"ख़िलजी वंश": अवतरणों में अंतर

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खिलजी वंश-

. खलज क्रांति -
. खलज क्रांति -
खिलजी >अफगानिस्तान >हेलमंद घाटी (खलज प्रदेश).
खिलजी >अफगानिस्तान >हेलमंद घाटी (खलज प्रदेश).
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Note. उर्दू की उत्पत्ति 12 वीं शताब्दी के अंत मे हुई. इसकी सारी व्याकरण हिंदी की है जबकि अधिकांश शब्द अरबी फारसी व तुर्की के हैं. प्रारंभ में उर्दू को जबान-ए-हिन्द भी कहा जाता था.
Note. उर्दू की उत्पत्ति 12 वीं शताब्दी के अंत मे हुई. इसकी सारी व्याकरण हिंदी की है जबकि अधिकांश शब्द अरबी फारसी व तुर्की के हैं. प्रारंभ में उर्दू को जबान-ए-हिन्द भी कहा जाता था.


अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति -

Notes


अलाउद्दीन खिलजी का अंतिम समय -
अलाउद्दीन खिलजी का अंतिम समय -

10:34, 30 मई 2018 का अवतरण


. खलज क्रांति - खिलजी >अफगानिस्तान >हेलमंद घाटी (खलज प्रदेश). . 1290 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी द्वारा बलबन के अयोग्य उत्तराधिकारियों को अपदस्थ कर जीतकर खिलजी वंश की नींव डाली गई. . K. C. लाल व हबीब ने इस घटना को "खलज क्रांति" कहा. . अफगानिस्तान में हेलमंद नदी घाटी के प्रदेश को खलज प्रदेश के नाम से जाना जाता था, और उस प्रदेश में बसने वाली जातियां खिलजी /खलज कहलाई. . K. S. लाल ने अपनी पुस्तक, "खिलजी वंश का इतिहास" में खिलजी क्रांति का मत प्रतिपादित किया व लिखा कि गुलाम वंश के बाद जो खिलजी वंश सत्ता में आया वह केवल वंश परिवर्तन ना हो कर बहुत बड़ी क्रांति का प्रतीक था". . क्योंकि- 1. खिलजी सुल्तानों के समय महत्वपूर्ण वीजयों का युग प्रारंभ हुआ. उत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत पर भी खिलजियों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया. 2. खिलजी सुल्तानों के समय साहित्य व कला के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई. जैसे- अलाई दरवाजा, 1000(हजार) सितून महल आदि . 3. अमीर हसन देहलवी तथा अमीर खुसरो जैसे इतिहासकारों ने उच्च कोटि के ग्रंथों की रचना की. 4. खिलजी ने लगभग 90 वर्षों से चले आ रहे तुर्की वर्चस्व और एकाधिकार को समाप्त किया तथा गैर तुर्कियों को सत्ता में सम्मिलित किया. 5. खिलजी के शासन का मूल आधार जन्म, जाति व वंश नहीं था. 6. इन्होंने नस्लवाद को समाप्त किया. 7. खिलजी सुल्तान उच्च वंश से नहीं बल्कि सर्वहारा वंश से संबंध रखते थे. अतः उनके सत्ता में आने से यह मिथ्या धारणा समाप्त हुई की सत्ता पर विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का ही अधिकार हो सकता है.

जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी (1290-1296)- . जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी प्रारंभ में "सर-ए-जादार" (अंग रक्षकों का प्रधान) के पद पर कार्यरत था. . प्रारंभ में इसे समाना (उत्तर प्रदेश) की जागीर दी गई. . मंगोल आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के कारण कैकुबाद ने जलालुद्दीन को "शाइस्ता खां" की उपाधि दी. व "आरिज-ए-मुमालिक" नियुक्त किया. . जलालुद्दीन ने 1290 ईस्वी में कैकुबाद व क्यूमर्स को मार कर सिंहासन पर आधिपत्य स्थापित किया. . जून 1290 ईस्वी में किलोखरी (किलूगढ़ी) के महल (उत्तरी पश्चिमी सीमा पर स्थित) में जलालुद्दीन ने अपना राज्यभिषेक करवाया. .जलालुद्दीन का राजत्व सिद्धांत उदार निरंकुशवाद पर आधारित था. . इसने तुर्की और गैर तुर्की भारतीय मुसलमानों को शासन में शामिल कर भारत के मुस्लिम राज्य को विस्तृत आधार देने का प्रयास किया.

. जलालुद्दीन द्वारा की गई नियुक्तियां . फखरुद्दीन- दिल्ली का कोतवाल, . अली गुर्शस्प - अमीर ए तुजुक (छोटी सैनिक टुकड़ी का प्रधान), . अलमास बेग- अमीर ए आख़ुर, . युगुस खां - आरिज ए मुमालिक, (अली गुर्शस्प, अलमास बेग और युगुस खां उसके भतीजे थे), . मलिक छज्जू - कड़ा, मानिकपुर का सूबेदार, . अहमद चप- अमीर ए हाजिब, . ख्वाजा खातिब - वजीर,

. जलालुद्दीन के तीन बेटे थे.... . जलालुद्दीन ने अपने सबसे बड़े पुत्र को "खान-ए-खाना" , दूसरे को "अर्कली खां" और तीसरे को "कद्र खां" की उपाधियाँ दी.

मलिक छज्जू का विद्रोह . 1290 में कड़ा व मानिकपुर के सूबेदार व बलबन के भतीजे मलिक छज्जू ने विद्रोह किया. . जलालुद्दीन स्वयं इस विद्रोह को दबाने गया और अर्कली खां ने मलिक छज्जू को परास्त किया. . सुल्तान ने मलिक छज्जू को यह कहकर माफ कर दिया कि वह अपने स्वर्गीय सुल्तान के प्रति वफादार था. (अर्थात उदारवाद का परिचय दिया). . मलिक छज्जू को अर्कली खां की देखरेख में मुल्तान भेज दिया गया.

रणथम्भौर अभियान (1290)- . 1290 में जलालुद्दीन के समय रणथम्भौर चौहानों की सत्ता का केंद्र था, और हम्‍मीर देव वहां का शक्तिशाली शासक था. . 1290 ईस्वी में जलालुद्दीन अपने पुत्र अर्कली खां को नाइब-ए-गैबत (सुल्तान की अनुपस्थिति में शासक) नियुक्त कर स्वयं रणथम्भौर अभियान पर गया. Note - नाइब-ए-गैबत . 1231 ई. >इल्तुतमिश >ग्वालियर अभियान (मंगल देव) >रजिया. . 1290 ई. जलालुद्दीन खिलजी >रणथम्भौर अभियान (हममीर देव) >अर्कली खां

. जलालुद्दीन रणथम्भौर की चाबी कहलाने वाले "झाइन दुर्ग" को जीता परंतु रणथम्भौर की सुदृढ़ स्थिति को देखकर वह पीछे हट गया और उसने कहा कि," वह मुसलमान के एक बाल को भी ऐसे 10 किलों से भी अधिक महत्व देता है." .1295 ईस्वी में जलालुद्दीन ने मंडोर जीता.

Note - जलालुद्दीन के रणथम्भौर अभियान के समय ही ताजुद्दीन /कूची (कोच्चि) को सिंहासनारूढ़ करने के लिए कुछ सरदारों ने विद्रोह कर दिया. . सूचना पाकर सुल्तान दिल्ली लौटे तब तक अर्कली खां विद्रोह का दमन कर चुका था. . परंतु सुल्तान ने उन्हें कठोर दंड ना देकर एक वर्ष के लिए दरबार से निष्कासित कर दिया. (यह भी उदारवाद का परिचय है.) . 1295 में सिद्धि मौला ने विद्रोह कर दिया जिसे खान-ए-खाना ने हाथी के पैरों के नीचे कुचल वाकर मरवा दिया. (यह दमनात्मक व हिंसक नीति का परिचय है).

. जलालुद्दीन की मंगोल नीति- . 1292 ईस्वी में उलुग खाँ मंगोल के प्रपौत्र अब्दुल्ला खान के नेतृत्व में डेढ़ लाख की सेना के साथ पंजाब पर आक्रमण किया, जिसे जलालुद्दीन ने विफल कर दिया. . इसके पश्चात जलालुद्दीन ने मंगोलों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई, और अपनी पुत्री का विवाह चंगेज खां के एक वंशज उलुग खां से किया. . उलुग खाँ के नेतृत्व में 4000 मंगोलों ने इस्लाम कबूल किया व दिल्ली के निकट मंगोलपुरी में बस गए तथा नवीन मुसलमान कहलाए.

अलाउद्दीन खिलजी का देवगिरी अभियान - ( दक्षिण भारत में प्रथम मुस्लिम आक्रमण) . 1295 ईस्वी में जलालुद्दीन के भतीजे व दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने भिलसा पर आक्रमण किया जहाँ से उसे काफी मात्रा में धन की प्राप्ति हुई. जिसका एक भाग उसने सुल्तान को भेज दिया व सुल्तान ने खुश होकर अवध की सूबेदारी दी. . मलिक छज्जू से कड़ा व मानिकपुर छीनकर अलाउद्दीन खिलजी को इस जगह का सूबेदार बनाया गया. . भिलसा विजय के बाद अलाउद्दीन की धन की लालसा बढ़ गई. अतः उसने 1296 में देवगिरी पर आक्रमण किया. हालांकि उसने सुल्तान से चंदेरी पर आक्रमण करने की अनुमति मांगी. . अलाउद्दीन के समय देवगिरी का शासक रामचंद्र देव था. . इसी समय रामचंद्र का पुत्र शंकरदेव होयसल अभियान पर गया हुआ था. . अलाउद्दीन व राम के बीच के युद्ध में राम प्राप्त होने ही वाला था कि, उसके पुत्र शंकर देव ने आकर उसकी स्थिति सुदृढ़ कर दी. . शंकरदेव के कारण रामचन्द्रदेव विजित होने वाला ही था कि, नसरत जलेसरी की सहायता मिलने के कारण अंतिम विजय अलाउद्दीन की हुई. . राम ने युद्ध क्षति के रूप में एलिचपुर की आय तथा अपार धन-संपदा दी और संभवतया उसने अपनी पुत्री का विवाह अलाउद्दीन से कर दिया. . इसी संदर्भ में कथन है कि, "वास्तव में दिल्ली को देवगिरी में जीता गया क्योंकि दक्षिण के स्वर्ण ने अलाउद्दीन के सिंहासन पर बैठने का मार्ग प्रशस्त किया." . अलाउद्दीन ने कड़ा मानिकपुर पहुंचकर अपने भाई अलमास बेग के साथ मिलकर एक षड्यंत्र रचा जिसमें इक्तियारुद्दीन छज्जू के द्वारा जलालुद्दीन का कलम सर कलम कर दिया गया. . जलालुद्दीन की मृत्यु के समय उसका योग्य पुत्र अर्कली खां मुल्तान में था अतः जलालुद्दीन की विधवा मलिका-ए-जहान ने अपने छोटे पुत्र कद्र खाँ को रुकनुद्दीन इब्राहिम के नाम से दिल्ली का सुल्तान घोषित किया. . अर्कली खां मुल्तान में ही रहा. . अलाउद्दीन ने इस मौके का लाभ उठाकर दिल्ली की ओर बढ़ना प्रारंभ किया तथा अथाह धन लूट कर एक सेना का गठन किया. . अलाउद्दीन व उसके समर्थकों ने इतनी बड़ी सेना बना ली कि, मल्लिका-ए-जहान, अहमद चप, कद्र खां को मुल्तान भागना पड़ा और अलाउद्दीन बिना किसी विरोध दिल्ली का सुल्तान बन गया.


अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) - . उपाधि अबुल मुजफ्फर सुल्तान अलाउद्दीनिया व दीन मोहम्मद शाह खिलजी. . मूल नाम अली गुर्शस्प . जलालुद्दीन खिलजी के समय अमीर-ए-तुजुक का पद धारण किया तथा मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में सहायता करने के फलस्वरूप कड़ा व मानिकपुर की सूबेदारी प्राप्त की. . जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी पुत्री का विवाह अलाउद्दीन खिलजी से किया. . 1292 में भिलसा को लूटा. . 1296 में देवगिरी पर आक्रमण किया और अथाह संपत्ति लूट कर लाया. उसी वर्ष जलालुद्दीन खिलजी को मानिकपुर बुला कर धोके से उसका कत्ल किया और दिल्ली में रुकनुद्दीन इब्राहिम (कद्र खां) को सिंहासन से हटा कर सत्ता हथिया ली. . अलाउद्दीन खिलजी ने अपना राज्यभिषेक लाल महल (बलबन द्वारा निर्मित) में करवाया.

कठिनाइयां - . अपने चाचा का वध किया अतः प्रजा की घृणा का पात्र था. . जलालुद्दीन खिलजी का बड़ा पुत्र अर्कली खां पंजाब व मुल्तान का स्वतंत्र शासक था तथा उसने कद्र खां, मलिका-ए-जहान व अहमद चप को शरण दे रखी थी. . संपूर्ण दोआब व अवध में अलाउद्दीन खिलजी की स्थिति दुर्बल थी तथा वहां के अधीनस्थ राजा और प्रजा विद्रोह के लिए तत्पर थे. . उत्तर पश्चिमी सीमा पर खोक्खर व मंगोल निरंतर आक्रमण कर रहे थे. . बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर दिल्ली सल्तनत का प्रभाव नगण्य था. . चित्तौड़गढ़, रणथम्भौर जैसे राज्य दिल्ली सल्तनत को चुनौती दे रहे थे. . शासन को सुव्यवस्थित करना तथा सुल्तान के प्रति सम्मान व भय उत्पन्न करना भी इसकी प्रमुख चुनौती थी.

अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक काल - . अलाउद्दीन खिलजी ने प्रजा की घृणा को दूर करने के लिए अत्यधिक उदारता के साथ धन वितरित किया. . उसने अपने वफादार सरदारों को बड़े पद व उपाधियाँ प्रदान की जिनमें चार खान प्रमुख हैं. 1. संजर को आलम /अलम खां 2. नसरत जलेसरी को नुसरत खां 3. अलमास बेग को उलूग खां 4. मलिक युसूफ को जफर खान की उपाधि दी. . अर्कली खां व उसके परिवार के विरुद्ध उलूग खां व जफर खान के नेतृत्व में मुल्तान सेना भेजी गई और अर्कली खां ने आत्मसमर्पण किया. . कुछ समय पश्चात रुकनुद्दीन (कद्र खां), मलिका-ए-जहान, अहमद चप (अमीर-ए-हाजिब), अर्कली खां व उसके दो पुत्रों का वध कर दिया गया और इस तरह उसने सिंहासन के सभी दावेदारों को अपने रास्ते से हटा दिया. . अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 वह 1299 में हुए मंगोल आक्रमण को विफल कर दिया और उन जलाली सरदारों को दंड दिया जो लालच के कारण कभी उसके साथ मिल गए थे. . अपनी विजयों से उत्साहित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि धारण की व उसे अपने सिक्कों पर अंकित करवाया. . अलाउद्दीन खिलजी सिकंदर की भांति संपूर्ण विश्व को जीतने व एक नया धर्म चलाने की इच्छा रखता था, परंतु अपने मित्र व दिल्ली के कोतवाल अला-उल-मुल्क की सलाह पर उसने यह विचार त्याग दिया और भारत में ही एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया.

. अलाउद्दीन खिलजी का राजत्व सिद्धांत - . अलाउद्दीन खिलजी के राजत्व का मूलाधार निरंतर विस्तार, प्रशासनिक केंद्रीकरण व जनहित था. . अलाउद्दीन खिलजी ने खलीफा की सत्ता को नाम मात्र की मान्यता प्रदान करते हुए यामिन-उल-खिलाफत, नासिर-अमीर-उल-मोमिनीन (खलीफा का नाइब) की उपाधि धारण की. . परन्तु उसने खलीफा से अपने पद की स्वीकृति लेना आवश्यक नहीं समझा. . वह उलेमा वर्ग से भी सलाह नहीं लेना चाहता था तथा स्वयं के विवेक से राज्य हित में निर्णय करता था. इसी संदर्भ में उसने बयाना के काजी मुगीसुद्दीन से कहा कि, "मैं नहीं जानता शरीयत में क्या लिखा है और कयामत के दिन खुदा मेरे साथ क्या सलूक करेगा. मैं ऐसे आदेश देता हूँ जिन्हें राज्य के लिए लाभदायक व परिस्थितियों के अनुकूल समझता हूँ." . अलाउद्दीन खिलजी का राजत्व सिद्धांत कुछ बातों पर बलबन का राजत्व सिद्धांत के समान है. जैसे-केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति, प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण, जनहित आदि. . परंतु अलाउद्दीन खिलजी और बलबन का राजत्व सिद्धांत में कुछ असमानताएं भी थी. जैसे-बलबन ने खलीफा को महत्व प्रदान किया जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने नहीं, बलबन ने केवल सुदृढ़ीकरण की नीति अपनाई थी अलाउद्दीन खिलजी ने सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ विस्तारीकरण की नीति को भी अपनाया, अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन की तुलना में राजस्व की वसूली में अतिवादी दृष्टिकोण अपनाया. . अलाउद्दीन खिलजी ने उत्तर भारत में राज्यों का विस्तार किया तथा दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी अधीनता स्वीकार करवाई तथा वार्षिक कर लेकर ही संतुष्ट रहा.

गुजरात अभियान - . 1299 में सुल्तान बनने के बाद गुजरात अलाउद्दीन खिलजी का प्रथम अभियान था. . गुजरात का शासक कर्ण सिंह बघेला (राय कर्ण) था तथा राजधानी अन्हिलवाड़ (पाटनपुर) थी. . गुजरात अभियान का मूल कारण कर्णसिंह के मंत्री माधव द्वारा अलाउद्दीन खिलजी से सहायता मांगना था . .1299 में उलुग खां व नुसरत खां के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण किया. . कर्णसिंह पराजित हुआ व अपनी पुत्री देवल दे के साथ देवगिरी शासक रामचन्द्रदेव के यहां शरण ली. इसी अभियान में नुसरत खां ने खंभात से एक भारतीय मुसलमान दास 'मलिक काफूर' को हजार दिनार देकर खरीदा. इसी कारण से हजार दिनारी भी कहा जाता है. ( गुजरात अभियान को विजित करने से पहले अलाउद्दीन खिलजी के समय जैसलमेर को भी जीता जाता है.) . राजा कर्ण सिंह बघेला की पत्नी कमला दे से अलाउद्दीन खिलजी ने विवाह किया और गुजरात दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया. . इस अभियान से लौटते हुए नवीन मुसलमानों ने लूट के धन को लेकर विद्रोह कर दिया जिसका नेतृत्व में मेहमा शाह या मुहम्मद शाह कर रहा था. . इस विद्रोह का दमन कर दिया गया तथा मेहमा शाह व केहब्रू ने रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव की शरण ली.

रनथम्भौर अभियान -1310 ई. . अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण का उल्लेख जोधराज के "हम्मीर रासो" , नयन चंद्र सूरी के "हम्मीर महाकाव्य" जैसे ग्रंथों से मिलता है. . रणथम्भौर आक्रमण का मुख्य कारण हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी से असंतुष्ट मंगोल सेनापति मेहमा शाह व केहब्रू को शरण देना था. . रणथम्भौर अभियान का नेतृत्व उलुग खां व नुसरत खां द्वारा किया गया तथा हम्मीर के कोटि यज्ञ में व्यस्त होने के कारण भीमपाल व धर्मपाल के नेतृत्व में सेना भेजी गई. . इस युद्ध में नुसरत खां व भीम पाल मारे गए. अतः अलाउद्दीन खिलजी स्वयं रणथम्भौर पर आक्रमण करता है और रतिपाल और रणमल के विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर को जीत लेता है. . इसी समय हम्मीर की रानी रंग देवी ने जौहर किया तथा उसकी पुत्री देवल दे ने पद्म तालाब में जल जौहर किया. (राजस्थान का एकमात्र जल जौहर). . इस विजय का वर्णन अमीर खुसरो द्वारा लिखित ग्रंथ तारीख-ए-अलाई (खजाइन-उल-फुतुह) में मिलता है. . इस विजय के पश्चात् अलाउद्दीन खिलजी ने कहा कि, "कुफ्र का गढ़ आज इस्लाम का गढ़ हो गया है."

चित्तौड़ अभियान -1303 . 1303 में स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया जिसका प्रमुख कारण रानी पद्मिनी का प्रसंग माना जाता है. . रानी पद्मिनी के प्रसंग का वर्णन अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ तारीख-ए-अलाई में सुलेमान=अलाउद्दीन खिलजी व शेबा =पद्मिनी के रूप में किया. इसी ग्रंथ की सहायता से मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में पद्मावत ग्रंथ की रचना की. . अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ को जीतकर उसका नाम खिज्राबाद रखा तथा यह किला खिज्र खां को सौंपा जो कि अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र था. . राणा रतन सिंह युद्ध करते हुए मारे गए और रानी पद्मिनी ने जौहर किया. . गोरा और बादल दो प्रमुख सेनानायक भी इस युद्ध में शहीद हुए.

मालवा अभियान -1305 . 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने मुल्तान के सूबेदार आइन उल मुल्क मुल्तानी को मालवा पर आक्रमण हेतु भेजा. इस समय मालवा का शासक अहलक देव था व प्रमुख सेनापति हरिश्चंद्र (हरचंद) कोका था. . हरिश्चंद्र कोका मारा गया वह अहलक देव मांडू की तरफ भाग गया. . मुल्तानी ने मांडू को घेरकर एक विश्वासघाती की सहायता से अचानक महलक देव पर आक्रमण किया व अहलक देव मारा गया और अंततः मालवा दिल्ली के अधीन आ गया.

सिवाणा अभियान -1308 . अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा पर आक्रमण किया और शीतल देव (सातल देव /सोमदेव) को पराजित कर सिवाणा पर अधिकार कर लिया. . सिवाणा को जीतने का कारण विश्वासघाती भायला पवार द्वारा भाण्डेलाव तालाब को गौ मांस से दूषित करना था, जिसके कारण सिवाणा को आत्मसमर्पण करना पड़ा. . अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा का नाम खैराबाद रखा व कमालुद्दीन गुर्ग को वहां का सूबेदार नियुक्त किया. . गुल-ए-बहिश्त - अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा की धाय माँ.

जालौर अभियान - 1310-11 . कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में जालोर पर आक्रमण किया गया जिसमें जालौर शासक कान्हड़ देव पराजित हुआ और अंततः 1312 में जालौर को दिल्ली में मिलाया गया और इसका नाम जलालाबाद रखा गया. कमालुद्दीन गुर्ग को वहां का सेनापति नियुक्त किया. . यहां पर विश्वासघाती दहिया सरदार बीका था, जिसे बाद में उसकी पत्नी ने ही मार दिया. . जालौर विजय ने अलाउद्दीन खिलजी की राजस्थान विजय को पूर्ण किया तथा बाद में बूंदी, मंडोर व टोंक भी अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता में चले गए.

Note - . मुहणोत नैणसी के अनुसार 1305 में आइन उल मुल्क मुल्तानी के समझाने पर कान्हड़देव नहीं बल्कि वीरमदेव गया था और सुल्तान की पुत्री फिरोजा के प्रेम प्रसंग का वर्णन भी नैणसी ने किया है. . इससे आगे का वर्णन पद्मनाभ ने अपनी पुस्तक "कान्हड़दे प्रबंध" में किया, जिसमें लिखा है कि फिरोजा की धायमा गुल-ए-बहिश्त ने सिवाना पर आक्रमण किया और वीरमदेव का सिर काट कर ले गई जिसे लेकर फिरोजा ने यमुना में कूदकर आत्महत्या कर ली.


. चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ में उत्तर भारत में अलाउद्दीन खिलजी की शक्ति का विरोध करने वाला कोई शासक नहीं बचा और उसके कठोर शासन के कारण राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित हो चुकी थी. . विद्रोह की सभी आशंकाएं समाप्त हो चुकी थी. सुल्तान के पास एक बड़ी सेना थी. ऐसी स्थिति में अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण भारत की विजय के लिए तत्पर हुआ. . अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का उद्देश्य धन और विजय की लालसा थी. वह जानता था कि दक्षिण भारत को अपने राज्य में सम्मिलित कर शासन करना संभव है अतः उसने उन राज्यों से अपनी अधीनता स्वीकार करवा कर तथा वार्षिक कर लेकर ही संतुष्टि प्राप्त कि. . अलाउद्दीन खिलजी के सुल्तान बनने पर दक्षिण भारत पर प्रथम आक्रमण 1303 में मलिक काफूर द्वारा वारंगल पर किया गया, जो कि असफल रहा. . अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का श्रेय मालिक काफूर को दिया जाता है.

देवगिरी अभियान - 1307-08 . अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी पर आक्रमण हेतु रामचंद्र देव द्वारा वार्षिक आय ना देना व कमला दे द्वारा देवलदे को दिल्ली लाने की जिद करना, को उपयुक्त कारण बनाया. . उसने देवगिरी पर आक्रमण हेतु दो सेना ने भेजी. जिसमें एक सेना का नेतृत्व अलप खां कर रहा था, जिसका प्रमुख कार्य कर्णसिंह को बगलाना की जागीर से हटाना तथा देवलदे को पुनः लेकर आना था. तथा दूसरी सेना जिसका नेतृत्व मलिक काफूर कर रहा था ने राम चंद्र देव को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य किया, क्योंकि रामचंद्र देव ने वार्षिक कर देना बंद कर दिया था. . रामचंद्र ने काफूर को अथाह संपत्ति प्रदान की और उसके साथ दिल्ली आया. अलाउद्दीन खिलजी ने रामचंद्र को 6 माह पूरे सम्मान के साथ दिल्ली में रखा तथा उसे रायान की उपाधि, चांदोबा व 100000 (एक लाख) टंके का पुरस्कार भी दिया. . संभवतया रामचंद्र ने अपनी पुत्री झट्यपाली का विवाह भी अलाउद्दीन खिलजी से किया. . इसके बाद रामचंद्र देव न सिर्फ अलाउद्दीन खिलजी के अधीन रहा बल्कि पूरे जीवन उसका वफादार भी बना रहा.

वारंगल अभियान /तेलंगाना अभियान - 1309-1310 . मलिक काफूर के नेतृत्व में तेलंगाना पर आक्रमण किया गया. . इस आक्रमण हेतु रामचंद्र ने काफूर की सहायता के लिए कुछ मराठा सैनिक भेजे व रसद की व्यवस्था भी की. . तेलंगाना के प्रताप रुद्रदेव वारंगल के सुदृढ़ किले की रक्षा नहीं कर सका और उसने अपनी सोने की मूर्ति बनवा कर सोने की जंजीर के साथ काफूर के पास भेजी. . प्रताप ने काफूर को हाथी घोड़े व अत्यधिक धन प्रदान किया व अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार कर वार्षिक कर देना भी स्वीकार किया. . खफी खां अपने ग्रंथ मुन्तखाब-उल-लुबाब में लिखता है कि, "इसी अवसर पर प्रताप ने मलिक काफूर को विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया जिसे काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी को वेट किया."

होयसल अभियान (1310-1311) - . वारंगल विजय के पश्चात् काफूर को होयसल राज्य पर आक्रमण हेतु भेजा जाता है. . इस समय होयसल का शासक वीर बल्लाल तृतीय था जो पांड्य राज्य पर आक्रमण हेतु गया हुआ था. . रामचंद्र देव ने इस समय काफूर की सहायता के लिए अपने दक्षिणी सीमा के सेनापति पारस देव (परशुराम) को भेजा. . वीर बल्लाल युद्ध की सूचना पाकर लौट आया परंतु पराजित होकर संधि करना कबूल किया. . वीर बल्लाल ने दिल्ली की अधीनता को माना व वार्षिक कर देना भी मंजूर किया. . अलाउद्दीन खिलजी ने वीर बल्लाल को उसका राज्य वापस लौटा दिया तथा मुकुट, छत्र, व 10,00,000 (दस लाख) टंके दिये.


पांड्य /मालाबार /मदुरै अभियान (1311-12)- . पांडे राज्य में वीर पांड्य व सुंदर पांड्य में झगड़ा चल रहा था, जिसमें सुंदर ने पराजित होकर अलाउद्दीन खिलजी से सहायता मांगी. . 1311 में काफूर के नेतृत्व में सेना पांड्य राज्य पहुंची जहां वीर पांडे ने छापामार युद्ध पद्धति को अपनाया. . काफूर वीर पांड्य को पकड़ने में असफल रहा. दक्षिण भारत में पांड्य एकमात्र राज्य था जिसने दिल्ली की अधीनता स्वीकार नहीं की. . काफूर ने चिदंबरम में महादेव मंदिर, श्रीरंगम्, कुन्नूर के मंदिरों को लूटा और धन प्राप्त किया. . अमीर खुसरो के ग्रंथ आशिकाना में उल्लेख है कि काफूर ने रामेश्वरम मंदिर लूटा और वहां एक मस्जिद बनवाई. . धन की दृष्टि से पांड्य अभियान काफूर का सबसे सफल अभियान रहा.

देवगिरी पर दूसरा आक्रमण (1312)- . 1312 में रामचंद्र की मृत्यु के पश्चात शंकरदेव ने दिल्ली से संबंध विच्छेद कर लिया. . अतः अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को पुनः देवगिरी अभियान पर भेजा. . शंकरदेव युद्ध में मारा गया और इस बार देवगिरी का अधिकांश भाग दिल्ली में सम्मिलित कर लिया गया. . अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय ना तो महत्वपूर्ण थी ना ही स्थाई रही, क्योंकि दक्षिण के राज्य विजेता के विजेता के हटते ही दिल्ली सल्तनत के प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करते थे. . परंतु फिर भी अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति सफल थी क्योंकि उसका उद्देश्य धन की लूट व दक्षिण राज्य को अपने अधीन करना था जिसमें उसने सफलता प्राप्त की.


अलाउद्दीन की भू राजस्व नीति - . बरनी की तारीख ए फिरोजशाही व K.S. लाल की "खिलजी वंश का इतिहास" में भू-राजस्व नीति का विस्तृत वर्णन मिलता है. . अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य एक शक्तिशाली व निरंकुश राज्य की स्थापना करना था. . साम्राज्य विस्तार की लालसा व मंगोल आक्रमणों से सुरक्षा हेतु उसे एक बड़ी सेना की आवश्यकता थी, और इसी कारण राज्य की आय में वृद्धि करना भी आवश्यक था. . अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश पद्धति की को लागू किया जिसे बरनी ने मसाहत नाम दिया. इसमें भूमि की एक इकाई के रूप में बिस्वा को चुना गया. (एक बीघा का 20 वां भाग बराबर एक बिस्वा) और प्रति बीघा उपज के आधे भाग को लगान के रूप में निर्धारित किया. . अबू याकूब की पुस्तक किताब उल खराज में लिखा है कि भू राजस्व की मात्रा 1/4से 1/2 के मध्य होनी चाहिए. . शरीयत (इस्लामी कानून) में भू-राजस्व के संदर्भ में 1/10 से 1/12 भाग भू राजस्व की दर निर्धारित की गई है. परिणाम स्वरुप अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे उच्च सीमा 1/2 (50%) को भू राजस्व का आधार बनाया. (संभवतया मुस्लिमों से 1/4% टैक्स वसूला जाता था). . यह कर नकद व अनाज दोनों रूप में वसूल किए जाते थे. . इसके अतिरिक्त अलाउद्दीन खिलजी ने घरी कर (आवासीय कर), चरी कर (दुधारू पशुओं पर कर), करी कर (हाथी रखने पर कर) भी लागू किये. . अलाउद्दीन खिलजी ने खुम्स (युद्ध के लूटे हुए धन पर कर) नामक कर जिसका 1/5 सुल्तान को व 4/5 भाग सेना को दिया जाता था,को उल्टा या विपरीत कर दिया. इस संदर्भ में उसका तर्क था कि मैं अपने सैनिकों को उजरत (वेतन) देता हूँ, इसलिए लूट के माल पर उनका कोई हक नहीं बनता. . बरनी के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने पूर्ववर्ती सुल्तानों के समय दी गई भूमियों को या उनके आदेशों को रद्द कर खालसा (राजकीय भूमि) घोषित कर दिया. जैसे- . मिल्क= राजकीय अनुदान, . इदरात=राजकीय पेंशन, . वजीफा =राजकीय सहायता, . इनाम= राजकीय पुरस्कार, . वक्फ = धार्मिक सहायता. आदि को राजकीय भूमि बना लिया गया, जिससे राज्य की आय में वृद्धि हुई. . अलाउद्दीन खिलजी द्वारा खुत्त मुकद्दम व चौधरी को प्राप्त होने वाले विशेषाधिकार समाप्त कर दिए. जैसे- किस्मत ए खोती (किसानों से प्राप्त सुविधा), हक्क-ए-खोती (सेवा के बदले राजकीय सुविधा) को समाप्त कर दिया गया. . उपर्युक्त वर्ग को अपनी भूमि पर साधारण किसानों की भाँति कर देना होता था, और मेहनताने के रूप में भूमि कर का जो 10% उन्हें मिलता था उसे घटाकर 5% कर दिया. . अलाउद्दीन खिलजी ने अपने अधिकारियों से बकाया राजस्व वसूल करने के लिए तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए दीवान ए मुस्तखराज की स्थापना की. . हजारों की संख्या में आमिल, गुमाश्ता, मुंशरी, नवसिन्दा, सरहंग नामक पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई जो कि भू राजस्व वसूली से संबंधित पद थे.

.अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य व्यवस्था -

सेना को महत्व प्रदान करते हुए बरनी ने लिखा है कि, "बादशाहत दो स्तंभों पर आधारित होती है. एक शासन तथा दूसरा विजय, और ये दोनों स्तंभ सेना पर ही निर्भर करते हैं और बादशाहत ही सेना है ओर सेना ही बादशाहत है." . अलाउद्दीन खिलजी ने सेना का केंद्रीयकरण प्रारंभ किया व सेना को नकद वेतन देना प्रारंभ किया. सैनिकों की भर्ती का कार्य आरिज-ए-मुमालिक को सौंपा गया, जिसके द्वारा जांच पड़ताल करके योग्य व्यक्तियों को ही सेना में भर्ती किया जाता था. इन सैनिकों को "मुर्रतब" कहते थे . . अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे बड़ी स्थाई सेना का गठन किया. फरिश्ता के अनुसार केंद्रीय सेना में 4,75,000 घुड़सवार थे. . भ्रष्टाचार को रोकने के लिए घोड़ों को दागने व सैनिकों का हुलिया दर्ज करने की प्रथा प्रारंभ की गई. . एक घुड़सवार का वेतन 234 टंका था. एक अतिरिक्त घोड़ा रखने पर उसे 78 टंके अधिक दिए जाते थे. अतः दुअस्पा का वेतन 312 टंके वार्षिक होता था. . पैदल सैनिकों को 78 टंके वार्षिक दिए जाते थे. . अलाउदिन खिलजी ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर बलबन द्वारा बनाए गए किलों की मरम्मत करवाई व उन सभी किलों में स्थाई रूप से सेना भी रखी गई.

. अलाउद्दीन खिलजी के समय हुए विद्रोह अल्लाउदिन के काल में बहुत से विद्रोह हुए जिनमें प्रमुख निम्न हैं. 1. 1299 में गुजरात अभियान के समय धन की लूट को लेकर किया गया विद्रोह 2. रणथम्भौर अभियान के लिए जाते हुए अलाउद्दीन के भतीजे अकत खाँ द्वारा किया गया विद्रोह. ये अचानक हुआ था. 3. जब अलाउद्दीन रणथम्भौर अभियान में व्यस्त था तब अवध के सूबेदार बंगू खाँ तथा बन्दायूं का सूबेदार मलिक उमर (अलाउद्दीन का भांजा) 4. 1308 में दिल्ली के हाजी मौला (दिल्ली के कोतवाल का सेवक) द्वारा किया गया विद्रोह . हाजी मौला ने लाल महल पर अधिकार कर लिया. इल्तुतमिश की पुत्री के वंशज शाहींशाह को सुल्तान घोषित किया पर अलाउद्दीन के वफादार हामीदुद्दीन ने विद्रोह का दमन कर दिया.

सभी विद्रोह असफल हुए परंतु इतनी जल्दी जल्दी होने वाले विद्रोह के कारणों को खोजने के लिया अलाउद्दीन ने चार अध्यादेश जारी किए. 1. अमीरों की संपत्ति व भूमि को जब्त किया गया. 2. गुप्त चर प्रणाली का गठन 3. दिल्ली में मादक द्रव्यों व जुए पर प्रतिबंध लगाया. 4. अमीरों व सरदारों के आपसी मेलमिलाप, उत्सवों व विवाह संबंधों पर प्रतिबंध लगाया गया.


अलाउद्दीन खिलजी व आर्थिक सुधार / बाज़ार नियंत्रण प्रणाली

. वित्तीय व राजस्व सुधारों में रुचि लेने वाला अलाउद्दीन पहला सुल्तान था. .अलाउद्दीन खिलजी की बाज़ार नियंत्रण प्रणाली की जानकारी हमें बरनी के ग्रंथ तारीक-ए-फिरोजशाही , अमीर खुसरो के 'खजाइन-उल-फुतुह' , इसामी के 'फुतुह-उस-सलातीन' व इब्नबतूता के 'रेहला' से मिलती है. . के. एस. लाल व बरनी के अनुसार बाज़ार नियंत्रण का उद्देश्य कम खर्चे पर अधिक सेना रखना था. . अमीर खुसरो व हसन निजामी के अनुसार उसका उद्देश्य जनता का हित था. . फरिश्ता के अनुसार बाज़ार नियंत्रण सुल्तान द्वारा शासित अधिकांश प्रांतों में लागू था, जबकि मौरलैंड के अनुसार मूल्य नियंत्रण का प्रयास दिल्ली तक ही सीमित था, क्योंकि अधिकांश सेना दिल्ली में ही केन्द्रित थी. . अलाउद्दीन ने राशनिंग (Rashaning) व्यवस्था लागू की तथा कलाबाज़ारी पर नियंत्रण किया. . आपातकालीन खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अनाज भंडारण हेतु गोदाम बनवाए . . अलाउद्दीन ने बाज़ार को 3 श्रेणियों में बांटा 1 मंडी या गल्ला बाज़ार - अनाज या खाद्यान हेतु बाजार 2 सराय अदल - तैयार माल को बेचने हेतु बाज़ार 3 घोड़े, दासों व मवेशियों का बाज़ार

. बाज़ार नियंत्रण के लिए निम्न अधिकारी नियुक्त किए गए 1. दीवान ए रियासत(मूलतः यह एक विभाग था) - आर्थिक देख रेख के लिए वाणिज्य मंत्री के रूप में इसके अधिकारी को नियुक्त किया जाता था. सभी व्यापारियों को इस विभाग में पंजीकरण करवाना होता था. . नाजिर याकूब को प्रथम दीवान-ए-रियासत बनाया गया. 2. शहना-ए-मंडी - ये गल्ला मंडी का नियंत्रक होता था. मलिक कबूल को प्रथम शहना-ए-मंडी नियुक्त किया गया. 3. नाजिर - नापतौल का अधिकारी. 4. परवाना नवीस - व्यापार हेतु परमिट जारी करने वाला. 5. बरीद-ए-मंडी - (गुप्तचर अधिकारी)- ये बाज़ार में होने वाले किसी भी तरह की जानकारी अलाउद्दीन को देता था ताकि उन्हें दंड दिया जा सके.

. अलाउद्दीन के समय मूल्य के सस्तेपन से महत्वपूर्ण मूल्य की स्थिरता थी. बरनी ने लिखा है कि 'अनाज मंडी में कीमतों का स्थायित्व इस युग का आश्चर्य था.'

. अलाउद्दीन की बाज़ार व्यवस्था उसके समय में सफल रही परंतु उसके बाद यह व्यवस्था स्वतः ही समाप्त हो गई.

. अलाउद्दीन ने बाज़ार नियंत्रण हेतु 4 अधिनियम पारित किए. 1. खाद्यान्नओं की कीमत का निर्धारण 2. कम कीमत पर कपड़ा व किराना सामान प्राप्ति हेतु सराय अदल की स्थापना. 3. खाद्यान्न, कपड़े, मवेशियों व दासों के लिए तीन अलग अलग बाज़ार स्थापित किए जाएँ, और प्रत्येक बाज़ार में शहना नामक अधिकारी नियुक्त किया जाए. 4. अंतिम अधिनियम परवाना नवीस की नियुक्ति से संबंधित था.


अमीर खुसरो, (1253-1325 ) . अमीर खुसरो का जन्म 1253 में पटियाली वर्तमान उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हुआ. और मूलतः यह एक कवि था. इसे मध्यकाल इतिहास का फारसी भाषा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। . इसकी काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर बलबन के ज्येष्ठ पुत्र मुहम्मद खां ने जो उस समय उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांतों का गवर्नर था, अमीर खुसरो को नदीम (दरबारी) के पद पर नियुक्त किया. अमीर खुसरो मुहम्मद खान द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठियों का संचालन करता था. . 1285 में जब उत्तरी पश्चिमी सीमा पर मंगोल अक्रमण के समय मंगोल अमीर खुसरो को कैद करके ले गए. किन्तु बाद में अमीर खुसरो जलालुद्दीन खिलजी के समय दरबारी कवि व मुसबदार (शाही पुस्तकालय का अध्यक्ष) नियुक्त किया गया और 1325 मे अपनी मृत्यु तक वह इन दोनों पदों पर बना रहा. अमीर खुसरो ने कुल 100 काव्य ग्रंथ लिखे, जिनकी पूरी सूची बरनी ने अपनी पुस्तक तारीक-ए-फिरोजशाही में दी है. अमीर खुसरो ने अपने जीवनकाल में कुल 8 सुल्तानों का काल देखा. अमीर खुसरो द्वारा लिखे गए ग्रंथों में से 6 ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिनके आधार पर उसे प्रमुख इतिहासकार माना जाता है. 1. किरान-उस-सदाइन- इसकी रचना सुल्तान केकुबाद के समय की गई अतः इसमे केकुबाद के शासनकाल (1287-1290)का वर्णन किया गया. 2. मिफ्ताह-उल-फुतुह- इसकी रचना सुल्तान जलालुद्दीन के समय की गई , इसमें जलालुद्दीन के शासनकाल के प्रथम वर्ष (1290_1291) की घटनाओं का वर्णन है. 3. खजाईन-उल-फुतूह- इसे अल्लाउद्दीन के समय लिखा गया और इसमें उसने अलाउद्दीन के उत्तर भारत व दक्षिण भारत की विजयों का उल्लेख किया. इसी ग्रंथ में अलाउद्दीन के समय हुए मंगोल अक्रमणों की विस्तृत जानकारी मिलती है. 4. देवल रानी खिज्र खां - अलाउद्दीन खिलजी के समय लिखा गया ग्रंथ जिसमे अलाउद्दीन के बेटे खिज्र खाँ व गुजरात के राजा कर्ण सिंह बघेला की बेटी देवल दे का वर्णन है.

     अलाउद्दीन के अंतिम दिनों में मलिक काफूर द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के लिए जो षड्यंत्र रचे गए थे उनका विस्तृत वर्णन भी इसमे मिलता है. इस ग्रंथ को आशिकाना भी कहा जाता है. 

5. नूहे सिपेहर - इसकी रचना कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के समय की गयी तथा इसमें मुबारक शाह खिलजी के पूरे शासनकाल (1316-1320) का वर्णन है. इस ग्रंथ में अमीर खुसरो ने हिंदुस्तान की बड़ी प्रशंसा की है तथा अन्य देशों से हिंदुस्तान को श्रेष्ठ बताया है. इसी ग्रंथ में अमीर खुसरो ने स्वयं को 'तूती-ए-हिन्द' कहा है. 6 तुगलक नामा - सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के समय लिखा गया. गयासुद्दीन तुगलक तुगलक वंश का संस्थापक था. इसी के पूरे शासनकाल का वर्णन इसमें किया गया है.

अमीर खुसरो संगीत कला का भी ज्ञाता था और उसने भारतीय वीणा और फारसी तंबूरा इन दोनों वाद्य यंत्रों को मिला कर सितार नामक वाद्य यंत्र का अविष्कार किया. इसने हिंदू भजन और कीर्तन की तर्ज पर क़वालियों की रचना की. पहली बार उर्दू में काव्य रचने का श्रेय अमीर खुसरो को जाता है. इसने अपने ग्रंथों में बड़ी संख्या में हिंदी शब्दों का प्रयोग भी किया है.


Note. उर्दू की उत्पत्ति 12 वीं शताब्दी के अंत मे हुई. इसकी सारी व्याकरण हिंदी की है जबकि अधिकांश शब्द अरबी फारसी व तुर्की के हैं. प्रारंभ में उर्दू को जबान-ए-हिन्द भी कहा जाता था.


अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति -

Notes

अलाउद्दीन खिलजी का अंतिम समय - अल्लाउद्दीन का पुत्र खिज्र खां, उसकी पत्नी मलिका-ए-जहान बीमारी के समय उसका विशेष ध्यान नहीं रखते हैं. अतः अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण भारत से मलिक काफूर को अमंत्रित करता है. मलिक काफूर को सत्ता का दावेदार मान कर मलिका-ए-जहान, उसका भाई अलप खाँ एक साथ मिलकर काफूर की शक्ति को तोड़ने का षड़यंत्र रचते हैं. 1312 में अलप खाँ की पुत्री का विवाह खिज्र खां से कर दिया जाता है. 1313 में अलप खाँ की दूसरी पुत्री का विवाह शादी खां से कर दिया जाता है. 1315 में मलिक काफूर जब वापस आता है तो राज्य की दुर्बल स्थिति को देख सत्ता हथियाने का प्रयास करता है. इसी प्रयास में वह अलप खां को मरवा देता है. मलिका-ए-जहान को महल में कैद करवाता है. खिज्र खां व शादी खां को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया जाता है. मलिक काफूर के प्रभाव को देखते हुए तथा खिज्र खां के भोग विलास के कारण अलाउद्दीन खिलजी अपने 5 वर्ष के पुत्र शिहाबुद्दीन को अपना उत्तराधिकारी घोषित करता है. जनवरी 1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो जाती है तब मलिक काफूर शिहाबुद्दीन को सुल्तान घोषित कर स्वयं उसका संरक्षक बन कर सत्ता हथिया लेता है, परंतु मलिक काफूर 35 दिन से अधिक सत्ता का उपभोग नहीं कर पाता है. जिन खिलजी सरदारों को मलिक काफूर द्वारा अलाउद्दीन के पुत्र मुबारक शाह को मारने के लिए भेजा जाता है वही सरदार मुबारक खिलजी के द्वारा दिए धन के लालच व उसकी भावना पूर्ण बातों से प्रेरित होकर वापस लौट कर मलिक काफूर को मार देते हैं. अप्रैल 1316 में कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी दिल्ली का सुल्तान बनता है .



कुछ महत्वपूर्ण तथ्य... . अलाउद्दीन खिलजी ने कुतुबमीनार के पास अलाई दरवाजा बनवाया. इसका गुम्बद प्रारम्भिक तुर्की कला का श्रेष्ठ नमूना मना जाता है. . मार्शल ने कहा है कि अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के खजाने का सबसे सुंदर हीरा है. . अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली के पास सीरी दुर्ग बनवाया, इसी दुर्ग में हजार सितून महल (1000 खंबे का) बनवाया. . अलाउद्दीन ने अमीर खुसरो व अमीर हसन देहलवी को अपने दरबार में संरक्षण दिया. . अमीर खुसरो ने कहा कि - 'शाही मुकुट का प्रत्येक मोती किसानों की आँखो से बहा जमा हुआ रक्त है.' . बरनी ने कहा कि अलाउद्दीन ने इतना रक्त बहाया जितना मिस्र के फराओं ने भी नहीं बहाया. .जियाउद्दीन बरनी ने 6 सुल्तानों का काल देखा. . वैश्या वृति पर रोक लगाने वाला सल्तनत कालीन प्रथम शासक अलाउद्दीन खिलजी था. . अलाउद्दीन की तुलना जर्मन राज्य के संस्थापक बिस्मार्क से की जाती है. जोधपुर शिलालेख में लिखा है कि अलाउद्दीन के देव तुल्य शौर्य से पृथ्वी अत्याचारों से मुक्त हो गयी. . तस्बीह , तबरेज, खुज्जे, कंजमाबरी , कमरबार आदि बहुमूल्य वस्त्र थे जिनका प्रयोग अलाउद्दीन के समय किया जाता था.


मुबारक शाह खिलजी -1316-1320

अप्रैल 1316 को मुबारक शाह खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना और उसने अपना शासन उदारता से प्रारंभ किया. जिस दिन वह सिंहासन पर बैठा उसी दिन 17000 से 18000 कैदी कारागार से मुक्त किए गए. उसने अलाउद्दीन के सभी कठोर कानून समाप्त कर दिए और जागीर प्रथा को पुनः प्रारंभ किया. मुबारक के सुल्तान बनने पर प्रजा ने राहत की साँस ली.

गुजरात विद्रोह - अलाउद्दीन के अंतिम समय में अलप खाँ के कत्ल के पश्चात उसके वफादार सैनिकों ने दिल्ली से संबंध विच्छेद कर लिए. आइन-उल-मुल्क-मुल्तानी ने इस विद्रोह का दमन कर गुजरात पर अधिकार कर लिया.


देवगिरी अभियान - मलिक काफूर की मृत्यु के बाद देवगिरी दिल्ली की अधीनता से मुक्त हो गया तथा हरपाल देव ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली. 1318 में मुबारक स्वयं एक बड़ी सेना लेकर देवगिरी गया. इस युद्ध में हरपालदेव मारा गया. देवगिरी में एक सूबेदार को नियुक्त कर खुसरवशाह को तेलंगाना व सुदूर दक्षिण में आक्रमण की आज्ञा देकर सुल्तान वापस दिल्ली आ गया. जिस समय मुबारक दिल्ली लौट रहा था, उसके चचेरे भाई असउद्दीन ने विद्रोह किया जिसका दमन कर दिया गया. खुसरवशाह ने तेलंगाना पर आक्रमण कर प्रताप रूद्र देव को परास्त किया व दिल्ली की अधीनता मानने के लिये बाध्य किया. तत्पश्चात मालाबार प्रदेश पर आक्रमण कर काफी धन प्राप्त किया. खुसरवशाह ने मालाबार में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहा परंतु मुबारक के बुलाने पर वह दिल्ली आ गया.


1. मुबारक ऐसा पहला सुल्तान था जिसने स्वयं को खलीफा घोषित किया. उसने,'अल इमाम', 'उल इमाम' , 'खलीफतुल अल्लाह' , 'खिलाफत उल अल्लाह' की उपाधियाँ धारण की . 2. बरनी के अनुसार मुबारक कभी कभी दरबार में शराब पीकर, नग्न अवस्था में , या स्त्रियों के वस्त्र पहन कर आ जाया करता था. 3. मुबारक ने निजामुद्दीन औलिया का अभिवादन स्वीकार करने से मना कर दिया. 4. मुबारक ने खुसरवशाह को अपना नाइब नियुक्त किया और खुसरवशाह के कहने से अपने वफादार सरदारों को दंडित किया. और उसने अपने भाई की विधवा 'देवल दे' से विवाह कर लिया. 5. खुसरवशाह ने मुबारक शाह के विश्वास व भोग विलास में डूबे रहने का लाभ उठाया. 6. खुसरवशाह ने अपने गुजराती सैनिकों की 40000 की सेना तैयार की व अपने संबंधियों तथा मित्रों को महल के निकट रहने तथा रात्रि में भी प्रवेश करने की अनुमति दिलवाई. 7. मुबारक ने अपने अध्यापक व काजी जियाउद्दीन के द्वारा समझाए जाने पर भी खुसरवशाह पर संदेह नहीं किया. परिणामस्वरूप अप्रैल 1320 की एक रात्रि को खुसरवशाह के सैनिकों ने महल में प्रवेश कर सुल्तान के अंगरक्षकों को मार दिया तथा खुसरवशाह ने स्वयं मुबारक शाह खिलजी का कत्ल कर दिया. 8. खुसरवशाह हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था. उसे गुजरात के सैनिकों का समर्थन प्राप्त था. 9. उसने स्वयं का खुतबा (वंशावली) पढ़वाया तथा पैगंबर के सेनापति की उपाधि धारण कि. 10. उसके शत्रुओं ने उसके विरोध में "इस्लाम का शत्रु" तथा "इस्लाम खतरे में है" के नारे लगाए. 11. उसने अलाउद्दीन के वंशजों व वफ़ादारों का कत्ल कर दिया. 12. निजामुद्दीन औलिया को 5 लाख टंके भेंट स्वरूप भेज कर धार्मिक व्यक्तियों का नैतिक समर्थन प्राप्त किया. 14. खुसरवशाह ऐसा पहला भारतीय मुसलमान था जिसने सुल्तान का पद धारण किया. अतः जातीय श्रेष्ठता में विश्वास करने वाले लोगों ने उसका विरोध किया.

गाजी मलिक इस समय पंजाब दीपालपुर का सूबेदार था. उसने कुछ सरदारों व जनता को इस्लाम के नाम पर विद्रोह के लिए उकसाया. तथा स्वयं दिल्ली की ओर बढ़ा. खुसवशाह ने भागने का प्रयास किया परंतु तिलपत नामक स्थान पर उसे पकड़ कर सितंबर 1320 में उसका कत्ल कर दिया गया.

गाजी मलिक ने हजार सितून महल में प्रवेश किया, क्योंकि वह ये जानना चाहता था कि खिलजी वंश का कोई उत्तराधिकारी शेष तो नहीं है. और इस तरह गाजी मलिक सितंबर 1320 में गयासुद्दीन तुगलक के नाम से सिंहासन ग्रहण करता है.



खिलजी वंश के पतन के कारण 1. उत्तराधिकार नियम का अभाव. 2. खिलजी सुल्तानों द्वारा अपने शासन के पक्ष में विस्तृत आधार का निर्माण न करना- ना तो प्रजा की सहानुभूति ना ही वफादार सरदारों का दल. 3. खिलजी सुल्तानों का उत्तरदायित्व - जलालुद्दीन सुल्तान की प्रतिष्ठा स्थापित करने में असफल रहा. अलाउद्दीन की सफलता असफलता सेना पर निर्भर थी. उसकी राजस्व व्यवस्था, बाजार व्यवस्था आदि उसकी शक्ति के भय और आतंक के कारण सफल थी. उसकी नीतियों में स्थायित्व के गुणों का अभाव था. मुबारक शाह खिलजी की अयोग्यता निस्संदेह खिलजी वंश के पतन का सबसे बड़ा कारण रही. 4. सैनिक शक्ति का पतन. 5. गयासुद्दीन तुगलक की सैनिक योग्यता.

ख़िलजी

ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निज़ामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को चंगेज़ ख़ाँ का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि भारत आने से पूर्व ही यह जाति अफ़ग़ानिस्तान के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश के अन्तिम सुल्तान शमसुद्दीन क्यूमर्स की हत्या के बाद ही जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। ख़िलजी क्रांति केवल इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है कि, उसने ग़ुलाम वंश को समाप्त कर नवीन ख़िलजी वंश की स्थापना की, बल्कि इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि, ख़िलजी क्रांति के परिणामस्वरूप् दिल्ली सल्तनत का सदूर दक्षिण तक विस्तार हुआ। जातिवाद में कमी आई और साथ ही यह धारणा भी खत्म हुई कि, शासन केवल विशिष्टि वर्ग का व्यक्ति ही कर सकता है।

ख़िलजी युग

ख़िलजी मुख्यतः सर्वहारा वर्ग के थे। ख़िलजी युग साम्राज्यवाद और मुस्लिम शक्ति के विस्तार का युग था। इस क्रांति के बाद तुर्की अमीर सरदारों के प्रभाव क्षेत्र में कमी आई। इस क्रांति ने प्रशासन में धर्म व उलेमा के महत्त्व को भी अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार ख़िलजी शासकों की सत्ता मुख्य रूप से शक्ति पर निर्भर थी। खिलजियों ने यह सिद्ध कर दिया कि, राज्य बिना धर्म की सहायता से न केवल जीवित रखा जा सकता है, बल्कि सफलतापूर्वक चलाया भी जा सकता है। जलालुद्दीन ख़िलजी द्वारा राजगद्दी संभालना मामलूक राजवंश के अंत और तुर्क ग़ुलाम अभिजात वर्ग के वर्चस्व का द्योतक है।

ख़िलजी वंश को सामान्यत: तुर्कों का एक कबीला माना जाता है, जो उत्तरी भारत पर मुसलमानों की विजय के बाद यहाँ आकर बस गया। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ख़िलजी वंश की स्थापना की थी। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ग़ुलाम वंश के अंतिम सुल्तान की हत्या करके ख़िलजियों को दिल्ली का सुल्तान बनाया। ख़िलजी वंश ने 1290 से 1320 ई. तक राज्य किया। दिल्ली के ख़िलजी सुल्तानों में अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) सबसे प्रसिद्ध और योग्य शासक था।

शासकों के नाम

इसके कुल तीन शासक हुए थे -

  1. जलालुद्दीन खिलजी
  2. अल्लाहुद्दीन या अलाउद्दीन खिलजी
  3. शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी
  4. कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी
  5. ग़यासुद्दीन ख़िलजी

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने साम्राज्य को दक्षिण की दिशा में बढ़ाया। उसका साम्राज्य कावेरी नदी के दक्षिण तक फेल गया था। उसके शासनकाल में मंगोल आक्रमण भी हुए थे पर उसने मंगोलों की अपेक्षाकृत कमजोर सेना का डटकर सामना किया। इसके बाद तुगलक वंश का शासन आया।

सन्दर्भ

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दिल्ली सल्तनत के शासक वंश
ग़ुलाम वंश | ख़िलजी वंश | तुग़लक़ वंश | सैयद वंश | लोदी वंश | सूरी वंश