"हिन्दुस्तान": अवतरणों में अंतर

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==विभिन्न ग्रन्थों में हिन्दू शब्द का उल्लेख==
==विभिन्न ग्रन्थों में हिन्दू शब्द का उल्लेख==

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
- बृहस्पति आगम

हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये (जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)
- मेरुतन्त्र (शैव ग्रन्थ)

हीनं दूषयति इति हिन्दू
- कल्पद्रुम

हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टमानसान।
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते॥
- पारिजातहरण

ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः।
गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्दुर्हिंसनदूषकः॥
(वो जो ओंकार को ईश्वरीय ध्वनि माने, कर्मों पर विश्वास करे, गौपालक, बुराइयों को दूर रखे वो हिन्दू है)
- माधव दिग्विजय

ऋग्वेद में एक ऋषि का नाम 'सैन्धव' था जो बाद में "हैन्दाव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए।

ऋग्वेद (८:२:४१) में 'विवहिंदु' नाम के राजा का वर्णन है जिसने ४६००० गौएँ दान में दी थी। विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था ऋग्वेद मण्डल ८ में भी उसका वर्णन है।


[[श्रेणी:भारत]]
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23:52, 22 अगस्त 2014 का अवतरण

हिन्दुस्तान (अथवा हिन्दोस्तान या हिन्द) भारत देश का कई भाषाओं में अनाधिकारिक लेकिन विख्यात नाम है , जैसे, उर्दू, हिन्दी, अरबी, फ़ारसी इत्यादि ।

आजकल अरब देशों और ईरान में "हिन्दुस्तान" शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लिये प्रयुक्त होता है और भारत गणराज्य को हिन्द (अरबी : अल-हिन्द) कहा जाता है ।

उत्पत्ति

भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। बृहस्पति आगम के अनुसार:

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥

अर्थात, हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

"हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं -- पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा, कोई समुद्र या जलराशि। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भूभाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के अर्थ में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिये "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिये प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।

आम तौर पर "हिन्दुस्तान" शब्द को अनेक विश्लेषकों द्वारा विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना जाता है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु (सिन्धु नदी समेत सात नदियाँ) का उल्लेख मिलता है -- वो भूमि जहाँ आर्य रहते थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसलिये सिन्धु नदी के पूर्व रहने वालों को ईरानियों और अरबों ने "हिन्दू" कहा और भारत देश को "हिन्दुस्तान"। इस धारणा इस कारण भी प्रचलित हुयी क्योंकि वर्तमान में हिन्दुस्तान नाम विश्व में मुख्यतः एशियायी और अरबी देशों में ही प्रचलित है।

इन दोनों सिद्धान्तों में से पहले वाले प्राचीन काल में नामकरण को इस आधार पर सही माना जा सकता है कि "बृहस्पति आगम" सहित अन्य आगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत प्राचीन काल में लिखा जा चुका था। अतः उसमें "हिन्दुस्थान" का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दुस्तान नाम प्राचीन ऋषियों द्वारा दिया गया था न कि अरबों/ईरानियों द्वारा।

विभिन्न ग्रन्थों में हिन्दू शब्द का उल्लेख

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ - बृहस्पति आगम

हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये (जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं) - मेरुतन्त्र (शैव ग्रन्थ)

हीनं दूषयति इति हिन्दू - कल्पद्रुम

हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टमानसान। हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिंदुरभिधियते॥ - पारिजातहरण

ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः। गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्दुर्हिंसनदूषकः॥ (वो जो ओंकार को ईश्वरीय ध्वनि माने, कर्मों पर विश्वास करे, गौपालक, बुराइयों को दूर रखे वो हिन्दू है) - माधव दिग्विजय

ऋग्वेद में एक ऋषि का नाम 'सैन्धव' था जो बाद में "हैन्दाव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए।

ऋग्वेद (८:२:४१) में 'विवहिंदु' नाम के राजा का वर्णन है जिसने ४६००० गौएँ दान में दी थी। विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी राजा था ऋग्वेद मण्डल ८ में भी उसका वर्णन है।