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[[हिन्दू काल गणना]] के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक रहता |
[[हिन्दू काल गणना]] के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है। तिथि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है। |
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तिथि = चन्द्र का भोगांश - सूर्य का भोगांश / ( Divide) 12. |
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15:32, 13 सितंबर 2014 का अवतरण
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हिन्दू काल गणना के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है। तिथि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है।
तिथि = चन्द्र का भोगांश - सूर्य का भोगांश / ( Divide) 12.
- शुक्ल पक्ष में १-१४ और पूर्णिमा
- कृष्ण पक्ष में १-१४ और अमावस्या
ये १-१४ तक तिथियों को निम्न कहते हैं:-
मूल नाम | तद्भ्व नाम |
---|---|
पूर्णिमा | पूरनमासी |
प्रतिपदा | पड़वा |
द्वितीया | दूज |
तृतीया | तीज |
चतुर्थी | चौथ |
पंचमी | पंचमी |
षष्ठी | छठ |
सप्तमी | सातें |
अष्टमी | आठें |
नवमी | नौमी |
दशमी | दसमी |
एकादशी | ग्यारस |
द्वादशी | बारस |
त्रयोदशी | तेरस |
चतुर्दशी | चौदस |
अमावस्या | अमावस |
हमारे पर्व-त्योहार हिन्दी तिथियों के अनुसार ही होते हैं, इसके पीछे एक विशेष कारण है। पर्व-त्योहारों में किसी विशेष देवता की पूजा की जाती है। अतः स्वाभाविक है कि वे जिस तिथि के अधिपति हों, उसी तिथि में उनकी पूजा हो। यही कारण है कि उस विशेष तिथि को ही उस विशिष्ट देवता की पूजा की जाए। तिथियों के स्वामी संबंधी वर्णन निम्न है :
- प्रतिपदा- अग्नयादि देवों का उत्थान पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को होता है। अग्नि से संबंधित कुछ और विशेष पर्व प्रतिपदा को ही होते हैं।
- द्वितीया- प्रजापति का व्रत प्रजापति द्वितीया इसी तिथि को होता है।
- तृतीया- चूँकि गौरी इसकी स्वामिनी है, अतः उनका सबसे महत्वपूर्ण व्रत हरितालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही महिलाएँ करती हैं।
- चतुर्थी- गणेश या विनायक चतुर्थी सर्वत्र विख्यात है। यह इसलिए चतुर्थी को ही होती है, क्योंकि चतुर्थी के देवता गणेश हैं।
- पंचमी- पंचमी के देवता नाग हैं, अतः श्रावण में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की दोनों चतुर्थी को नागों तथा मनसा (नागों की माता) की पूजा होती है।
- षष्ठी- स्वामी कार्तिक की पूजा षष्ठी को होती है।
- सप्तमी- देश-विदेश में मनाया जाने वाला सर्वप्रिय त्योहार प्रतिहार षष्ठी व्रत (डालाछठ) यद्यपि षष्ठी और स्वामी दोनों दिन मनाया जाता है, किंतु इसकी प्रधान पूजा (और उदयकालीन सूर्यार्घदान) सप्तमी में ही किया जाता है। छठ पर्व के निर्णय में सप्तमी प्रधान होती है और षष्ठी गौण। यहाँ ज्ञातव्य है कि सप्तमी के देवता सूर्य हैं।
वस्तुतः सायंकालीन अर्घ्य में हम सूर्य के तेजपुंज (सविता) की आराधना करते हैं, जिन्हें 'छठमाई' के नाम से संबोधित करके उन्हें प्रातःकालीन अर्घ्य ग्रहण करने के लिए निमंत्रित किया जाता है, जिसे ग्रामीण अंचलों में 'न्योतन' कहा जाता है, पुनः प्रातःकालीन सूर्य को 'दीनानाथ' से संबोधित किया जाता है।