"कटारमल सूर्य मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा हुआ था। इसका निर्माण एक ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर है, जो भारतवर्ष मेंं [[सूर्यदेव]] को समर्पित प्राचीन और प्रमुख मन्दिरों में से एक है। आज भी मन्दिर के ऊँचे खंडित शिखर को देखकर इसकी विशालता व वैभव का अनुमान स्पष्ट होता है। मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार बेजोड़ [[काष्ठ कला]] द्वारा उत्कीर्ण था, जो कुछ अन्य अवशेषों के साथ वर्तमान में नई दिल्ली स्थित [[राष्ट्रीय संग्रहालय]] में प्रदर्शित है।
कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा हुआ था। इसका निर्माण एक ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर है, जो भारतवर्ष मेंं [[सूर्यदेव]] को समर्पित प्राचीन और प्रमुख मन्दिरों में से एक है। आज भी मन्दिर के ऊँचे खंडित शिखर को देखकर इसकी विशालता व वैभव का अनुमान स्पष्ट होता है। मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार बेजोड़ [[काष्ठ कला]] द्वारा उत्कीर्ण था, जो कुछ अन्य अवशेषों के साथ वर्तमान में नई दिल्ली स्थित [[राष्ट्रीय संग्रहालय]] में प्रदर्शित है।

== पौराणिक महत्व ==
== पौराणिक महत्व ==
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्मद्वेषी असुर ने अत्याचार किये थे। तत्समय द्रोणगिरी (दूनागिरी), कषायपर्वत तथा कञ्जार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य-देव की स्तुति की। ऋषि मुनियों की स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को '''वटशिया''' में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने '''बड़ादित्य''' नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया होगा। जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्मद्वेषी असुर ने अत्याचार किये थे। तत्समय द्रोणगिरी (दूनागिरी), कषायपर्वत तथा कञ्जार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य-देव की स्तुति की। ऋषि मुनियों की स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को '''वटशिया''' में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने '''बड़ादित्य''' नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया होगा। जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।

03:41, 31 अक्टूबर 2017 का अवतरण

कटारमल सूर्य मन्दिर
चित्र:Katarmal001.jpg
कटारमल सूर्य मन्दिर (2013)
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
शासी निकायकटारमल
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिकटारमल अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड
कटारमल सूर्य मन्दिर is located in पृथ्वी
कटारमल सूर्य मन्दिर
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वास्तु विवरण
प्रकारकत्यूरी शासक कटारमल
निर्माताकत्यूरी शासक कटारमल

कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम पूर्वाभिमुख सूर्य मन्दिर है। यह भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य में कुमांऊॅं क्षेत्र के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में प्राणप्रतिष्ठित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक है तथा उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है।

इतिहास

कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण मध्ययुगीन कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था।

संरचना एवम् विशेषता

[[चित्र:

चित्र:Katarmal002.jpg
सूर्य-मन्दिर का ध्वस्त शिखर (2013)

कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा हुआ था। इसका निर्माण एक ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर है, जो भारतवर्ष मेंं सूर्यदेव को समर्पित प्राचीन और प्रमुख मन्दिरों में से एक है। आज भी मन्दिर के ऊँचे खंडित शिखर को देखकर इसकी विशालता व वैभव का अनुमान स्पष्ट होता है। मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार बेजोड़ काष्ठ कला द्वारा उत्कीर्ण था, जो कुछ अन्य अवशेषों के साथ वर्तमान में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है।

पौराणिक महत्व

पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्मद्वेषी असुर ने अत्याचार किये थे। तत्समय द्रोणगिरी (दूनागिरी), कषायपर्वत तथा कञ्जार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य-देव की स्तुति की। ऋषि मुनियों की स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को वटशिया में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया होगा। जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।

किंवदन्तियॉं व कथाऐं

आवागमन

कटारमल सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के समीप है। अल्मोड़ा से १४ किलोमीटर के बाद ३ किलोमीटर पैदल मार्ग है।

चित्र वीथिका

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ