"वायुशय": अवतरणों में अंतर

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[[File:Swim bladder.jpg|thumb|230px|एक मछली का बाहर निकाला गया वायुशय]]
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[[File:Air bladder in a bleak.jpg|thumb|230px|मछली शरीर के भीतर वायुशय का चित्रण]]
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[[File:Goldfish with swim bladder disease.JPG|thumb|230px|वायुशय रोग के कारण यह मछली न तो अपनी गहराई पर नियंत्रण रखती है और न ही अपने शरीर को उलट जाने से रोक पा रही है]]
'''वायुशय''' (swim bladder, gas bladder) एक भीतरी [[गैस]]-भरा [[अंग (शरीर रचना)|अंग]] होता है जिसके प्रयोग से [[हड्डीदार मछलियाँ]] अपने [[उत्प्लावन बल|उत्प्लावन]] (बोयेंसी) पर नियंत्रण रखती हैं। इसके प्रयोग से वह बिना सक्रीय रूप से तैरे किसी मनचाही गहराई पर स्थाई रूप से ठहर सकती हैं।<ref>Bond, Carl E. (1996) Biology of Fishes, 2nd ed., Saunders, pp. 283–290.</ref><ref>Pelster, Bernd (1997) "[https://books.google.com/books?id=E_yI3mB2QI8C&printsec=frontcover&dq=%22Deep-sea+fishes%22&hl=en&sa=X&ei=T1MWVZmLOKe7mwWyyIDgAw&ved=0CBwQ6AEwAA#v=onepage&q=%22Deep-sea%20fishes%22&f=false Buoyancy at depth]" In: WS Hoar, DJ Randall and AP Farrell (Eds) Deep-Sea Fishes, pages 195–237, Academic Press. ISBN 9780080585406.</ref> इसके विपरीत उपास्थिदार मछलियाँ वायुशय-रहित होती हैं और अगर वे न तैरें तो धीरे-धीरे नीचे जाती चली जाती हैं (हालांकि कुछ के शरीर में चर्बी के भंडार होते हैं जो उन्हें कुछ हद तक डूबने से बचाते हैं)। वायुशय के दो अन्य लाभ भी हैं। प्रथम, इसकी उपस्थिति से मछली का [[संहति-केन्द्र]] उसके [[आयतन]]-केन्द्र से नीचे होता है, जिस से उस के शरीर को स्थायित्व मिलता है। दूसरा, वायुशय में हवा खिसकाने से मछली ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिसे वह अपनी जाति की अन्य मछलियों से संचार के लिए प्रयोग कर सकती हैं।<ref>"Fish". Microsoft Encarta Encyclopedia Deluxe 1999. Microsoft. 1999.</ref>
'''वायुशय''' (swim bladder, gas bladder) एक भीतरी [[गैस]]-भरा [[अंग (शरीर रचना)|अंग]] होता है जिसके प्रयोग से [[हड्डीदार मछलियाँ]] अपने [[उत्प्लावन बल|उत्प्लावन]] (बोयेंसी) पर नियंत्रण रखती हैं। इसके प्रयोग से वह बिना सक्रीय रूप से तैरे किसी मनचाही गहराई पर स्थाई रूप से ठहर सकती हैं।<ref>Bond, Carl E. (1996) Biology of Fishes, 2nd ed., Saunders, pp. 283–290.</ref><ref>Pelster, Bernd (1997) "[https://books.google.com/books?id=E_yI3mB2QI8C&printsec=frontcover&dq=%22Deep-sea+fishes%22&hl=en&sa=X&ei=T1MWVZmLOKe7mwWyyIDgAw&ved=0CBwQ6AEwAA#v=onepage&q=%22Deep-sea%20fishes%22&f=false Buoyancy at depth]" In: WS Hoar, DJ Randall and AP Farrell (Eds) Deep-Sea Fishes, pages 195–237, Academic Press. ISBN 9780080585406.</ref> इसके विपरीत उपास्थिदार मछलियाँ वायुशय-रहित होती हैं और अगर वे न तैरें तो धीरे-धीरे नीचे जाती चली जाती हैं (हालांकि कुछ के शरीर में चर्बी के भंडार होते हैं जो उन्हें कुछ हद तक डूबने से बचाते हैं)। वायुशय के दो अन्य लाभ भी हैं। प्रथम, इसकी उपस्थिति से मछली का [[संहति-केन्द्र]] उसके [[आयतन]]-केन्द्र से नीचे होता है, जिस से उस के शरीर को स्थायित्व मिलता है। दूसरा, वायुशय में हवा खिसकाने से मछली ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिसे वह अपनी जाति की अन्य मछलियों से संचार के लिए प्रयोग कर सकती हैं।<ref>"Fish". Microsoft Encarta Encyclopedia Deluxe 1999. Microsoft. 1999.</ref>



08:26, 24 मार्च 2017 का अवतरण

एक मछली का बाहर निकाला गया वायुशय
मछली शरीर के भीतर वायुशय का चित्रण
वायुशय रोग के कारण यह मछली न तो अपनी गहराई पर नियंत्रण रखती है और न ही अपने शरीर को उलट जाने से रोक पा रही है

वायुशय (swim bladder, gas bladder) एक भीतरी गैस-भरा अंग होता है जिसके प्रयोग से हड्डीदार मछलियाँ अपने उत्प्लावन (बोयेंसी) पर नियंत्रण रखती हैं। इसके प्रयोग से वह बिना सक्रीय रूप से तैरे किसी मनचाही गहराई पर स्थाई रूप से ठहर सकती हैं।[1][2] इसके विपरीत उपास्थिदार मछलियाँ वायुशय-रहित होती हैं और अगर वे न तैरें तो धीरे-धीरे नीचे जाती चली जाती हैं (हालांकि कुछ के शरीर में चर्बी के भंडार होते हैं जो उन्हें कुछ हद तक डूबने से बचाते हैं)। वायुशय के दो अन्य लाभ भी हैं। प्रथम, इसकी उपस्थिति से मछली का संहति-केन्द्र उसके आयतन-केन्द्र से नीचे होता है, जिस से उस के शरीर को स्थायित्व मिलता है। दूसरा, वायुशय में हवा खिसकाने से मछली ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिसे वह अपनी जाति की अन्य मछलियों से संचार के लिए प्रयोग कर सकती हैं।[3]

ढांचा

वायुशय में साधारण रूप से दो गैस से भरी थैलियाँ होती हैं, हालांकि कुछ रूढ़ि जातियों में एक ही थैली भी पाई जाती है। यह आमतौर पर पीठ के पास स्थित होता है। वायुशय की दीवारे लचीली होती हैं और आसपास के दबाव के अनुसार फैलती-सिकुड़ती हैं। इन दीवारों में रक्त वाहिकाओं की संख्या कम होती है और दिवारों पर गुआनिन क्रिस्टल की परत चढ़ी होती है जिस में से गैस निकल नहीं सकती। वायुशय पर दबाव बदलकर मछली अपने उत्प्लावन को बदल सकती है और पानी में अपनी गहराई काफ़ी हद तक बदल सकने में सक्षम होती है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Bond, Carl E. (1996) Biology of Fishes, 2nd ed., Saunders, pp. 283–290.
  2. Pelster, Bernd (1997) "Buoyancy at depth" In: WS Hoar, DJ Randall and AP Farrell (Eds) Deep-Sea Fishes, pages 195–237, Academic Press. ISBN 9780080585406.
  3. "Fish". Microsoft Encarta Encyclopedia Deluxe 1999. Microsoft. 1999.