"श्राद्ध": अवतरणों में अंतर

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श्राद्ध करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त करता है। योगेन्द्र नारायण शास्त्री जी ने मनु स्मृति का हवाला देते हुए बताया कि श्राद्ध से संतुष्ट होकर पित्तरगण श्राद्ध करने वालों को दीर्घायु, धन, सुख और मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्राद्ध करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त करता है। योगेन्द्र नारायण शास्त्री जी ने मनु स्मृति का हवाला देते हुए बताया कि श्राद्ध से संतुष्ट होकर पित्तरगण श्राद्ध करने वालों को दीर्घायु, धन, सुख और मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्राद्ध करने की इच्छा से पुत्र को गया में आया देखकर पितरों के लिए आनन्दोत्सव होता है, तात्पर्य ये है कि जैसे उत्सव में हर्षोल्लास तथा आनंद होता है, वैसे हीं पितर भी खुशियाँ मानते हैं ।


== श्राद्ध ना करने से हानि ==
== श्राद्ध ना करने से हानि ==

11:03, 21 मई 2016 का अवतरण

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हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म मॆं, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि कोई कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है इसीलिए आवश्यक है -श्राद्ध और साथ ही

  • पितरेश्वर तर्पण मुक्ति विधान-साधना
  • पितरेश्वर दोष निवारण विधान-साधना

श्राद्ध के लाभ

श्राद्ध करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त करता है। योगेन्द्र नारायण शास्त्री जी ने मनु स्मृति का हवाला देते हुए बताया कि श्राद्ध से संतुष्ट होकर पित्तरगण श्राद्ध करने वालों को दीर्घायु, धन, सुख और मोक्ष प्रदान करते हैं। श्राद्ध करने की इच्छा से पुत्र को गया में आया देखकर पितरों के लिए आनन्दोत्सव होता है, तात्पर्य ये है कि जैसे उत्सव में हर्षोल्लास तथा आनंद होता है, वैसे हीं पितर भी खुशियाँ मानते हैं ।

श्राद्ध ना करने से हानि

ब्रह्मपुराण के अनुसार श्राद्ध न करने से पित्तर गणों को दुख तो होता ही है, साथ ही श्राद्ध न करने वालों को कष्ट का सामना करना पड़ता है। कैसे करें श्राद्ध: श्राद्ध दो प्रकार के होते हैं पिंड दान और ब्राह्मण भोजन। मृत्यु के बाद जो लोग देव लोक या पितृ लोक पहुंचते हैं वे मंत्रों के द्वारा बुलाए जाने पर श्राद्ध के स्थान पर आकर ब्राह्मण के माध्यम से भोजन करते हैं। ऐसा मनु महाराज ने लिखा है क्योंकि पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोजन का ही महत्व है, इसलिए लोग पिंड दान नहीं करते।

ध्यान योग्य

पितृ पक्ष में संकल्प पूर्वक ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। यदि ब्राह्मण भोजन न करा सकें तो भोजन का सामान ब्राह्मण को भेंट करने से भी संकल्प हो जाता है। कुश और काले तिल से संकल्प करें। इसके अलावा गाय, कुत्ता, कोआ, चींटी और देवताओं के लिए भोजन का भाग निकालकर खुले में रख दें। भोजन कराते समय चुप रहें।

भोजन में इनका प्रयोग करें : दूध, गंगा जल, शहद, टसर का कपड़ा, तुलसी, सफेद फूल।

इनका प्रयोग न करें : कदंब, केवड़ा, मौलसिरी या लाल तथा काले रंग के फूल और बेल पत्र श्राद्ध में वर्जित हैं। उड़द, मसूर, अरहर की दाल, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पीली सरसों आदि भी वर्जित हैं। लोहा और मिट्टी के बर्तन तथा केले के पत्तों का प्रयोग न करें। विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध करने वाला ब्राह्मण भी दूसरे के यहां भोजन न करे। जिस दिन श्राद्ध करें उसे दिन दातुन और पान न खाएं। श्राद्ध का महत्वपूर्ण समय: प्रात: 11.26 से 12.24 बजे तक है।


बाहरी कड़ियाँ

  1. श्राद्ध कब क्यों और कैसे
  2. वेब दुनिया पर श्राद्ध
  3. भास्कर.कॉम
  4. खबर एक्स्प्रेस पर श्राद्ध