"पुरुषार्थ सिद्धयुपाय": अवतरणों में अंतर

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'''पुरुषार्थ सिद्धयुपाय''' एक प्रमुख [[जैन ग्रन्थ]] है जिसके रचियता आचार्य अमृत्चंद्र हैं।{{साँचा:Sfn|Jain|2012|p = xiii}}<ref>{{साँचा:Cite book|url = https://books.google.co.in/books?id=Ae4nAAAAYAAJ|title = The archeology of world religions|author1 = Finegan|first1 = Jack|date = 1952-08-01|p = 205}}</ref> आचार्य अमृत्चंद्र दसवीं सदी (विक्रम संवत) के प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में श्रावक के द्वारा धारण किये जाने वाले अणुव्रत आदि का वर्णन हैं{{साँचा:Sfn|Jain|2012|p = xiv}} पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में अहिंसा के सिद्धांत भी समझाया गया हैं  <ref>{{साँचा:Cite book|url = http://books.google.com/?id=cj2PZR_vsKkC&q=amritchandra&dq=amritchandra|title = Studies in Jainism|isbn = 9780962610523|author1 = Duli C Jain|date = 1997-06-01|p = 26}}</ref>
'''पुरुषार्थ सिद्धयुपाय''' एक प्रमुख [[जैन ग्रन्थ]] है जिसके रचियता आचार्य अमृत्चंद्र हैं।{{साँचा:Sfn|Jain|2012|p = xiii}}<ref>{{साँचा:Cite book|url = https://books.google.co.in/books?id=Ae4nAAAAYAAJ|title = The archeology of world religions|author1 = Finegan|first1 = Jack|date = 1952-08-01|p = 205}}</ref> आचार्य अमृत्चंद्र दसवीं सदी (विक्रम संवत) के प्रमुख [[दिगम्बर]] आचार्य थे। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में [[श्रावक]] के द्वारा धारण किये जाने वाले अणुव्रत आदि का वर्णन हैं{{साँचा:Sfn|Jain|2012|p = xiv}} पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में [[अहिंसा]] के सिद्धांत भी समझाया गया हैं  <ref>{{साँचा:Cite book|url = http://books.google.com/?id=cj2PZR_vsKkC&q=amritchandra&dq=amritchandra|title = Studies in Jainism|isbn = 9780962610523|author1 = Duli C Jain|date = 1997-06-01|p = 26}}</ref>


== श्लोक ==
== श्लोक ==

13:48, 21 जनवरी 2016 का अवतरण

पुरुषार्थ सिद्धयुपाय एक प्रमुख जैन ग्रन्थ है जिसके रचियता आचार्य अमृत्चंद्र हैं।[1][2] आचार्य अमृत्चंद्र दसवीं सदी (विक्रम संवत) के प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में श्रावक के द्वारा धारण किये जाने वाले अणुव्रत आदि का वर्णन हैं[3] पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में अहिंसा के सिद्धांत भी समझाया गया हैं  [4]

श्लोक

पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में २२६ श्लोक हैं जिसमें से प्रथम श्लोक मंगलाचरण हैं।

अहिंसा

पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में अहिंसा के सिद्धांत को विस्तार से समझाया गया हैं [5] इसमें श्रावक को हिंसा आदिक पापों से सावधान भी किया गया हैं।[6]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Jain 2012, पृ॰ xiii.
  2. Finegan, Jack (1952-08-01). The archeology of world religions. पृ॰ 205.
  3. Jain 2012, पृ॰ xiv.
  4. Duli C Jain (1997-06-01). Studies in Jainism. पृ॰ 26. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780962610523.
  5. Jain 2012, पृ॰ 33-34.
  6. Jain 2012, पृ॰ 55-60.

सन्दर्भ ग्रन्थ