"अंग्रेजी हटाओ आंदोलन": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो वर्तनी परियोजना के अनुसार आम प्रचलित अशुद्धि सुधार।
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2011}}
{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2011}}

स्वतंत्र [[भारत]] में साठ के दशक में 'अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ' के आंदोलन का सूत्रपात [[राममनोहर लोहिया]] ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से [[अंगरेजी]] के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे।
सातवें दशक के आरंभ में [[तमिलनाडु]] में ‘हिंदी हटाओ’ का आंदोलन चल पड़ा जिसकी प्रतिक्रिया में हिंदीभाषी उत्तर भारत में भी ‘अंग्रेजी हटाओ’ का आंदोलन चला। स्वतंत्र [[भारत]] में साठ के दशक में 'अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ' के आंदोलन का सूत्रपात [[राममनोहर लोहिया]] ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से [[अंगरेजी]] के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे।


लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को [[हैदराबाद]] में लोहिया ने कहा था,
लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को [[हैदराबाद]] में लोहिया ने कहा था,
: "अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।"
: ''अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।''


उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–
उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–
: ‘‘मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।’’
: ''मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।''


दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में [[मद्रास]] और [[कोयंबटूर]] में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें [[हैदराबाद]] में हुई।
दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में [[मद्रास]] और [[कोयंबटूर]] में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें [[हैदराबाद]] में हुई।
पंक्ति 12: पंक्ति 13:
[[तमिलनाडु]] की [[द्रविड़ मुनेत्र कड़गम]] पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा।
[[तमिलनाडु]] की [[द्रविड़ मुनेत्र कड़गम]] पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा।


यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें"' की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। इस भाषाई षडयंत्र को समझने वाले लोहिया अपने प्रयत्न में असफल रहे या असफल कर दिये गये किन्तु विश्व स्तर पर इस साम्राज्यवादी भाषाई मंशा को समझने वाले [[चीन]] के [[माउत्से तुंग]] ने अपने देश चीन में जीवन के हर आयाम में अपनी चीनी भाषा को स्थापित किया।
यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें'' की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। इस भाषाई षडयंत्र को समझने वाले लोहिया अपने प्रयत्न में असफल रहे या असफल कर दिये गये किन्तु विश्व स्तर पर इस साम्राज्यवादी भाषाई मंशा को समझने वाले [[चीन]] के [[माउत्से तुंग]] ने अपने देश चीन में जीवन के हर आयाम में अपनी चीनी भाषा को स्थापित किया।


== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==
पंक्ति 19: पंक्ति 20:


== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
*[http://www.tehelkahindi.com/stambh/anyastambh/huayuntha/1314.html अंग्रेजी हटाओ आंदोलन]
* [http://www.tehelkahindi.com/stambh/anyastambh/huayuntha/1314.html अंग्रेजी हटाओ आंदोलन]
* [http://www.bhaskar.com/news/UP-VAR-hindi-diwas-special-d-majumdar-first-start-campaign-for-save-hindi-5112293-PHO.html मजूमदार थे अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के अगुआ, इंदिरा ने सदन में दिया था बयान] (भास्कर)
* [http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarDetail.aspx?nid=944&tp=b&Secid=4&SubSecid=6 लोहिया का अंगरेजी विरोध] (गंगा सहाय मीणा)
* [http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarDetail.aspx?nid=944&tp=b&Secid=4&SubSecid=6 लोहिया का अंगरेजी विरोध] (गंगा सहाय मीणा)



15:30, 5 अक्टूबर 2015 का अवतरण

सातवें दशक के आरंभ में तमिलनाडु में ‘हिंदी हटाओ’ का आंदोलन चल पड़ा जिसकी प्रतिक्रिया में हिंदीभाषी उत्तर भारत में भी ‘अंग्रेजी हटाओ’ का आंदोलन चला। स्वतंत्र भारत में साठ के दशक में 'अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ' के आंदोलन का सूत्रपात राममनोहर लोहिया ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे।

लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था,

अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।

उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–

मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।

दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई।

तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा।

यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। इस भाषाई षडयंत्र को समझने वाले लोहिया अपने प्रयत्न में असफल रहे या असफल कर दिये गये किन्तु विश्व स्तर पर इस साम्राज्यवादी भाषाई मंशा को समझने वाले चीन के माउत्से तुंग ने अपने देश चीन में जीवन के हर आयाम में अपनी चीनी भाषा को स्थापित किया।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ