"वेदाङ्ग ज्योतिष": अवतरणों में अंतर
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
: सिद्धान्तसंहिताहोरारुपं स्कन्धत्रयात्मकम् । |
: सिद्धान्तसंहिताहोरारुपं स्कन्धत्रयात्मकम् । |
||
: वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम् ॥ |
: वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम् ॥ |
||
वेदाङ्गज्योतिष में [[गणित]] के महत्व का प्रतिपादन इन शब्दों में किया गया है- |
|||
: यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। |
|||
: तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥ |
|||
: ''( जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।)'' |
|||
==इन्हें भी देखें== |
==इन्हें भी देखें== |
04:46, 23 फ़रवरी 2015 का अवतरण
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
लगध का वेदाङ्ग ज्योतिष एक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ है। इसका काल १३५० ई पू माना जाता है।
वेदाङ्गज्योतिष कालविज्ञापक शास्र है। माना जाता है कि मुहूर्त शोधकर किये गये यज्ञादि कार्य फल देते हैं अन्यथा नहीं। कहा गया है कि-
- वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः।
- तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्यौतिषं वेद स वेद यज्ञान् ॥ (आर्चज्यौतिषम् ३६)
चारो वेदों के पृथक् पृथक् ज्योतिषशास्त्र थे। उनमें से सामवेद का ज्यौतिषशास्त्र अप्राप्य है, शेष तीन वेदों के ज्यौतिषात्र प्राप्त होते हैं।
- (१) ऋग्वेद का ज्यौतिष शास्त्र - आर्चज्यौतिषम् : इसमें ३६ पद्य हैं।
- (२) यजुर्वेद का ज्यौतिष शास्त्र – याजुषज्यौतिषम् : इसमें ३९ पद्य हैं।
- (३) अथर्ववेद ज्यौतिष शास्त्र - आथर्वणज्यौतिषम् : इसमें १६२ पद्य हैं।
इन तीनों ज्योतिषों के प्रणेता लगध नामक आचार्य हैं। यजुर्वेद के ज्योतिष के दो प्रामाणिक भाष्य भी प्राप्त होते हैं: एक सोमाकरविरचित प्राचीन भाष्य, द्वितीय सुधाकर द्विवेदी द्वारा रचित नवीन भाष्य। ज्योतिषशास्त्र के तीन स्कन्ध हैं - सिद्धान्त, संहिता और होरा। इसीलिये इसे ज्योतिषशास्त्र को 'त्रिस्कन्ध' कहा जाता है। कहा गया है –
- सिद्धान्तसंहिताहोरारुपं स्कन्धत्रयात्मकम् ।
- वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम् ॥
वेदाङ्गज्योतिष में गणित के महत्व का प्रतिपादन इन शब्दों में किया गया है-
- यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
- तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥
- ( जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।)
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- ऋग्वेदवेदाङ्गज्योतिषम् (संस्कृत विकिस्रोत)