जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है। गरमियों में मरुस्थल की तेज गर्म हवाएं चलती है जिन्हें "लू" कहते हैं तथा रेत के टीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं और टीलों को नई आकृतियां प्रदान करती हैं।

जन-जीवन

जन-जीवन के नाम पर मरुस्थल में मीलों दूर कोई-कोई गांव मिलता है। पशुपालन (ऊंट, भेड़, बकरी, गाय, बैल) यहां का मुख्य व्यवसाय है। दो-चार साल में यहां कभी बारिश हो जाती है। कीकर, टींट,फोगड़ा, खेजड़ी और रोहिड़ा के वृक्ष कहीं-कहीं दिखाई देते हैं। इंदिरा नहर के माध्यम से कई क्षेत्रों में जल पहुंचाने का प्रयास आज भी जारी है।

मरुस्थल में कई जहरीले सांप, बिच्छु और अन्य कीड़े होते हैं।

मरू समारोह

लौहयुगीन वैदिक भारत में थार मरुस्थल की स्थिति (नारंगी रंग में)

राजस्थान में मरू समारोह (फरवरी में) - फरवरी में पूर्णमासी के दिन पड़ने वाला एक मनोहर समारोह है। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है।

प्रसिद्ध गैर व अग्नि नर्तक इस समारोह का मुख्य आकर्षण होते है। पगड़ी बांधने व मरू श्री की प्रतियोगिताएं समारोह के उत्साह को दुगना कर देती है। सम बालु के टीलों की यात्रा पर समापन होता है, वहां ऊंट की सवारी का आनंद उठा सकते हैं और पूर्णमासी की चांदनी रात में टीलों की सुरम्य पृष्ठभूमि में लोक कलाकारों का उत्कृष्ट कार्यक्रम होता है।

==सन्दर्भ Ravi Kant bishnoi

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