"भारत में किसान आत्महत्या": अवतरणों में अंतर

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भारत में किसान आत्महत्या १९९० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के [[आत्महत्या]] की रपटें दर्ज की गई है। 1997 २००६ के बीच १,६६,३०४ किसानों ने आत्महत्या की। <ref>[http://www.im4change.org/hindi/%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F/%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F-70.html खेतिहर संकट]</ref>[[मौनसून]] पर बहुत हद तक निर्भर भारतीय कृषि में मौनसून की असफलता से प्रभावित [[नकदी फसल|नकदी फसलें]] नष्ट होने को किसानों द्वारा की गई आत्महत्या का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती है। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्या की है। <ref>{{cite web|last=Shiva|first=Vandana|title=Why Are Indian Farmers Committing Suicide and How Can We Stop This Tragedy?|url=http://www.voltairenet.org/article159305.html|publisher=Voltaire Network|accessdate=14 April 2013}}</ref>
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== इतिहास ==
== इतिहास ==
१९९० ई. में प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार [[हिंदू]] के ग्रामीण मामलों के संवाददाता पी. साईंनाथ ने किसानों के नियमित आत्महत्या की सूचना दी। आरंभ में ये रपटें [[महाराष्ट्र]] से आईं। जल्दी ही [[आंध्रप्रदेश]] से भी आत्महत्या की खबरें आने लगी। शुरुआत में लगा की अधिकांश आत्महत्याएं महाराष्ट्र के [[विदर्भ]] क्षेत्र के [[कपास]] उत्पादक किसानों ने की है। लेकिन महाराष्ट्र के राज्य अपराध लेखा कार्ययालय से प्राप्त आंकड़ों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि पूरे महाराष्ट्र में कपास सहित अन्य नकदी फसलों के किसानों की आत्महत्या की दर बहुत अधिक रही है। आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जोत वाले किसान नहीं थे बल्की मध्यम औ्र बड़े जोतों वाले किसानों ने भी आत्महत्याएं की थी। राज्य सरकार ने इस समस्या पर विचार करने के लिए कई जाँच समितियाँ बनाी। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्य सरकार द्वारा विदर्भ के किसानों पर व्यय करने के लिए ११० अरब रूप्ए के अनुदान की घोषणा की। बाद के वर्षों में कृषि संकट के कारण महाराष्ट्र, [[कर्नाटक]], [[केरल]], आंध्रप्रदेश, [[पंजाब]], [[मध्यप्रदेश]] और [[छत्तीसगढ़]] में भी किसानों ने आत्महत्या की। इस दृष्टि से २००९ अब तक का सबसे खराब वर्ष था।
१९९० ई. में प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार [[हिंदू]] के ग्रामीण मामलों के संवाददाता पी. साईंनाथ ने किसानों के नियमित आत्महत्या की सूचना दी। आरंभ में ये रपटें [[महाराष्ट्र]] से आईं। जल्दी ही [[आंध्रप्रदेश]] से भी आत्महत्या की खबरें आने लगी। शुरुआत में लगा की अधिकांश आत्महत्याएं महाराष्ट्र के [[विदर्भ]] क्षेत्र के [[कपास]] उत्पादक किसानों ने की है। लेकिन महाराष्ट्र के राज्य अपराध लेखा कार्ययालय से प्राप्त आंकड़ों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि पूरे महाराष्ट्र में कपास सहित अन्य नकदी फसलों के किसानों की आत्महत्या की दर बहुत अधिक रही है। आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जोत वाले किसान नहीं थे बल्की मध्यम और बड़े जोतों वाले किसानों ने भी आत्महत्याएं की थी। राज्य सरकार ने इस समस्या पर विचार करने के लिए कई जाँच समितियाँ बनीं। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्य सरकार द्वारा विदर्भ के किसानों पर व्यय करने के लिए ११० अरब रूपए के अनुदान की घोषणा की। बाद के वर्षों में कृषि संकट के कारण महाराष्ट्र, [[कर्नाटक]], [[केरल]], आंध्रप्रदेश, [[पंजाब]], [[मध्यप्रदेश]] और [[छत्तीसगढ़]] में भी किसानों ने आत्महत्या की। इस दृष्टि से २००९ अब तक का सबसे खराब वर्ष था।


== आंकड़े ==
== आंकड़े ==

13:38, 11 अक्टूबर 2013 का अवतरण

भारत में किसान आत्महत्या १९९० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसानों के आत्महत्या की रपटें दर्ज की गई है। १९९७ से २००६ के बीच १,६६,३०४ किसानों ने आत्महत्या की। [1]भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्या का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती है। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्या की है। [2]

इतिहास

१९९० ई. में प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार द हिंदू के ग्रामीण मामलों के संवाददाता पी. साईंनाथ ने किसानों के नियमित आत्महत्या की सूचना दी। आरंभ में ये रपटें महाराष्ट्र से आईं। जल्दी ही आंध्रप्रदेश से भी आत्महत्या की खबरें आने लगी। शुरुआत में लगा की अधिकांश आत्महत्याएं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कपास उत्पादक किसानों ने की है। लेकिन महाराष्ट्र के राज्य अपराध लेखा कार्ययालय से प्राप्त आंकड़ों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि पूरे महाराष्ट्र में कपास सहित अन्य नकदी फसलों के किसानों की आत्महत्या की दर बहुत अधिक रही है। आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जोत वाले किसान नहीं थे बल्की मध्यम और बड़े जोतों वाले किसानों ने भी आत्महत्याएं की थी। राज्य सरकार ने इस समस्या पर विचार करने के लिए कई जाँच समितियाँ बनीं। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्य सरकार द्वारा विदर्भ के किसानों पर व्यय करने के लिए ११० अरब रूपए के अनुदान की घोषणा की। बाद के वर्षों में कृषि संकट के कारण महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी किसानों ने आत्महत्या की। इस दृष्टि से २००९ अब तक का सबसे खराब वर्ष था।

आंकड़े

कारण

किसानों को आत्महत्या की दशा तक पहुँचा देने के मुख्य कारणों में खेती का हानिप्रद होना या किसानों के भरण-पोषण में असमर्थ होना है। कृषि की अनुपयोगिता के मुख्य कारण हैं-

  • कृषि जोतों का लघुतर होते जाना - १९६०-६१ ई. में भूस्वामित्व की ईकाइ का औसत आकार २.३ हेक्टेयर था जो २००२-०३ ई. में घटकर १।०६ हेक्टेयर रह गया। [3]

संदर्भ

  1. खेतिहर संकट
  2. Shiva, Vandana. "Why Are Indian Farmers Committing Suicide and How Can We Stop This Tragedy?". Voltaire Network. अभिगमन तिथि 14 April 2013.
  3. खेतिहर संकट