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== बाहरी कड़ियाँ ==
== वाह्य सूत्र ==
* [http://www.autopsycam.com Autopsy] - Autopsy - Who gets autopsied?, Autopsy permission, Autopsy technique
* [http://www.autopsycam.com Autopsy] - Autopsy - Who gets autopsied?, Autopsy permission, Autopsy technique
* [http://www.pathguy.com/autopsy.htm Autopsy] - a detailed description by a [[pathologist]] complete with cartoon figures.
* [http://www.pathguy.com/autopsy.htm Autopsy] - a detailed description by a [[pathologist]] complete with cartoon figures.

20:37, 30 सितंबर 2014 का अवतरण

मृत्यु के पश्चात् आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त, अथवा रोगग्रस्त, मृतक के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान के हेतु शरीर की परीक्षा, अथवा शवपरीक्षा (Autopsy), करना अतिआवश्यक है। रोग उपचारक शवपरीक्षा के द्वारा ही रोग की प्रकृति, विस्तार, विशालता एवं जटिलता के विषय में भली प्रकार तथ्य जान सकता है।

शवपरीक्षा भली प्रकार करना उचित है एवं सहयोग के हेतु रोगग्रसित अंग अथवा ऊतक, की सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षा एवं कीटाणुशास्त्रीय परीक्षा अपेक्षित है। उस प्रत्येक मृतक की, जिसकी मृत्यु का कारण आकस्मिक दुर्घटना हो और उचित कारण अज्ञात हो, मृत्यु का कारण एवं उसकी प्रकृति ज्ञात करने के लिए शवपरीक्षा करना नितांत आवश्यक रूप से अपेक्षित है।

शवपरीक्षा करने के पूर्व मृतक के निकट संबंधी से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है और शवपरीक्षा मृत्यु के 6 से 10 घंटे के भीतर ही कर लेनी चाहिए, अन्यथा शव में मृत्युपरांत अवश्यंभावी प्राकृतिक परिवर्तन हो जाने की आशंका रहेगी, जैसे शव ऐंठन (rigor mortis), शवमलिनता (postmortem) एवं विघटन (decomposition)। यह परिवर्तन अधिकतर रोगावस्था के परिवर्तनों के समान ही होते हैं।

आवश्यक वस्तुएँ

कुछ शल्य अस्त्र, उदाहरणार्थ चाकू, चिमटियाँ कैंची, सलाई आदि, की शवपरीक्षा में आवश्यकता पड़ती है। शव को सीने के लिए सुई एवं प्रबल धागे की भी आवश्यकता होती है।

शवपरीक्षा करने की विधियाँ

शवपरीक्षा करने की निम्नलिखित दो विधियाँ होती हैं :

बाह्य निरीक्षण एवं परीक्षा

इसके अंतर्गत निम्नलिखित परीक्षा करना आवश्यक है :

(1) शरीर का विकास,

(2) शरीर की पौष्टिकता,

(3) आय एवं लिंग,

(4) शव ऐंठन की विद्यमानता एवं उसकी श्रेणी,

(5) त्वचा का रंग, जैसे नीलिमापन,

(7) त्वचा विच्छेद, गिलटी, आघातचिह्र

(8) सूजन तथा

(9) शरीर के सब छिद्रों आदि का पूर्ण सतर्कतापूर्वक परीक्षण। यह करना नितांत आवश्यक होता है।

आंतरिक परीक्षा

प्रथम ठुड्डी से जघन (public) जोड़ तक शवछेदन कर, त्वचा एवं मांसपेशियों को हटाकर, वक्षअस्थि को पृथक् कर दिया जाता है। तत्पश्चात् आँत के ऊपर की झिल्ली तथा फुप्फुस झिल्ली का पूर्ण परीक्षण करना आवश्यक है।

देहगुहा के सर्व तंत्रों को पृथक् कर, उनका भार एवं उनका विस्तृत विवरण ज्ञात किया जाता है। सब तंत्रों को उनके रक्षक विलयन में, जैसे फॉर्मेलिन में, भली प्रकार रख देना अपेक्षित है। फॉर्मेलिन ऊतक की रचना को पूर्ववत् बनाए रखने में सहायक सिद्ध होता है। रक्षित ऊतक के खंड कर तथा उचित रंगमलिनता प्रदान कर, सूक्ष्मदर्शी से उनका परीक्षण किया जाता है।

यदि मृत्यु का कारण रोग न होकर कोई आकस्मिक दुर्घटना विषपान, अथवा अन्य कोई कारण हो, तो देहगुहा के तंत्र रक्षित विलयन में सुरक्षित रखे जाते हैं, तत्पश्चात् रासायनिक परीक्षण द्वारा परीक्षा होने पर मृत्यु का उचित कारण ज्ञात किया जाता है।

शरीर के मुख्य अंगों का प्राकृतिक भार

(1) हृदय 300 ग्राम,

(2) फुफ्फुस (फेफड़े) 325-360 ग्राम,

(3) यकृत 1,500-1,800 ग्राम,

(4) वृक्क 150 ग्राम,

(5) प्लीहा 150-200 ग्राम तथा

(6) अग्नाशय 90-120 ग्राम।

बाहरी कड़ियाँ