"उदन्त मार्तण्ड": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
|||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
*[http://www.srijangatha.com/2009-10/Feb/mulyankan-dr. virendra yadav1.htm हिंदी साहित्य के इतिहास में पत्र-पत्रिका की प्रांसगिकता] (डॉ. वीरेन्द्र यादव) |
*[http://www.srijangatha.com/2009-10/Feb/mulyankan-dr. virendra yadav1.htm हिंदी साहित्य के इतिहास में पत्र-पत्रिका की प्रांसगिकता] (डॉ. वीरेन्द्र यादव) |
||
[[श्रेणी:हिन्दी]] |
[[श्रेणी:हिन्दी पत्रकारिता]] |
05:25, 23 अप्रैल 2009 का अवतरण
उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था । मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक के रूप में इसका प्रकाशन शुरू हुआ। इसके संपादक कानुपर निवासी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल थे। यह पत्र पुस्तकाकार होता था और हर मंगलवार को निकलता था।
इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि दिसंबर, 1827 ई में बंद हो गया। उन दिनों सरकारी सहायता के बिना किसी भी पत्र का चलना असंभव था। कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी।
उस समय अंग्रेजी, फारसी और बँगला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इस पत्र में ब्रज और खड़ीबोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक ""मध्यदेशीय भाषा"" कहते थे।
पत्र की प्रारम्भिक विज्ञप्ति
प्रारंभिक विज्ञप्ति इस प्रकार थी -
""यह "उदंत मार्तंड" अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी ओ बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों के जानने और पढ़नेवालों को ही होता है। इससे सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देखकर आप पढ़ औ समझ लेय औ पराई अपेक्षा न करें ओ अपनी भाषा की उपज न छोड़े, इसलिए दयावान करुणा और गुणनि के निधान सब के कल्यान के विषय गवरनर जेनेरेल बहादुर की आयस से ऐसे साहस में चित्त लगाय के ए प्रकार से यह नया ठाट ठाटा...""।
बाहरी कड़ियाँ
- virendra yadav1.htm हिंदी साहित्य के इतिहास में पत्र-पत्रिका की प्रांसगिकता (डॉ. वीरेन्द्र यादव)