"बुक्क राय प्रथम": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
'''बुक्का ಬುಕ್ಕ್''' (१३५६ - १३७७ ई०)(जिसे '''बुक्का राय प्रथम''' भी कहा जाता है) [[विजयनगर साम्राज्य]] का [[संगम वंश]] का राजा था। बुक्का के राजकवि [[तेलुगु]] कवि नाचन सोम थे।
'''बुक्का ಬುಕ್ಕ್''' (१३५६ - १३७७ ई०)(जिसे '''बुक्का राय प्रथम''' भी कहा जाता है) [[विजयनगर साम्राज्य]] का [[संगम वंश]] का राजा था। बुक्का के राजकवि [[तेलुगु]] कवि नाचन सोम थे।


१४वीं सदी के पूर्वार्ध में दक्षिण भारत में [[तुंगभद्रा नदी]] के किनारे विजयनगर राज्य की स्थापना हुई थी जिसके संस्थापक बुक्क तथा उसके ज्येष्ठ भ्राता हरिहर का नाम इतिहास में विख्यात है। संगम नामक व्यक्ति के पाँच पुत्रों में इन्हीं दोनों की प्रधानता थी। प्रारंभिक जीवन में [[वारंगल]] के शासक [[प्रतापरुद्र द्वितीय]] के अधीन पदाधिकारी थे। उत्तर भारत से आक्रमणकारी मुसलमानी सेना ने वारंगल पर चढ़ाई की, अत: दोनों भ्राता (हरिहर एवं बुक्क) [[कांपिलि]] चले गए। १३२७ ई. में बुक्क बंदी बनाकर [[दिल्ली]] भेज दिया गया और [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार करने पर दिल्ली सुल्तान का विश्वासपात्र बन गया। दक्षिण लौटने पर भारतीय जीवन का ह्रास देखकर बुक्क ने पुन: हिंदू धर्म स्वीकार किया और विजयनगर की स्थापना में हरिहर का सहयोगी रहा। ज्येष्ठ भ्राता द्वारा उत्तराधिकारी घोषित होने पर १३५७ ई. में विजयनगर राज्य की बागडोर बुक्क के हाथों में आई। उसने बीस वर्षों तक अथक परिश्रम से शासन किया। पूर्व शासक से अधिक भूभाग पर उसका प्रभुत्व विस्तृत था।


शांति स्थापित होने पर राजा बुक्क ने आदर्श मार्ग पर शासन व्यवस्थित किया। मंत्रियों की सहायता से हिंदूधर्म में नवजीवन का संचार किया। इसने [[कुमार कंपण]] को भेजकर [[मदुरा]] से मुसलमानों को निकल भगाया जिसका वर्णन कंपण की पत्नी [[गंगादेवी]] ने 'मदुराविजयम्' में मार्मिक शब्दों में किया है। बुक्क स्वयं [[शैव सम्प्रदाय|शैव]] होकर सभी मतों का समादर करता रहा। इसकी संरक्षता में विद्वत् मंडली ने [[सायण]] के नेतृत्व में वैदिक संहिता, ब्राह्मण तथा आरण्यक पर टीका लिखकर महान् कार्य किया। अपने शासनकाल में (१३५७-१३७७ ई.) बुक्क प्रथम ने [[चीन]] देश को राजदूत भी भेजा जो स्मरणीय घटना थी। अनेक गुणों से युक्त होने के कारण [[माधवाचार्य]] ने जैमिनी न्यायमाला में बुक्क की निम्न प्रशंसा की है:

: ''जागर्ति श्रुतिमत्प्रसंग चरित:
: ''श्री बुक्कण क्ष्मापति:।


{{Start box}}
{{Start box}}
{{Succession box|title=[[विजयनगर साम्राज्य]]|before=[[हरिहर १]]|after=[[हरिहर २]] |years=१३५६ –१३७७}}
{{Succession box|title=[[विजयनगर साम्राज्य]]|before=[[हरिहर १]]|after=[[हरिहर २]] |years=१३५६ –१३७७}}
{{end box}}
{{end box}}



== सन्दर्भ ==
== सन्दर्भ ==
पंक्ति 19: पंक्ति 23:
* [http://www.aponline.gov.in/quick%20links/hist-cult/history_medieval.html AP Online: Medieval history]
* [http://www.aponline.gov.in/quick%20links/hist-cult/history_medieval.html AP Online: Medieval history]


{{DEFAULTSORT:Bukka}}
[[श्रेणी:१३७७ मृत्यु]]
[[श्रेणी:१३७७ मृत्यु]]
[[श्रेणी:कर्नाटक का इतिहास]]
[[श्रेणी:कर्नाटक का इतिहास]]

14:16, 12 जून 2016 का अवतरण

विजयनगर साम्राज्य
संगम राजवंश
हरिहर राय प्रथम 1336-1356
बुक्क राय प्रथम 1356-1377
हरिहर राय द्वितीय 1377-1404
विरुपाक्ष राय 1404-1405
बुक्क राय द्वितीय 1405-1406
देव राय प्रथम 1406-1422
रामचन्द्र राय 1422
वीर विजय बुक्क राय 1422-1424
देव राय द्वितीय 1424-1446
मल्लिकार्जुन राय 1446-1465
विरुपाक्ष राय द्वितीय 1465-1485
प्रौढ़ राय 1485
शाल्व राजवंश
शाल्व नृसिंह देव राय 1485-1491
थिम्म भूपाल 1491
नृसिंह राय द्वितीय 1491-1505
तुलुव राजवंश
तुलुव नरस नायक 1491-1503
वीरनृसिंह राय 1503-1509
कृष्ण देव राय 1509-1529
अच्युत देव राय 1529-1542
सदाशिव राय 1542-1570
अराविदु राजवंश
आलिया राम राय 1542-1565
तिरुमल देव राय 1565-1572
श्रीरंग प्रथम 1572-1586
वेंकट द्वितीय 1586-1614
श्रीरंग द्वितीय 1614-1614
रामदेव अरविदु 1617-1632
वेंकट तृतीय 1632-1642
श्रीरंग तृतीय 1642-1646

बुक्का ಬುಕ್ಕ್ (१३५६ - १३७७ ई०)(जिसे बुक्का राय प्रथम भी कहा जाता है) विजयनगर साम्राज्य का संगम वंश का राजा था। बुक्का के राजकवि तेलुगु कवि नाचन सोम थे।

१४वीं सदी के पूर्वार्ध में दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के किनारे विजयनगर राज्य की स्थापना हुई थी जिसके संस्थापक बुक्क तथा उसके ज्येष्ठ भ्राता हरिहर का नाम इतिहास में विख्यात है। संगम नामक व्यक्ति के पाँच पुत्रों में इन्हीं दोनों की प्रधानता थी। प्रारंभिक जीवन में वारंगल के शासक प्रतापरुद्र द्वितीय के अधीन पदाधिकारी थे। उत्तर भारत से आक्रमणकारी मुसलमानी सेना ने वारंगल पर चढ़ाई की, अत: दोनों भ्राता (हरिहर एवं बुक्क) कांपिलि चले गए। १३२७ ई. में बुक्क बंदी बनाकर दिल्ली भेज दिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर दिल्ली सुल्तान का विश्वासपात्र बन गया। दक्षिण लौटने पर भारतीय जीवन का ह्रास देखकर बुक्क ने पुन: हिंदू धर्म स्वीकार किया और विजयनगर की स्थापना में हरिहर का सहयोगी रहा। ज्येष्ठ भ्राता द्वारा उत्तराधिकारी घोषित होने पर १३५७ ई. में विजयनगर राज्य की बागडोर बुक्क के हाथों में आई। उसने बीस वर्षों तक अथक परिश्रम से शासन किया। पूर्व शासक से अधिक भूभाग पर उसका प्रभुत्व विस्तृत था।

शांति स्थापित होने पर राजा बुक्क ने आदर्श मार्ग पर शासन व्यवस्थित किया। मंत्रियों की सहायता से हिंदूधर्म में नवजीवन का संचार किया। इसने कुमार कंपण को भेजकर मदुरा से मुसलमानों को निकल भगाया जिसका वर्णन कंपण की पत्नी गंगादेवी ने 'मदुराविजयम्' में मार्मिक शब्दों में किया है। बुक्क स्वयं शैव होकर सभी मतों का समादर करता रहा। इसकी संरक्षता में विद्वत् मंडली ने सायण के नेतृत्व में वैदिक संहिता, ब्राह्मण तथा आरण्यक पर टीका लिखकर महान् कार्य किया। अपने शासनकाल में (१३५७-१३७७ ई.) बुक्क प्रथम ने चीन देश को राजदूत भी भेजा जो स्मरणीय घटना थी। अनेक गुणों से युक्त होने के कारण माधवाचार्य ने जैमिनी न्यायमाला में बुक्क की निम्न प्रशंसा की है:

जागर्ति श्रुतिमत्प्रसंग चरित:
श्री बुक्कण क्ष्मापति:।
पूर्वाधिकारी
हरिहर १
विजयनगर साम्राज्य
१३५६ –१३७७
उत्तराधिकारी
हरिहर २

सन्दर्भ

  • Dr. Suryanath U. Kamat, Concise history of Karnataka, MCC, Bangalore, 2001 (Reprinted 2002)
  • Chopra, P.N. T.K. Ravindran and N. Subrahmaniam.History of South India. S. Chand, 2003. ISBN 81-219-0153-7

बाहरी कड़ियाँ