"अब्दुल मजीद द्वितीय": अवतरणों में अंतर

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'''दूसरे अब्दुल मजीद''' ({{lang-ota|عبد المجید الثانی}}, ''Abd al-Madjeed al-Thâni'' – {{lang-tr|Halife İkinci Abdülmecit Efendi}}, 29 मई 1868 – 23 अगस्त 1944) अंतिम सुन्नी [[ख़लीफ़ा]] थे जिन्हें उस्मानी साम्राज्य की समाप्ति के बाद ख़ानदान का चुना गया। 3 मार्च 1924 को [[तुर्की|तुर्किया गणराज्य]] द्वारा [[ख़िलाफ़त|ख़िलाफ़त]] की समाप्ति के ऐलान के साथ ही उनका ओहदा ख़िलाफ़त भी ख़त्म हो गया। वे 19 नवंबर 1922 से 3 मार्च 1924 तक ख़लीफ़ा अलमुमनीन रहे।
'''दूसरे अब्दुल मजीद''' ({{lang-ota|عبد المجید الثانی}}, ''Abd al-Madjeed al-Thâni'' – {{lang-tr|Halife İkinci Abdülmecit Efendi}}, 29 मई 1868 – 23 अगस्त 1944) अंतिम सुन्नी [[ख़लीफ़ा]] थे जिन्हें [[उस्मानी साम्राज्य]] की समाप्ति के बाद ख़ानदान का चुना गया। 3 मार्च 1924 को [[तुर्की|तुर्किया गणराज्य]] द्वारा [[ख़िलाफ़त|ख़िलाफ़त]] की समाप्ति के ऐलान के साथ ही उनका ओहदा ख़िलाफ़त भी ख़त्म हो गया। वे 19 नवंबर 1922 से 3 मार्च 1924 तक ख़लीफ़ा अलमुमनीन रहे।


1 नवंबर 1922 को आख़िरी उस्मानी सुल्तान [[महमद षष्ठ]] को सत्ता से बेदख़ल करने के बाद 19 नवंबर को [[अंकारा, तुर्की|अँकरा]] में तुर्क क़ौमी मजलिस ने उन्हें नया ख़लीफ़ा बनाया। बाद में मार्च 1924 में ख़िलाफ़त के ओहदे की समाप्ति के बाद उन्हें भी अपने पूर्वाधिकारियों की तरह मुल्क से निर्वासित कर दिया गया।
1 नवंबर 1922 को आख़िरी उस्मानी सुल्तान [[महमद षष्ठ]] को सत्ता से बेदख़ल करने के बाद 19 नवंबर को [[अंकारा, तुर्की|अँकरा]] में तुर्क क़ौमी मजलिस ने उन्हें नया ख़लीफ़ा बनाया। बाद में मार्च 1924 में ख़िलाफ़त के ओहदे की समाप्ति के बाद उन्हें भी अपने पूर्वाधिकारियों की तरह मुल्क से निर्वासित कर दिया गया।

00:27, 23 अक्टूबर 2018 का अवतरण

निर्वासन के दौरान चित्रित

दूसरे अब्दुल मजीद (उस्मानी तुर्कीयाई: عبد المجید الثانی, Abd al-Madjeed al-Thâniतुर्कीयाई: Halife İkinci Abdülmecit Efendi, 29 मई 1868 – 23 अगस्त 1944) अंतिम सुन्नी ख़लीफ़ा थे जिन्हें उस्मानी साम्राज्य की समाप्ति के बाद ख़ानदान का चुना गया। 3 मार्च 1924 को तुर्किया गणराज्य द्वारा ख़िलाफ़त की समाप्ति के ऐलान के साथ ही उनका ओहदा ख़िलाफ़त भी ख़त्म हो गया। वे 19 नवंबर 1922 से 3 मार्च 1924 तक ख़लीफ़ा अलमुमनीन रहे।

1 नवंबर 1922 को आख़िरी उस्मानी सुल्तान महमद षष्ठ को सत्ता से बेदख़ल करने के बाद 19 नवंबर को अँकरा में तुर्क क़ौमी मजलिस ने उन्हें नया ख़लीफ़ा बनाया। बाद में मार्च 1924 में ख़िलाफ़त के ओहदे की समाप्ति के बाद उन्हें भी अपने पूर्वाधिकारियों की तरह मुल्क से निर्वासित कर दिया गया।

उनकी इकलौती बेटी ख़दीजा ख़ायरिया आयशा दुर्रुशहवर सुल्तान हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम नवाब मीर उस्मान अली ख़ान के बेटे आज़म जाह की पत्नी थी।

23 अगस्त 1944 को पैरिस, फ़्रांस में उनकी मृत्यु हुई। उन्हें मदीना मुनावर, सऊदी अरब में दफ़नाया गया था।

सन्दर्भ