"प्लिनी": अवतरणों में अंतर
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'''प्लिनी |
'''प्लिनी''' (Pliny the Elder) एक प्रमुख रोमन भूगोलवेत्ता था । |
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प्लिनी प्राचीन इतिहास में प्लिनी नाम के दो प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। बड़े प्लिनी का जन्म कोमो नामक स्थान में २३ ई. में हुआ वेस्पसियन तथा उसके पुत्र टाइटस के समय में इसने रोम में कई राजकीय पदों को सुशोभित किया। ७७ ई. में टाइटस को उसने अपना महान् ग्रंथ समर्पित किया। दो वर्ष बाद विसूवियस पहाड़ से निकले लावे से हरक्यूलियन तथा पांपिआइ को बड़ी क्षति पहुँची और इसी में प्लिनी का भी देहांत हो गया। यद्यपि प्लिनी में स्वयं मौलिकता का अभाव था, उसने बहुत से ग्रंथों का अध्ययन किया था। उसके भतीजे और दत्तक पुत्र [[प्लिनी (छोटा)|छोटे प्लिनी]] का कथन है कि वह हर समय पढ़ा करता था, यहाँ तक कि भोजन करते समय भी कोई व्यक्ति उसे कोई न कोई ग्रंथ पढ़कर सुनाता था। वह प्रत्येक ग्रंथ से सामग्री एकत्रित करता था और फिर कोई पुस्तक लिख्ता था। उसने बहुत से ग्रंथ लिखे। इनमें 'नेचुरल हिस्ट्री' (प्राकृतिक इतिहास) ज्ञान का भंडार है। इसमें [[भारत]] का भी कई स्थानों पर उल्लेख है और ऐसा विवरण भी दिया है जो और कहीं नहीं मिलता है। वह ३७ भागों में है और इसके छठे भाग में भारत के भूगोल का उल्लेख है जो [[मेगस्थनीज]] की 'इंडिका' पर आधारित है। |
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प्लिनी ने अपने देशवासियों को चेतावनी दी कि भारत शृंगार की सामग्री देकर रोम से बहुत धन खींचे ले जा रहा है। प्लिनी के वृत्तांत में बहुत कुछ कल्पित गाथाएँ भी मिलती हैं। उसकी अन्य कृतियों में निम्न उल्लेखनीय हैं - 'लाइफ़ ऑव पांपिनियस', 'डूबियस लैंग्वेज' इत्यादि। |
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== प्रमुख रचनाएं == |
== प्रमुख रचनाएं == |
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* [[नेचुरल हिस्ट्री]] |
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* [[लाइफ़ ऑव पांपिनियस]] |
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* [[डूबियस लैंग्वेज]] |
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* [[कॉस्मोग्राफ़ी]] |
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==इन्हें भी देखें== |
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*[[प्लिनी (छोटा)]] |
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13:57, 25 जुलाई 2014 का अवतरण
प्लिनी (Pliny the Elder) एक प्रमुख रोमन भूगोलवेत्ता था ।
परिचय
प्लिनी प्राचीन इतिहास में प्लिनी नाम के दो प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। बड़े प्लिनी का जन्म कोमो नामक स्थान में २३ ई. में हुआ वेस्पसियन तथा उसके पुत्र टाइटस के समय में इसने रोम में कई राजकीय पदों को सुशोभित किया। ७७ ई. में टाइटस को उसने अपना महान् ग्रंथ समर्पित किया। दो वर्ष बाद विसूवियस पहाड़ से निकले लावे से हरक्यूलियन तथा पांपिआइ को बड़ी क्षति पहुँची और इसी में प्लिनी का भी देहांत हो गया। यद्यपि प्लिनी में स्वयं मौलिकता का अभाव था, उसने बहुत से ग्रंथों का अध्ययन किया था। उसके भतीजे और दत्तक पुत्र छोटे प्लिनी का कथन है कि वह हर समय पढ़ा करता था, यहाँ तक कि भोजन करते समय भी कोई व्यक्ति उसे कोई न कोई ग्रंथ पढ़कर सुनाता था। वह प्रत्येक ग्रंथ से सामग्री एकत्रित करता था और फिर कोई पुस्तक लिख्ता था। उसने बहुत से ग्रंथ लिखे। इनमें 'नेचुरल हिस्ट्री' (प्राकृतिक इतिहास) ज्ञान का भंडार है। इसमें भारत का भी कई स्थानों पर उल्लेख है और ऐसा विवरण भी दिया है जो और कहीं नहीं मिलता है। वह ३७ भागों में है और इसके छठे भाग में भारत के भूगोल का उल्लेख है जो मेगस्थनीज की 'इंडिका' पर आधारित है।
प्लिनी ने अपने देशवासियों को चेतावनी दी कि भारत शृंगार की सामग्री देकर रोम से बहुत धन खींचे ले जा रहा है। प्लिनी के वृत्तांत में बहुत कुछ कल्पित गाथाएँ भी मिलती हैं। उसकी अन्य कृतियों में निम्न उल्लेखनीय हैं - 'लाइफ़ ऑव पांपिनियस', 'डूबियस लैंग्वेज' इत्यादि।
प्रमुख रचनाएं
इन्हें भी देखें
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