"विदूषक": अवतरणों में अंतर
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विश्व रंग मंच में विदूषक की परिकल्पना भारतीय नाटकों में एकमेव है। [[नाट्यशास्त्र]] के रचयिता [[भरत मुनि]] ने विदूषक के चरित्र एवं रूपरंग पर काफी विचार किया है। [[अश्वघोष]] ने अपने संस्कृत नाटकों में विदूषक को स्थान दिया जो [[ |
विश्व रंग मंच में विदूषक की परिकल्पना भारतीय नाटकों में एकमेव है। [[नाट्यशास्त्र]] के रचयिता [[भरत मुनि]] ने विदूषक के चरित्र एवं रूपरंग पर काफी विचार किया है। [[अश्वघोष]] ने अपने संस्कृत नाटकों में विदूषक को स्थान दिया जो [[प्राकृत]] बोलते हैं। [[भास]] ने तीन अमर विदूषक चरित्रों का सृजन किया - '''वसन्तक''', '''सन्तुष्ट''' और '''मैत्रेय'''। |
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13:22, 20 अप्रैल 2015 का अवतरण
विदूषक, भारतीय नाटकों में एक हँसाने वाला पात्र होता है। मंच पर उसके आने मात्र से ही माहौल हास्यास्पद बन जाता है। वह स्वयं अपना एवं अपने परिवेश का मजाक उडाता है। उसके कथन एक तरफ हास्य को जन्म देते हैं और दूसरी तरफ उनमें कटु सत्य का पुट होता है।
संस्कृत नाटकों में विदूषक
विश्व रंग मंच में विदूषक की परिकल्पना भारतीय नाटकों में एकमेव है। नाट्यशास्त्र के रचयिता भरत मुनि ने विदूषक के चरित्र एवं रूपरंग पर काफी विचार किया है। अश्वघोष ने अपने संस्कृत नाटकों में विदूषक को स्थान दिया जो प्राकृत बोलते हैं। भास ने तीन अमर विदूषक चरित्रों का सृजन किया - वसन्तक, सन्तुष्ट और मैत्रेय।
बाहरी कड़ियाँ
- विदूषक की तलाश (ह्रषीकेश सुलभ)
- How we lost the Haasa and Parihaasa traditions