"नस्लवाद": अवतरणों में अंतर

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नस्लवाद या प्रजातिवाद (रेसिज्म) वह सिद्धान्त या अवधारणा है, जो किसी एक नस्ल को दूसरी से श्रेष्ठतर या निम्नतर मानती है। नस्लवाद को ऐसे परिभाषित किया गया हैं-"यह विश्वास कि हर नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियां होती हैं, जो उसे दूसरी नस्लों से कमतर या बेहतर बनाती हैं।"[1] नस्लवाद लोगों के बीच जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दोनों होते हैं। यह विभिन्न नस्लों के सदस्यों को अलग ढंग से व्यवहार किया जाना चाहिए कि सोच और धारण भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के सभागम के मुताबिक, नस्लीय भेदभाव के आधार पर श्रेष्ठता, वैज्ञानिक दृष्टि से गलत, नैतिक रूप से निन्दनीय, सामाजिक अन्याय और खतरनाक है और नस्लीय भेदभाव के लिए कोई औचित्य नहीं है, सिद्धांत में या व्यवहार में, कहीं भी।[2]

इतिहास में, नस्लवाद अटलांटिक दास व्यापार के पीछे एक प्रेरणा शक्ति थी, अमेरिका में उन्नीसवीं और शुरुआती बीसवीं सदी के नस्लीय अलगाव और दक्षिण अफ्रीका के अंतर्गत रंगभेद भी इसी सिद्धांत पर आधारित थे। यह सिद्धांत नरसंहार के राजनीतिक और वैचारिक आधार का एक प्रमुख हिस्सा रहा है जैसे यहूदी नरसंहार, पर औपनिवेशिक संदर्भों में भी जैसे दक्षिण अमेरिका और कांगो में रबर बूम के रूप में, अमेरिका के उपर यूरोपीय विजय में और अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के औपनिवेशीकरण में।

सन्दर्भ

  1. "'नस्लवाद है आज का सबसे बड़ा पाप'". नवभारत टाइम्स. 17 सितम्बर 2012. अभिगमन तिथि 29 जून 2014.
  2. "International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 29 जून 2014. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)