"अर्नेस्ट रदरफोर्ड": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
पंक्ति 2: पंक्ति 2:


== परिचय==
== परिचय==
रदरफोर्ड का जन्म 30 अगस्त 1871 को [[न्यूजीलैंड]] में हुआ था। अपनी अधिकतम उम्र रासायनिक प्रयोगों में गुजारने वाले वैज्ञानिक [[माइकल फैराडे]] के बाद दूसरे स्थान पर अर्नेस्ट रदरफोर्ड का ही नाम आता है। भौतिक विज्ञान में अपनी योग्यताओं के चलते 1894 में अर्नेस्ट रदरफोर्ड को प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सर [[जे॰ जे॰ थॉमसन|जे.जे.थॉमसन]] के अधीन रिसर्च करने का मौका मिला, इसके लिए उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली। 1898 में कनाडा के मैकगिल यूनिवर्सिटी में वे भौतिकी के प्रोफेसर रहे और 1907 में इंग्लैंड मैनचैस्टर यूनिवर्सिटी में भौतिकी के व्याख्याता। 1919 में थामसन की मृत्यु के बाद कैम्ब्रीज यूनिवर्सिटी में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही भौतिकी के प्रोफेसर और डायरेक्टर बने। भौतिक रसायन के लगभग सभी प्रयोगों में उपयोग होने वाली अल्फा, बीटा और गामा किरणों के बीच अंतर बताने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही थे। न्यूक्लियर फिजिक्स में अर्नेस्ट रदरफोर्ड के योगदान के लिए 1908 में उन्हें [[नोबल पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया।
अर्नेस्ट रदरफोर्ड का जन्म 30 अगस्त 1871 को [[न्यूजीलैंड]] में हुआ था। अपनी अधिकतम उम्र रासायनिक प्रयोगों में गुजारने वाले वैज्ञानिक [[माइकल फैराडे]] के बाद दूसरे स्थान पर अर्नेस्ट रदरफोर्ड का ही नाम आता है। भौतिक विज्ञान में अपनी योग्यताओं के चलते 1894 में रदरफोर्ड को प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सर [[जे॰ जे॰ थॉमसन|जे.जे.थॉमसन]] के अधीन शोध करने का मौका मिला, इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली। 1898 में कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय में वे भौतिकी के प्रोफेसर रहे और 1907 में इंग्लैंड मैनचैस्टर विश्वविद्यालय में भौतिकी के व्याख्याता। 1919 में थॉमसन की मृत्यु के बाद कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही भौतिकी के प्राध्यापक और निदेशक बने। भौतिक रसायन के लगभग सभी प्रयोगों में उपयोग होने वाली अल्फा, [[बीटा कण|बीटा]] और [[गामा किरण|गामा किरणों]] के बीच अंतर बताने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही थे। न्यूक्लियर फिजिक्स में अर्नेस्ट रदरफोर्ड के योगदान के लिए 1908 में उन्हें [[नोबल पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया।


अर्नेस्ट रदरफोर्ड के [[परमाणु संरचना सिद्धांत|परमाणु संरचना के सिद्धांत]] से पहले पदार्थों में परमाणु की उपस्थिति का पता तो चल सका था, किन्तु परमाणु के बारे में जो जानकारी थी उसे आगे गति दी अर्नेस्ट रदरफोर्ड के किए प्रयोंगों ने।
अर्नेस्ट रदरफोर्ड के [[परमाणु संरचना सिद्धांत|परमाणु संरचना के सिद्धांत]] से पहले पदार्थों में परमाणु की उपस्थिति का पता तो चल सका था, किन्तु परमाणु के बारे में जो जानकारी थी उसे आगे गति दी अर्नेस्ट रदरफोर्ड के किए प्रयोंगों ने।


सालों पहले महर्षि [[कणाद]] ने यह बता दिया था कि प्रत्येक पदार्थ बहुत छोटे−छोटे कणों से मिलकर बना है। 1808 में ब्रिटेन के भौतिक विज्ञानी जॉन डाल्टन ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि पदार्थ जिन अविभाज्य कणों से मिलकर बना है उन्हें परमाणु कहते हैं। इन परमाणुओं का स्वतंत्र अस्तित्व संभव है।
सालों पहले महर्षि [[कणाद]] ने यह बता दिया था कि प्रत्येक पदार्थ बहुत छोटे−छोटे कणों से मिलकर बना है{{citation needed|date=August 2017}}। 1808 में ब्रिटेन के भौतिक विज्ञानी जॉन डाल्टन ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि पदार्थ जिन अविभाज्य कणों से मिलकर बना है उन्हें परमाणु कहते हैं। इन परमाणुओं का स्वतंत्र अस्तित्व संभव है।


[[जॉन डाल्टन|डॉल्टन]] के बाद वैज्ञानिक जेजे थॉमसन व रदरफोर्ड के प्रयोगों ने डॉल्टन की थ्योरी में सुधार किया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है बल्कि यह छोटे−छोटे आवेशित कणों से मिलकर बना है। 1897 में जेजे थामसन ने परमाणु के अंदर धनावेशित कण की उपस्थिति प्रमाणित की। उस समय तक परमाणु के अंदर उपस्थित धनावेशित कणों के लिए कहा गया था कि ये कण परमाणु के अंदर बिखरी हुई अवस्था में ठीक उसी रहते हैं जैसे बूंदी के लड्डू में इलायची के दाने अथवा वॉटर मैलन के अंदर उसके बीज या क्रिसमस पुडिंग में ड्राइ फ्रूट्स।
[[जॉन डाल्टन|डॉल्टन]] के बाद वैज्ञानिक थॉमसन व रदरफोर्ड के प्रयोगों ने डॉल्टन के सिद्धांत में सुधार किया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है बल्कि यह छोटे−छोटे आवेशित कणों से मिलकर बना है। 1897 में सर थामसन ने परमाणु के अंदर धनावेशित कण की उपस्थिति प्रमाणित की। उस समय तक परमाणु के अंदर उपस्थित धनावेशित कणों के लिए कहा गया था कि ये कण परमाणु के अंदर बिखरी हुई अवस्था में ठीक उसी रहते हैं जैसे बूंदी के लड्डू में इलायची के दाने अथवा वॉटर मैलन के अंदर उसके बीज या क्रिसमस पुडिंग में ड्राइ फ्रूट्स।


अर्नेस्ट रदरफोर्ड का वैज्ञानिक दिमाग परमाणु के अंदर [[इलेक्ट्रान]] की इस तरह की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं था, संतुष्टि के लिए उन्होंने कई और प्रयोग किए। परमाणु के अंदर की सरचना को जानने के लिए 1911 में उन्होंने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने [[निर्वात]] में स्क्रीन के सामने रखी एक पतली स्वर्ण पन्नी में से कुछ अल्फा किरणों को गुजारा। प्रयोग के परिणाम आश्चर्य चकित करने वाले थे। परमाणु के बारे में अब तक प्रचलित सिद्धान्त के अनुसार अल्फा कणों को गोल्ड फॉइल के पार स्क्रीन पर एक ही जगह जाकर टकराना चाहिए था। किन्तु रदरफोर्ड ने देखा कि कुछ अल्फा कण गोल्ड फॉइल से टकराकर भिन्न−भिन्न कोणों पर विचलित होकर वापस आ रहे थे और कुछ उसके पार भी निकल रहे थे। रदरफोर्ड के प्रयोग ने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु के मध्य कुछ घना धनात्मक भाग है जिससे अल्फा कण वापस लौट रहे हैं। प्रयोग से उन्होंने बताया कि यह धनात्मक घना भाग परमाणु का 'नाभिक' (न्यूक्लियस) है, इस नाभिक में ही परमाणु का समस्त द्रव्यमान केंद्रित रहता है। इलेक्ट्रान इसी धनात्मक आवेश के चारों और व्यवस्थित रूप से घूमते हैं।
अर्नेस्ट रदरफोर्ड का वैज्ञानिक दिमाग परमाणु के अंदर [[इलेक्ट्रान]] की इस तरह की व्याख्या से संतुष्ट नहीं था, संतुष्टि के लिए उन्होंने कई और प्रयोग किए। परमाणु के अंदर की को संरचना जानने के लिए 1911 में उन्होंने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने [[निर्वात]] में स्क्रीन के सामने रखी एक पतली स्वर्ण पन्नी में से कुछ अल्फा किरणों को गुजारा। प्रयोग के परिणाम आश्चर्य चकित करने वाले थे। परमाणु के बारे में अब तक प्रचलित सिद्धान्त के अनुसार अल्फा कणों को गोल्ड फॉइल के पार स्क्रीन पर एक ही जगह जाकर टकराना चाहिए था, किन्तु रदरफोर्ड ने देखा कि कुछ अल्फा कण गोल्ड फॉइल से टकराकर भिन्न−भिन्न कोणों पर विचलित होकर वापस आ रहे थे और कुछ उसके पार भी निकल रहे थे। रदरफोर्ड के प्रयोग ने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु के मध्य कुछ घना धनात्मक भाग है जिससे अल्फा कण वापस लौट रहे थे। प्रयोग से उन्होंने सिद्ध किया कि यह धनात्मक घना भाग परमाणु का 'नाभिक' (न्यूक्लियस) है, इस नाभिक में ही परमाणु का समस्त द्रव्यमान केंद्रित रहता है एवं इलेक्ट्रान इसी धनात्मक आवेश के चारों और व्यवस्थित रूप से घूमते हैं।


== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==

05:23, 2 अगस्त 2017 का अवतरण

अर्नेस्ट रदरफोर्ड (३० अगस्त १८७१ - ३१ अक्टूबर १९३७) प्रसिद्ध रसायनज्ञ तथा भौतिकशास्त्री थे। उन्हें नाभिकीय भौतिकी का जनक माना जाता है।

परिचय

अर्नेस्ट रदरफोर्ड का जन्म 30 अगस्त 1871 को न्यूजीलैंड में हुआ था। अपनी अधिकतम उम्र रासायनिक प्रयोगों में गुजारने वाले वैज्ञानिक माइकल फैराडे के बाद दूसरे स्थान पर अर्नेस्ट रदरफोर्ड का ही नाम आता है। भौतिक विज्ञान में अपनी योग्यताओं के चलते 1894 में रदरफोर्ड को प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सर जे.जे.थॉमसन के अधीन शोध करने का मौका मिला, इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली। 1898 में कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय में वे भौतिकी के प्रोफेसर रहे और 1907 में इंग्लैंड मैनचैस्टर विश्वविद्यालय में भौतिकी के व्याख्याता। 1919 में थॉमसन की मृत्यु के बाद कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही भौतिकी के प्राध्यापक और निदेशक बने। भौतिक रसायन के लगभग सभी प्रयोगों में उपयोग होने वाली अल्फा, बीटा और गामा किरणों के बीच अंतर बताने वाले वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ही थे। न्यूक्लियर फिजिक्स में अर्नेस्ट रदरफोर्ड के योगदान के लिए 1908 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अर्नेस्ट रदरफोर्ड के परमाणु संरचना के सिद्धांत से पहले पदार्थों में परमाणु की उपस्थिति का पता तो चल सका था, किन्तु परमाणु के बारे में जो जानकारी थी उसे आगे गति दी अर्नेस्ट रदरफोर्ड के किए प्रयोंगों ने।

सालों पहले महर्षि कणाद ने यह बता दिया था कि प्रत्येक पदार्थ बहुत छोटे−छोटे कणों से मिलकर बना है[उद्धरण चाहिए]। 1808 में ब्रिटेन के भौतिक विज्ञानी जॉन डाल्टन ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि पदार्थ जिन अविभाज्य कणों से मिलकर बना है उन्हें परमाणु कहते हैं। इन परमाणुओं का स्वतंत्र अस्तित्व संभव है।

डॉल्टन के बाद वैज्ञानिक थॉमसन व रदरफोर्ड के प्रयोगों ने डॉल्टन के सिद्धांत में सुधार किया उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है बल्कि यह छोटे−छोटे आवेशित कणों से मिलकर बना है। 1897 में सर थामसन ने परमाणु के अंदर धनावेशित कण की उपस्थिति प्रमाणित की। उस समय तक परमाणु के अंदर उपस्थित धनावेशित कणों के लिए कहा गया था कि ये कण परमाणु के अंदर बिखरी हुई अवस्था में ठीक उसी रहते हैं जैसे बूंदी के लड्डू में इलायची के दाने अथवा वॉटर मैलन के अंदर उसके बीज या क्रिसमस पुडिंग में ड्राइ फ्रूट्स।

अर्नेस्ट रदरफोर्ड का वैज्ञानिक दिमाग परमाणु के अंदर इलेक्ट्रान की इस तरह की व्याख्या से संतुष्ट नहीं था, संतुष्टि के लिए उन्होंने कई और प्रयोग किए। परमाणु के अंदर की को संरचना जानने के लिए 1911 में उन्होंने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने निर्वात में स्क्रीन के सामने रखी एक पतली स्वर्ण पन्नी में से कुछ अल्फा किरणों को गुजारा। प्रयोग के परिणाम आश्चर्य चकित करने वाले थे। परमाणु के बारे में अब तक प्रचलित सिद्धान्त के अनुसार अल्फा कणों को गोल्ड फॉइल के पार स्क्रीन पर एक ही जगह जाकर टकराना चाहिए था, किन्तु रदरफोर्ड ने देखा कि कुछ अल्फा कण गोल्ड फॉइल से टकराकर भिन्न−भिन्न कोणों पर विचलित होकर वापस आ रहे थे और कुछ उसके पार भी निकल रहे थे। रदरफोर्ड के प्रयोग ने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु के मध्य कुछ घना धनात्मक भाग है जिससे अल्फा कण वापस लौट रहे थे। प्रयोग से उन्होंने सिद्ध किया कि यह धनात्मक घना भाग परमाणु का 'नाभिक' (न्यूक्लियस) है, इस नाभिक में ही परमाणु का समस्त द्रव्यमान केंद्रित रहता है एवं इलेक्ट्रान इसी धनात्मक आवेश के चारों और व्यवस्थित रूप से घूमते हैं।

इन्हें भी देखें