"अहल अल-हदीस": अवतरणों में अंतर

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== अभिप्राय ==
== अभिप्राय ==
अहले हदीस दो शब्‍दों के मिश्रण से बना शब्‍द है- अहल और हदीस।   हदीस का शाब्दिक अर्थ है बात। 
अहले हदीस दो शब्‍दों के मिश्रण से बना शब्‍द है- अहल और हदीस।   हदीस का शाब्दिक अर्थ है बात। हदीस धार्मिक मान्यतों में पैगंबर मुहम्मद की बातों को कहा जाता हैं


== मान्यताएँ ==
== मान्यताएँ ==

11:06, 9 अप्रैल 2017 का अवतरण

अहले हदीस (फ़ारसी:اهل حدیث‎‎, उर्दू: اہل حدیث‎, ) एशिया में सुन्नी इस्लाम मानते हैं। इन्हें सलफ़ी भी कहा जा है।सल्फ़ी, या अहले हदीस

सुन्नियों में एक समूह ऐसा भी है जो किसी एक ख़ास इमाम के अनुसरण की बात नहीं मानता और उसका कहना है कि शरीयत को समझने और उसके सही ढंग से पालन के लिए सीधे क़ुरान और हदीस (पैग़म्बर मोहम्मद के कहे हुए शब्द) का अध्ययन करना चाहिए.

इसी समुदाय को सल्फ़ी और अहले-हदीस और वहाबी आदि के नाम से जाना जाता है. यह संप्रदाय चारों इमामों के ज्ञान, उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य की क़द्र करता है.

लेकिन उसका कहना है कि इन इमामों में से किसी एक का अनुसरण अनिवार्य नहीं है. उनकी जो बातें क़ुरान और हदीस के अनुसार हैं उस पर अमल तो सही है लेकिन किसी भी विवादास्पद चीज़ में अंतिम फ़ैसला क़ुरान और हदीस का मानना चाहिए.

सल्फ़ी समूह का कहना है कि वह ऐसे इस्लाम का प्रचार चाहता है जो पैग़म्बर मोहम्मद के समय में था. इस सोच को परवान चढ़ाने का सेहरा इब्ने तैमिया(1263-1328) और मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब(1703-1792) के सिर पर बांधा जाता है और अब्दुल वहाब के नाम पर ही यह समुदाय वहाबी नाम से भी जाना जाता है.

मध्य पूर्व के अधिकांश इस्लामिक विद्वान उनकी विचारधारा से ज़्यादा प्रभावित हैं. इस समूह के बारे में एक बात बड़ी मशहूर है कि ये धार्मिक सिद्धान्तों में पक्के हैं. सऊदी अरब , क़तर के मौजूदा शासक इसी विचारधारा को मानते हैं.अमेरिका में भी ज़्यादातर सुन्नी मुसलमान सलाफी समुदाय से हैं [1]

अभिप्राय

अहले हदीस दो शब्‍दों के मिश्रण से बना शब्‍द है- अहल और हदीस।   हदीस का शाब्दिक अर्थ है बात। हदीस धार्मिक मान्यतों में पैगंबर मुहम्मद की बातों को कहा जाता हैं

मान्यताएँ

अहले हदीस क़ुरान और सुन्नत को ही धर्म और उसके कानून को समझने का स्रोत मानती हैं, ये हर उस चीज़ का विरोध करती हैं जो इस्लाम में बाद में आयी।

शाखाएं

अहले हदीस का तरीक़ा अस्ल में एक फ़िक्ही और इज्तिहादी तरीक़ा था। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अहले सुन्नत वल जमात के धर्म की समझ रखने वाले अपने तौर तरीक़े की वजह से दो गीरोह में बटे हैं।

अस्हाबे राई

अस्हाबे राई समूह का केंद्र इराक़ था। वह हुक्मे शरई को हासिल करने के लिए क़ुरआन और सुन्नत के अलावा अक्ल (बुद्धी) से भी काम लेता था। यह लोग फ़िक्ह में क़्यास (अनुमान) को मोअतबर (विश्वासपात्र) समझते हैं और यही नही बल्कि कुछ जगहों पर इसको क़ुरआन और सुन्नत पर मुक़द्दम (महत्तम) करते हैं।

इस समूह के संस्थापक अबू हनीफा (देहान्त 150 हिजरी) हैं।

अस्हाबे हदीस

दूसरे समूह अहले हदीस या अस्हाबे हदीस का केंद्र हिजाज़ था। यह लोग सिर्फ क़ुरआन और हदीस के ज़ाहिर (प्रत्यक्ष) पर भरोसा करते थे और पूरी तरह से अक़्ल का इंकार करते थे। इस समूह के बड़े उलमा (विद्धवान), मालिक इब्ने अनस (देहान्त 179 हिजरी), अहमद इब्ने हम्बल हैं।

अहले हदीस पंथ के मानने वाले तक़लीद नहीं कही करते, वो मानते हैं कि क़ुरान और सुन्नत से ही सारे मसले और धर्म के कानून को समझा जा सकता हैं और इसके लिए किसी एक इमाम की तक़लीद की ज़रूरत नहीं है।

सन्दर्भ

  1. Yoginder Sikand, "Islamist Militancy in Kashmir: The Case of the Lashkar-e Taiba." Taken from The Practice of War: Production, Reproduction and Communication of Armed Violence, pg. 226. Eds. Aparna Rao, Michael Bollig and Monika Böck। New York: Berghahn Books, 2008. ISBN 9780857450593