"जैन ग्रंथ": अवतरणों में अंतर

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'''जैन ग्रंथ''' शब्द, [[जैन धर्म]] पर लिखे गए ग्रंथो के लिए प्रयोग किया जाता है। जैन धर्म के मूल ग्रंथो को [[आगम (जैन)|आगम]] कहा जाता है। आगम का ज्ञान रखने वाले आचार्यों द्वारा लिखे गए ग्रंथ या टीका आदि को "जैन ग्रंथ" कहा जाता है।
[[महावीर स्वामी|महावीर]] की प्रवृत्तियों का केंद्र [[मगध]] रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा [[अर्धमागधी]] में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध [[जैन आगम|जैन आगमों]] में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं। दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर [[षट्खंडागम]] को स्वीकार करते हैं जो १२वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के प्राचीन साहित्य की भाषा [[शौरसेनी]] है। आगे चलकर [[अपभ्रंश]] तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया।

आदिकालीन [[साहित्य]] में [[जैन]] साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने [[पुराण काव्य]], [[चरित काव्य]], [[कथा काव्य]], [[रास काव्य]] आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। [[स्वयंभू]], [[पुष्प दंत]], [[हेमचंद्र]], [[सोमप्रभ सूरी]] आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और [[परंपरा]] से अलग उसकी परिणति अपने मतानुकूल दिखाई।


==प्रमुख ग्रन्थ==
==प्रमुख ग्रन्थ==
* [[आगम (जैन)|आगम]]

* [[षट्खण्डागम]],


[[षट्खण्डागम]],
[[समयसार]],
[[समयसार]],

[[प्रवचनसार]],
[[प्रवचनसार]],

[[रत्नकरण्ड श्रावकाचार]],
[[रत्नकरण्ड श्रावकाचार]],

[[पुरुषार्थ सिद्धयुपाय]],
[[पुरुषार्थ सिद्धयुपाय]],

इष्टोपदेश,
इष्टोपदेश,

[[धवला टीका|धवला]] टीका,
[[धवला टीका|धवला]] टीका,

महाधवला टीका,
महाधवला टीका,

कसायपाहुड,
कसायपाहुड,

जयधवला टीका,
जयधवला टीका,

योगसार,
योगसार,

पञ्चास्तिकायसार,
पञ्चास्तिकायसार,

बारसाणुवेक्खा,
बारसाणुवेक्खा,

आप्तमीमांसा,
आप्तमीमांसा,

अष्टशती टीका,
अष्टशती टीका,

अष्टसहस्री टीका,
अष्टसहस्री टीका,

तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका,
तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका,

तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका,
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका,

समाधितन्त्र,,
समाधितन्त्र,,

भगवती आराधना,
भगवती आराधना,

[[मूलाचार]],
[[मूलाचार]],

गोम्मटसार,
गोम्मटसार,

[[द्रव्यसंग्रह]],
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भद्रबाहु संहिता
भद्रबाहु संहिता



=== प्रथामानयोग ===
=== प्रथामानयोग ===
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==इन्हें भी देखें==
==इन्हें भी देखें==
* [[आगम (जैन)]]
* [[षट्खंडागम]]
* [[जैन दर्शन]]
* [[जैन दर्शन]]

== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.jayjinendra.com/nirgranth/articles/bharatiya-sanskriti-hiralal2.php भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान] (डॉ॰ हीरालाल जैन, एम.ए., डी.लिट्., एल.एल.बी.)


{{जैन ग्रंथ}}
{{जैन ग्रंथ}}

11:55, 4 नवम्बर 2017 का अवतरण

प्रवचनसार जैन ग्रन्थ का हिंदी अनुवाद

महावीर की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं। दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर षट्खंडागम को स्वीकार करते हैं जो १२वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी है। आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया।

आदिकालीन साहित्य में जैन साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। स्वयंभू, पुष्प दंत, हेमचंद्र, सोमप्रभ सूरी आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुकूल दिखाई।

प्रमुख ग्रन्थ

समयसार,

प्रवचनसार,

रत्नकरण्ड श्रावकाचार,

पुरुषार्थ सिद्धयुपाय,

इष्टोपदेश,

धवला टीका,

महाधवला टीका,

कसायपाहुड,

जयधवला टीका,

योगसार,

पञ्चास्तिकायसार,

बारसाणुवेक्खा,

आप्तमीमांसा,

अष्टशती टीका,

अष्टसहस्री टीका,

तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका,

तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका,

समाधितन्त्र,,

भगवती आराधना,

मूलाचार,

गोम्मटसार,

द्रव्यसंग्रह,

भद्रबाहु संहिता


प्रथामानयोग

तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थ सूत्र, आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित जैन ग्रन्थ है। इसे "मोक्ष-शास्त्र" भी कहते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ