"नसीरुद्दीन शाह": अवतरणों में अंतर

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नसीरूद्दीन शाह ने एक फिल्म का निर्देशन भी किया है। हाल ही में वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा” जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं।
नसीरूद्दीन शाह ने एक फिल्म का निर्देशन भी किया है। हाल ही में वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा” जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं।
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09:38, 11 मार्च 2017 का अवतरण

चित्र:Naseeruddin Shah02.jpg
नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं।

नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो. नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी. नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की फेहरिस्त में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मेन स्ट्रीम या कमर्शियल फिल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है।

नसीर अपने शानदार हरफनमौला अंदाज से बन गए मेन स्ट्रीम के चहेते सितारे, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया. ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के जेहन पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया।

मेनस्ट्रीम सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत हुई 1980 में आई फिल्म 'हम पांच' से. फिल्म भले ही कमर्शियल थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई पैरेलेल सिनेमा वाली फिल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी. फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती और राज बब्बर भी थे लेकिन नसीर के दमदार अभिनय ने उन्हें सबसे अलग खड़ा कर दिया.

हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक कमर्शियल एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने. बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फिल्मों में शुमार की जाने भी दो यारों में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फिल्म बेहद कामयाब रही. लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'. बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फिल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को मिल गया एक स्टार का दर्जा.

नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फिल्म 'कर्मा' ने. फिल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी. बावजूद इसके पैरेलेल सिनेमा का ये सुपरस्टार खैरुद्दीन चिश्ती बन कर पब्लिक की सबसे ज्यादा तालियां और सीटियां बटोर ले गया।

1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई. एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत. 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की. और बतौर कमर्शियल एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फिल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने कमर्शियल फिल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। बॉलीवुड की मेन स्ट्रीम फिल्मों में नसीर अपनी कामयाबी की कहानी आगे बढ़ाते जा रहे थे तो उनकी अदाकारी के चर्चे सात समंदर पार तक पहुंच गए।

2003 में आई हॉलीवुड फिल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदरा निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फिल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं कमर्शियल फिल्मों से अभी सैटिस्फाइ नहीं हूं.'

2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फिल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने पब्लिक को खूब एंटरटेन किया है। वाकई नसीरुद्दीन शाह जैसे एक्टर्स को ना तो देश की सरहदें बांध सकती हैं, ना उम्र की जंजीरे थाम सकती हैं।

हर रोल में फिट नसीरुद्दीन शाह आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे. आखिर वो एक्टर ही ऐसे ही कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक वक्त था जब नसीर को दो रोल करने की दिली ख्वाहिश थी जो उस वक्त उन्हें मिले नहीं. लेकिन बाद में उनके अरमान जरूर पूरे हुए. 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन का वो धारावाहिक जिसने किताबों में बंद मिर्जा गालिब को जिंदा कर दिया. उस सीरियल ने छोटे पर्दे पर गालिब की ऐसी तस्वीर उभारी जो सिनेमाई कम और रियल ज्यादा लगी और ये सब मुमकिन हुआ था उस चेहरे के बूते जिसका नाम है नसीरुद्दीन शाह.

लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फिल्म बनाना चाहते थे और उस फिल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी।

नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फिल्म में आपको मुझे लेना चाहिए.' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फिल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया. नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे. मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया.'

ये नसीर की पहली ख्वाहिश थी जो देर से ही सही लेकिन पूरी जरूर हूई और उन्होंने गालिब के किरदार को यादगार बना दिया. नसीर साहब की एक और दिली ख्वाहिश थी। ये ख्वाहिश थी गांधी के रोल को करने की. कहते हैं जब रिचर्ड एटिनबरो 'गांधी' फिल्म बन रहे थे तो वो उसके लिए ऑडिशन भी देने पहुंचे थे। लेकिन उन्हें सेलेक्ट नहीं किया गया और रोल बेन किंग्सले को मिला. नसीर की तमन्ना अधूरी ही रह गई। लेकिन वो चाहते थे कि किसी और फिल्म में ही सही लेकिन गांधी का किरदार एक बार उन्हें निभाने का मौका मिले और वो मौका भी एक दिन आ ही गया।

साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की दूसरी अधूरी तमन्ना को पूरा कर दिया. इस फिल्म में उन्हें गांधी का किरदार निभाने का मौका मिला. सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी बल्कि एक बार फिर साबित कर दिया कि आखिर उनके टक्कर को कोई दूसरा एक्टर बॉलीवुड में कोई और क्यों नहीं हैं।

नकारात्‍मक भूमिकाओं में भी छोड़ी पहचान बेजोड़ एक्टिंग और गजब की रेंज से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी एक खास छाप छोड़ी नेगेटिव रोल्स में. पैरेलल सिनेमा का ये बड़ा हीरो कमर्शियल फिल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा.

हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने. वैसे विलेन के तौर पर ये उनकी एक दो फिल्में नहीं था। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी. लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी।

नसीर का पहला प्‍यार है पैरेलल सिनेमा नसीर की असली पहचान पैरेलल सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। पैरेलल सिनेमा के इस सबसे बड़े सितारे ने स्मिता पाटील, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी सरीखे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फिल्मों को एक नई पहचान दी. 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फिल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' सरीखी फिल्मों में अभिनय का नई मिसाल पेश कर दी.

हर फिल्म में एक नया किरदार और हर किरदार के साथ एक नए नसीर. निगेटिव कैरेक्टर हो, या आम आदमी की भूमिका, खालिस मसाला फिल्में हो या सीरियस पैरेलल सिनेमा, नसीर अदाकारी का ऐसा सोना हैं जो ढल सकता है किसी भी किरदार के सांचे में.

व्यक्तिगत जीवन

आपके भाई लेफ्टि जन ज़मीरुद्दीन शाह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उप कुलपति हैं। नसीरुद्दीन शाह का जन्म 20 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हुआ था। नसीरूद्दीन शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया। अभिनय के इस प्रतिष्ठित संस्थान से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद वे रंगमंच और हिन्दी फिल्मों में सक्रिय हो गए। नसीरूद्दीन शाह की फिल्मों की सूची में समानांतर और मुख्य धारा की फिल्मों का अनूठा सम्मिलन देखने को मिलता है।

प्रमुख फिल्में

=नसीरूद्दीन शाह का कॅरियर

नसीरूद्दीन शाह ने अपने कॅरियर की शुरुआत फिल्म निशांत से की थी जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियां थीं। ‘निशांत’ एक आर्ट फिल्म थी। यह फिल्म कमाई के हिसाब से तो पीछे रही पर फिल्म में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की सबने सराहना की. इस के बाद नसीरुद्दीन शाह ने आक्रोश, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई आर्ट फिल्में कीं.

आर्ट फिल्मों के साथ वह कॉमर्शियल फिल्मों में भी सक्रिय रहे. ‘मासूम’, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, सरफ़रोश जैसी कॉमर्शियल फिल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ आर्ट ही नहीं कॉमर्शियल फिल्में भी कर सकते हैं। नसीरूद्दीन शाह के फिल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी. वक्त के साथ नसीरूद्दीन शाह ने फिल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी. बाद में वे कम मगर, अच्छी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे.

फिल्म ‘हे राम’ में उन्होंने गांधी जी के किरदार को पर्दे पर उतार कर अपने अभिनय का लोहा मनवाया. नसीरूद्दीन शाह की अभिनय-प्रतिभा भारत तक ही सीमित नहीं रही. अंतरराष्ट्रीय फिल्म परिदृश्य में भी नसीरूद्दीन सक्रिय रहे हैं। हॉलीवुड फिल्म ‘द लीग ऑफ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमैन’ और पाकिस्तानी फिल्म ‘खुदा’ जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी नसीरूद्दीन शाह ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करायी.

नसीरूद्दीन शाह ने एक फिल्म का निर्देशन भी किया है। हाल ही में वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा” जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं।

वर्ष फ़िल्म चरित्र टिप्पणी


२०१६ 
जीवन  हठी
तेरा  सुररूर 
२०१५ चार्ली  के  चक्कर  में 
वेलकम  बैक
डर्टी  पॉलिटिक्स  
२०१४ फाइंडिंग  फन्नी
डेढ़  इश्किया

२०१३

जॉन  डे

ज़िंदा  भाग 

सिद्धार्थ

२०११

देओल

गर्ल  इन  येलो  बूट्स 

 डर्टी  पिक्चर 

ज़िन्दगी  न  मिलेगी  दोबारा 

७ खून माफ़ 
२०१०  अल्लाह  के  बन्दे
राजनीति 
इश्किया 
पीपली  लाइव
२००९  फ़िराक
बारह  आना 
२००८ दस  कहानियां 
जाने तू या जाने ना
एक बुधवार!
बॉम्बे से बैंकॉक
अमल
२००७ जाने तू या जाने ना
शूट ऑन साइट
हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड
२००६ कृश
शून्य
वैली ऑफ फ्लौवर्स
एक धुन बनारस की
मिक्सड डबल्स
ओमकारा
2005 पहेली
इकबाल
होम डिलीवरी
बींग साइरस
मैं मेरी पत्नी और वो
परज़ानिया
द ग्रेट न्यू वण्डरफुल
2004 असंभव
मैं हूँ ना
2003 तीन दीवारें
मकबूल
द लीग ऑफ एक्सट्राऑर्डिनरी जेंटलमैन
2002 एनकाउन्टर
2001 कसम
मोक्ष
मानसून वैडिंग
मुझे मेरी बीवी से बचाओ
गुरु महागुरु
2000 तूने मेरा दिल ले लिया
हे राम
गज गामिनी
1999 सरफ़रोश
भोपाल एक्सप्रेस
1998 चाइना गेट
दंड नायक
धूँढते रह जाओगे
सर उठा के जियो
बॉम्बे बॉयेज़
सच अ लौंग जर्नी
1997 अग्निचक्र
दावा
लहू के दो रंग
प्राइवेट डिटेक्टिव
1996 चाहत
राजकुमार
हिम्मत
१९९५ टक्कर
नाजायज़
मिस्टर अहमद
१९९४ द्रोह काल
पोंथन मादा
त्रियाचरित्र
मोहरा
१९९३ लुटेरे
सर
कभी हाँ कभी ना
हस्ती
बेदर्दी
गेम
१९९२ विश्वात्मा
चमत्कार
डाकू और पुलिस
इलेक्ट्रिक मून
तहलका
टाइम मशीन
१९९१ लक्ष्मण रेखा
शिकारी
एक घर
माने
१९९० पुलिस पब्लिक
चोर पे मोर
१९८९ खोज
त्रिदेव
१९८८ हीरो हीरालाल
मालामाल
पेस्तॉन जी
रिहाई
द पर्फेक्ट मर्डर
ज़ुल्म को जला दूँगा
लिबास
मिर्ज़ा ग़ालिब
१९८७ जलवा
इज़ाज़त
ये वो मंज़िल तो नहीं
१९८६ जेनेसिस
शर्त
एक पल
मुसाफ़िर
कर्मा
१९८५ गुलामी
मिसाल
मिर्च मसाला
त्रिकाल
अघात
अनंतयात्रा
खामोश
१९८४ मान मर्यादा
लोरी
होली
मोहन जोशी हाज़िर हो
कंधार
पार
पार्टी
१९८३ जाने भी दो यारों
मासूम
हादसा
मंडी
अर्द्ध सत्य
कथा
वो सात दिन
१९८२ बाज़ार
दिल आखिर दिल है
स्वामी दादा
अधरशिला
सितम
तहलका
१९८१ चक्र
उमराव जान
तजुर्बा
बेज़ुबान
सज़ाये मौत
 १९८० आक्रोश
अलबर्ट पिन्टो को गुस्सा क्यों आता है अलबर्ट
हम पाँच सूरज
स्पर्श
भवनी भवाई
१९७९ सुनयन
शायद
१९७८ जुनून
१९७७ भूमिका
गोधूलि
१९७६ मंथन
1975 निशांत

बतौर निर्देशक

वर्ष फ़िल्म टिप्पणी
2006 यूँ होता तो क्या होता

पुरस्कार

नसीरूद्दीन शाह की उपलब्धियां

नसीरूद्दीन शाह को 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।

1979 में फिल्म ‘स्पर्श’ (Sparsh) और 1984 में फिल्म ‘पार’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

2006 में फिल्म ‘इकबाल’ के लिए नसीरुद्दीन शाह को सर्वश्रेष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

1981 में फिल्म ‘आक्रोश’, 1982 में फिल्म ‘चक्र’ और 1984 में फिल्म ‘मासूम’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

वर्ष 2000 में उन्हें “संगीत नाटक अकादमी अवार्ड” से सम्मानित किया गया।

अपनी अलग शैली और अभिनय कला की वजह से आज भी बॉलीवुड में उन्हें सम्मान दिया जाता है। आने वाले दिनों में उनकी कई फिल्में आने वाली हैं जिनसे उनके प्रशंसकों को काफी उम्मीदें हैं।

सन्दर्भ