"मनोविकार": अवतरणों में अंतर

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=== विघटनशील विकार ===
=== विघटनशील विकार ===
किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। [[नैदानिक मनोविज्ञान]] में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है।
किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। [[नैदानिक मनोविज्ञान]] में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार (Dissociative disorders) कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है।


'''विघटनशील स्मृतिलोप''', विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग '''विघटनशील पहचान (फ्यूग) विकार''' है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग '''व्यक्तित्वलोप विकार''' है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं।
'''विघटनशील स्मृतिलोप''' ( dissociative amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग '''विघटनशील पहचान विकार''' (dissociative identity disorder) है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग '''व्यक्तित्वलोप विकार''' है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं।


=== मनोविदलन और मनस्तापी विकार ===
=== मनोविदलन और मनस्तापी विकार ===

05:29, 8 अक्टूबर 2014 का अवतरण

मनोविकार
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
एम.ईएसएच D001523

मनोविकार (Mental disorder) किसी व्यक्ति के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्‍य अथवा दुरनुकूली (मैल एडेप्टिव) निर्धारित किया जाता है और जिसमें महत्‍वपूर्ण व्‍यथा अथवा असमर्थता अन्‍तर्ग्रस्‍त होती है। इन्हें मनोरोग, मानसिक रोग, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार भी कहते हैं।

मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है।[1]

परिचय

मनोविज्ञान में हमारे लिए असामान्य और अनुचित व्यवहारों को मनोविकार कहा जाता है। ये धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। मनोविकारों के बहुत से कारक हैं, जिनमें आनुवांशिकता, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, तनावपूर्ण परिस्थितियां और इनका सामना करने की असामर्थ्य सम्मिलित हैं।

वे स्थितियां, जिन्हें हल कर पाना एवं उनका सामना करना किसी व्यक्ति को मुश्किल लगता है, उन्हें 'तनाव के कारक' कहते हैं। तनाव किसी व्यक्ति पर ऐसी आवश्यकताओं व मांगों को थोप देता है जिसे पूरा करना वह अति दूभर और मुश्किल समझता है। इन मांगों को पूरा करने में लगातार असफलता मिलने पर व्यक्ति में मानसिक तनाव पैदा होता है।

तनाव : अशांत मानसिक स्वास्थ्य के स्रोत के रूप में

आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनो वैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। हैंस शैले ने 'तनाव' शब्द को खोजा और इसकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की। हैंस शैले की पारिभाषा का आधार दैहिक है और यह हारमोन्स की क्रियाओं को अधिक महत्व देती है, जो ऐड्रिनल और अन्य ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं।

शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की-

  • (क) यूस्ट्रेस अर्थात मधयम और इच्छित तनाव जैसे कि प्रतियोगी खेल खेलते समय
  • (ख) विपत्ति (डिस्ट्रेस) जो बुरा, असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव है।

तनाव पर नवीन उपागम व्यक्ति को उपलब्ध समायोजी संसाधानों के सम्बन्ध में स्थिति के मूल्यांकन एवं व्याख्या की भूमिका पर केंद्रित है। मूल्यांकन और समायोजन की अन्योन्याश्रित प्रक्रियायें व्यक्ति के वातावरण एवं उसके अनुकूलन के बीच सम्बन्ध निर्धारण करती है। अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति दैहिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक हित के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आसपास की स्थितियाँ एवं वातावरण को व्यवस्थित करता है।

तनाव के कारक

वातावरण की कोई घटना या कोई बात जो तनाव उत्पन्न कर सकती है उसे 'तनाव का कारक' कहा जाता है जैसे बहुत ज्यादा कार्यभार, भूकंप से हुई तबाही इत्यादि। तनाव के कारकों को व्यापक रूप से निम्नलिखित वर्गों में व्यवस्थित किया जा सकता है।

  • 1. जीवन की मुख्य घटनाएं और बदलाव : इस श्रेणी में किसी व्यक्ति की जिंदगी से जुड़ी कोई महत्वपूर्ण घटना सम्मिलित है, जो उसके जीवन पर चिरस्थायी प्रभाव डालती है। जैसे विवाह, सेवा-निवृत्ति या तलाक।
  • 2. रोजमर्रा की परेशानियां : ये वह परेशान करने वाली, निराशापूर्ण व दुखद आवश्यकताएँ होती हैं जिन का कोई व्यक्ति प्रतिदिन सामना करता है, जैसे वस्तुओं को गलत जगह पर रख देना या उन का गुम हो जाना, निर्धारित तिथि के अनुसार कार्य संपूर्ण करने की जिम्मेदारी, वाहनों के जाम में फँस जाना, पंक्ति में इंतजार में खड़े रहना।
  • 3. दीर्घकालिक भूमिका से तनाव : जैसे की वैवाहिक जीवन में मुश्किलों का सामना करना, विकलांग बच्चे को संभालना या गरीबी में रहना।
  • 4. अभिघात : ये अनपेक्षित, भयंकर, अत्यन्त अशांत कर देनेवाली घटनाएं होती हैं जो हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती है। जैसे आणविक हमला, बम फटना या प्रिय व्यक्ति की मृत्यु।

तनाव कारकों के प्रति साधारण प्रतिक्रियाएं

तनाव के कारकों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं को न्यून संवेदना से लेकर गम्भीर व्यवहारात्मक परिवर्तनों की व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। ये प्रतिक्रियाएं निम्नलिखित वर्गों में श्रेणीबद्व की गई हैं :-

व्यवहारात्मक प्रतिक्रियाएं

  • 1. मद्य/औषधि दुष्प्रयोग
  • 2. डर/फोबिया
  • 3. अशांत निद्रा
  • 4. निकोटीन या कैफीन को अधिक मात्र में लेना
  • 5. बेचैनी
  • 6. भूख न लगना या आवश्यकता से अधिक खाना
  • 7. चिड़चिड़ापन
  • 8. आक्रामकता
  • 9. दुर्बल या विकृत आवाज
  • 10. समय का कमजोर प्रबन्धन
  • 14. बाध्यकारी व्यवहार
  • 15. उत्पादकता में कमी
  • 16. रिश्तों से पलायन
  • 17. कार्य स्थान से अत्यधिक अनुपस्थित रहना
  • 18. बारबार रोना
  • 19. अव्यवस्थित दिखना

भावनात्मक प्रतिक्रियाए

  • 1 दुश्चिंता
  • 2 अवसाद
  • 3 क्रोध
  • 4 दोषी महसूस करना
  • 5 ठेस
  • 6 ईर्ष्या
  • 7 लज्जा या शर्मिंदगी
  • 8 आत्मघाती विचार

संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएं

  • 1 नकरात्मक आत्मसंकल्पना
  • 2 आत्म-आश्वासन
  • 3 निराशावादी कथन
  • 4 स्वयं और दूसरों के प्रति निराशावादी सोच
  • 5 संज्ञानात्मक विकृति

अंतरवैयक्तिक प्रतिक्रियाएं

  • 1 निष्क्रिय/आक्रामक सम्बन्ध
  • 2 झूठ बोलना
  • 3 प्रतियोगितात्मकता
  • 4 प्रशंसा का दिखावा करना
  • 5 अलग होना
  • 6 शक्की स्वभाव
  • 7 चालाक प्रवृतियाँ
  • 8 गप लगाना

जैविक प्रतिक्रियाएं

  • 1. ड्रग्स का उपयोग करना
  • 2. दस्त/कब्ज
  • 3. बारबार मूत्र जाना
  • 4. एलर्जी व प्रतियूर्जता/त्वचा पर फुन्सी हो जाना
  • 6. हमेशा थकावट रहना/परिश्रांत
  • 7. शुष्क त्वचा
  • 11. बारबार फ्लू/जुकाम
  • 11. प्रतिरक्षा तंत्र का घटना
  • 12. भूख न लगना

कल्पनात्मक : इनकी कल्पना

  • 1 असहायता
  • 2 एकाकीपन/अकेला रहना
  • 3 नियंत्रण खोना
  • 4 दुर्घटना/चोट
  • 5 असफलता
  • 6 अपमान/शर्मिन्दगी
  • 7 मृत्यु या आत्महत्या
  • 8 शारीरिक या यौन उत्पीड़न
  • 9 स्वयं के प्रति बुरी धारणा

द्वन्द्व और निराशा के प्रकार

जब कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में रुकावटों का सामना करता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। यह अक्सर व्यक्ति में द्वन्द्व और निराशा की भावना पैदा करता है। प्रबल निराशा मिलने के कारण यह द्वन्द्व और भी तनावपूर्ण हो जाता है। आमतौर पर व्यक्ति द्वन्द्व में तब पड़ जाता है जब वह परस्पर विरोधी स्थिति का सामना करता है। उद्देश्य और परिस्थिति के स्वरूप पर निर्भर व्यक्ति जीवन में तीन प्रकार के द्वन्द्वों का सामना करता है।

  • (क) प्रस्ताव-प्रस्ताव द्वन्द्व
  • (ख) परिहार-परिहार द्वन्द्व
  • (ग) प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व

प्रस्ताव-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक वांछित उद्देश्यों में से चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व में दोनों ही लक्ष्यों की प्राप्ति की चाहत होती है। उदाहरण के लिए, एक ही दिन में दो विवाहों के निमंत्रण में से किसी एक का चुनाव करना।

परिहार-प्रस्ताव द्वन्द्व : इस तरह का द्वन्द्व तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक अवांछित लक्ष्यों में चुनाव करना पड़ता है। इस तरह के द्वन्द्व को अक्सर 'एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई' वाली स्थिति कहा जाता है। जैसे कि कम शैक्षिक योग्यता वाले युवा को या तो बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा या फिर बहुत ही कम आय की अनचाही नौकरी को स्वीकार करना पड़ेगा। इस तरह का द्वन्द्व बहुत ही गम्भीर सामंजस्य की समस्याएं उत्पन्न करता है, क्योंकि द्वन्द्व का समाधान करने पर भी चैन की बजाय निराशा ही उत्पन्न होगी।

प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व : इस तरह के द्वन्द्व में किसी व्यक्ति में समान उद्देश्य का चुनाव करने एवं उसे नकारने दोनों के प्रति प्रबल रूझान होता है। जैसे कि एक युवा सामाजिक और सुरक्षा कारणों से विवाह करना चाहता है लेकिन उसी स्थिति में वह विवाह की जिम्मेदारियों और निजी स्वतंत्रता के खत्म हो जाने का भय भी रखता है। ऐसे द्वन्द्व का समाधान लक्ष्य के कुछ नकरात्मक और सकरात्मक पहलुओं को स्वीकृत करने से ही सम्भव है।

बहुसंख्यक विकल्पों के होने के कारण कभी-कभी प्रस्ताव-परिहार द्वन्द्व को "मिश्रित-अनुग्रह" द्वन्द्वों के संदर्भ में भी देखा जाता है।

कुंठा : (देखें, कुण्ठा) कुंठा एक प्रयोगात्मक अवस्था है जो कि कुछ कारणों के परिणामस्वरूप होती है जैसे

  • (क) बाहरी प्रभावों के कारण आवश्यकताओं और अभिप्रेरणाओं में अवरोध पैदा होना जो कि लक्ष्य में बाधाएं उत्पन्न करता है और आवश्यकताओं की पूर्ति होने से रोकता है।
  • (ख) वांछित लक्ष्यों की अनुपस्थिति द्वारा।

अवरोध व बाधाएं भौतिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार की हो सकती हैं और ये व्यक्ति में निराशा या कुंठा का भाव उत्पन्न करती हैं। इस में दुर्घटना, अस्वस्थ अंतरवैयक्तिक संबंध, प्रिय की मृत्यु हो जाना। व्यक्तिगत् अभिलक्षण जैसे शारीरिक विकलांगता, अपूर्ण योग्यता और आत्मानुशासन का अभाव भी कुंठा की जड़ है। कुछ साधारण कुंठाएं हैं जो अक्सर कुछ निश्चित मुश्किलों का कारण बन जाती है। इनमें वां छित लक्ष्य की प्राप्ति में विलम्ब, संसाधानों का अभाव, असफलता, हानि, अकेलापन और निरर्थकता सम्मिलित है।

मनोविकारों के प्रकार

तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय आमतौर पर व्यक्ति समस्या केंद्रित या मनोभाव केंद्रित कूटनीतियों को अपनाता है। समस्या केंद्रित नीति द्वारा व्यक्ति अपने बौद्विक साधानों के प्रयोग से तनावपूर्ण स्थितियों का समाधान ढूंढता है और प्रायः एक प्रभावशाली समाधान की ओर पहुंचता है। मनोभाव केंद्रित नीति द्वारा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय व्यक्ति भावनात्मक व्यवहार को प्रदर्शित करता है जैसे चिल्लाना। यद्यपि, यदि कोई व्यक्ति तनाव का सामना करने में असमर्थ होता है तब वह प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त कूटनीति की ओर रूझान कर लेता है, यदि ये बारबार अपनाए जाएं तो विभिन्न मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं। प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त व्यवहार परिस्थिति का सामना करने में समर्थ नही बनाते, ये केवल अपनी कार्यवाहियों को न्यायसंगत दिखाने का जरिया मात्र है।

शारीरिक समस्याएं जैसे ज्वर, खांसी, जुकाम इत्यदि ये विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं। इन वर्गों के मनोविकारों की सूची न्यूनतम व्यग्रता से लेकर गंभीर मनोविकारों जैसे मनोभाजन या खंडित मनस्कता तक है। अमेरिकी मनोविकारी संघ (American Psychiatric Association) द्वारा मनोविकारों पर नैदानिक और सांख्यिकीय नियम पुस्तक ( Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders (DSM)) को प्रकाशित किया गया है जिस में विविध प्रकार के मानसिक विकारों का उल्लेख किया गया है। मनोविज्ञान की जो शाखा विकारों का समाधान खोजती है उसे असामान्य मनोविज्ञान कहा जाता है।

बाल्यावस्था के विकार

ये जान कर शायद आपको आश्चर्य हो कि बच्चे भी मनोविकारों का शिकार हो सकते हैं। डीएसएम, का चौथा संस्करण बाल्यावस्था के विभिन्न प्रकार के विकारों का समाधान ढूंढता है, आमतौर पर यह पहली बार शैशवकाल, बाल्यावस्था या किशोरावस्था में पहचान में आते हैं। इन में से कुछ सावधान-अभाव अतिसक्रिय विकार पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या एकाग्र नहीं रहता या वह अत्यधिक फुर्तीला व्यवहार करता है। और स्वलीन विकार जिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिल्कुल नहीं मुस्कुराता और देर से भाषा सीखता है।

व्यग्रता विकार

यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंता महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति व्यग्रता विकार से ग्रस्त है। व्यग्रता विकार के विभिन्न प्रकार हो ते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विकार किसी चीज से अत्यन्त और तर्करहित डर के कारण होते हैं और जुनूनी-बाधयकारी विकार जहां कोई व्यक्ति बारबार एक ही बात सोचता रहता है और अपनी क्रियाओं को दोहराता है।

मनोदशा विकार

वे व्यक्ति जो मनोदशा विकार (मूड डिसॉर्डर) के अनुभवों से ग्रसित होते हैं उनके मनोभाव दीर्घकाल तक प्रतिबंधित हो जाते हैं, वे व्यक्ति किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं, या इन भावों की श्रेणियों में अदल-बदल करते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे ही दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध न हो। इस तरह व्यक्ति के व्यवहारिक लक्षणों पर आश्रित मनोदशा विकार दो प्रकार के होते हैं -

अवसाद ऐसी मानसिक अवस्था है जो कि उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, अशांत निद्रा व नींद घट जाना, कम भूख लगना, वजन कम हो ना, या ज्यादा भूख लगना व वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसू स करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परे शानी और अपने व दूसरों के प्रति नकरात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति को इस तरह के भाव न्यूनतम दो सप्ताह तक रहें तो उसे अवसादग्रस्त कहा जा सकता है और उस के उपचार के लिए उसे शीघ्र नैदानिक चिकित्सा प्रदान करवाना आवश्यक है।

मनोदैहिक और दैहिकरूप विकार

आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही साधारण बन चुकी हैं जैसे निम्न रक्तचाप, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि। वैसे तो ये सब शारीरिक बीमारियाँ हैं परंतु ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव व चिंता से उत्पन्न होती हैं। अतः मनोदैहिक विकार वे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। वहीं मनोदैहिक की अवधारणा में मन का अर्थ मानस है और दैहिक का अर्थ शरीर है। इसके विपरीत दैहिकरूप विकार, वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके जैविक कारण सामने नहीं आते। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पेटदर्द की शिकायत कर रहा है परंतु तब भी जब उसके उस खास अंग अर्थात पेट में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती।

विघटनशील विकार

किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। नैदानिक मनोविज्ञान में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार (Dissociative disorders) कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है।

विघटनशील स्मृतिलोप ( dissociative amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार (dissociative identity disorder) है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं।

मनोविदलन और मनस्तापी विकार

आपने सड़क पर कभी किसी व्यक्ति को गंदे कपड़ों में, कूड़े के आसपास पड़े अस्वच्छ भोजन को खाते या फिर अजीब तरीके से बातचीत या व्यवहार करते हुए देखा होगा। उनमें व्यक्ति, स्थान व समय के विषय में कमजोर अभिविन्यास होता है। हम अक्सर उन्हें पागल, बेसुधा आदि कह देते हैं, परंतु नैदानिक भाषा में इन्हें मनोविदलित कहते हैं। ये मनोविकार की एक गंभीर परिस्थिति होती है, जो अशांत विचारों, मनोभावों व व्यवहार से होते हैं। मनोविदलन विकारों में असंगत मानसिकता, दोषपूर्ण अभिज्ञा, संचालक कार्यकलापों में बाधा, नीरस व अनुपयुक्त भाव होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति वास्तविकता से निर्लिप्त रहते हैं और अक्सर काल्पनिकता और भ्रांति की दुनिया में खोये रहते है।

विभ्रांति का अर्थ किसी ऐसी चीज को देखना है जो वास्तव में भौतिक रूप से वहाँ नहीं होती, कुछ ऐसी आवाजें जो वहां पर वास्तव में नहीं हैं। भ्रमासक्ति वास्तविकता के प्रति अंधाविश्वास है इस तरह के विश्वास दूसरों से सम्बंध विच्छेद करते हैं। मनोविदलन के विभिन्न प्रकार हैं जैसे कैटाटोनिक मनोविदलन।

व्यक्तित्व मनोविकार

व्यक्तित्व विकार (पर्सनालिटी डिसॉर्डर) की जड़ें किसी व्यक्ति के शैशव काल से जुडीं होती हैं, जहां कुछ बच्चे लोचहीन व अशुद्व विचारधारा विकसित कर लेते हैं। ये विभिन्न व्यक्तित्व मनोविकार व्यक्ति में हानिरहित अलगाव से ले कर भावनाहीन क्रमिक हत्यारे के रूप में सामने आते हैं। व्यक्तित्व मनोविकारों की श्रेणियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले, समूह की विशेषता अजीब और सनकी व्यवहार है। चिंता और शक दूसरे समूह की विशेषता है और तीसरे समूह की विशेषता है नाटकीय, भावपूर्ण और अनियमित व्यवहार। पहले समूह में व्यामोहाभ, अन्तराबन्धा, पागल (सिज़ोटाइपल) व्यक्तित्व विकार सम्मिलित हैं। दूसरे समूह में आश्रित, परिवर्जित, जुनूनी व्यक्तित्व मनोविकार बताए गए हैं। असामाजिक, सीमावर्ती, अभिनय (हिस्ट्राथमिक), आत्ममोही व्यक्तित्व विकार तीसरे समूह के अन्तर्गत आते हैं।

मनश्चिकित्सा की प्रक्रिया

किसी भी प्रकार के मनोविकारों से निपटने के लिए कुछ विशेष मनश्चिकित्सा प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति की सेवा की जाती हैं। वह व्यक्ति जो मनश्चिकित्सा के क्रार्यक्रम का प्रारूप तय करता है वह प्रशिक्षित व्यक्ति होता है, जिसे नैदानिक मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक कहते हैं। जो व्यक्ति यह उपचार करवाता है उसे सेवार्थी/रोगी कहते हैं। मनश्चिकित्सा को अक्सर वार्ता उपचार कहा जाता है क्यों कि ये अंतरवैयक्तिक संपर्क द्वारा प्रदान की जाती है। इस की औषधियां केवल मनोचिकित्सक द्वारा ही दी जा सकती हैं, जो कि औषधीय चिकित्सक होना मनश्चिकित्सा की विभिन्न तकनीकें होती हैं, जो असामान्य व्यवहारों के कारण एवं विकास का वर्णन करती हैं। इनमें मनोविश्लेषण, व्यवहार चिकित्सा, संज्ञानात्मक-व्यवहार चिकित्सा, सेवार्थी केंद्रित चिकित्सा इत्यादि सम्मिलित हैं। मनश्चिकित्सा एक रूपांकित योजना है, जो कि मनोविकारों की प्रकृति और गम्भीरता को धयान में रखकर तैयार की जाती है।

  • 1. सौहार्द स्थापना : मनश्चिकित्सक सेवार्थियों से अच्छे और क्रियाशील संबंध निर्मित कर के उन्हें अपने सहयोग का आश्वासन देता है।
  • 2. व्यक्ति वृत्त को तैयार करना : सेवार्थी के परिवार, मित्र, समाज व जीविका के साथ सामंजस्य स्वरूप को ध्यान में रख कर विशेष विकार का व्यक्ति वृत्त तैयार किया जाता है।
  • 3. समस्या पर विचार करना : व्यक्ति वृत्त तैयार करने के पश्चात् मनश्चिकित्सक कुछ ऐसी समस्याओं पर विचार करता है जिन्हें तात्कालिक देखरेख की जरूरत होती है, जिनका नैदानिक जांच एवं साक्षात्कार के अनुसार दवा देकर समाधान किया जा सकता है।
  • 4. उपचारात्मक सत्र : समस्या की प्रकृति और गम्भीरता के अनुसार मनश्चिकित्सक सेवार्थी के साथ उपचार केंद्रित सत्र की अगुवाई करता है। प्रत्येक सत्र के पश्चात हुए सुधार का निरीक्षण एवं मूल्यांकन किया जाता है और आवश्यक लगे तो भावी उपचार के तरीकों में बदलाव कर लिया जाता है।
  • 5. उपचारात्मक हस्तक्षेप : यह सुनिश्चित हो जाने पर कि सत्र द्वारा वांछित परिणामों की प्राप्ति हो गई है तब मनश्चिकित्सक सत्र को समाप्त कर देता है। सेवार्थी और उसके परिवार जनों को घर पर ही कुछ सुझावों को माननेकी सलाह दी जाती है और जरुरत पड़नेपर सेवार्थी को मनश्चिकित्सक के पास दोबारा भी बुलाया जा सकता है।

तनाव से निपटने की प्रक्रिया

व्यक्ति तनाव से निपटने के लिए आमतौर पर कार्य-अभिविन्यस्त और प्रतिरक्षा-अभिविन्यस्त या मनोभाव केंद्रित प्रक्रियाओं का पालन करता है।

कार्य अभिविन्यस्त प्रक्रिया का उद्देश्य किसी विशेष तनाव कारक द्वारा अधिरोपित की गई समायोजी मांग का यथार्थवादिता से समाधान ढूंढना है। ये चेतन और तर्कसंगत स्तर पर तनावपूर्ण स्थितियों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन पर आधारित होती हैं। तनाव से निपटने के इन तरीकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे प्रारम्भ, प्रत्याहार और समझौता।

  • 1. प्रारम्भ की स्थिति में कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से स्थिति के सम्मुख आता है। वह साधानों के सम्भाव्य व व्यवहार्यता का मूल्यांकन करता है। तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए वह सबसे ज्यादा आशाजनक कार्यवाही का चुनाव करता है और व्यवहार्यता बनाए रखता है, वहीं यदि येक्रिया उपयोगी न लगे तो वह इस पद्धति को बदल लेता है। परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति नई जानकारियां जुटा कर, सामर्थ्य का विकास करके, वर्तमान योग्यताओं का सुधार करके, नए संसाधानों का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए प्रारम्भ की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब विद्यार्थी मुश्किल परीक्षा से पहले दोहराने की योजना बनाता है।
  • 2. प्रत्याहार या अलगाव की स्थिति में यदि किसी व्यक्ति ने भूतकाल में अत्याधिक कठिन परिस्थिति का सामना किया हो एवं उसने उसका सामना करने के लिए अनुचित कूटनीति अपनाई हो, तब वह प्रथम अवस्था में अपनी असफलता को स्वीकार कर लेता है। वह शारीरिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर उस तनावपूर्ण स्थिति को छोड़ देता है। वह अपने प्रयत्नों को पुनर्निर्देशित करके उचित लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाता है। प्रत्याहार के उदाहरण स्वरूप जब किसी दोस्त के बार-बार नकारने पर आप उससे सम्बन्ध-विच्छेद करके दूसरे लोगों से मित्रता करने के प्रयत्न करते हैं।
  • 3. समझौते की स्थिति में, यदि व्यक्ति को लगता है कि मूलभूत लक्ष्य की प्रप्ति नहीं हो सकती, तो ऐसे में वह विकल्प के तौर पर दूसरे लक्ष्य को स्वीकार कर लेता है। इस तरह की प्रतिक्रिया तब प्रकट होती है जब व्यक्ति अपनी योग्यताओं का पुनर्मूल्यांकन करता है और अपनी अभिलाषाओं के स्तर को उसी के अनुसार कम कर लेता है। ये तनावपूर्ण स्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनाए गए समझौतापरक व्यवहार को दर्शाता है। उदाहरण स्वरूप एक विद्यार्थी किसी विशेष विषय में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता परंतु वह अन्य विषयों में अच्छे अंकों को प्राप्त करता है और वह इस सत्य को स्वीकारने की कोशिश करता है।

मनोभाव केंद्रित या आत्मरक्षा-अभिविन्यस्त तरीकों से तनाव का सामना करना लाभकारी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि व्यक्ति इसके द्वारा किसी समाधान पर नहीं पहुंचता, बस स्वयं को आश्वासन देने के तरीके ढूंढता है। आत्मरक्षक पद्धतियों का उदाहरण बुद्विसंगत व्याख्या करना है जैसे यह तर्क देना कि सभी विद्यार्थी इसीलिए असफल रहे, क्योंकि परीक्षा-पत्र काफी कठिन था। इसका अन्य उदाहरण है विस्थापन करना जैसे सख्त अध्यापक पर आ रहे क्रोध को अपने छोटे भाई को डांट या मार कर उतारना। यहां आपने क्रोध का विस्थापन किया है।

यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि तनाव से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए व्यक्ति को स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना चाहिए। सकरात्मक सोच, मनोभावों और क्रियाओं द्वारा सिर्फ तनाव से ही बेहतर तरीके से नहीं निपटा जा सकता है, वरन् इसके द्वारा हम जीवन में अत्यधिक प्रसन्न व हल्का महसूस करते हैं, एवं अधिक योग्य बनते हैं।

प्रमुख मानसिक रोग

मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है-

मनोरोगों के मुख्य कारण

मनोरोगों के कारण कई प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :

जैविक कारण

आनुवंशिक : मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।

शारीरिक गठन

स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं।

व्यक्तित्व

अपने में खोये हुए, चुप रहने वाले, कम मित्र रखने वाले किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले, स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है।

शरीरवृत्तिक कारण

किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं।

वातावरण जनित कारण

शारीरिक खान-पान संबंधी कारण

कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण

आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठोस, कार्य को खो बैठना, आर्थिक हानि, विवाह, तलाक, शिशु जन्म, कार्य-निवृत्ति, परीक्षा या प्यार में असफलता इत्यादि भी मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं।

सामाजिक-सांस्कृतिक कारण

सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव, अकेलापन, राजनीतिक, प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार, आतंक, भूकंप, अकाल, बाढ़, सामाजिक बोध एवं अवरोध, महंगाई, बेरोजगारी इत्यादि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं।

तथ्य

  • मनोरोग चिकित्सक द्वारा दवाएं बतायी गई हैं तो इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।
  • दूसरी बीमारियों की तरह यह रोग भी आंतरिक स्तर पर जैविक असंतुलन की वजह से होता है।
  • निगरानी में दवाएं लेना कारगर होता है, अब तो नई दवाओं के उपलब्ध होने के बाद लंबी अवधि तक दवाएं लेने के मामले कम हो रहे हैं।
  • दवाओं के सेवन से मनोविकारों में काफी कमी होती है, खासतौर से तब जबकि इलाज शुरूआती चरण में आरंभ हो जाए।
  • मनोविकारों के उपचार में दी जाने वाली दवाएं रासायनिक असंतुलन को बहाल करती हैं, कुछ दवाओं से नींद आती है लेकिन वे नींद की गोलियां नहीं होतीं।
  • अवसाद जैसे मनोविकार भी मधुमेह या उच्च रक्तचाप की तरह के रोग ही होते हैं और इनके लिए भी विषेशज्ञ की देखरेख में इलाज कराने की आवश्यकता होती है।

गलत धारणाएं

  • मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं।
  • दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।
  • आपको यह रोग अपनी कमजोरी से हुआ है और इससे बचाव करना चाहिए।
  • दवाएं नुकसानदायक होती हैं, ये निर्भरता बढ़ाती हैं और जीवनभर लेनी पड़ती हैं।
  • ज्यादातर मनोविकारों का कोई इलाज नहीं होता।
  • बच्चों को दवाएं नहीं दी जानी चाहिए।
  • इलाज के लिए नींद की गोलियां दी जाती हैं।
  • अवसाद जैसे मर्ज अपने आप ठीक होते हैं या प्रभावित व्यक्ति के प्रयासों से।

संदर्भ

  1. असाध्य नहीं मनोरोग। हिन्दुस्तान लाइव।(हिन्दी)७ अक्तूबर, २००९। डॉ॰ गौरव गुप्ता

इन्हें भी देखें

बाहरी सूत्र