"साल (वृक्ष)": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो Robot: Removing te (strong connection between (2) hi:साल (वृक्ष) and te:గుగ్గిలం కలప చెట్టు),fi (strong connection between (2) hi:साल (वृक्ष) and fi:Intianmerantipuu)
छो Bot: Migrating interwiki links, now provided by Wikidata on d:q909828
पंक्ति 23: पंक्ति 23:


[[श्रेणी:वृक्ष]]
[[श्रेणी:वृक्ष]]

[[bn:শাল (উদ্ভিদ)]]
[[de:Salbaum]]
[[en:Shorea robusta]]
[[eo:Fortika ŝoreo]]
[[fr:Sal (plante)]]
[[ja:サラソウジュ]]
[[lt:Stambioji šorėja]]
[[nl:Salboom]]
[[pl:Damarzyk mocny]]
[[ru:Сал (растение)]]
[[si:සල් (බුද්ධ චරිතය සබැඳි)]]
[[sv:Salträd]]
[[ta:குங்கிலியம்]]
[[zh:娑羅樹]]

17:56, 15 अगस्त 2013 का अवतरण

Sal

वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
(unranked) Eudicots
(unranked) Rosids
गण: Malvales
कुल: Dipterocarpaceae
वंश: सोरिया
जाति: एस. रोवसटा
द्विपद-नामकरण
सोरिया रोवसटा

शाल या साखू (Shorea robusta) एक द्विबीजपत्री बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी लकड़ी इमारती कामों में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है।

इसे संस्कृत में अग्निवल्लभा, अश्वकर्ण या अश्वकर्णिका कहते हैं।

साल या साखू (Sal) एक वृंदवृत्ति एवं अर्धपर्णपाती वृक्ष है जो हिमालय की तलहटी से लेकर ३,०००-४,००० फुट की ऊँचाई तक और उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा असम के जंगलों में उगता है। इस वृक्ष का मुख्य लक्षण है अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेना, जैसे ९ सेंमी से लेकर ५०८ सेंमी वार्षिक वर्षा वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, बर्मा तथा श्रीलंका देश में इसकी कुल मिलाकर ९ जातियाँ हैं जिनमें शोरिया रोबस्टा (Shorea robusta Gaertn f.) मुख्य हैं।

इस वृक्ष से निकाला हुआ रेज़िन कुछ अम्लीय होता है और धूप तथा औषधि के रूप में प्रयोग होता है। तरुण वृक्षों की छाल में प्रास लाल और काले रंग का पदार्थ रंजक के काम आता है। बीज, जो वर्षा के आरंभ काल के पकते हैं, विशेषकर अकाल के समय अनेक जगहों पर भोजन में काम आते हैं।

इस वृक्ष की उपयोगिता मुख्यत: इसकी लकड़ी में है जो अपनी मजबूती तथा प्रत्यास्थता के लिए प्रख्यात है। सभी जातियों की लकड़ी लगभग एक ही भाँति की होती है। इसका प्रयोग धरन, दरवाजे, खिड़की के पल्ले, गाड़ी और छोटी-छोटी नाव बनाने में होता है। केवल रेलवे लाइन के स्लीपर बनाने में ही कई लाख घन फुट लकड़ी काम में आती है। लकड़ी भारी होने के कारण नदियों द्वारा बहाई नहीं जा सकती। मलाया में इस लकड़ी से जहाज बनाए जाते हैं।