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जीवनी -
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अडूर गोपालकृष्णन का पूरा नाम मौताथु गोपालकृष्णन उन्नीतान |उनका जन्म जुलाई ३ १९४१ में पालिकल नामक गांव में हुआ था|
अडूर गोपालकृष्णन का पूरा [[नाम]] मौताथु गोपालकृष्णन उन्नीतान |उनका जन्म जुलाई ३ १९४१ में पालिकल नामक गांव में हुआ था|
उनके पिता का नाम मादवन उन्नीथन और माता का नाम मौताथु गौरी कुनजंमा | वह ८ वे वर्ष में अपनी कलात्मक जीवन की शुरुवात की थी|
उनके पिता का नाम मादवन उन्नीथन और माता का नाम मौताथु गौरी कुनजंमा | वह ८ वे वर्ष में अपनी कलात्मक जीवन की शुरुवात की थी|
बादमें उन्होनें निर्देशन और लिखने में रुची दिखाई |उन्होनें नाटक लिखा और उसका निर्देशन भी किया |
बादमें उन्होनें निर्देशन और लिखने में रुची दिखाई |उन्होनें नाटक लिखा और उसका निर्देशन भी किया |

03:16, 10 सितंबर 2015 का अवतरण

अडूर गोपालकृष्णन
  

जीवनी -

   अडूर गोपालकृष्णन का पूरा नाम  मौताथु गोपालकृष्णन उन्नीतान |उनका जन्म जुलाई ३ १९४१ में पालिकल नामक गांव में हुआ था|

उनके पिता का नाम मादवन उन्नीथन और माता का नाम मौताथु गौरी कुनजंमा | वह ८ वे वर्ष में अपनी कलात्मक जीवन की शुरुवात की थी| बादमें उन्होनें निर्देशन और लिखने में रुची दिखाई |उन्होनें नाटक लिखा और उसका निर्देशन भी किया | गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान से १९६१, में अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन में एक डिग्री हासिल करने के बाद, वह तमिलनाडु में डिंडीगुल के पास एक सरकारी अधिकारी के रूप में काम किया। १९६२ में, वह पुणे फिल्म संस्थान से पटकथा और दिशा का अध्ययन करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की ओर से एक छात्रवृत्ति के साथ वहाँ से अपने पाठ्यक्रम पूरा किया। अपने सहपाठियों और दोस्तों के साथ, अदूर चित्रलेखन फिल्म सोसायटी और चलचित्र सहर्ना संघम स्थापित किया था |यह संगठन केरल की पहली फिल्म सोसायटी थी और यह सहकारी क्षेत्र में फिल्मों के निर्माण, वितरण और प्रदर्शन करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था | अडूर की पटकथा लिखी और ग्यारह फीचर फिल्मों और लगभग तीस शॉर्ट्स और वृत्तचित्रों का निर्देश दिया है। गैर-फीचर फिल्मों के बीच उल्लेखनीय केरल की कला प्रदर्शन पर उन लोगों के हैं। अडूर की पहली फिल्म (१९७२) स्वयंवरम जीतने राष्ट्रीय पुरस्कार मलयालम फिल्म इतिहास में एक यादगार फिल्म थी। फिल्म मास्को, मेलबोर्न, लंदन और पेरिस में आयोजित उन सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में व्यापक रूप से प्रदर्शित किया गया था। उनके दूसरे चित्र जैसे कि कोडियेटम ,एल्लिपातायंम , मूखामुकम ,अनंतरंम अपनी पहली फिल्म की प्रतिष्ठा पर खरा उतरा था और अच्छी तरह से विभिन्न फिल्म समारोहों में आलोचकों द्वारा स्वीकार भी किया गया और कई पुरस्कारों से उन्हें संमानित भी किया गया था| विधेयन एक बहस के केंद्र में था हालांकि, जबकि मुकामुकम की वजह से फिल्म सकारिया और अडूर की कहानी के लेखक के बीच राय में मतभेद के केरल में आलोचना की थी। अडूर की बाद की फिल्मों निय्लथू, अपने विषयों में से एक निर्दोष था कि पता करने के लिए आता है, जो एक जल्लाद के अनुभवों को बताते हैं और नालु पेन्नुगल पिल्लई द्वारा ४ छोटी कहानियों की एक फिल्म रूपांतर थी| उनके सभी फिलमों ने बहुतसी राष्ट्रिय और अंतरराष्ट्रिय पुरस्कार जीते हैं| उनकी फिल्म एल्लिपातायम १९८२ के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म क्रिटिक्स पुरस्कार के 'सबसे मौलिक और कल्पनाशील फिल्म' के लिए उसे प्रतिष्ठित ब्रिटिश फिल्म संस्थान पुरस्कार जीता था। यूनिसेफ फिल्म पुरस्कार (वेनिस), फिल्म पुरस्कार (एमियेन्ज़), इन्टरफिल्म पुरस्कार (मैनहेम) आदि जैसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के विजेता रहै हैं| भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के विचार में, देश में १९८४ में पद्मश्री के शीर्षक के साथ सम्मानित किया गया था। उन्हें २००६ में पध्मविभूषन से संमानित किया गया था| २००४ मे उन्होनें सबसे अमूल्य पुरस्कार दादा साहेब पालके से संमानित किया गया था | उन्हें १७ केरल स्टेट पुरस्कार मिले है | १६ राष्ट्रिय पुरस्कार प्राप्त किया हैं | अडूर अभी केरल के तिरुवनंतपुरम में रहते हैं| उनकी एक बेटी है जिसका नाम अश्वती दोर्जे हैं | वह मुंबई कि डेप्युटि कंमीशनर के पथ पर जुन २०१० से | नौ फीचर फिल्मों के अलावा , उनके क्रेडिट में ३० से अधिक लघु फिल्मों और वृत्तचित्रों है। हेलसिंकी फिल्म समारोह में उनकी फिल्मों की एक पूर्वव्यापी पास करनेवाली पहली फिल्म समारोह थी । उन्होंने बडी सारी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जुरी भी रह चुके हैं | उनके फिल्मो के अलावा केरल में एक नया सिनेमा संस्कृति शुरू करने की दिशा में अडूर का प्रमुख योगदान रहा हैं| केरल, " चित्रलेखा फिल्म सोसायटी ' में पहली फिल्म सोसायटी के संविधान था |उन्होंने यह भी फिल्म निर्माण के लिए " चित्रलेखा , " केरल की पहली फिल्म को-ऑपरेटिव सोसायटी के संविधान में सक्रिय भाग लिया था |भरत गोपी की एक नई शैली अपने उपक्रमों में नायक के रूप में ४ बार अभिनय किया हैं | यह बनाने के लिए इतना मजबूत रहा हैं | अडूर के हिसाब से उनके फिल्म के अभिनेता जब अभिनय करते है तो वह उस के लिए करे क्योकिं वह उन्हें बतायेगा कि क्या सही या गलत हैं | वह मलयालम फिल्म मे उनका योगदान महत्वपूर्ण रही हैं | मलयालम इन्दसत्री के लिए बहुतसी योगदान किया हैं| उनके कारण मलयालम फिल्मे बहुत प्रसिद्ध हुए हैं | १९७२ की फिल्म स्वय्ंवरंम ने केरल के सिनेमा मे बिडा ऊठाया था और नई लहर पैदा कर लिया था |वह भारत के सबसे प्रशंसीत संकालीन निर्देशक और निर्माता हैं |उनके परिवारवाले कथकली जैसे न्रिथ्य से प्रभावित और आरकर्षित थे |एक इनंटरव्यु में जब उनके विचारो के बारे मे पुछा तो उन्होंने कहा कि उनके मन मे विचारो जब वह पढते है ,या देखते है,तब वह चिजें कभी न कभी मन मे आ जाते हैं |