"अगरतला": अवतरणों में अंतर

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Native name addition. Agartala is the capital of Tripura, a Bengali speaking state
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त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की स्थापना 1850 में महाराज राधा कृष्ण किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा की गई थी। यद्यपि त्रिपुरा में पर्यटक आते-जाते हैं, बेहतर होगा कि स्थानीय प्राधिकारियों से वर्तमान सुरक्षा परिस्थितियों संबंधी जायजा ले लिया जाए।
त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की स्थापना 1850 में महाराज राधा कृष्ण किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा की गई थी। यद्यपि त्रिपुरा में पर्यटक आते-जाते हैं, बेहतर होगा कि स्थानीय प्राधिकारियों से वर्तमान सुरक्षा परिस्थितियों संबंधी जायजा ले लिया जाए।

18:46, 17 जुलाई 2016 का अवतरण

अगरतला
আগরতলা
—  राजधानी  —
अगरतला की एक सड़क
अगरतला की एक सड़क
अगरतला की एक सड़क
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य त्रिपुरा
महापौर
सांसद

निर्देशांक: 23°30′N 91°15′E / 23.5°N 91.25°E / 23.5; 91.25 अगरतला (बांग्ला: আগরতলা) भारत के त्रिपुरा प्रान्त की राजधानी है।त्रिपुरा देश का दूसरा सबसे छोटा राज्य है। त्रिपुरा की स्थापना 14वीं शताब्दी में माणिक्य नामक इंडो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी, जिसने हिंदु धर्म अपनाया था। 1808 में इसे ब्रिटिश साम्राज्य ने जीता, यह स्व-शासित शाही राज्य बना, 1956 में यह भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ और 1972 में इसे राज्य का दर्जा मिला। यहां मुख्यत: बंगाली भाषा बोली जाती है और हैंडलूम बुनाई यहां का मुख्य उद्योग है। त्रिपुरा का आधे से अधिक भाग जंगलों से घिरा है, जो प्रकृति-प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित करता है, किंतु दुर्भाग्यवश यहां कई आतंकवादी संगठन पनप चुके हैं जो अलग राज्य की मांग के लिए समय-समय पर राज्य प्रशासन से लड़ते रहते हैं।

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की स्थापना 1850 में महाराज राधा कृष्ण किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा की गई थी। यद्यपि त्रिपुरा में पर्यटक आते-जाते हैं, बेहतर होगा कि स्थानीय प्राधिकारियों से वर्तमान सुरक्षा परिस्थितियों संबंधी जायजा ले लिया जाए।

पर्यटन स्थल

उज्जयंता पैलेस

1901 में निर्मित उज्जयंता पैलेस, अगरतला का मुख्य स्मारक है जो मुगल-यूरोपीय मिश्रित शैली में निर्मित है। 800 एकड़ में फैला यह विशाल परिसर अब राज्य की विधान सभा के रूप में प्रयुक्त होता है। इसमें बगीचे और मानव-निर्मित झीलें है। आमतौर पर इसे जनता के लिए नहीं खोला जाता परंतु यदि आप सायं 3 से 4 बजे के बीत मुख्य द्वार पर जाएं तो आप यहां प्रवेश के लिए प्रवेश-पास प्राप्त कर सकते हैं।

नीरमहल

पैलेस के मैदान में नारंगी रंग के दो मंदिर अर्थात् उम्मेनश्वर मंदिर और जगन्नाथ मंदिर स्थित है, जिनमें कोई भी व्यक्ति दर्शानार्थ जा सकता है।


एयरपोर्ट रोड पर लगभग 1 कि॰मी॰ उत्तर में वेणुबन विहार नामक एक बौद्ध मंदिर है। गेदू मियां मस्जिद, जो अनोखे तकीके से क्राकरी के टूटे हुए टुकड़ों से बनी है, भी दर्शनीय है।

एचजीबी रोड पर स्थित स्टेट म्यूजियम में एथनोग्राफिकल और आर्कियोलॉजी संबंधी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यह सोमवार से शनिवार तक प्रात: 10 से सायं 5 बजे तक खुलता है, इसमें प्रवेश निशुल्क है। पर्यटन कार्यालय के पीछे स्थित ट्राइबल म्यूजियम त्रिपुरा के 19 आदिवासी समूहों की स्मृति के रूप में बनाया गया है।

पुराना अगरतला पूर्व में 5 कि॰मी॰ दूर है। यहां चौदह मूर्तियों वाला मंदिर है जहां जुलाई माह में श्रद्धालु कड़छी-पूजा के लिए एकत्र होते हैं। यहां आटोरिक्शा, बस और जीप द्वारा पहुंचा जा सकता है।

बांग्लादेश से सिर्फ दो किमी दूर स्थित यह शहर सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है। अगरतला त्रिपुरा के पश्चिमी भाग में स्थित है और हरोआ नदी शहर से होकर गुजरती है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक ऐसा शहर है, जहां मनोरंजन के तमाम साधन हैं, एंडवेंचर के ढेरों विकल्प हैं और सांस्कृतिक रूप से भी बेहद समृद्ध है। इसके अलावा यहां पाए जाने वाले अलग-अलग किस्म के जीव-जंतु और पेड़ पौधे अगरतला पर्यटन को और भी रोचक बना देते हैं। अगरतला उस समय प्रकाश में आया जब माणिक्य वंश ने इसे अपनी राजधानी बनाया। 19वीं शताब्दी में कुकी के लगातार हमलों से परेशान होकर महाराज कृष्ण माणिक्य ने उत्तरी त्रिपुरा के उदयपुर स्थित रंगामाटी से अपनी राजधानी को अगरतला शिफ्ट कर दिया। राजधानी बदलने की एक और वजह यह भी थी कि महाराज अपने साम्राज्य और पड़ोस में स्थित ब्रिटिश बांग्लादेश के साथ संपर्क बनाने चाहते थे। आज अगरतला जिस रूप में दिखाई देता है, दरअसल इसकी परिकल्पना 1940 में महाराज बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर ने की थी। उन्होंने उस समय सड़क, मार्केट बिल्डिंग और नगरनिगम की योजना बनाई। उनके इस योगदान को देखते हुए ही अगरतला को ‘बीर बिक्रम सिंह माणिक्य बहादुर का शहर’ भी कहा जाता है। शाही राजधानी और बांग्लादेश से नजदीकी होने के कारण अतीत में कई बड़ी नामचीन हस्तियों ने अगरतला का भ्रमण किया। रविन्द्रनाथ टैगोर कई बार अगरतला आए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि त्रिपुरा के राजाओं से उनके काफी गहरे संबंध थे।

उज्जयंता महल : इस महल को महाराजा राधा किशोर माणिक्य ने बनवाया था। अगरतला जाने पर इस महल को जरूर घूमना चाहिए। इसका निर्माण कार्य 1901 में पूरा हुआ था और फिलहाल इसका इस्तेमाल राज्य विधानसभा के रूप में किया जा रहा है।

नीरमहल : मुख्य शहर से 53 किमी दूर स्थित इस खूबसूतर महल को महाराजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य ने बनवाया था। रुद्रसागर झील के बीच में स्थित इस महल में महाराजा गर्मियों के समय ठहरते थे। महल निर्माण में इस्लामिक और हिंदू वास्तुशिल्प का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है, जिससे इसे काफी ख्याति भी मिली है।

जगन्नाथ मंदिर: अगरतला के सर्वाधिक पूजनीय मंदिरों में से एक जन्नाथ मंदिर अपनी अनूठी वास्तुशिल्पीय शैली के लिए जाना जाता है। यह एक अष्टभुजीय संरचना है और मंदिर के पवित्र स्थल के चारों ओर आकर्षक प्रधक्षण पठ है।

महाराजा बीर बिक्रम कॉलेज : जैसा कि नाम से ही जाहिर है, इस कॉलेज को महाराजा बीर बिक्रम सिंह ने बनवाया था। 1947 में इस कॉलेज को बनवाने पीछे महाराजा कि मंशा स्थानीय युवाओं को व्यवसायिक और गुणवत्तायुक्त शिक्षा उपलब्ध कराना था।

लक्ष्मी नारायण मंदिर : इस मंदिर में हिंदू धर्म को मानने वाले नियमित रूप से जाते हैं। साथ ही यह अगरतला का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है। इस मंदिर को कृष्णानंद सेवायत ने बनवाया था।

रविन्द्र कनान : राज भवन के बगल में स्थित रविन्द्र कनान एक बड़ा सा हरा-भरा गार्डन है। यहां हर उम्र के लोग आते हैं। कुछ तो यहां मौज मस्ती के मकसद से आते हैं, वहीं कुछ इसका इस्तेमाल प्ले ग्राउंड के तौर पर भी करते हैं।

पिछले कुछ सालों में चावल, तिलहन, चाय और जूट के नियमित व्यापार से अगरतला पूर्वोत्तर भारत के एक व्यवसायिक गढ़ के रूप में भी उभरा है। शहर में कुछ फलते-फूलते बाजार हैं, जिन्हें घूमना बेकार नहीं जाएगा। इन बाजारों में बड़े पैमाने पर हस्तशिल्प और ऊन से बने वस्त्र आपको मिल जाएंगे।