"समराङ्गणसूत्रधार": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
पंक्ति 2: पंक्ति 2:


==परिचय==
==परिचय==
===विमानविद्या===
इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, [[मूर्तिकला]] तथा [[मुद्रा|मुद्राओं]] सहित [[यंत्र|यंत्रों]] के बारे में (अध्याय ३१, जिसका नाम 'यन्त्रविधान' है) वर्णन है। यंत्रविधान के निम्नलिखित श्लोक
इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, [[मूर्तिकला]] तथा [[मुद्रा।मुद्राओं]] सहित [[यंत्र।यंत्रों]] के बारे में (अध्याय ३१, जिसका नाम 'यन्त्रविधान' है) वर्णन है। यंत्रविधान के निम्नलिखित श्लोक
'विमान' के सम्बन्ध में हैं-
'विमान' के सम्बन्ध में हैं-
: लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य
: लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य
पंक्ति 15: पंक्ति 16:
: अय:कपालाहितमन्दवह्निप्रतप्ततत्कुम्भभुवा गुणेन
: अय:कपालाहितमन्दवह्निप्रतप्ततत्कुम्भभुवा गुणेन
: व्योम्नो झगित्याभरणत्वमेति सन्तप्तगर्जद्ररसरागशक्त्या॥ ९८
: व्योम्नो झगित्याभरणत्वमेति सन्तप्तगर्जद्ररसरागशक्त्या॥ ९८

===यांत्रिकी===
समरांगणसूत्रधार के ३१वें अध्याय में यन्त्रों की क्रियाओं का वर्णन निम्न प्रकार है-
: कस्यचित्का किया साध्या,कालः साध्यस्तु कस्यचित् ।
: शब्दः कस्यापि चोच्छायोरूपस्पर्शो च कस्यचिद् ॥
: क्रियास्तु कार्यस्य वशादनंत्ताः परिकीर्तिताः।
: तिर्यगूर्ध्वमद्यः पृष्ठपुरतः पार्श्वयोरपि॥
: गमने सरणं पातः इति भेदाः कियोद्य्भवाः

उपरोक्त पंक्तियो मे विविध यंत्रों की क्रियाओ का वर्णन इस प्रकार है-
*(१) कुछ यंत्र एक ही क्रिया बार-बार करते रहते है,
*(२) कुछ यंत्र समय-समय पर अथवा विशिष्ट कालांतर मे अपनी निश्चित कृति करते रहते हैं,
*(३) कुछ यंत्र विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न करने के लिए या ध्वनि संचलन या परिवर्तन के लिए होते हैं।
*(४) कुछ यंत्र विशिष्ट क्रियाओं के लिए या वस्तुओं का आकार बड़ा या छोटा करना, आकार बदलने या धार चढाने के लिए होते हैं,

इस ग्रंथ में अच्छे, कार्यकुशल यंत्रो के गुण निम्न प्रकार वर्णित हैं-
: यथावद्वीजसंयोगः सौश्लिष्यं श्लक्ष्णतापि च।
: अलक्षता निर्वहणं,लघुत्वं शब्दहीनता॥
: शब्दे साध्ये तदाधिक्यं,अशैथिल्यं अगाढता।
: बहनीषु समस्तासु सौस्लिष्ट्यं चास्सलद्गतिः॥
: यथामिष्टार्यकारित्वं लयतालानुयमिता।
: इष्टकालेर्थदर्शित्वं,पुनः सम्यक्त्व संवृत्तिः॥

अर्थत्

(१) समयानुसार स्वसंचालन के लिए यंत्र से शक्ति-निर्माण होता रहना चाहिए।
(२) यंत्रों की विविध क्रियाओं मे संतुलन एवं सहकार हो।
(३) सरलता से , मृदुलता से चले।
(४) यंत्रो को बार-बार निगरानी की आवश्यकता न पड़े।
(५) बिना रूकावट के चलता रहे।
(६) जहाँ तक हो सके यांत्रिक क्रियाओ मे जोर दबाब नहीं पडना चाहिए।
(७) आवाज न हो तो अच्छा, हो तो धीमी।
(८) यंत्र से सावधानता की ध्यानाकर्षण की ध्वनि निकलनी चाहिए।
(९) यंत्र ढीला, लडखडाता या कांपता न हो।
(१०) अचानक बंद या रूकना नहीं चाहिए
(११) उसके पट्टे या पुर्जो का यंत्र के साथ गहरा संबंध हो।
(१२) यंत्र की कार्यप्रणाली मे बांधा नही आनी चाहिए।
(१३) उससे उद्देश्य की पूर्ति होनी चाहिए।
(१४) वस्तु उत्पादन मे आवश्यक परिवर्तन आदि यांत्रिक क्रिया अपने आप होती रहनी चाहिए।
(१५) यंत्र क्रिया सुनिश्चित क्रम में हो।
(१६) एक क्रिया का दौर पूर्ण होते ही यंत्र मूल स्थिति पर यानी आरम्भ की दशा पर लौट जाना चाहिए।
(१७) क्रियाशीलता मे यंत्र का आकार ज्यों का त्यों रहना चाहिए।
(१८) यंत्र शक्तिमान हो।
(१९) उसकी कार्यविधि सरल और लचीली हो
(२०) यंत्र दीर्घायु होना चाहिए।


==संरचना==
==संरचना==

10:19, 10 जनवरी 2015 का अवतरण

समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।

परिचय

विमानविद्या

इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, मूर्तिकला तथा मुद्रा।मुद्राओं सहित यंत्र।यंत्रों के बारे में (अध्याय ३१, जिसका नाम 'यन्त्रविधान' है) वर्णन है। यंत्रविधान के निम्नलिखित श्लोक 'विमान' के सम्बन्ध में हैं-

लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य
उदरे रसयन्त्रमादधीत ज्वलनाधारमधोऽस्य चातिपूर्णम्॥ ९५
तत्रारूढ: पूरुषस्तस्य पक्षद्वन्द्वोच्चालप्रोज्झितेनानिलेन
सुप्तस्वान्त: पारदस्यास्य शक्त्या चित्रं कुर्वन्नम्बरे याति दूरम्॥ ९६
इत्थमेव सुरमन्दिरतुल्यं सञ्चलत्यलघु दारुविमानम्
आदधीत विधिना चतुरोऽन्तस्तस्य पारदभृतान् दृढकुम्भान्॥ ९७
अय:कपालाहितमन्दवह्निप्रतप्ततत्कुम्भभुवा गुणेन
व्योम्नो झगित्याभरणत्वमेति सन्तप्तगर्जद्ररसरागशक्त्या॥ ९८

यांत्रिकी

समरांगणसूत्रधार के ३१वें अध्याय में यन्त्रों की क्रियाओं का वर्णन निम्न प्रकार है-

कस्यचित्का किया साध्या,कालः साध्यस्तु कस्यचित् ।
शब्दः कस्यापि चोच्छायोरूपस्पर्शो च कस्यचिद् ॥
क्रियास्तु कार्यस्य वशादनंत्ताः परिकीर्तिताः।
तिर्यगूर्ध्वमद्यः पृष्ठपुरतः पार्श्वयोरपि॥
गमने सरणं पातः इति भेदाः कियोद्य्भवाः

उपरोक्त पंक्तियो मे विविध यंत्रों की क्रियाओ का वर्णन इस प्रकार है-

  • (१) कुछ यंत्र एक ही क्रिया बार-बार करते रहते है,
  • (२) कुछ यंत्र समय-समय पर अथवा विशिष्ट कालांतर मे अपनी निश्चित कृति करते रहते हैं,
  • (३) कुछ यंत्र विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न करने के लिए या ध्वनि संचलन या परिवर्तन के लिए होते हैं।
  • (४) कुछ यंत्र विशिष्ट क्रियाओं के लिए या वस्तुओं का आकार बड़ा या छोटा करना, आकार बदलने या धार चढाने के लिए होते हैं,

इस ग्रंथ में अच्छे, कार्यकुशल यंत्रो के गुण निम्न प्रकार वर्णित हैं-

यथावद्वीजसंयोगः सौश्लिष्यं श्लक्ष्णतापि च।
अलक्षता निर्वहणं,लघुत्वं शब्दहीनता॥
शब्दे साध्ये तदाधिक्यं,अशैथिल्यं अगाढता।
बहनीषु समस्तासु सौस्लिष्ट्यं चास्सलद्गतिः॥
यथामिष्टार्यकारित्वं लयतालानुयमिता।
इष्टकालेर्थदर्शित्वं,पुनः सम्यक्त्व संवृत्तिः॥

अर्थत्

(१) समयानुसार स्वसंचालन के लिए यंत्र से शक्ति-निर्माण होता रहना चाहिए। (२) यंत्रों की विविध क्रियाओं मे संतुलन एवं सहकार हो। (३) सरलता से , मृदुलता से चले। (४) यंत्रो को बार-बार निगरानी की आवश्यकता न पड़े। (५) बिना रूकावट के चलता रहे। (६) जहाँ तक हो सके यांत्रिक क्रियाओ मे जोर दबाब नहीं पडना चाहिए। (७) आवाज न हो तो अच्छा, हो तो धीमी। (८) यंत्र से सावधानता की ध्यानाकर्षण की ध्वनि निकलनी चाहिए। (९) यंत्र ढीला, लडखडाता या कांपता न हो। (१०) अचानक बंद या रूकना नहीं चाहिए (११) उसके पट्टे या पुर्जो का यंत्र के साथ गहरा संबंध हो। (१२) यंत्र की कार्यप्रणाली मे बांधा नही आनी चाहिए। (१३) उससे उद्देश्य की पूर्ति होनी चाहिए। (१४) वस्तु उत्पादन मे आवश्यक परिवर्तन आदि यांत्रिक क्रिया अपने आप होती रहनी चाहिए। (१५) यंत्र क्रिया सुनिश्चित क्रम में हो। (१६) एक क्रिया का दौर पूर्ण होते ही यंत्र मूल स्थिति पर यानी आरम्भ की दशा पर लौट जाना चाहिए। (१७) क्रियाशीलता मे यंत्र का आकार ज्यों का त्यों रहना चाहिए। (१८) यंत्र शक्तिमान हो। (१९) उसकी कार्यविधि सरल और लचीली हो (२०) यंत्र दीर्घायु होना चाहिए।

संरचना

अध्याय नाम
महासमागमन
प्रश्न
भुवनकोश
सहदेवाधिकार
भूमिपरीक्षा
हस्तलक्षणम्
१०
११ वास्तुत्रयविभाग
१२
१३ मर्मवेध
१४
१५ राजनिवेशः
१६ वनप्रवेश
१७
१८
१९
२०
८३

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ