"आपेक्षिकता सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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* [[द्रव्य]] और [[ऊर्जा]] तुल्य हैं; एक को दूसरे के रूप में बदला जा सकता है। इस परिवर्तन में '''E = mc2''' का सम्बन्ध लागू होता है।
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शास्त्रीय यांत्रिकी में प्रयुक्त [[गैलिलियो का रूपान्तरण]] (Galilean transformations) प्रयुक्त होता है जबकि विशिष्ट सापेक्षता में '''[[लारेंज रूपानतरण]]''' (Lorentz transformations)।
शास्त्रीय यांत्रिकी में [[गैलिलियो का रूपान्तर]] (Galilean transformations) प्रयुक्त होता है जबकि विशिष्ट सापेक्षता में '''[[लारेंज रूपान्तर]]''' (Lorentz transformations)।


== सामान्य आपेक्षिकता ==
== सामान्य आपेक्षिकता ==

15:48, 8 जुलाई 2015 का अवतरण

सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण

आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)।[1] फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (जर्मन: Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (जर्मन: Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था।[2][3]

विशिष्ट आपेक्षिकता

चित्र:Albert Einstein 1979 USSR Stamp.jpg

इसका प्रतिपादन सन १९०५ में आइंस्टीन ने अपने एक शोधपत्र ऑन द एलेक्ट्रोडाइनेमिक्स ऑफ् मूविंग बॉडीज में की थी। विशिष्ट सापेक्षता दो परिकल्पनाओं (पॉस्चुलेट्स) पर आधारित है जो शास्त्रीय यांत्रिकी (क्लासिकल मेकैनिक्स) के संकल्पनाओं के विरुद्ध (उलटे) हैं:

(१) भौतिकी के नियम एक दूसरे के सापेक्ष एकसमान (यूनिफार्म) गति कर रहे सभी निरिक्षकों के लिए समान होते हैं। (गैलिलियो का सापेक्षिकता का सिद्धान्त)
(२) निर्वात में प्रकाश का वेग सभी निरिक्षकों के लिए समान होता है चाहे उन सबकी सापेक्ष गति कुछ भी हो, चाहे प्रकाश के स्रोत की गति कुछ भी हो।

विशिष्ट आपेक्षिकता के सिद्धान्त से निकलने वाले परिणाम आश्चर्यजनक हैं; इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • किसी स्थिर घडी की अपेक्षा एक गतिशील घडी धीमी चलती है। (टाइम डिलेशन्) (Time dilation)
  • किसी निरीक्षक के सापेक्ष किसी दिशा में गतिशील वस्तुओं की लम्बाई उस दिशा में घट जाती है। (Length contraction)
  • दो घटनायें जिन्हें कोई निरीक्षक 'क' एक साथ (simultaneous) घटित होता हुआ देखता है, किसी दूसरे निरीक्षक 'ख' को वे एक साथ घटित होती हुई नहीं दिखेंगी यदि दूसरा निरीक्षक पहले के सापेक्ष गतिशील है। (Relativity of simultaneity)
  • द्रव्य और ऊर्जा तुल्य हैं; एक को दूसरे के रूप में बदला जा सकता है। इस परिवर्तन में E = mc2 का सम्बन्ध लागू होता है।

शास्त्रीय यांत्रिकी में गैलिलियो का रूपान्तर (Galilean transformations) प्रयुक्त होता है जबकि विशिष्ट सापेक्षता में लारेंज रूपान्तर (Lorentz transformations)।

सामान्य आपेक्षिकता

मुख्य लेख: सामान्य आपेक्षिकता

सन १९०७ से १९११ के बीच आइन्स्टीन द्वारा विकसित आपेक्षिकता सिद्धान्त ही 'सामान्य आपेक्षिकता' के नाम से जाना जाता है।यह सिद्धान्त निम्नलिखित दो परिकल्पनाओं पर आधारित है-

  • (१) आपेक्षिकता नियम, और
  • (२)गुरुत्वाकर्षणीय तथा जड़त्व (इनर्शिया) पर आश्रित द्रव्यमानों की समानता।

लम्बाई, दिक् (स्पेस), काल, द्रव्यमान, ऊर्जा इत्यादि के विषय में भोतिकी में जो धारणाएँ थीं उनमें विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत ने सुधार किया। इनके अतिरिक्त भौतिकी के क्षेत्र में अन्य विषय हैं जो उतने ही महत्वपूर्ण हैं, किंतु उनका समावेश विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत में नहीं है। बल तथा विद्युतचुम्बकीय क्षेत्रों में विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत का जैसा उपयोग हो सकता है वैसा गुरुत्वीय क्षेत्र में नहीं हो सकता। गुरुत्वाकर्षण भौतिकी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग है, अत: स्पष्ट है कि विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।

द्रव्यमान का संबंध भौतिकी में दो प्रकार से आता है। किसी पिंड पर जब बल कार्य करता है तब पिंड का स्थान बदलता है और उसका वेग बदलता है। जब तक बल कार्य करता है तब तक पिंड को त्वरण मिलता है। यांत्रिकी के नियमों के अनुसार बल (F), पिंड का द्रव्यमान (m) और त्वरण (a) में निम्नलिखित संबंध है :

F = ma -- (१)

इस समीकरण में जो द्रव्यमान m है उसको जड़त्व या आश्रित (अथवा अवस्थितित्वीय) द्रव्यमान कहते हैं। द्रव्यमान का दूसरा संबंध न्यूटन के गुरुत्त्वीय क्षेत्र में आता है। न्यूटन द्वारा दिये गये गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार यदि दो द्रव्यमान, m1 तथा m2, दूरी r पर हों, तो उनके बीच में निम्नलिखित गुरुत्वाकर्षणीय बल F काम करेगा :

F = G m1 m2 / r2 -- (२)

इस समीकरण में G गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है। यदि हम m1 को पृथ्वी का द्रव्यमान समझें और m2 को धरती के पास स्थित किसी अन्य पिंड का द्रव्यमान समझें तो समीकरण (२) द्रव्यमान m2 का भार व्यक्त करेगा। न्यूटन की यांत्रिकी में गतिविज्ञान तथा गुरुत्वाकर्षण स्वतंत्र और भिन्न हैं, किंतु दोनों में ही द्रव्यमान का संबंध आता है। द्रव्यमान के इन दो स्वतंत्र तथा भिन्न विभागों में प्रयुक्त कल्पनाओं का एकीकरण आइंस्टाइन ने अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में किया। यह ज्ञात था कि जड़त्व पर आश्रित द्रव्यमान (समीकरण १) और गुरुत्वीय द्रव्यमान (समीकरण २) समान होते हैं। आइंस्टाइन ने द्रव्यमान की इस समानता का उपयोग करके गतिविज्ञान और गुरुत्वाकर्षण को एकरूप किया और सन् १९१५ ई. में व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत प्रस्तुत किया।

सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत को गणित में सूत्रित करने की जो पद्धति है वह अन्य पद्धतियों से भिन्न है। इसमें विशेष ज्यामिति का उपयोग किया जाता है, जो यूक्लिड की त्रि-आयामी ज्यामिति से भिन्न है। मिंकोव्स्की ने यह बताया कि यदि विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत में दिक् के तीन आयाम तथा समय का चतुर्थ आयाम, इन चारों आयामों को लेकर एक 'चतुरायाम सतति' (फ़ोर डाइमेंशनल कॉन्टिनुअम), की कल्पना की जाए तो आपेक्षिकता सिद्धांत अधिक सरल हो जाता है। समक्षणिकता, निरपेक्ष नहीं है - यह प्रमाणित किया जा चुका है। इससे न्यूटन प्रणीत दिक् तथा समय की निरपेक्षता और स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। अत: भौतिक घटना व्यक्त करने के लिए दिक् तथा समय की चतुरायाम सतति अधिक स्वाभाविक है। रीमान ने 'चतुरायाम दिक्' की कल्पना करके उसकी ज्यामिति का जो विकास किया था उसका आइंस्टाइन ने अधिक उपयोग किया। दिक् तथा समय की इस चतुरायाम सतति में भौतिकी के सिद्धांत ज्यामितीय रूप से सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में रखे गए। इस चतुरायाम सतति का (अथवा 'विश्व' का) युक्लिड के तीन आयाम के दिक् से साम्य है। तीन आयाम की सतति में, (x, y, z) इन तीन निर्देशांकों से (अथवा आयामों से) जिस प्रकार बिंदु अथवा एक स्थान निश्चित होता है, वैसे ही दो बिंदु (x1, y1, z1) और (x2, y2, z2) के बीच की लंबाई भी निश्चित होती है। चतुरायाम सतति में दिक् के (x, y, z) इन तीन आयामों के साथ जब समय भी जोड़ा जाता है तब समय का आयाम (विमा) रूप t = x0.5c-1 आता है, जहाँ t = समय और c = प्रकाश का वेग है। एक प्रेक्षक के लिए एक विश्वघटना के निर्देंशांक (x, y, z, t) हों तो उस प्रेक्षक के सापेक्ष गतिमान् दूसरे प्रेक्षक के लिए उसी घटना के निर्देशंक (x', y', z', t') होंगे। लोरेंज़ के रूपांतरण के नियम यदि यथार्थ हों तो सिद्ध किया जा सकता है कि

--- (३)

समीकरण (३) का विकास करके किसी भी प्रकार की गति के लिए इसी प्रकार की किंतु अत्यधिक संमिश्र पदसंहतियाँ मिलती हैं। इसके लिए निश्चलों (इन्वैरिएँट्स) और प्रदिशों (टेन्सर्स) के सिद्धांतों की आवश्यकता होती है। मौलिक कल्पनाओं का इस रीति से विस्तार करने पर व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण स्वभावत: आता है। उसके लिए विशिष्ट परिकल्पनाओं की आवश्यकता नहीं हाती है।

सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के फलों का प्रमाण

अनेक घटनाओं के फल, आइंस्टाइन प्रणीत व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार तथा न्यूटन प्रणीत प्रतिष्ठित याँत्रिकी के अनुसार, समान ही होते हैं। किंतु खगोलिकी में जब सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत का उपयोग किया गया तब तीन घटनाओं के फल प्रतिष्ठित याँत्रिकी (क्लासिकल मेकेनिक्स) के अनुसार निकले फलों से कुछ भिन्न रहे। इन फलों से सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत की कसौटी का काम ले सकते हैं। ये तीन फल इस प्रकार हैं:

  • (१) अनेक वर्षों से यह ज्ञात था कि बुध ग्रह की प्रत्यक्ष कक्षा न्यूटन के सिद्धांतों के अनुसार नहीं रहती। गणना के पश्चात् यह प्रमाणित हुआ कि सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के क्षेत्र समीकरणों के अनुसार बुध ग्रह की जो कक्षा आती है वह प्रेक्षित कक्षा (observed orbit) के अनुरूप है। उसी प्रकार पृथ्वी की प्रत्यक्ष कक्षा भी न्यूटन के सिद्धांतों के अनुसार नहीं हैं, किंतु पृथ्वी की कक्षा में त्रुटि बुध ग्रह की कक्षा की त्रुटि से बहुत कम है। तो भी कहा जा सकता है कि पृथ्वी की कक्षा की गणना में सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त सफल रहा। अत: इस विशाल मापक्रमों की घटनाओं में जहाँ प्रतिष्ठित याँत्रिकी असफल थी वहाँ सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत सफल रहा।
  • (२) सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत की दूसरी कसौटी प्रकाश की वक्रीयता है। प्रकाश की किरणें जब तीव्र गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में से होकर जाती हैं, तब सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार उनका पथ अल्प मात्रा में वक्र (टेढ़ा) हो जाता है। प्रकाश, ऊर्जा का ही एक स्वरूप है। अत: ऊर्जा एवं द्रव्यमान के संबंध के अनुसर प्रकाश में भी द्रव्यमान होता है और द्रव्यमान को आकर्षित करना गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का गुण होने के कारण प्रकाशकिरण का पथ ऐसी स्थिति में थोड़ी मात्रा में टेढ़ा हो जाता है। इस फल की परीक्षा केवल सर्वसूर्यग्रहण के समय हो सकती है। किसी तारे का प्रकाश सूर्य के निकट से होकर निकले तो प्रकाश के मार्ग को अल्प मात्रा में वक्र हो जाना चाहिए और इसलिए तारे की आभासी स्थिति बदल जानी चाहिए। सामान्य आपेक्षिकता के इस फल को नापने का प्रयत्न १९१९, १९२२, १९२७, १९४७ इत्यादि वर्षों में सर्व सूर्यग्रहण के समय किया गया। पता चला कि प्रकाशकिरण के पथ की मापित वक्रता और व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार निकली वक्रता में इतना सूक्ष्म अंतर है कि हम यह कह सकते हैं कि ये प्रेक्षण सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत का समर्थन करते हैं।
  • (३) सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत की तीसरी परीक्षा गुरुत्वाकर्षणीय क्षेत्र के कारण वर्ण-क्रम-रेखाओं (स्पेक्ट्रॉस्कोपिक लाइंस) का स्थानांतरण है। इस वाद के अनुसार जो तारे तीव्र गुरुत्वीय क्षेत्र में हैं उनके किसी विशेष तत्व के परमाणुओं से निकले प्रकाश का तरंगदैर्घ्य पृथ्वी के उसी तत्व के परमाणुओं के प्रकाश-तरंग-दैर्घ्य से अधिक होगा। अत: तारे के किसी एक तत्व के प्रकाश के वर्णक्रम और प्रयोगशाला में प्राप्त उसी तत्व के वर्णक्रम की तुलना से तरंगदैर्घ्य के परिवर्तन का मापन हो सकता है। अनेक निरीक्षणों के फल सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुरूप हैं, यद्यपि कुछ प्रेक्षकों (फ्ऱाएँडलिख़ आदि) के अनुसार सब फल सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुरूप नहीं हैं।

इन्हें भी देखें

संदर्भ

  1. आइंस्टीन, ए (१९१६ (अनुवार १९२०)), रिलेटिविटी: द स्पेशल एण्ड जनरल थ्योरी, न्यू यॉर्क: एच होल्ट एण्ड कंपनी |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. प्लैंक, मैक्स (१९०६), "द मेज़र्मेंट ऑफ कॉफमैन ऑन द डिफ़्लेक्टिबिलिटी ऑफ बीटा रेज़ इन देयर इम्पॉर्टैन्स फ़ॉर द डायनेमिक्स ऑफ द इलेक्ट्रॉन्स", Physikalische Zeitschrift, : ७५३-७६१
  3. मिलर, अर्थर, आई (१९८१), अल्बर्ट आइंश्टीन्स स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी। इमर्जेन्स (१९०५) एण्ड अर्ली इन्टर्प्रिटेशन (१९०५-१९११), रीडिंग: एडीसन-वेलेस्ली, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-201-04679-2सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)

बाहरी कड़ियाँ