"महिला": अवतरणों में अंतर
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=== भारतीय नारी === |
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भारतीय संस्कृति मे प्राचीन [[वेद|वैदिक]] काल से ही नारी का स्थान सम्माननीय रहा है और कहा गया है कि '''यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता''' अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है। पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। उन दिनों परिवार मातृसत्तात्मक था। खेती की शुरूआत तथा एक जगह बस्ती बनाकर रहने की शुरूआत नारी ने ही की थी, इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरूष के समान अधिकारों तथा उनके संतुलित संबंधों का परिचायक है। वैदिक काल में परिवार के सभी कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे। नारियां शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पति के साथ यज्ञ का सम्पादन भी करतीं थीं। वेदों में अनेक स्थलों पर रोमाला, घोषाल, सूर्या, अपाला, विलोमी, सावित्री, यमी, श्रद्धा, कामायनी, विश्वम्भरा, देवयानी आदि विदुषियों के नाम प्राप्त होते हैं।<ref>[http://www.apnimaati.com/2014/04/blog-post_6119.html ''शोध:मध्यकाल में नारी की स्थिति '', उमेश चन्द्र (अलीगढ़), अप्रैल 2014]</ref> |
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⚫ | ऐतिहासिक तौर पर भारतीय नारी की भूमिका में काफ़ी फ़र्क आया है। परम्परागत तौर पर [[मध्य वर्ग]] में नारी की भूमिका घरेलू कामों से जुडी़ रहती थी जैसे कि बच्चों की देखभाल करना और ज़्यादातर औरतें पैसे कमाने नहीं जाती थीं। गरीब नारी में, खासकर के [[मेहनती वर्ग]] में पैसों की कमी की वजह से नारी को काम करना पड़ता था, हालांकि औरतों को दिये जाने वाले काम हमेशा मर्दों को दिये जाने वाले कामों से प्रतिष्ठा और पैसों दोनो में छोटे होते थे। धीरे-धीरे, घर की नारी का काम न करना धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा जबकि नारी के काम करने का मतलब उस घर को निचले वर्ग का गिना जाता था। आरती वर्मा एक महान महिला / |
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⚫ | किन्तु मध्य काल में भारतीय नारी की स्थिति में कुछ गिरावट आ गई थी। ऐतिहासिक तौर पर भारतीय नारी की भूमिका में काफ़ी फ़र्क आया है। परम्परागत तौर पर [[मध्य वर्ग]] में नारी की भूमिका घरेलू कामों से जुडी़ रहती थी जैसे कि बच्चों की देखभाल करना और ज़्यादातर औरतें पैसे कमाने नहीं जाती थीं। गरीब नारी में, खासकर के [[मेहनती वर्ग]] में पैसों की कमी की वजह से नारी को काम करना पड़ता था, हालांकि औरतों को दिये जाने वाले काम हमेशा मर्दों को दिये जाने वाले कामों से प्रतिष्ठा और पैसों दोनो में छोटे होते थे। धीरे-धीरे, घर की नारी का काम न करना धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा जबकि नारी के काम करने का मतलब उस घर को निचले वर्ग का गिना जाता था। आरती वर्मा एक महान महिला / |
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लेकिन वर्तमान में नारी का कम करना प्रतिष्ठा की सूचक बनता जा रहा हैं.संतोषी सदा सुखी की नितांत अंतर्निहित नारी की सोच में महिलाएं अपनी क्षमता का आकलन कर अदूर्द्र्शितापूर्ण निर्णय लेने लगी हैं.नैतिक मूल्यों का गला घोटकर अपने भविष्य के प्रति अनिश्चितता की भावना भी रखती हैं. |
लेकिन वर्तमान में नारी का कम करना प्रतिष्ठा की सूचक बनता जा रहा हैं.संतोषी सदा सुखी की नितांत अंतर्निहित नारी की सोच में महिलाएं अपनी क्षमता का आकलन कर अदूर्द्र्शितापूर्ण निर्णय लेने लगी हैं.नैतिक मूल्यों का गला घोटकर अपने भविष्य के प्रति अनिश्चितता की भावना भी रखती हैं. |
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05:48, 7 अक्टूबर 2018 का अवतरण
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नारी अथवा महिला या स्त्री मानव के मादा स्वरूप को कहते हैं, जो नर का स्त्रीलिंग है। नारी शब्द मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किन्तु कई संदर्भो में यह शब्द संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी प्रयोग मे लाया जाता है, जैसे: नारी-अधिकार। आम आनुवांशिक विकास वाली महिला आमतौर पर रजोनिवृत्ति तक यौवन से जन्म देने में सक्षम होती हैं।
विभिन्न संस्कृतियों मे नारी
भारतीय नारी
भारतीय संस्कृति मे प्राचीन वैदिक काल से ही नारी का स्थान सम्माननीय रहा है और कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है। पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। उन दिनों परिवार मातृसत्तात्मक था। खेती की शुरूआत तथा एक जगह बस्ती बनाकर रहने की शुरूआत नारी ने ही की थी, इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरूष के समान अधिकारों तथा उनके संतुलित संबंधों का परिचायक है। वैदिक काल में परिवार के सभी कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे। नारियां शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पति के साथ यज्ञ का सम्पादन भी करतीं थीं। वेदों में अनेक स्थलों पर रोमाला, घोषाल, सूर्या, अपाला, विलोमी, सावित्री, यमी, श्रद्धा, कामायनी, विश्वम्भरा, देवयानी आदि विदुषियों के नाम प्राप्त होते हैं।[1]
किन्तु मध्य काल में भारतीय नारी की स्थिति में कुछ गिरावट आ गई थी। ऐतिहासिक तौर पर भारतीय नारी की भूमिका में काफ़ी फ़र्क आया है। परम्परागत तौर पर मध्य वर्ग में नारी की भूमिका घरेलू कामों से जुडी़ रहती थी जैसे कि बच्चों की देखभाल करना और ज़्यादातर औरतें पैसे कमाने नहीं जाती थीं। गरीब नारी में, खासकर के मेहनती वर्ग में पैसों की कमी की वजह से नारी को काम करना पड़ता था, हालांकि औरतों को दिये जाने वाले काम हमेशा मर्दों को दिये जाने वाले कामों से प्रतिष्ठा और पैसों दोनो में छोटे होते थे। धीरे-धीरे, घर की नारी का काम न करना धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा जबकि नारी के काम करने का मतलब उस घर को निचले वर्ग का गिना जाता था। आरती वर्मा एक महान महिला / लेकिन वर्तमान में नारी का कम करना प्रतिष्ठा की सूचक बनता जा रहा हैं.संतोषी सदा सुखी की नितांत अंतर्निहित नारी की सोच में महिलाएं अपनी क्षमता का आकलन कर अदूर्द्र्शितापूर्ण निर्णय लेने लगी हैं.नैतिक मूल्यों का गला घोटकर अपने भविष्य के प्रति अनिश्चितता की भावना भी रखती हैं.
बाहरी कडियाँ
- शक्ति का सशक्तीकरण - राजेन्द्र गुप्त का नारी-सशक्तीकरण पर केंद्रित जालस्थल
- आधी आबादी (स्त्रियों से सम्बन्धित विषयों का सम्पूर्ण हिन्दी पोर्टल)
- नारी कामसूत्र (गूगल पुस्तक ; लेखिका - डॉ विनोद वर्मा)
- नोबेल पुरस्कृत महिलाएँ (गूगल पुस्तक ; लेखिका - आशा रानी वोहरा)