"अकलंक": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
इन सभी ग्रंथों में जैन संमत अनेकांतवाद के आधार पर [[प्रमाण]] और [[प्रमेय]] की विवेचना की गई है और जैनों के अनेकांतवाद को सदृढ़ भूमि पर सुस्थित किया गया है।
इन सभी ग्रंथों में जैन संमत अनेकांतवाद के आधार पर [[प्रमाण]] और [[प्रमेय]] की विवेचना की गई है और जैनों के अनेकांतवाद को सदृढ़ भूमि पर सुस्थित किया गया है।


{{टिप्पणीसूची}}
== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://books.google.co.in/books?id=1KYxaYLo7GMC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false तत्वार्तवार्तिक (या राजवार्तिक)] (गूगल पुस्तक ; मूल रचयिता - भट्ट अकलंक ; व्याख्याता - महेन्द्र जैन)
* [http://books.google.co.in/books?id=1KYxaYLo7GMC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false तत्वार्तवार्तिक (या राजवार्तिक)] (गूगल पुस्तक ; मूल रचयिता - भट्ट अकलंक ; व्याख्याता - महेन्द्र जैन)

20:44, 28 अक्टूबर 2016 का अवतरण

अकलंक आचार्य की प्रतिमा

अकलंक (720 - 780 ई), जैन न्यायशास्त्र के अनेक मौलिक ग्रंथों के लेखक आचार्य। अकलंक ने भर्तृहरि, कुमारिल, धर्मकीर्ति और उनके अनेक टीकाकारों के मतों की समालोचना करके जैन न्याय को सुप्रतिष्ठित किया है। उनके बाद होने वाले जैन आचार्यों ने अकलंक का ही अनुगमन किया है।

उनके ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

1. उमास्वाति तत्वार्थ सूत्र की टीका तत्वार्थवार्तिक जो राजवार्तिक के नाम से प्रसिद्ध है। इस वार्तिक के भाष्य की रचना भी स्वयं अकलंक ने की है।

2. आप्त मीमांसा की टीका अष्टशती।

3. प्रमाण प्रवेश, नयप्रवेश और प्रवचन प्रवेश के संग्रह रूप लछीयस्रय।

4. न्याय विनिश्चय और उसकी वृत्ति।

5. सिद्धि विनिश्चय और उसकी वृत्ति।

6. प्रमाण संग्रह।

इन सभी ग्रंथों में जैन संमत अनेकांतवाद के आधार पर प्रमाण और प्रमेय की विवेचना की गई है और जैनों के अनेकांतवाद को सदृढ़ भूमि पर सुस्थित किया गया है।

बाहरी कड़ियाँ