"नव्य न्याय": अवतरणों में अंतर
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गंगेश उपाध्याय ने [[श्रीहर्ष]] के [[खण्डनखण्डखाद्यम्]] नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक [[तत्वचिन्तामणि]] की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में [[अद्वैत वेदान्त]] का समर्थन एवं [[न्याय दर्शन]] के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था। |
गंगेश उपाध्याय ने [[श्रीहर्ष]] के [[खण्डनखण्डखाद्यम्]] नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक [[तत्वचिन्तामणि]] की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में [[अद्वैत वेदान्त]] का समर्थन एवं [[न्याय दर्शन]] के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था। |
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==इन्हें भी देखें== |
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*[[तत्त्वचिन्तामणि]] |
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*[[गंगेश उपाध्याय]] |
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==बाहरी कड़ियाँ== |
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*[https://archive.org/details/Khandana-Khanda-Khadya.by.Sri.Harsa श्रीहर्ष का खण्डनखण्डखाद्यम्]] |
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08:37, 7 अप्रैल 2017 का अवतरण
नव्य न्याय, भारतीय दर्शन का एक सम्प्रदाय (school) है जो मिथिला के दार्शनिक गंगेश उपाध्याय द्वारा तेरहवीं शती में प्रतिपादित किया गया। इसमें पुराने न्याय दर्शन को ही आगे बढ़ाया गया है। वाचस्पति मिश्र तथा उदयन (१०वीं शती की अन्तिम बेला) आदि का भी इस दर्शन के विकास में प्रभाव है।
गंगेश उपाध्याय ने श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्यम् नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक तत्वचिन्तामणि की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में अद्वैत वेदान्त का समर्थन एवं न्याय दर्शन के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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