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'''बाणभट्ट''' [[संस्कृत]] साहित्यकार एवं [[हर्षवर्धन]] के राजकवि थे। उनका समय सातवीं शताब्दी ई० है। इस समय [[संस्कृत साहित्य]] की बहुत उन्नति हुई। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं : [[हर्षचरित]] तथा [[कादम्बरी]]।
'''बाणभट्ट''' [[संस्कृत]] साहित्यकार एवं [[हर्षवर्धन]] के राजकवि थे। उनका समय सातवीं शताब्दी ई० है। इस समय [[संस्कृत साहित्य]] की बहुत उन्नति हुई। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं : [[हर्षचरित]] तथा [[कादम्बरी]]।


[[कादंबरी]] दुनिया का पहला उपन्यास था।
[[कादंबरी]] दुनिया का पहला उपन्यास था।

==परिचय==
महाकवि बाणभट्ट ने [[गद्य]]रचना के क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त किया है जो कि [[कालिदास]] ने संस्कृत काव्य क्षेत्र में। पाश्चाद्वर्ती लेखकों ने एक स्वर में बाण पर प्रशस्तियों की अभिवृष्टि की है।

[[आर्यासप्तति]] के लेखक गोवर्धनाचार्य का कथन है-
:‘‘जाता शिखंडिनी प्राग्यथा शिखंडी तथावगच्छामि।
:प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं वाणी बाणी बभूवेति।’’

[[तिलकमंजरी]] के लेखक [[धनपाल]] की प्रशस्ति इस प्रकार है-
:केवलोऽपि स्पफुरन् बाणः करोति विमदान् कवीन्।
:किं पुनः क्लृप्तसन्धानपुलिन्दकृतसन्निधिः।।

[[त्रिलोचन]] ने निम्नलिखित पद्य में बाण की प्रशंसा की है-
:हृदि लग्नेन बाणेन यन्मन्दोऽपि पदक्रमः।
:भवेत् कविवरंगाणां चापलं तत्रकारणम्।।

राघवपांडवीय के लेखक कविराज के अनुसार-
:सुबन्धुर्वाणभट्टश्च कविराज इति त्रयः।
:वक्रोक्तिमार्ग निपुणश्चतुर्थो विद्यते न वा।।

पश्चाद्वर्ती लेखकों की अनन्त प्रशस्तियों में ये कुछ ही हैं।

बाण [[संस्कृत]] के कुछ गिने-चुने लेखकों में से एक हैं जिनके जीवन एवं काल के विषय में निश्चित रूप से ज्ञात है। [[कादम्बरी]] की भूमिका में तथा [[हर्षचरित]] के प्रथम दो उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक सूचना दी है।

[[सोन नदी]] (प्राचीन हिरण्यबाहु) के तट पर स्थित प्रीतिकूट नाम के ग्राम में वात्स्यायनगोत्रीय विद्वद्ब्राह्मण कुल में बाणने जन्म लिया। बाण अपने वंश का उद्भव सरस्वती तथा दधीचि के पुत्र सारस्वत के भाई वत्स से बतलाते हैं। वत्स का वंशज कुबेर था जिसका चतुर्थ पुत्र पाशुपत बाण का प्रपितामह था। बाण के पितामह का नाम अर्थपति था जिनको ग्यारह पुत्र हुए। बाण के पिता का नाम चित्रभानु था। बाण के शैशवकाल में ही उनकी माता राज्यदेवी की मृत्यु हो गई। उनका पालन-पोषण उनके पिता के द्वारा ही हुआ। बाण अभी चौदह वर्ष के ही थे कि उनके पिता उनके लिए कापफी सम्पत्ति छोड़कर चल बसे।

यौवन का प्रारम्भ एवं सम्पत्ति होने के कारण, बाण संसार को स्वयं देखने के लिए घर से चल पड़े। उन्होंने विभिन्न प्रकार के लोगों से सम्बन्ध स्थापित किया। अपने समवयस्क मित्रों तथा साथियों में बाण ने प्राकृत के कवि ईशान, दो भाट, एक चिकित्सक का पुत्र, एक पाठक, एक सुवर्णकार, एक रत्नाकर, एक लेखक, एक पुस्तकावरक, एक मार्दगिक, दो गायक, एक प्रतिहारी, दो वंशीवादक, एक गान के अध्यापक, एक नर्तक, एक आक्षिक, एक नट, एक नर्तकी, एक तांत्रिक, एक [[धातुकर्म|धातुविद्या]] में निष्णात और एक ऐन्द्रजालिक आदि की गणना की है। कई देशों का भ्रमण करके वह अपने स्थान प्रीतिकूट लौटा। वहां रहते हुए उन्हें हर्षवर्धन के चचेरे भाई कृष्ण का एक सन्देश मिला कि कुछ चुगलखोरों ने राजा से बाण की निन्दा की है इसलिए वे तुरन्त ही राजा से मिलने गए और दो दिन की यात्रा के पश्चात् अजिरावती के तट पर राजा को मिले। प्रथम साक्षात्कार
में बाण को बहुत निराशा हुई क्योंकि सम्राट के साथी [[मालवा|मालवाधीश]] ने कहा ‘अयमसौभुजंगः’ (यह वही सर्प (दुष्ट) है) अस्तु, बाण ने अपनी स्थिति का स्पष्टीकरण किया और सम्राट् उससे प्रसन्न हुए सम्राट के साथ कुछ मास रहकर बाण वापिस लौटा और उन्होंने प्रस्तुत हर्षचरित के रूप में हर्ष की जीवनी लिखनी प्रारम्भ की।

बाण की आत्मकथा यहां समाप्त हो जाती है और बाण के अन्तिम समय के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है।
परन्तु ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि बाण को राजसंरक्षण मिला और उन्होंने भी हर्ष चरित लिखकर उसका मूल्य चुका दिया। बाण का भूषणभट्ट अथवा भट्टपुलिन्द नाम का एक पुत्र था जिसने बाण की मृत्यु के पश्चात कादम्बरी को सम्पूर्ण किया।

==बाण का काल==
बाण के काल निर्णय में कोई कठिनाई नहीं है। हर्षचरित के प्रारम्भ में वे हर्ष को राज्य करता हुआ राजा बतलाते हैं-

:जयति ज्वलत्प्रतापज्वलनप्राकारकृतजगद्रश।
:सकलप्रणयिमनोरथसिद्धि श्रीपर्वती हर्षः।।

हर्ष के वंश का वर्णन उदाहरणतः प्रभाकरवर्धन एवं राज्यवर्धन के नाम यह निःसन्देह सिद्ध करते हैं कि बाण कन्नौज के सम्राट [[हर्षवर्धन]] (606-646) के राजकवि थे। बाण का यह काल बाह्य साक्ष्यों से भी साम्य रखता है। बाण का उल्लेख 9वीं शताब्दी में [[अलंकार शास्त्र]] के ज्ञाता [[आनन्दवर्धन]] ने किया। सम्भवतः बाण आनन्दवर्धन से बहुत पहले हो चुके थे। [[वामन]] (750 ईस्वी) ने भी बाण का उल्लेख किया। [[गौड़वाहो]] के लेखक [[वाक्पति राज]] (734 ईस्वी) भी बाण की प्रशंसा करते हैं।

==महाकवि बाण भट्ट की कृतियां==
[[कादम्बरी]] और [[हर्षचरित]] के अतिरिक्त कई दूसरी रचनाएँ भी बाण की मानी जाती हैं। उनमें से [[मार्कण्डेय पुराण]] के [[देवी महात्म्य]] पर आधारित दुर्गा का स्त्रोत [[चंडीशतक]] है। प्रायः एक नाटक '''‘पार्वती परिणय’''' भी बाण द्वारा रचित माना जाता है। परन्तु वस्तुतः इसका लेखक कोई पश्चाद्वर्ती वामन भट्टबाण है।


==शैली==
==शैली==

07:32, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

बाणभट्ट संस्कृत साहित्यकार एवं हर्षवर्धन के राजकवि थे। उनका समय सातवीं शताब्दी ई० है। इस समय संस्कृत साहित्य की बहुत उन्नति हुई। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं : हर्षचरित तथा कादम्बरी

कादंबरी दुनिया का पहला उपन्यास था।

परिचय

महाकवि बाणभट्ट ने गद्यरचना के क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त किया है जो कि कालिदास ने संस्कृत काव्य क्षेत्र में। पाश्चाद्वर्ती लेखकों ने एक स्वर में बाण पर प्रशस्तियों की अभिवृष्टि की है।

आर्यासप्तति के लेखक गोवर्धनाचार्य का कथन है-

‘‘जाता शिखंडिनी प्राग्यथा शिखंडी तथावगच्छामि।
प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं वाणी बाणी बभूवेति।’’

तिलकमंजरी के लेखक धनपाल की प्रशस्ति इस प्रकार है-

केवलोऽपि स्पफुरन् बाणः करोति विमदान् कवीन्।
किं पुनः क्लृप्तसन्धानपुलिन्दकृतसन्निधिः।।

त्रिलोचन ने निम्नलिखित पद्य में बाण की प्रशंसा की है-

हृदि लग्नेन बाणेन यन्मन्दोऽपि पदक्रमः।
भवेत् कविवरंगाणां चापलं तत्रकारणम्।।

राघवपांडवीय के लेखक कविराज के अनुसार-

सुबन्धुर्वाणभट्टश्च कविराज इति त्रयः।
वक्रोक्तिमार्ग निपुणश्चतुर्थो विद्यते न वा।।

पश्चाद्वर्ती लेखकों की अनन्त प्रशस्तियों में ये कुछ ही हैं।

बाण संस्कृत के कुछ गिने-चुने लेखकों में से एक हैं जिनके जीवन एवं काल के विषय में निश्चित रूप से ज्ञात है। कादम्बरी की भूमिका में तथा हर्षचरित के प्रथम दो उच्छ्वासों में बाण ने अपने वंश के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक सूचना दी है।

सोन नदी (प्राचीन हिरण्यबाहु) के तट पर स्थित प्रीतिकूट नाम के ग्राम में वात्स्यायनगोत्रीय विद्वद्ब्राह्मण कुल में बाणने जन्म लिया। बाण अपने वंश का उद्भव सरस्वती तथा दधीचि के पुत्र सारस्वत के भाई वत्स से बतलाते हैं। वत्स का वंशज कुबेर था जिसका चतुर्थ पुत्र पाशुपत बाण का प्रपितामह था। बाण के पितामह का नाम अर्थपति था जिनको ग्यारह पुत्र हुए। बाण के पिता का नाम चित्रभानु था। बाण के शैशवकाल में ही उनकी माता राज्यदेवी की मृत्यु हो गई। उनका पालन-पोषण उनके पिता के द्वारा ही हुआ। बाण अभी चौदह वर्ष के ही थे कि उनके पिता उनके लिए कापफी सम्पत्ति छोड़कर चल बसे।

यौवन का प्रारम्भ एवं सम्पत्ति होने के कारण, बाण संसार को स्वयं देखने के लिए घर से चल पड़े। उन्होंने विभिन्न प्रकार के लोगों से सम्बन्ध स्थापित किया। अपने समवयस्क मित्रों तथा साथियों में बाण ने प्राकृत के कवि ईशान, दो भाट, एक चिकित्सक का पुत्र, एक पाठक, एक सुवर्णकार, एक रत्नाकर, एक लेखक, एक पुस्तकावरक, एक मार्दगिक, दो गायक, एक प्रतिहारी, दो वंशीवादक, एक गान के अध्यापक, एक नर्तक, एक आक्षिक, एक नट, एक नर्तकी, एक तांत्रिक, एक धातुविद्या में निष्णात और एक ऐन्द्रजालिक आदि की गणना की है। कई देशों का भ्रमण करके वह अपने स्थान प्रीतिकूट लौटा। वहां रहते हुए उन्हें हर्षवर्धन के चचेरे भाई कृष्ण का एक सन्देश मिला कि कुछ चुगलखोरों ने राजा से बाण की निन्दा की है इसलिए वे तुरन्त ही राजा से मिलने गए और दो दिन की यात्रा के पश्चात् अजिरावती के तट पर राजा को मिले। प्रथम साक्षात्कार में बाण को बहुत निराशा हुई क्योंकि सम्राट के साथी मालवाधीश ने कहा ‘अयमसौभुजंगः’ (यह वही सर्प (दुष्ट) है) अस्तु, बाण ने अपनी स्थिति का स्पष्टीकरण किया और सम्राट् उससे प्रसन्न हुए सम्राट के साथ कुछ मास रहकर बाण वापिस लौटा और उन्होंने प्रस्तुत हर्षचरित के रूप में हर्ष की जीवनी लिखनी प्रारम्भ की।

बाण की आत्मकथा यहां समाप्त हो जाती है और बाण के अन्तिम समय के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है। परन्तु ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि बाण को राजसंरक्षण मिला और उन्होंने भी हर्ष चरित लिखकर उसका मूल्य चुका दिया। बाण का भूषणभट्ट अथवा भट्टपुलिन्द नाम का एक पुत्र था जिसने बाण की मृत्यु के पश्चात कादम्बरी को सम्पूर्ण किया।

बाण का काल

बाण के काल निर्णय में कोई कठिनाई नहीं है। हर्षचरित के प्रारम्भ में वे हर्ष को राज्य करता हुआ राजा बतलाते हैं-

जयति ज्वलत्प्रतापज्वलनप्राकारकृतजगद्रश।
सकलप्रणयिमनोरथसिद्धि श्रीपर्वती हर्षः।।

हर्ष के वंश का वर्णन उदाहरणतः प्रभाकरवर्धन एवं राज्यवर्धन के नाम यह निःसन्देह सिद्ध करते हैं कि बाण कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन (606-646) के राजकवि थे। बाण का यह काल बाह्य साक्ष्यों से भी साम्य रखता है। बाण का उल्लेख 9वीं शताब्दी में अलंकार शास्त्र के ज्ञाता आनन्दवर्धन ने किया। सम्भवतः बाण आनन्दवर्धन से बहुत पहले हो चुके थे। वामन (750 ईस्वी) ने भी बाण का उल्लेख किया। गौड़वाहो के लेखक वाक्पति राज (734 ईस्वी) भी बाण की प्रशंसा करते हैं।

महाकवि बाण भट्ट की कृतियां

कादम्बरी और हर्षचरित के अतिरिक्त कई दूसरी रचनाएँ भी बाण की मानी जाती हैं। उनमें से मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य पर आधारित दुर्गा का स्त्रोत चंडीशतक है। प्रायः एक नाटक ‘पार्वती परिणय’ भी बाण द्वारा रचित माना जाता है। परन्तु वस्तुतः इसका लेखक कोई पश्चाद्वर्ती वामन भट्टबाण है।

शैली

देखें, महाकवि बाणभट्ट की शैली

इन्हें भी देखें