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'''संत्रास''', '''आतंक''', '''खलबली''' या '''पैनिक''' (Panic) की स्थिति में व्यक्ति अचानक डर से ग्रसित हो जाता है। डर की यह अनुभूति इतनी तीव्र होती है कि तर्कपूर्ण सोच कहीं पीछे छूट जाती है।
'''संत्रास''', '''आतंक''', '''खलबली''' या '''पैनिक''' (Panic) की स्थिति में व्यक्ति अचानक डर से ग्रसित हो जाता है। डर की यह अनुभूति इतनी तीव्र होती है कि तर्कपूर्ण सोच कहीं पीछे छूट जाती है।

==परिचय==
संत्रास यानी पैनिक का आक्रमण अचानक होता है। आपके मन में अकारण ही भय की एक लहर व्याप जाती है। लगभग दो प्रतिशत स्त्री-पुरूष इस विकार से पी ड़त होते हैं। यह बार-बार उभरता है और भय से उन्हें जकड़ लेता है। ऐसे में या तो इसे चुपचाप झेला जा सकता है अथवा इससे निज़ात पाने के लिए किसी उपचार का सहारा भी लिया जा सकता है। संत्रास से बचने के लिए आसान औषधियां उपलब्ध हैं, जिनसे व्यग्रता कम होती है और दो-तीन दिन में उस पर काबू पाया जा सकता है। साथ ही मनोचिकित्सा तथा शिथिलीकरण तकनीकों की मदद से रोग को जड़ से उखाड़ फैकना भी संभव है।

संत्रास कभी भी उभर सकता है। बिना किसी पूर्व कारण अथवा तालमेल के व्यक्ति का अंतःकरण अचानक भय से भर जाता है। व्यक्ति की चेतना पर अनजाने ही आतंक और गहरी आशंका का दौरा छा जाता है। जी मिचलाने लगता है, खुद पर बस नहीं रहता, कुछ लोगों को तो ऐसा भी लगता है जैसे वे पगला गए हों या फिर बस मौत सिर पर खड़ी है। प्रतिवर्ष दुनिया भर में लाखों लोग इस तरह के अनुभवों से गुजरते हैं। बहुतों को तो ऐसा लगता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया है और वे अस्पताल भागते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो चरम भय का अनुभव करने पर भी उसे नकारना चाहते हैं। लेकिन, दास्तान सबकी लगभग एक ही जैसी होती है। असलियत में वे सभी संत्रास के दौरों के शिकार हो जाते हैं जिसे आप चाहें तो संत्रास विकार भी कह सकते हैं।

संत्रास के दौरों को कभी ‘उत्तेजना’ या तनाव कह कर हाशिये पर डाल दिया जाता था, लेकिन आज इसे एक ऐसी स्थिति माना जाता है जो व्यक्ति को हर तरह से पंगु बना देती है। किंतु इसका इलाज भी संभव है। इसका दौरा अमूमन कुछ सैकंड से लेकर कई घंटों तक बना रहता है। हां, अधिकांश दौरे शुरूआती दस मिनटों में चरम अवस्था तक पहुंच जाते है और 20-30 मिनट में शांत भी हो जाते हैं। साथ ही मरीज को अजीब सी थकान से पस्त कर देते हैं। ये दौरे दुबारा कभी भी हो सकते हैं और यह अनिश्चिय व्यक्ति को लगातार व्यग्र बनाए रखता है। मन में भय घर कर जाता है और आदमी को समाज ही नहीं आता कि आखिर क्या किया जाए? कुछ लोग तो इतने आतंकित हो जाते हैं कि डर के मारे घर से बाहर कदम भी नहीं रखते।

यह विकार काफी आम है। जीवन भर में दो प्रतिशत लोग इसका अनुभव अवश्य करते हैं जिनमें महिलाओं की संख्या पुरूषों के मुकाबले दुगुनी होती है। ऐसे दौरे अमूमन किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर शुरू होकर जीवन भर कष्ट देते रहते हैं। कुछ लोग इन्हें बार-बार अनुभव करते हैं, लगभग रोज या हर सप्ताह और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें कभी- कभार ही इन्हें झेलना पड़ता है।

यह विकार परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। संभवतः इसका कोई [[अनुवांशिकता|आनुवंशिक]] कारण हो। यदि किसी व्यक्ति में इस विकार की पहचान हो जाती है तो बहुत संभव है, उसके रक्त संबंधियों में से लगभग 18 प्रतिशत भी इससे पीड़ित हों। समरूप जुड़वां भाई-बहनों पर किए गए अध्ययनों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। उनमें से किसी एक में ऐसा विकार रहने पर दूसरे को भी होने की आशंका बनी रहती है। दूसरी ओर जो जुड़वां समरूप नहीं होते उनमें यह खतरा कम देखा गया है।

==झांसे की चेतावनी==
संत्रास का दौरा मानवदेह की स्वाभाविक सजगता का प्रतीक है जिसे खतरा होने पर ‘लड़ो या मरो’ की आदिम प्रतिक्रिया कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, आपके पीछे अगर बिगड़ैल सांड पड़ जाए तो शरीर तुरंत बचाव के लिए सजग हो जाएगा। जान का खतरा भांप कर दिल तेजी से धड़कने लगेगा और सांस भी तेज हो जाएगी। संत्रास के दौरे में भी लगभग यही हालत हो जाती है। [[तनाव]] का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता पर कोई चीज शरीर का अलार्म चालू कर देती है। दौरे से उत्पन्न भय अक्सर इतना अधिक होता है कि जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है और आदमी अपने रोजमर्रा के कामकाज में भी अक्षम हो जाता है।

संत्रासग्रस्त लोग दूसरी परेशानियों में भी उलझ सकते हैं। वे [[शराब]] के आदी हो जाते हैं और नशीली दवाएं लेने लगते हैं। इनके अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि ऐसे लोगो में [[अवसाद]] (डिप्रेशन) और आत्महत्या की प्रवृत्ति भी अधिक दिखाई देती है।


[[श्रेणी:मनोविकार]]
[[श्रेणी:मनोविकार]]

10:04, 1 अक्टूबर 2015 का अवतरण

संत्रास, आतंक, खलबली या पैनिक (Panic) की स्थिति में व्यक्ति अचानक डर से ग्रसित हो जाता है। डर की यह अनुभूति इतनी तीव्र होती है कि तर्कपूर्ण सोच कहीं पीछे छूट जाती है।

परिचय

संत्रास यानी पैनिक का आक्रमण अचानक होता है। आपके मन में अकारण ही भय की एक लहर व्याप जाती है। लगभग दो प्रतिशत स्त्री-पुरूष इस विकार से पी ड़त होते हैं। यह बार-बार उभरता है और भय से उन्हें जकड़ लेता है। ऐसे में या तो इसे चुपचाप झेला जा सकता है अथवा इससे निज़ात पाने के लिए किसी उपचार का सहारा भी लिया जा सकता है। संत्रास से बचने के लिए आसान औषधियां उपलब्ध हैं, जिनसे व्यग्रता कम होती है और दो-तीन दिन में उस पर काबू पाया जा सकता है। साथ ही मनोचिकित्सा तथा शिथिलीकरण तकनीकों की मदद से रोग को जड़ से उखाड़ फैकना भी संभव है।

संत्रास कभी भी उभर सकता है। बिना किसी पूर्व कारण अथवा तालमेल के व्यक्ति का अंतःकरण अचानक भय से भर जाता है। व्यक्ति की चेतना पर अनजाने ही आतंक और गहरी आशंका का दौरा छा जाता है। जी मिचलाने लगता है, खुद पर बस नहीं रहता, कुछ लोगों को तो ऐसा भी लगता है जैसे वे पगला गए हों या फिर बस मौत सिर पर खड़ी है। प्रतिवर्ष दुनिया भर में लाखों लोग इस तरह के अनुभवों से गुजरते हैं। बहुतों को तो ऐसा लगता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया है और वे अस्पताल भागते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो चरम भय का अनुभव करने पर भी उसे नकारना चाहते हैं। लेकिन, दास्तान सबकी लगभग एक ही जैसी होती है। असलियत में वे सभी संत्रास के दौरों के शिकार हो जाते हैं जिसे आप चाहें तो संत्रास विकार भी कह सकते हैं।

संत्रास के दौरों को कभी ‘उत्तेजना’ या तनाव कह कर हाशिये पर डाल दिया जाता था, लेकिन आज इसे एक ऐसी स्थिति माना जाता है जो व्यक्ति को हर तरह से पंगु बना देती है। किंतु इसका इलाज भी संभव है। इसका दौरा अमूमन कुछ सैकंड से लेकर कई घंटों तक बना रहता है। हां, अधिकांश दौरे शुरूआती दस मिनटों में चरम अवस्था तक पहुंच जाते है और 20-30 मिनट में शांत भी हो जाते हैं। साथ ही मरीज को अजीब सी थकान से पस्त कर देते हैं। ये दौरे दुबारा कभी भी हो सकते हैं और यह अनिश्चिय व्यक्ति को लगातार व्यग्र बनाए रखता है। मन में भय घर कर जाता है और आदमी को समाज ही नहीं आता कि आखिर क्या किया जाए? कुछ लोग तो इतने आतंकित हो जाते हैं कि डर के मारे घर से बाहर कदम भी नहीं रखते।

यह विकार काफी आम है। जीवन भर में दो प्रतिशत लोग इसका अनुभव अवश्य करते हैं जिनमें महिलाओं की संख्या पुरूषों के मुकाबले दुगुनी होती है। ऐसे दौरे अमूमन किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर शुरू होकर जीवन भर कष्ट देते रहते हैं। कुछ लोग इन्हें बार-बार अनुभव करते हैं, लगभग रोज या हर सप्ताह और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें कभी- कभार ही इन्हें झेलना पड़ता है।

यह विकार परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। संभवतः इसका कोई आनुवंशिक कारण हो। यदि किसी व्यक्ति में इस विकार की पहचान हो जाती है तो बहुत संभव है, उसके रक्त संबंधियों में से लगभग 18 प्रतिशत भी इससे पीड़ित हों। समरूप जुड़वां भाई-बहनों पर किए गए अध्ययनों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। उनमें से किसी एक में ऐसा विकार रहने पर दूसरे को भी होने की आशंका बनी रहती है। दूसरी ओर जो जुड़वां समरूप नहीं होते उनमें यह खतरा कम देखा गया है।

झांसे की चेतावनी

संत्रास का दौरा मानवदेह की स्वाभाविक सजगता का प्रतीक है जिसे खतरा होने पर ‘लड़ो या मरो’ की आदिम प्रतिक्रिया कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, आपके पीछे अगर बिगड़ैल सांड पड़ जाए तो शरीर तुरंत बचाव के लिए सजग हो जाएगा। जान का खतरा भांप कर दिल तेजी से धड़कने लगेगा और सांस भी तेज हो जाएगी। संत्रास के दौरे में भी लगभग यही हालत हो जाती है। तनाव का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता पर कोई चीज शरीर का अलार्म चालू कर देती है। दौरे से उत्पन्न भय अक्सर इतना अधिक होता है कि जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है और आदमी अपने रोजमर्रा के कामकाज में भी अक्षम हो जाता है।

संत्रासग्रस्त लोग दूसरी परेशानियों में भी उलझ सकते हैं। वे शराब के आदी हो जाते हैं और नशीली दवाएं लेने लगते हैं। इनके अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि ऐसे लोगो में अवसाद (डिप्रेशन) और आत्महत्या की प्रवृत्ति भी अधिक दिखाई देती है।