"कामन्दकीय नीतिसार": अवतरणों में अंतर

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*[http://spiritualsbooks.blogspot.in/2011/06/nitisara-by-kamandaki-sanskrit-text.html The Nitisara by Kamandaki: Sanskrit Text with English Translation]
*[http://spiritualsbooks.blogspot.in/2011/06/nitisara-by-kamandaki-sanskrit-text.html The Nitisara by Kamandaki: Sanskrit Text with English Translation]
*[http://www.scribd.com/doc/16702973/NitiSaara- नीतिसार] (डाउनलोड)
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*[https://hi.wikibooks.org/wiki/कामन्दकीय_नीतिसार_में_निहित_शिक्षक_की_संकल्पना कामन्दकीय नीतिसार में निहित शिक्षक की संकल्पना]


[[श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ]]
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06:52, 10 मार्च 2018 का अवतरण

कामंदकीय नीतिसार राज्यशास्त्र का एक संस्कृत ग्रंथ है। इसके रचयिता का नाम 'कामंदकि' अथवा 'कामंदक' है जिससे यह साधारणत: 'कामन्दकीय' नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सारभूत सिद्धांतों (मुख्यत: राजनीति विद्या) का प्रतिपादन करता है। यह श्लोकों में रूप में है। इसकी भाषा अत्यन्त सरल है।

नीतिसार के आरम्भ में ही विष्णुगुप्त चाणक्य की प्रशंशा की गयी है-

वंशे विशालवंश्यानाम् ऋषीणामिव भूयसाम्।

अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ॥
जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान् वेदविदांवरः।
योधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥
यस्याभिचारवज्रेण वज्रज्वलनतेजसः।
पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥
एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः।
आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्।।
नीतिशास्त्रामृतं धीमान् अर्थशास्त्रमहोदधेः।

समुद्दद्ध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥ इति ॥

रचनाकाल

इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विंटरनित्स के मतानुसार किसी कश्मीरी कवि ने इसकी रचना ईस्वी ७००-७५० के बीच की। डॉ॰ राजेन्द्रलाल मित्र का अनुमान है कि ईसा के जन्मकाल के लगभग बाली द्वीप जानेवाले आर्य इसे भारत से बाहर ले गए जहाँ इसका 'कवि भाषा' में अनुवाद हुआ। बाद में यह ग्रंथ जावा द्वीप में भी पहुँचा। छठी शताब्दी के कवि दण्डी ने अपने 'दशकुमारचरित' के प्रथम उच्छ्वास के अंत में 'कामंदकीय' का उल्लेख किया है।

इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध नाटककार भवभूति से पूर्व इस ग्रंथ का रचयिता हुआ था, क्योंकि भवभूति ने अपने नाटक 'मालतीमाधव' में नीतिप्रयोगनिपुणा एक परिव्राजिका का 'कामंदकी' नाम दिया है। संभवत: नीतिसारकर्ता 'कामंदक' नाम से रूढ़ हो गया है तथा नीतिसारनिष्णात व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा था।

कामंदक की प्राचीनता का एक और प्रमाण भी दृष्टिगोचर होता है। कामंदकीय नीतिसार की मुख्यत: पाँच टीकाएँ उपलब्ध होती हैं : उपाध्याय निरक्षेप, आत्मारामकृत, जयरामकृत, वरदराजकृत तथा शंकराचार्यकृत।

संरचना

कामन्दकीय नीतिसार में कुल मिलाकर २० सर्ग (अध्याय) तथा ३६ प्रकरण हैं।

प्रथम सर्ग राजा के इंन्द्रियनियंत्रण सम्बन्धी विचार
द्वितीय सर्ग शास्त्रविभाग, वर्णाश्रमव्यवस्था व दंडमाहात्म्य
तृतीय सर्ग राजा के सदाचार के नियम
चौथा सर्ग राज्य के सात अंगों का विवेचन
पाँचवाँ सर्ग राजा और राजसेवकों के परस्पर सम्बन्ध
छठा सर्ग राज्य द्वारा दुष्टों का नियन्त्रण, धर्म व अधर्म की व्याख्या
सातवाँ सर्ग राजपुत्र व अन्य के पास संकट से रक्षा करने की दक्षता का वर्णन
आठवें से ग्यारहवाँ सर्ग विदेश नीति; शत्रुराज्य, मित्रराज्य और उदासीन राज्य ; संधि, विग्रह, युद्ध ;
साम, दान, दंड व भेद - चार उपायों का अवलंब कब और कैसे करना चाहिए
बारहवाँ सर्ग नीति के विविध प्रकार
तेरहवाँ सर्ग दूत की योजना ; गुप्तचरों के विविध प्रकार ; ; राजा के अनेक कर्तव्य
चौदहवाँ सर्ग उत्साह और आरम्भ (प्रयत्न) की प्रशंसा ; राज्य के विविध अवयव
पन्द्रहवाँ सर्ग सात प्रकार के राजदोष
सोलहवाँ सर्ग दूसरे देशों पर आक्रमण और आक्रमणपद्धति
सत्रहवाँ सर्ग शत्रु के राज्य में सैन्यसंचालन करना और शिबिर निर्माण ; निमित्तज्ञानप्रकरणम्
अट्ठारहवाँ सर्ग शत्रु के साथ साम, दान, इत्यादि चार या सात उपायों का प्रयोग करने की विधि
उन्नीसवाँ सर्ग सेना के बलाबल का विचार ; सेनापति के गुण
बीसवाँ सर्ग गजदल, अश्वदल, रथदल व पैदल की रचना व नियुक्ति

कौटिल्य का अर्थशस्त्र तथा कामन्दकीय नीतिसार

कौटिल्य ने राजा और राज्य विस्तार के लिये युद्धों को आवश्यक बताया है। चाणक्य का मानना था कि अगर राजा को युद्धों के लिये फिट रहना है तो उसे निरंतर शिकार आदि करके खुद को प्रशिक्षित रखना होगा वहीं नीतिसार में राजा के शिकार तक करने को भी अनावश्यक बताया गया है, वह जीवमात्र को जीने और सह-अस्तित्व की बात करती है। नीतिसार कूटनीति, मंत्रणा और इसी तरह के अहिंसक तरीकों को अपनाने को प्राथमिकता देती है।

कौटिल्य जहां विजय के लिये साम, दाम, दंड और भेद की नीति को श्रेष्ठ बताते हैं, वे माया, उपेक्षा और इंद्रजाल में भरोसा रखते हैं वहीं नीतिसार मंत्रणा शक्ति, प्रभु शक्ति और उत्साह शक्ति की बात करती है। इसमें राजा के लिये राज्यविस्तार की कोई कामना नहीं है जबकि अर्थशास्त्र राज्य विस्तार और राष्ट्र की एकजुटता के लिये हर प्रकार की नीति का समर्थन करता है।

नीतिसार में युद्धों के खिलाफ काफी तर्क हैं। एक समझदार शासक को हमेशा युद्धों को टालने का ही प्रयास करना चाहिए।

कुछ श्लोक

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ