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'''ताँका''' (短歌) [[जापानी]] [[काव्य]] की कई सौ साल पुरानी काव्य [[विधा]] है। इस विधा को [[नौवीं शताब्दी]] से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। [[हाइकु]] का उद्भव इसी से हुआ।<ref>Ueda, Makoto. ''Modern Japanese Tanka''. NY: Columbia University Press, 1996. p1. ISBN 978-0-231-10433-3</ref>
'''ताँका''' (短歌) [[जापानी]] [[काव्य]] की कई सौ साल पुरानी काव्य [[विधा]] है। इस विधा को [[नौवीं शताब्दी]] से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। [[हाइकु]] का उद्भव इसी से हुआ।<ref>Ueda, Makoto. ''Modern Japanese Tanka''. NY: Columbia University Press, 1996. p1. ISBN 978-0-231-10433-3</ref>


इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है। एक कवि प्रथम ५+७+५=१७ भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग ७+७ की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती ७+७ को आधार बनाकर अगली शृंखला में ५+७+५ यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला ७+७ की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था।
इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है। एक कवि प्रथम ५+७+५=१७ भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग ७+७ की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती ७+७ को आधार बनाकर अगली शृंखला में ५+७+५ यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला ७+७ की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था।


इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या १०० तक भी पहुँच जाती थी। ताँका पाँच पंक्तियों और ५+७+५+७+७=३१ वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है।
इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या १०० तक भी पहुँच जाती थी। ताँका पाँच पंक्तियों और ५+७+५+७+७=३१ वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है।

16:15, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण

ताँका (短歌) जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ।[1]

इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है। एक कवि प्रथम ५+७+५=१७ भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग ७+७ की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती ७+७ को आधार बनाकर अगली शृंखला में ५+७+५ यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला ७+७ की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था।

इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या १०० तक भी पहुँच जाती थी। ताँका पाँच पंक्तियों और ५+७+५+७+७=३१ वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है। इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है। इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है।

ताँका का शाब्दिक अर्थ है लघुगीत अथवा छोटी कविता[2] लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती। साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है। अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।

सन्दर्भ

  1. Ueda, Makoto. Modern Japanese Tanka. NY: Columbia University Press, 1996. p1. ISBN 978-0-231-10433-3
  2. Keene, Donald. A History of Japanese Literature: Volume 1. NY: Columbia University Press, 1999. p98, 164. ISBN 978-0-231-11441-7